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30 अप्रैल 2018

Kasis Bhasma Benefits & Use | कसीस भस्म के फ़ायदे


कसीस भस्म क्लासिकल आयुर्वेदिक मेडिसिन है जो खून की कमी या अनेमिया और लिवर-स्प्लीन की बीमारियों में असरदार है, तो आईये जानते हैं कसीस भस्म क्या है? इसे बनाने का तरीका, इसके फ़ायदे और इस्तेमाल की पूरी डिटेल - 

कसीस भस्म जो है कसीस नाम के एक तरह के खनिज से बनाया जाता है. यह कृत्रिम भी बनाया जाता है जो कि लोहा और गंधक के तेज़ाब से बनता है.  यह हरे रंग का मिश्री की तरह होता है. अंग्रेज़ी में इसे फेरस सलफेट(Ferrous Sulphate) के नाम से जाना जाता है. यह दो तरह का होता है. बालु कसीस और पुष्प कसीस. भस्म बनाने के लिए पुष्प कसीस यूज़ किया जाता है जिसे हीरा कसीस भी कहते हैं. इसका पहले शोधन करना होता है.

कसीस भस्म शोधन विधि -

भाँग के रस में दोला-यंत्र में स्वेदन करने से यह शुद्ध हो जाता है.

कसीस भस्म निर्माण विधि - 

बनाने का तरीका या है कि शुद्ध कसीस को लोहे के तवे पर गर्म कर उसका पानी सुखा लें. इसके बाद ताज़े हरे आँवले के रस, भांगरा या खन्दारी अनार के रस में घोंट कर टिकिया बनाकर सुखा लेना और लघुपुट की अग्नि देना है. दो बार लघुपुट की अग्नि देने से लाल रँग की भस्म बन जाती है.  

कसीस भस्म के गुण-

आयुर्वेदानुसार यह वात और कफ़ दोष पर असर करता है. यह खून बढ़ाने वाला(Hematogenic) और पाचक(Digestive Stimulant) जैसे गुणों से भरपूर होता है. 

कसीस भस्म के फ़ायदे- 

खून, लिवर, स्प्लीन, पेट और गर्भाशय पर इसका सबसे ज़्यादा असर होता है. 
आयरन की कमी, खून की कमी या एनीमिया, लिवर का बढ़ जाना, स्प्लीन बढ़ जाना, फैटी लिवर और पाचन शक्ति की कमज़ोरी में असरदार है.

महिलाओं के पीरियड रिलेटेड रोग जैसे पीरियड नहीं आना और Dysmenorrhea में भी असरदार है. 

यह पाचन शक्ति को ठीक कर भूख को बढ़ाता है. 

बालों के समय से पहले सफ़ेद होने और आँखों की प्रॉब्लम में भी इस से फ़ायदा होता है. 

बीमारी के बाद होने वाली कमज़ोरी दूर करने और भूख बढ़ाने के लिए यह अच्छी दवा है.

फोड़े-फुंसी, ज़ख्म और खुजली में भी इसे लगाने से फ़ायदा होता है. मंजन में मिलाकर लगाने से दांत-मसूड़े मज़बूत होते हैं. 

कसीस भस्म की मात्रा और सेवन विधि - 

125mg से 375mg तक सुबह शाम शहद के साथ लेना चाहिए. यह व्यस्क व्यक्ति की मात्रा है. उम्र कम होने पर डोज़ कम होनी चाहिए. यह मंडूर भस्म से भी ज़्यादा सौम्य होता है, कोमल प्रकृति वालों को भी सूट करता है.

कसीस भस्म के साइड इफेक्ट्स-

सही डोज़ में ही इसका इस्तेमाल करना चाहिय नहीं तो उलटी, चक्कर और कब्ज़ जैसी प्रॉब्लम किसी-किसी को हो सकती है. आयुर्वेदिक कंपनियों का यह मिल जाता है, इसे आप ऑनलाइन भी ख़रीद सकते हैं. 

29 अप्रैल 2018

Ashoka Compound Benefits in Hindi | अशोका कम्पाउण्ड के फ़ायदे - Lakhaipur



अशोका कम्पाउण्ड जो है सांडू फार्मा नाम की कम्पनी का पेटेंट या प्रोप्राइटरी ब्रांड है जो कि सिरप के रूप में होता है. इसके इस्तेमाल महिलाओं की पीरियड रिलेटेड बीमारियाँ दूर होती हैं, तो आईये जानते हैं अशोका कम्पाउण्ड का कम्पोजीशन, फ़ायदे और इस्तेमाल की पूरी डिटेल - 

अशोका कम्पाउण्ड का कम्पोजीशन- 

जैसा कि इसके नाम से ही पता चलता है इसका मेन इनग्रीडेंट अशोक की छाल होती है. इसके कम्पोजीशन की बात करें तो इसे अशोक छाल, दारूहल्दी, धायफूल, लोध्र, मंजीठ, देवदार, अडूसा, उदम्बर, रक्त रोहिड़ा, तुलसी बीज, नीलकमल, गोखरू, धमासा, बला, चन्दन, नागरमोथा, काली जीरी और  रसांजन जैसी जड़ी-बूटियाँ मिलाकर बनाया गया है. 

अशोका कम्पाउण्ड के फ़ायदे- 

महिला रोगों की यह एक असरदार दवा है. इसके इस्तेमाल से पीरियड रिलेटेड रोग दूर होते हैं जैसे हैवी ब्लीडिंग,लेस ब्लीडिंग, Irregular Period और ल्यूकोरिया में भी फ़ायदा होता है.

इसके इस्तेमाल से पीरियड साइकिल नार्मल होता है और कंसीव करने में हेल्प करता है.

यह गर्भाशय को शक्ति देता है और रोगमुक्त कर देता है. 

अशोका कम्पाउण्ड की मात्रा और सेवन विधि -

15 से 30 ML तक सुबह शाम खाना के बाद लेना चाहिए. पूरा लाभ के लिए लगातार 3-4 महिना लेना चाहिए. ऑलमोस्ट सेफ़ दवा है, प्रेगनेंसी में भी ली जा सकती है. इसके 200 ML के बोतल की क़ीमत 70 रुपया है. इसी के तरह का काम करने वाली दूसरी दवाएं हैं अशोकारिष्ट, हमदर्द मस्तुरिन और हिमालया ईवकेयर वगैरह. 

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27 अप्रैल 2018

Vasavaleha for Cough, Asthma & Bronchitis | वासावलेह खाँसी, अस्थमा और ब्रोंकाइटिस की दवा


वासावलेह क्लासिकल आयुर्वेदिक मेडिसिन है जो खाँसी, अस्थमा, क्षय या टी.बी. और ब्रोंकाइटिस जैसे कफज रोगों को दूर करती है. तो आईये जानते हैं, वासावलेह का कम्पोजीशन, फ़ायदे और इस्तेमाल की पूरी डिटेल - 

वासावलेह का कम्पोजीशन - 

जैसा कि इसके नाम से ही पता चलता है इसका मुख्य घटक वासा नाम की बूटी होती है. जिसे अडूसा, वसाका और बाकस जैसे नामों से जाना जाता है. अंग्रेजी में इसे Adhatoda Vasaka कहा जाता है. इसके कम्पोजीशन की बात करें तो इसमें वासा के पत्तों का रस- 800 ग्राम, मिश्री और शहद प्रत्येक-  400 ग्राम, पिप्पली और घी प्रत्येक 100 ग्राम मिला होता है. 

वासावलेह निर्माण विधि -

बनाने का तरीका यह होता है कि वासा के रस को कड़ाही में डालकर मंद आंच में गाढ़ा होने तक पकाते हैं, उसके बाद पीसी हुयी मिश्री और घी मिलाकर हलवे की तरह गाढ़ा होने तक पकाएं. इसके बाद ठंढा होने पर पिप्पली का चूर्ण और शहद अच्छी तरह मिक्स कर रख लें, बस वासावलेह तैयार है!

वासावलेह के गुण -

यह कफ़ दोष को दूर करता है. श्वास-कास नाशक यानि Expectorant, Broncho-dilator और Antimicrobial जैसे गुणों से भरपूर है. 

वासावलेह के फ़ायदे- 

खाँसी, साँस की तकलीफ़, अस्थमा, ब्रोंकाइटिस और क्षयरोग या टी. बी. वाली खांसी में ही इसका सबसे ज़्यादा प्रयोग किया जाता है.

दिल का दर्द, पार्शवशूल या पेट के साइड में दर्द होना, रक्तपित्त या ब्लीडिंग वाले रोग जैसे नाक से खून आना, बुखार और अल्सरेटिव कोलाइटिस में भी यह उपयोगी है, ऐसा शास्त्रों में कहा गया है.

वासावलेह की मात्रा और सेवन विधि - 

एक से दो स्पून तक सुबह शाम गर्म पानी या मिल्क से लेना चाहिए. बच्चों को कम मात्रा में देना चाहिए. चीनी मिला होने से शुगर रोगी सावधानी से यूज़ करें. 

आयुर्वेदिक कम्पनियों का यह मिल जाता है, डाबर के 100 ग्राम की क़ीमत 53 रुपया है. इसे आप आयुर्वेदिक दवा दुकान से या फिर ऑनलाइन ख़रीद सकते हैं निचे दिए लिंक से- 









25 अप्रैल 2018

Agnitundi Vati for Stomach Disease & Appendicitis | अग्नितुण्डी वटी अपेंडिसाईटिस और पेट के रोगों की औषधि


अग्नितुण्डी वटी क्लासिकल आयुर्वेदिक मेडिसिन है जो ख़ासकर पेट की बीमारियों के लिए इस्तेमाल की जाती है. इसे पेट की गैस, अजीर्ण, अग्निमांध, विशुचिका, गृहणी और अपेनडीसाईटिस जैसी बीमारियों में किया जाता है. तो आईये जानते हैं अग्नितुण्डी वटी का कम्पोजीशन, बनाने का तरीका इसके फ़ायदे और इस्तेमाल की पूरी डिटेल - 

अग्नितुण्डी वटी के घटक या कम्पोजीशन - 

अग्नितुण्डी वटी एक रसायन औषधि है जिसमे जड़ी-बूटियों के अलावा पारा गंधक भी मिला होता है. इसके कम्पोजीशन की बात करें तो इसमें शुद्ध पारा, शुद्ध गंधक, शुद्ध बछनाग, हर्रे, बहेड़ा, आंवला, सज्जीक्षार, यवक्षार, चित्रकमूल, सेंधानमक, जीरा, अजमोद, समुद्र नमक, वायविडंग, काला नमक, सोंठ, कालीमिर्च और पीपल प्रत्येक एक-एक भाग और शुद्ध कुचला अठारह भाग का मिश्रण होता है. 

अग्नितुण्डी वटी निर्माण विधि - 

बनाने का तरीका यह होता है कि सबसे पहले पारा-गंधक की कज्जली बना लें और इसके बाद दूसरी जड़ी-बूटियों का बारीक चूर्ण मिक्स कर शुद्ध कुचला का चूर्ण सबसे लास्ट में मिलायें और फिर निम्बू के रस में एक दिन घोंटकर आधी रत्ती या 60mg की गोलियाँ बनाकर सुखाकर रख लें. बस अग्नितुण्डी वटी तैयार है!

अग्नितुण्डी वटी के गुण - 

यह पित्त को बढ़ाती है और वात-कफ़ दोष को बैलेंस करती है. 

अग्नितुण्डी वटी के फ़ायदे - 

अग्निमान्ध और अजीर्ण की यह बेहद असरदार दवा है. यानि भूख की कमी हो, खाने में रूचि न हो और पेट भरा-भरा लगे तो वैसी कंडीशन में भोजन के एक घंटा पहले एक गोली अग्नितुण्डी वटी लेने से बहुत फ़ायदा होता है. 

परिणाम शूल या खाना खाने के बाद पेट दर्द होने पर इसके साथ में शूलवर्जिनि वटी और कपर्दक भस्म लेने से समस्या दूर होती है. 

लिवर की कमज़ोरी होने से जब ग्रहणी रोग हो जाता है तो उसमे भी इसका प्रयोग करना चाहिए. हर तरह के लिवर की बीमारियों में अग्नितुण्डी वटी को दूसरी सहायक औषधियों के साथ लेने से अच्छा लाभ होता है. 

अपेनडीसाईटिस में - 

जब अपेंडिक्स के तेज़ दर्द में भी यह असरदार है. अपेंडिक्स के तेज़ दर्द में अग्नितुण्डी वटी एक गोली + शूलवर्जिनि वटी एक गोली और शंख वटी एक गोली मिलाकर गर्म पानी से लेने से तुरन्त फ़ायदा होने लगता है. अग्नितुण्डी वटी अपेनडीसाईटिस को बिना ऑपरेशन ठीक करने की शक्ति रखती है. 

वात रोगों के लिए- 

कुचला प्रधान औषधि होने से यह वात रोगों में भी असरदार है. जोड़ों का दर्द, गठिया और आमवात जैसे रोगों में इसके इस्तेमाल से फ़ायदा होता है. 

अग्नितुण्डी वटी की मात्रा और सेवनविधि - 

एक-एक गोली सुबह शाम पानी से या फिर रोगानुसार उचित अनुपान से. चूँकि यह कुचला मिली हुयी रसायन औषधि है इसलिए इसे आयुर्वेदिक डॉक्टर की सलाह से ही लेना चाहिए नहीं तो नुकसान भी हो सकता है. आयुर्वेदिक कम्पनियों की यह मिल जाती है, इसे ऑनलाइन भी ख़रीद सकते हैं. 

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23 अप्रैल 2018

Lavanbhaskar Churna | लवण भास्कर चूर्ण भूख जगाये, हाजमा बढ़ाये


लवण भास्कर चूर्ण क्लासिकल आयुर्वेदिक मेडिसिन  है जो Digestive System की बीमारियों में असरदार है. इसके इस्तेमाल से भूख बढ़ती है, गैस, खाने में रूचि नहीं होना, भूख की कमी, अजीर्ण और कब्ज़ जैसे पेट के रोग दूर होते हैं, तो आईये जानते हैं लवण भास्कर चूर्ण का कम्पोजीशन, फ़ायदे और इस्तेमाल की पूरी डिटेल  और साथ इसका एक स्पेशल यूज़ भी जानेंगे जो शायेद आप नहीं जानते हों- 

लवण भास्कर चूर्ण के घटक या कम्पोजीशन- 

इसे कई तरह के नमक और जड़ी-बूटियों के मिश्रण से बनाया जाता है, इसके कम्पोजीशन की बात करें तो इसमें - 

समुद्र लवण-96 ग्राम, सौवर्च लवण-60ग्राम, विड लवण, सैन्धव लवण, धनिया, पिप्पली, पीपलामूल, कृष्ण जीरक, त्वक पत्र, नागकेशर, तालिश पत्र, अम्लवेत प्रत्येक 24-24ग्राम, काली मिर्च, श्वेत जीरक, सोंठ, अनार दाना, छोटी इलायची प्रत्येक 12-12ग्राम का मिश्रण होता है. 

बनाने का तरीका यह है कि सभी चीज़ों को कूटपीसकर चूर्ण बनाकर एयर टाइट डब्बे में रख लें. बस लवण भास्कर चूर्ण तैयार है. 

लवण भास्कर चूर्ण के फ़ायदे- 

यह मन्दाग्नि या भूख की कमी को दूर कर भूख बढ़ा देता है. हाजमा ठीक करता है जिस से खाना अच्छी तरह से हज़म होने लगता है. 

पेट में गैस, गोला बनना और कब्ज़ या Constipation को भी दूर करता है.  

यह स्वाद में टेस्टी और चटपटा होता है. 

लवण भास्कर चूर्ण का स्पेशल यूज़ - इसे सब्जी का स्वाद बढ़ाने के लिए भी आप इस्तेमाल कर सकते हैं. कोई भी मसालेदार सब्ज़ी बनाना हो तो इसे एक दो स्पून मिक्स कर सब्ज़ी का स्वाद बढ़ा सकते हैं. विशेष आयोजनों के लिए जब पूरी सब्जी बनाई जाती है तो सब्ज़ी का टेस्ट बढ़ाने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है. 

लवण भास्कर चूर्ण की मात्रा और सेवन विधि - 

आधा से एक स्पून तक रोज़ दो बार पानी या छाछ के साथ खाना खाने के बाद लेना चाहिए. यह ऑलमोस्ट सेफ़ दवा है, पर जिनको अल्सर की समस्या हो तो इसका इस्तेमाल नहीं करना चाहिए, नमक की तेज़ मात्रा होने से यह अल्सर को बढ़ा सकता है. डाबर के 60 ग्राम की क़ीमत 47 रुपया है, इसे आयुर्वेदिक दवा दुकान से या फिर ऑनलाइन भी ख़रीद सकते हैं निचे दिए लिन्क से - 



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Ekangveer Ras | एकांगवीर रस गुण, उपयोग और निर्माण विधि - Lakhaipur.com


एकांगवीर रस शास्त्रीय आयुर्वेदिक औषधि है जो वात रोगों को दूर करती है. इसके इस्तेमाल से एकांग वात, अर्धांग वात, पैरालिसिस या लकवा, पक्षाघात और साइटिका जैसे रोग दूर होते हैं, तो आईये जानते हैं एकांगवीर रस का कम्पोजीशन, बनाने का तरीका, फ़ायदे और इस्तेमाल की पूरी डिटेल - 

एकांगवीर रस के घटक या कम्पोजीशन - 

इसे बनाने के लिए चाहिए होता है- रस सिन्दूर, शुद्ध गंधक, कान्त लौह भस्म, वंग भस्म, नाग भस्म, ताम्र भस्म, अभ्रक भस्म, तीक्ष्ण लौह भस्म, सोंठ, काली मिर्च और पीपल सभी बराबर वज़न में.

बनाने का तरीका यह है कि सोंठ, मिर्च और पीपल का बारीक चूर्ण बना लें. रस सिन्दूर को खरलकर दुसरे सभी भस्म और चूर्ण को मिक्स कर एक दिन तक घोटें. 

इसके बाद त्रिफला, त्रिकुटा, संभालू, चित्रक, भृंगराज, सहजन, कूठ, आंवला, कुचला, आक, धतुरा और अदरक के रस की तीन-तीन भावना देकर एक-एक रत्ती या 125mg की गोलियाँ बनाकर सुखाकर रख लें. बस एकांगवीर रस तैयार है. 

एकांगवीर रस के गुण - 

यह वातनाशक, कफ़नाशक, कीटाणु नाशक और विषहर गुणों से भरपूर होता है. यह वात वाहिनी नाड़ियों और ह्रदय को शक्ति देता है. 

एकांगवीर रस के फ़ायदे -

लकवा, पक्षाघात या Paralysis में ही इसका सबसे ज़्यादा इस्तेमाल किया जाता है. जब शरीर के किसी अंग जैसे हाथ-पाँव, आँख, नाक, कान इत्यादि चेतना शक्ति और सञ्चालन क्रिया नष्ट हो जाती है तो उसी को लकवा या Paralysis कहते हैं. ऐसी कंडीशन में एकांगवीर रस से बहुत लाभ होता है. 

एकांगवात(Paraplegia) यानी बॉडी के किसी एक पार्ट का लकवा, अर्धांग वात(Hemiplegia) यानि आधे बॉडी का लकवा, सर्वांगवात यानी पुरे बॉडी का लकवा, कान में सन-सन की आवाज़ आना या फिर सिटी की आवाज़ आना जैसे वात रोगों में यह असरदार है. 

गृध्रसी या साइटिका में भी असरदार है. 

एकांगवीर रस की मात्रा और सेवन विधि - 

एक से दो गोली तक सुबह शाम शहद के साथ या फिर वात नाशक दवाओं के साथ लेना चाहिए. इसके साथ में दशमूल क्वाथ या फिर रास्नादी क्वाथ भी ले सकते हैं. 
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चूँकि यह रसायन औषधि है तो इसे आयुर्वेदिक डॉक्टर की सलाह से ही लेना चाहिए. यह बहुत ही तेज़ असर करने वाली दवा है. इसे आयुर्वेदिक दवा दुकान से या फिर ऑनलाइन भी ख़रीद सकते हैं.

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22 अप्रैल 2018

Cod Liver Oil Benefits in Hindi | कॉड लीवर आयल कैप्सूल के फ़ायदे | Lakhaipur

कॉड लीवर आयल चमत्कारी गुणों से भरपूर ऐसी चीज़ है जिसे बच्चों से लेकर बड़े-बूढ़ों तक के लिए फ़ायदेमंद माना जाता है.कॉड लीवर आयल क्या चीज़ है? इसके क्या-क्या फ़ायदे हैं? इसका सेवन कैसे किया जाये? आईये जानते हैं इन सब की पूरी डिटेल - 

कॉड लीवर आयल जैसा कि इसके नाम से ही पता चलता है कॉड के लीवर का तेल. तो कॉड क्या चीज़ है? 
Atlantic Cod Fish

कॉड एक तरह की मछली होती है जिसे कॉड फिश कहते हैं. कॉड लीवर आयल को मछली का तेल भी कहा जाता है. अटलांटिक कॉड फिश के लीवर से निकाले गए तेल को कॉड लीवर आयल कहा जाता है. यह गुणों से भरपूर होता है. इसे सॉफ्ट जिलेटिन कैप्सूल के रूप में कई सारी कम्पनियां बनाती हैं. यह विटामिन ऐ, विटामिन डी और ओमेगा-3 फैटी एसिड से भरपूर होता है.

कॉड लीवर आयल कैप्सूल के कुछ ख़ास फ़ायदे 


  • कैल्शियम और विटामिन डी की कमी दूर करे - 


कॉड लीवर आयल विटामिन डी से भरपूर होता है. शरीर में होने वाली विटामिन डी की कमी को दूर कर देता है. नेचुरल कैल्शियम की प्रचुर मात्रा होने से हड्डियाँ मज़बूत होती हैं, दांत स्वस्थ होते हैं. हड्डियों की कमज़ोरी और ऑस्टियोपोरोसिस जैसी बीमारियों से बचाता है. 


  • आँखों के लिए - 


विटामिन ए और ओमेगा-3 से भरपूर होने से आँखों को हेल्दी रखता है. ग्लूकोमा और आँखों की रौशनी जाने जैसी बीमारीओं से बचाता है. 


  • कैंसर से बचाव - 


एंटी ऑक्सीडेंट और विटामिन डी रिच होने से यह कैंसर से बचाता है. आज की ख़राब लाइफ-स्टाइल और हार्मफुल केमिकल मिले हुवे खाद्य पदार्थ से कैंसर का खतरा ज्यादा रहता है. कॉड लीवर आयल का नियमित सेवन कैंसर जैसी बीमारी से बचाता है. 


  • कोलेस्ट्रॉल और ह्रदय रोग या हार्ट डिजीज से बचाए -


कॉड लीवर आयल दिल के लिए बहुत ही फायदेमंद है, इसके इस्तेमाल से हार्ट हेल्दी रहता है. स्ट्रोक और हार्ट अटैक से बचाता है. यह बैड कोलेस्ट्रॉल या LDL को कम करता है


  • मानसिक रोगों से बचाता है- 


नए रिसर्च यह बताते हैं कि कॉड लीवर आयल सिज़ोफ्रेनिया जैसे मानसिक रोगों से बचने में मदद करता है.


  • पाचन तंत्र के लिए -


इसका नियमित सेवन करने से पेट के अल्सर में फ़ायदा होता है और अल्सर से बचाता है. 


  • जोड़ों का दर्द, Arthritis और मसल्स के दर्द के लिए- 


कॉड लीवर आयल के इस्तेमाल से आप जोड़ों के दर्द, मसल्स के दर्द और आर्थराइटिस जैसे रोगों से बच सकते हैं. 


  • त्वचा के लिए - 


त्वचा या स्किन के लिए भी यह असरदार है. इसे खाने और लगाने से स्किन हेल्दी रहती है. यह झुर्रियों से बचाता है. एंटी एजिंग है.


  • रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाये- 


यह इम्युनिटी पॉवर को बढ़ाता है जिस से आप  कई तरह की बीमारियों से बच सकते हैं. यह सब तो हो गए इसके फ़ायदे.

आईये अब जानते हैं इसके नुकसान या साइड इफेक्ट्स -

वैसे तो इसे सेफ़ माना जाता है पर ज़्यादा डोज़ होने पर कुछ साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं जैसे - खट्टी डकार आना, सीने की जलन, मुँह की बदबू, नाक से खून आना वगैरह. प्रेगनेंसी में इसका इस्तेमाल न करें और अगर ब्लड क्लोटिंग डिसऑर्डर है तो भी इसका इस्तेमाल न करें. 

कॉड लीवर आयल कैप्सूल का डोज़-

एक से दो कैप्सूल रोज़ एक बार पानी से लेना चाहिए, खाना खाने के बाद. 

कॉड लीवर आयल कई कम्पनियों का मिल जाता है. सेवेन सीज कॉड लीवर आयल सॉफ्ट जेल के 100 कैप्सूल की क़ीमत 210 रुपया है इसे ऑनलाइन ख़रीद सकते हैं निचे दिए लिंक से - 


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21 अप्रैल 2018

Fibroid Ayurvedic Treatment | गर्भाशय अबुर्द की आयुर्वेदिक चिकित्सा | Vaidya Ji Ki Diary


जैसा कि आप सभी जानते हैं यह महिलाओं की बीमारी है जिसकी वजह से गर्भाशय में एक तरह के सिस्ट या ग्लैंड हो जाते हैं, यह छोटे और बहुत बड़े और एक से ज़्यादा भी हो सकते हैं, तो आईये जानते हैं Fibroid को दूर करने वाले आयुर्वेदिक योग की पूरी डिटेल - 

सोनोग्राफी के बाद ही इसकी संख्या और आकार का सही पता चलता है, साइज़ ज़्यादा होने पर डॉक्टर लोग ऑपरेशन की सलाह देते हैं, पर यह दवा से भी ठीक हो सकता है. तो आईये जानते हैं इसके लिए कौन-कौन सी दवाओं को किस तरह से लेना चाहिए? 

योग नंबर - 1 

इसके लिए ये सब औषधियाँ चाहिए जैसे - 

स्फटिक भस्म - 10 ग्राम, 

शिला सिन्दूर- 2.5 ग्राम, 

रस माणिक्य- 2.5 ग्राम, 

कहरवा पिष्टी - 10 ग्राम, 

मोती पिष्टी- 5 ग्राम, 

गण्डमालाकनडन रस- 5 ग्राम, 

गंधक रसायन- 5 ग्राम और 

गिलोय सत्व - 10 ग्राम 

सबसे पहले शिला सिन्दूर और रस माणिक्य को अच्छी तरह से खरलकर दूसरी दवाओं को मिक्स कर अच्छी तरह से पीसकर बराबर मात्रा की 60 पुड़िया बना लें. अब एक-एक पुड़िया सुबह शाम शहद में मिक्स लेना है भोजन के बाद. 

योग नंबर- 2 

वृधिवाधिका वटी 1 गोली + कांचनार गुग्गुल 2 गोली + त्रिफला गुग्गुल 2 गोली मिलाकर सुबह-दोपहर-शाम लेना है महामंजिष्ठारिष्ट 2 स्पून + अशोकारिष्ट 2 स्पून और पानी चार स्पून मिक्स कर भोजन के बाद. 

बताई गयी मात्रा व्यस्क व्यक्ति की है, महिला की बॉडी की कंडीशन, बीमारी और प्रकृति के अनुसार मात्रा कम या फिर दवाओं में बदलाव करना चाहिए, जो कि एक अनुभवी डॉक्टर ही कर सकता है. 

यहाँ बताया गया दोनों योग एक महिना तक इस्तेमाल करने के बाद सोनोग्राफी से Fibroid का साइज़ पता करें, अगर कुछ भी फ़ायदा होता है तो आगे भी इस दवा को लेना चाहिए. यहाँ बताया गया योग आयुर्वेदिक डॉक्टर की देख रेख में यूज़ करें. 

हमारा चैनल/Website देखने वाले डॉक्टर बंधू इस योग को अपने रोगियों पर प्रयोग कर सकते हैं. अगर इस योग से कुछ भी फ़ायदा नहीं होता है तो ऑपरेशन ही लास्ट आप्शन है. 


वैद्य जी की डायरी के दुसरे योग - 





19 अप्रैल 2018

Trailokya Chintamani Ras | त्रैलोक्य चिंतामणि रस के गुण उपयोग और निर्माण विधि

त्रैलोक्य चिंतामणि रस क्लासिकल आयुर्वेदिक मेडिसिन है जो सोना, चाँदी, हीरे-मोती जैसी कीमती चीजों से बनी होती है. इसके इस्तेमाल से हर तरह के वात रोग, बल-वीर्य की कमी, पुरुष रोग, मानसिक रोग, पेट के रोग, फेफड़ों के रोग, चर्मरोग और पाइल्स भगंदर जैसी कई तरह की भयंकर बीमारियाँ दूर होती हैं. तो आईये जानते हैं त्रैलोक्य चिंतामणि रस का घटक या कम्पोजीशन, निर्माण विधि, फ़ायदे और इस्तेमाल की पूरी डिटेल - 

त्रैलोक्य चिंतामणि रस घटक या कम्पोजीशन -

शुद्ध पारा, शुद्ध गंधक, हीरक भस्म(अभाव में वैक्रांत भस्म), स्वर्ण भस्म, चाँदी भस्म, ताम्र भस्म, लौह भस्म, अभ्रक भस्म, मोती भस्म, शंख भस्म, प्रवाल भस्म, शुद्ध हरताल और शुद्ध मैनशील सभी बराबर वज़न में लेना होता है.

त्रैलोक्य चिंतामणि रस निर्माण विधि - 

बनाने का तरीका यह होता है कि सबसे पहले पारा-गंधक को खरल कर कज्जली बना लें और उसके बाद दुसरे सरे भस्म मिलाकर सात दिनों तक चित्रक के जड़ के क्वाथ में और तीन-तीन दिन तक आक के दूध, संभालू के रस, सूरण के रस और सेहुंड के दूध में घोटकर सुखा ले और पीसकर पीली कौड़ी में भर दें. 

अब थोड़ा सुहागा लेकर आक के दूध में पेस्ट बना ले और कौड़ियों के मुँह को बंद कर मिट्टी के बर्तन में डालकर कपड़मिट्टी कर गजपुट की अग्नि दें. पूरी तरह से ठंडा होने पर कौड़ी सहित सभी को पीसकर रख लें. 

इसके बाद दवा का जितना वज़न है उसके बराबर रस सिन्दूर और दवा के वज़न का चौथाई भाग वैक्रांत भस्म मिलाकर सहजन मूल के छाल के क्वाथ की सात भावना और चित्रकमूल क्वाथ की दो भावना देकर अच्छी तरह से घोंटकर एक-एक रत्ती या 125mg की गोलियाँ बनाकर सुखाकर रख लें. यही त्रैलोक्य चिंतामणि रस है. इसकी निर्माण विधि थोड़ा जटिल है जिसे अनुभवी वैध ही बना सकते हैं. 

त्रैलोक्य चिंतामणि रस की मात्रा और सेवन विधि - 

एक एक गोली सुबह शाम रोगानुसार उचित अनुपान के साथ लेना चाहिए. वात रोगों जैसे गठिया, लकवा, पैरालिसिस में रास्नादि क्वाथ या दशमूल क्वाथ के साथ मधु मिलाकर लेना चाहिए. कफ़ दोष में अदरक के रस और शहद से, पित्त विकारों में मिश्री और घी के साथ.

त्रैलोक्य चिंतामणि रस के गुण - 

सोना-चाँदी, हिरा-मोती और दुसरे भस्मो के मिला होने से यह त्रिदोष नाशक, बल-वीर्य वर्धक, ओज वर्धक, पौष्टिक और रसायन है. यह ह्रदय को बल देने वाला, बल ओज और शक्तिवर्धक, वीर्य वर्धक, धातुओं की विषमता दूर करने वाला, पाचन क्रिया को सुधारने वाला रसायन है. यह उष्णवीर्य या तासीर में गर्म होता है.

त्रैलोक्य चिंतामणि रस के फ़ायदे और उपयोग - 

यह शरीर में बहुत जल्दी बल वृद्धि करता है. हार्ट, लंग्स, रक्तवाहिनी और वातवाहिनी नाड़ियों पर इसका सबसे ज्यादा असर होता है. 

न्युमोनिया, इन्फ्लुएंजा, बुखार, खाँसी-सर्दी, टी.बी. और फेफड़ों की बीमारियों में यह तेज़ी से असर करता है. 

गठिया, लकवा और पैरालिसिस में उचित अनुपान से लेने से अच्छा लाभ होता है.
लिवर, पैंक्रियास और आंतों पर अच्छा असर होने से पाचन शक्ति को ठीक कर देता है. 

यह हार्ट को शक्ति देता है, हार्ट बीट कम होना, नब्ज़ कमज़ोर होना, मानसिक कमज़ोरी और मानसिक रोगों को दूर करता है. 

पॉवर-स्टैमिना की कमी को दूर करने और बल-वीर्य बढ़ाने के लिए भी इसका प्रयोग करना चाहिए. 

डायबिटीज, जलोदर, पत्थरी, चर्मरोग, पाइल्स और फिश्चूला में भी असरदार है. 
कुल मिलाकर बस समझ लीजिये कि त्रिदोष नाशक होने से यह हर तरह की बीमारियों को दूर करने की शक्ति रखने वाली दवा है जिसे रोगानुसार उचित अनुपान से उपयोग कर लाभ ले सकते हैं. 

कीमती चीजों से बनी होने से यह दवा महँगी तो है पर इफेक्टिव भी है. डाबर/बैद्यनाथ जैसी कंपनियों की यह मिल जाती है. इसे आप ऑनलाइन भी ख़रीद सकते हैं. बैद्यनाथ के 10 टेबलेट की क़ीमत करीब 490 रुपया है. 

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18 अप्रैल 2018

Himalaya Tulasi(Holy Basil) Benefits | हिमालया तुलसी के फ़ायदे - Lakhaipur.com


हिमालया तुलसी कैप्सूल फेफड़े और स्वसन तंत्र या रेस्पिरेटरी सिस्टम की बीमारियों में असरदार है. इसके इस्तेमाल से सर्दी-खाँसी से लेकर अस्थमा, ब्रोंकाइटिस तक में फ़ायदा होता है. तो आईये जानते हैं हिमालया तुलसी कैप्सूल का कम्पोजीशन, फ़ायदे और इस्तेमाल की पूरी डिटेल - 

हिमालया तुलसी का कम्पोजीशन - 

जैसा कि इसके नाम से ही पता चलता है इसमें तुलसी का मिश्रण होता है. इसके हर कैप्सूल में तुलसी एक्सट्रेक्ट 250mg होता है. जैसा कि आप सभी जानते ही हैं कि तुलसी को अंग्रेज़ी में Holy Basil के नाम से जाना जाता है. 

तुलसी का आयुर्वेद में बड़ा महत्त्व है इसके गुणों के कारण. सिर्फ़ आयुर्वेद ही नहीं बल्कि होमियोपैथी में इसका इस्तेमाल होता है. 

आयुर्वेदानुसार तुलसी को कफ़ नाशक माना गया है. यह Expectorant, एंटी इंफ्लेमेटरी, एंटी एलर्जिक और एंटी ऑक्सीडेंट जैसे गुणों से भरपूर होती है. इसमें विटामिन सी, कैल्शियम, कैरोटीन, फॉस्फेट जैसे कई सारे तत्व पाए जाते हैं. 

हिमालया तुलसी के फ़ायदे - 

सर्दी-खाँसी, जुकाम होने, गले की ख़राश, अस्थमा और ब्रोंकाइटिस में इसके इस्तेमाल से फ़ायदा होता है. सुखी-गीली दोनों तरह की खाँसी में यह असरदार है. 

सर दर्द, बुखार, मसल्स का दर्द, पेट की खराबी और स्किन इन्फेक्शन में भी इफेक्टिव है.

स्ट्रेस और रेस्पिरेटरी इन्फेक्शन में भी इसका प्रयोग करना चाहिए. 

एंटी ऑक्सीडेंट गुण होने से यह इम्युनिटी बूस्टर का भी काम करता है और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाकर बीमारीओं से बचाता है. 

हिमालया तुलसी कैप्सूल का डोज़ - 

एक कैप्सूल सुबह शाम पानी से खाना खाने के बाद लेना चाहिए. इसे लॉन्ग टाइम तक लगातार यूज़ कर सकते हैं, किसी तरह का कोई साइड इफ़ेक्ट या नुकसान नहीं होता है. इसका टेबलेट, सिरप और कैप्सूल सभी मिलता है. इसके 60 टेबलेट की क़ीमत 135 रुपया है जिसे आप दवा दुकान से या फिर ऑनलाइन ख़रीद सकते हैं निचे दिए गए लिंक से - 



17 अप्रैल 2018

Ras Manikya Benefits & How to Make | रस माणिक्य के गुण, उपयोग और निर्माण विधि - Lakhaipur.com


रस माणिक्य क्लासिकल आयुर्वेदिक मेडिसिन है हर तरह के चर्मरोग या स्किन डिजीज, कुष्ठव्याधि और वातरक्त जैसी बीमारियों को दूर करती है. खाँसी, अस्थमा और बुखार में भी असरदार है. स्किन डिजीज के लिए आयुर्वेदिक डॉक्टरों की यह फ़ेवरेट मेडिसिन होती है तो आईये जानते हैं रस माणिक्य क्या है? बनाने का तरीका, इसके फ़ायदे और इस्तेमाल की पूरी डिटेल - 

माणिक्य की तरह दिखने की वजह से इसका नाम रस माणिक्य रखा गया है, यह रसायन औषधि तो है पर असली माणिक्य से इसका कोई लेना देना नहीं होता. 

रस माणिक्य का कम्पोजीशन - 

इसके कम्पोजीशन की बात करें तो इसका मुख्य घटक शुद्ध वंशपत्री हरताल होता है. 

रस माणिक्य निर्माण विधि - 

बनाने का तरीका यह होता है की शुद्ध हरताल को चूर्ण कर पाउडर बना लें और सफ़ेद अभ्रक के प्लेट में चूर्ण को फैला दें, अब इसके ऊपर दूसरा अभ्रक का प्लेट लगा दें. अब चरों तरफ बेर के पत्तों की चटनी या फिर मुल्तानी मिटटी और कपड़ा लगाकर सील कर दें और सूखने दें. इसके बाद बेर के लकड़ी के कोयले की अग्नि देना होता है. कोयले की तेज़ अग्नि इतना दें की अभ्रक की प्लेट लाल हो जाये. इसके बाद ठंढा होने पर अभ्रक की प्लेट को अलग कर माणिक्य की तरह दिखने वाले चमकदार चीज़ को निकालकर अच्छी तरह से खरल कर रख लें. यही रस माणिक्य है. 

ज्यादा अग्नि देने पर खरपाक हो जाता है और इसका गुण भी कम जाता है, इसलिए जब तक बनाने का अनुभव न हो ट्राई नहीं करें. 

कुछ वैध लोग फिलामेंट वाले बल्ब का पिछला हिस्सा तोड़कर उसमे शुद्ध हरताल भरकर गैस या स्टोव की अग्नि देकर भी बनाते हैं. सही आंच देने पर इसमें भी अच्छा बनता है, अभ्रक की प्लेट में बनाया गया सबसे बेस्ट होता है. 

रस माणिक्य के गुण - 

आयुर्वेदानुसार वात और कफ़ दोष पर इसका असर होता है. यह Anti Leprosy, Anti biotic, Anti Gout और Blood Purifier जैसे गुणों से भरपूर होता है. 

रस माणिक्य के फ़ायदे - 


  • यह हर तरह के चर्मरोग और कुष्ठरोग को दूर करने वाली औषधि  है. इसका प्रयोग करने से फोड़े-फुंसी, एक्जिमा, सोरायसिस, कारबंकल, हर तरह की कुष्ठव्याधि जिसमे हाथ-पैर की अंगुलियाँ गलने लगती हों दूर होती है. 



  • इन सब के अलावा सिफलिस, दुष्ट व्रण, नाड़ी व्रण या नासूर जैसी जैसी बीमारियाँ दूर होती हैं. 



  • खाँसी, अस्थमा, हार्ट ब्लॉकेज, इन्फ्लुएंजा, मलेरिया और सन्निपात जैसे बुखार भी दूर होते हैं. 



  • श्वेत कुष्ठ जिसे आमबोलचाल में सफ़ेद दाग कहते हैं, अंग्रेज़ी में इसे ल्यूकोडर्मा कहा जाता है. सफ़ेद दाग़ में भी यह बेहद असरदार है. सफ़ेद दाग़ में इसे खाने और लगाने दोनों काम में लिया जाता है. 



  • विपादिका या बिवाई यानी क्रैक हिल्स में भी इस से फ़ायदा होता है.


कुल मिलाकर यह समझ लीजिये कि हर तरह के स्किन डिजीज की यह एक बेहतरीन दवा है जिसे वैध समाज ब्रह्मास्त्र की तरह प्रयोग करते हैं. इसके साथ गंधक रसायन लेने से बेहतरीन रिजल्ट मिलता है. 

रस माणिक्य की मात्रा और सेवन विधि - 

60 से 125mg तक एक स्पून घी और दो स्पून शहद में मिक्स कर लेना चाहिए. या फिर इसे मक्खन और मिश्री के साथ भी ले सकते हैं. इसे तीन से छह महीने तक भी लगातार लिया जा सकता है. इसे आयुर्वेदिक डॉक्टर की सलाह से ही लेना चाहिए. आयुर्वेदिक कंपनियों का यह मिल जाता है, इसे ऑनलाइन भी ख़रीद सकते हैं निचे दिए लिंक से - 


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11 अप्रैल 2018

Elephant Foot \ Yam Vegetable Benefits | सूरणकन्द/ जिमीकन्द के फ़ायदे


सूरणकन्द न सिर्फ एक तरह की सब्ज़ी है बल्कि यह औषधि का भी काम करती है. इसे हिन्दी और संस्कृत में जिमीकन्द और सूरण , मराठी में गोडा सूरण, बांग्ला में ओल, कन्नड़ में सुवर्ण गडड़े, तेलगु कंडा डूम्पा और फ़ारसी में जमीकंद जैसे नामो से जाना जाता है. हाथी के पंजे की तरह दिखने की वजह से अंग्रेज़ी में Elephant Foot कहा जाता है. इसका एक दूसरा नाम यम भी है. तो आईये जानते हैं इसके फ़ायदे और इस्तेमाल की पूरी डिटेल - 

यह तासीर में गर्म होता है इसलिए इसे ज़्यादातर ठण्ड के मौसम में खाया जाता है. जिमीकंद में विटामिन B6, विटामिन सी, पोटैशियम, कॉपर, आयरन, मैग्नीशियम, कैल्शियम, फॉस्फोरस जैसे मिनरल्स होते हैं और यह एंटी ऑक्सीडेंट गुणों से भरपूर होता है. 

इसके पौधे दो-तीन फुट लम्बे, गहरे हरे रंग के और सफ़ेद धब्बे वाले होते हैं. 

जिमीकंद के फ़ायदे- 


  • यह पाचन शक्ति को ठीक करता है और कब्ज़ को दूर करता है जिसकी वजह से पाइल्स या बवासीर के रोगियों को इसे खाने की सलाह दी जाती है. बवासीर की आयुर्वेदिक औषधि सूरण वटक में इसका इस्तेमाल किया जाता है. 



  • यह कोलेस्ट्रॉल को कम करता है, ब्लड प्रेशर नार्मल करता है और हार्ट के लिए भी फ़ायदेमंद है.



  • जिमीकन्द दिमाग को भी तेज़ करने में मदद करता है, यह मेमोरी पॉवर को बढ़ाता है और अल्ज़ाईमर से बचाता है. 



  • एंटी ऑक्सीडेंट, विटामिन सी और बीटा कैरोटीन होने से यह कैंसर जैसी बीमारी से बचने में मदद करता है. 



  • इसमें कॉपर मौजूद होने से रेड ब्लड सेल को बढ़ाता है और ब्लड सर्कुलेशन को ठीक करता है.



  • लिवर की प्रॉब्लम और वात रोग में भी असरदार है, वज़न कम करने में भी मदद करता है. 



  • एनर्जी से भरपूर होने की वजह से इसे कामशक्ति बढ़ाने वाला भी माना जाता है.


जिमीकन्द के नुकसान- 

वैसे तो जिमीकन्द गुणों से भरपूर सब्जी है पर आयुर्वेदानुसार चर्मरोग और स्किन डिजीज वालों को इसे नहीं खाना चाहिए. 

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10 अप्रैल 2018

Energic 31 Capsule Benefits | एनर्जीक 31 कैप्सूल के फ़ायदे


एनर्जीक 31 कैप्सूल आयुर्वेदिक दवा है जिसे आयुर्वेद विकास संस्थान नाम की कम्पनी बनाती है. यह बॉडी को एनर्जी देता है, पॉवर-स्टैमिना बढ़ाता है, चुस्ती-फुर्ती लाता है और यौन कमज़ोरी को दूर करता है. यह महिला-पुरुष सभी के लिए बेहतरीन टॉनिक है, तो आईये जानते हैं एनर्जीक 31 कैप्सूल का कम्पोजीशन, फ़ायदे और इस्तेमाल की पूरी डिटेल - 

एनर्जीक 31 कैप्सूल का कम्पोजीशन - 

इसे पॉवर-स्टैमिना बढ़ाने वाली जानी-मानी जड़ी-बूटियों, खनिज लवण और भस्मों के मिश्रण से बनाया गया है. इसके कम्पोजीशन की बात करें तो इसे -

शतावर, कौंच बीज, अश्वगंधा, दालचीनी, नागकेशर, गोखुरू, सोंठ, लोध्र, जावित्री, सुरंजान शिरीं, विधारा, जायफल, सफ़ेद मुसली, समुद्र शोष, पिप्पली, बबूल गोंद, तालमखाना, काली मिर्च, सफ़ेद चन्दन, अकरकरा, कंकोल, शुद्ध कुचला, शुद्ध शिलाजीत, शंख भस्म, त्रिवंग भस्म, कुक्कुटाडत्वक भस्म, मुक्ताशुक्ति भस्म, लौह भस्म और स्वर्णमाक्षिक भस्म के मिश्रण से बनाया जाता है. 

एनर्जीक 31 कैप्सूल के फ़ायदे - 

शारीरिक कमज़ोरी, सुस्ती-थकान, बदन का दर्द, मानसिक थकान को दूर कर चुस्ती-फुर्ती लाता है, शरीर को एनर्जी देकर पॉवर-स्टैमिना को बढ़ाता है. 

यह एक बाजीकारक औषधि है, यौन कमज़ोरी को दूर करता है, कामशक्ति को बढ़ाता है और प्रजनन अंगों को शक्ति देता है. महिला-पुरुष दोनों के लिए समान रूप से लाभकारी है. 

चिंता-तनाव को दूर कर मानसिक शांति देता है और पाचन शक्ति को भी ठीक करता है. 

खून की कमी को दूर करता है, लिवर फंक्शन को सही करता है. 

जोड़ों का दर्द, कमर दर्द, मसल्स का दर्द में फ़ायदेमंद है.

कुल मिलाकर देखा जाये तो बॉडी को एनर्जी को देकर पॉवर-स्टैमिना बढ़ाने, चुस्ती-फुर्ती लाने वाली यह एक अच्छी टॉनिक और हेल्थ सप्लीमेंट है जिसे महिला-पुरुष सभी यूज़ कर सकते हैं हर मौसम में. 

एनर्जीक 31 कैप्सूल का डोज़- 

एक कैप्सूल सुबह ख़ाली पेट और रात में सोने से पहले दूध या पानी से लेना चाहिए कम से कम लगातार 40 दिनों तक. इसके बाद रोज़ एक कैप्सूल ले सकते हैं.

 यह ऑलमोस्ट सेफ़ दवा है, किसी तरह का कोई साइड इफ़ेक्ट या नुकसान नहीं होता है. लॉन्ग टाइम तक भी यूज़ करने से कोई नुकसान नहीं होता. इसके 10 कैप्सूल की क़ीमत क़रीब 70 रुपया है जिसे आयुर्वेदिक दवा दुकान से या फिर ऑनलाइन ख़रीद सकते हैं विडियो की डिस्क्रिप्शन में दिए लिंक से- 



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08 अप्रैल 2018

Mustakarishta Benefits, Use & Ingredients | मुस्तकारिष्ट के फ़ायदे


मुस्तकारिष्ट क्लासिकल आयुर्वेदिक मेडिसिन है जो आँव को दूर करता है. भूख की कमी, अपच, पाचन विकार, दस्त, डायरिया और IBS जैसी बीमारियों में असरदार है, तो आईये जानते हैं मुस्तकारिष्ट का कम्पोजीशन, फ़ायदे और इस्तेमाल की पूरी डिटेल - 

मुस्तकारिष्ट के घटक या कम्पोजीशन-

जैसा कि इसके नाम से ही पता चलता है इसका मुख्य घटक या मेन इनग्रीडेंट मुस्तक या मोथा नाम की जड़ी होती है. इसके कम्पोजीशन की बात करें तो इसमें कई तरह की जड़ी-बूटियाँ मिली होती हैं जैसे - 

मुस्तक - 5 किलो, गुड़- ढाई किलो(2.5kg), धातकी- 600 ग्राम, अजवाइन, सोंठ, काली मिर्च, लौंग, मेथी, चित्रकमूल और जीरा प्रत्येक 50-50 ग्राम का मिश्रण होता है. 

मुस्तकारिष्ट निर्माण विधि -

आयुर्वेदिक प्रोसेस आसव-अरिष्ट निर्माण विधि से इसे बनाया जाता है. बनाने का तारिका यह है कि सबसे पहले मुस्ताक या मोथा का मोटा चूर्ण कर 40 लीटर पानी में उबालें, जब 10 लीटर पानी बचे तो ठण्डा होने पर छान ले. अब इसमें गुड़ और दूसरी जड़ी-बूटियों का मोटा चूर्ण मिक्स कर मिट्टी के चिकने पात्र में बर्तन का मुंह बंद कर 30 दिनों के लिए धुप में रख देना चाहिए. तीस दिनों बाद अच्छी तरह से फ़िल्टर कर कांच की बोतल में भर कर रख लें, यही मुस्तकारिष्ट है. 

मुस्तकारिष्ट के औषधिय गुण -

आयुर्वेदानुसार यह कफ़ दोष को कम करता है और पित्त दोष को बैलेंस करता है. यह आम पाचक, अग्निवर्धक या भूख बढ़ाने वाला, Digestive, दस्त रोकने वाला या एंटी डायरियल और Astringent जैसे गुणों से भरपूर होता है. 

मुस्तकारिष्ट के फ़ायदे - 


  • आँव आना, बूख की कमी, दस्त, अपच होना जैसी प्रॉब्लम में इसका इस्तेमाल किया जाता है. 



  • आमपाचक होने से यह पेट में आँव या म्यूकस का बनना दूर करता है. 



  • अपच होना, तेज़ दस्त और डायरिया में भी यह असरदार है. 



  • पेट, आंत और लीवर पर इसका सबसे ज़्यादा असर होता है और शरीर के मेटाबोलिज्म को सही करता है. 



  • IBS या Irritable Bowel Syndrome में जब पतले दस्त आते हों और हाजमा ठीक नहीं हो तो इसके इस्तेमाल से काफ़ी फ़ायदा होता है. 


मुस्तकारिष्ट की मात्रा और सेवन विधि - 

15 से 30 ML तक सुबह शाम खाना के बाद बराबर मात्रा में पानी मिक्स कर लेना चाहिए. बच्चों को कम डोज़ में देना चाहिए. यह ऑलमोस्ट सेफ़ दवा है, लॉन्ग टाइम तक यूज़ कर सकते हैं. सिर्फ प्रेगनेंसी में इसका इस्तेमाल न करें. ब्रेस्टफीडिंग कराने वाली महिलायें इसका इस्तेमाल कर सकती हैं.   डाबर बैद्यनाथ जैसी कंपनियों का यह मिल जाता है, बैद्यनाथ के 450 ML के पैक की क़ीमत 127 रुपया है, इसे ऑनलाइन भी ख़रीद सकते हैं. 

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07 अप्रैल 2018

Bahumutrantak Ras Benefits, Use & Side Effects | बहुमूत्रान्तक रस के फ़ायदे


बहुमूत्रान्तक रस क्लासिकल आयुर्वेदिक मेडिसिन है जो बहुमूत्र या बार-बार बहुत पेशाब होना, मधुमेह, प्रमेह, शीघ्रपतन और वीर्य की कमी जैसी बीमारियों में इस्तेमाल की जाती है. तो आईये जानते हैं बहुमूत्रान्तक रस का कम्पोजीशन, फ़ायदे और इस्तेमाल की पूरी डिटेल - 

बहुमूत्रान्तक रस जैसा कि इसके नाम से ही पता चलता है बहुमूत्र का अंत करने वाली रसायन औषधि. 

बहुमूत्रान्तक रस का कम्पोजीशन -

यह भैषज्य रत्नावली का योग है, इसके कम्पोजीशन की बात करें तो इसे बनाने के लिए चाहिए होता है रस सिन्दूर, लौह भस्म, वंग भस्म, शुद्ध अफ़ीम, गूलर-फल के बीज, बेल की जड़ की छाल और तुलसी सभी बराबर वज़न में. 

बनाने का तरीका यह है कि सबसे पहले रस सिन्दूर को खरल करें उसके बाद लौह भस्म, वंग भस्म और शुद्ध अफ़ीम मिलाने के बाद दूसरी जड़ी-बूटियों का बारीक चूर्ण मिक्स करें. अब गूलर के फलों के रस में घोंटकर दो-दो रत्ती या 250mg की गोलियाँ बनाकर सुखा कर रख लें. यही बहुमूत्रान्तक रस है. 

बहुमूत्रान्तक रस के फ़ायदे-

यह रसायन बार-बार पेशाब होने या बहुमूत्र, मधुमेह और सोमरोग में बहुत फ़ायदेमंद है.

प्रमेह, वीर्यविकार, वीर्य की कमी, शीघ्रपतन और नामर्दी में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है. 

बहुमूत्रान्तक  रस की मात्रा और सेवनविधि-

बहुममूत्र और मधुमेह या डायबिटीज में इसे एक-एक गोली सुबह शाम जामुन की गुठली, गुडमार चूर्ण और गुलर के रस के साथ लेना चाहिए.

प्रमेह में गुरीच के रस और शहद के साथ. जबकि वीर्य विकार, शीघ्रपतन और नामर्दी में मिश्री मिले दूध के साथ लेना चाहिए. 

बहुमूत्रान्तक रस के साइड इफेक्ट्स - 

इसके इस्तेमाल से वैसा कोई साइड इफ़ेक्ट नहीं होता है, लेकिन प्यास बहुत लगने लगती है. अगर ज़्यादा प्यास लगे तो मुलेठी, चन्दन बुरादा, सारिवा और ख़स का काढ़ा बनाकर ठण्डा होने पर पीना चाहिए. बहुमूत्रान्तक रस को आयुर्वेदिक डॉक्टर की सलाह से और डॉक्टर की देख रेख में ही यूज़ करें. इसे आयुर्वेदिक दवा दुकान से या फिर ऑनलाइन ख़रीद सकते हैं. 

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04 अप्रैल 2018

Baidyanath Amoebica Tablet Review | बैद्यनाथ अमिबिका टेबलेट के फ़ायदे


अमिबिका टेबलेट बैद्यनाथ का पेटेंट ब्रांड है जो आँव आने या Amoebiasis, दस्त या अमेबिक Dysentry और डायरिया में असरदार है, इसे सालों तक काफ़ी रिसर्च के बाद बैद्यनाथ ने पेश किया है. तो आईये जानते हैं अमिबिका टेबलेट का कम्पोजीशन, फ़ायदे और इस्तेमाल की पूरी डिटेल -

अमिबिका टेबलेट का कम्पोजीशन - 

इसके कम्पोजीशन की बात करें तो इसके हर टेबलेट में कुटकी चूर्ण 75mg और वत्सक्वादि क्वाथ 275mg का मिश्रण होता है. सिंपल पर इफेक्टिव कॉम्बिनेशन, इसमें मिलाई गयी सारी जड़ी-बूटियाँ अपने आप में बेजोड़ हैं. यहाँ मैं बता दूँ कि वत्सक्वादि क्वाथ में कुटज छाल, उशीर, शुद्ध अतीस, बिल्व मज्जा और नागर मोथा बराबर मात्रा का मिश्रण होता है.

अमिबिका टेबलेट के गुण -

अमिबिका टेबलेट जो है एंटी अमेबिक, एंटी डायरियल, Astringent और Analgesic जैसी गुणों से भरपूर होता है. 

अमिबिका टेबलेट के फ़ायदे - 

आँव आना या Amoebiasis, Chronic Amoebiasis, डायरिया, Dysentry और Haemorrhagic Dysentery जैसी प्रॉब्लम में इसका इस्तेमाल किया जाता है. 

Amoebic Liver Abcesses और Parasite की वजह से एनीमिया होने से भी रोकता है. 
सफ़ेद-लाल हर तरह की नयी पुरानी आँव की शिकायत में असरदार है. 

अमिबिका टेबलेट का डोज़ -

दो टेबलेट रोज़ तीन बार पानी से खाना के बाद लेना चाहिए, या फिर डॉक्टर की सलाह के अनुसार लेना चाहिए. 

परहेज़-

इसका इस्तेमाल करते हुवे कुछ परहेज़ भी करना चाहिए जैसे फ्राइड फ़ूड, नॉन वेज, दूध, मिर्च-मसाला, चना-मटर नहीं खाना चाहिए.

छाछ, मुंग दाल, लौकी, पपीता जैसे हलके और इज़ी Digestive फ़ूड खाना चाहिए. 
यह ऑलमोस्ट सेफ़ दवा है किसी तरह का कोई साइड इफ़ेक्ट या नुकसान नहीं होता है. इसके 25 टेबलेट की क़ीमत क़रीब 196 रुपया है जिसे आयुर्वेदिक दवा दुकान से या फिर ऑनलाइन ख़रीद सकते हैं निचे दिए लिंक से- 




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03 अप्रैल 2018

Amlycure DS Review in Hindi | एम्लीक्योर डी एस के फ़ायदे - Lakhaipur.com


Amlycure DS एमिल फार्मा नाम की कंपनी का पेटेंट ब्रांड है जो लिवर को प्रोटेक्ट करती है और लिवर की बीमारियों के लिए बेहद असरदार है. यह जौंडिस, लिवर का बढ़ जाना, लिवर सिरोसिस से लेकर हेपेटाइटिस तक में फ़ायदा करती है. तो आईये जतने हैं Amlycure DS का कम्पोजीशन, फ़ायदे और इस्तेमाल की पूरी डिटेल - 

Amlycure DS का कम्पोजीशन -

इसे कई तरह की जड़ी-बूटियों के मिश्रण से बनाया जाता है, इसके कम्पोजीशन की बात करें तो इसे भृंगराज, आँवला, अर्जुन, बहेड़ा, दारूहल्दी, चित्रक, मूली, पुनर्नवा, हरीतकी, गुडूची, मकोय, यवक्षर, अजवाइन, धनिया, अश्वगंधा, मंजीठ, कालमेघ, तुलसी, कासनी, रेवंदचीनी, घृतकुमारी, पित्तपापड़ा, कालीपथ, विडंग, कचूर, यष्टिमधु, झाऊ, कसोंदी, कुटकी, भूमि आंवला, सौंफ़, शतावर, मंडूकपर्णी, जीरा, आलू बुखारा, नागरमोथा, आम्रबीज, ब्रिन्जासिफ, चिरायता, अतीस, छोटी इलायची, काला नमक, निम्बू, रोहितका, नीम, गोखुरू और अरहर के मिश्रण से बनाया गया है. इसके कैप्सूल और सिरप दोनों का कम्पोजीशन लगभग सेम ही होता है. 

Amlycure DS के गुण या Properties - 

इसके गुणों की बात करें तो यह Hepto Protective, एंटी ऑक्सीडेंट, Detoxifier, इम्युनिटी बूस्टर और Digestive जैसे गुणों से भरपूर होता है.

Amlycure DS के फ़ायदे -

लिवर की हर तरह की बीमारी के लिए यह एक असरदार दवा है भूख की कमी, जौंडिस, लिवर-स्प्लीन का बढ़ जाना, वायरल हेपेटाइटिस, फैटी लिवर, लिवर सिरोसिस जैसे रोगों में फ़ायदेमंद है.

यह लिवर के सेल्स को Generate करता है, लिवर के फंक्शन को सही करता है और भूख बढ़ाता है. 

फैटी लीवर हो SGOT/SGPT बढ़ा हो तो दूसरी सयाहक औषधियों के साथ इसे लेना चाहिए. 

यह LFT को नार्मल करता है.

Amlycure DS को लिवर की प्रॉब्लम के लिए तो लेना ही चाहिए, पर इसे ऐसे भी लिवर प्रोटेक्टिव मेडिसिन के रूप में यूज़ कर सकते हैं क्योंकि यह लिवर Corrective और लिवर Protective दोनों तरह का काम करती है. 

Amlycure DS का डोज़ -

एक से दो कैप्सूल रोज़ दो से तीन बार तक खाना के बाद लेना चाहिए. अगर सिरप लेना हो तो दो स्पून रोज़ दो-तीन बार तक ले सकते हैं. बच्चों को इसका सिरप हाफ स्पून सुबह शाम देना चाहिए. या फिर डॉक्टर की सलाह से इसका डोज़ लेना चाहिए. यह ऑलमोस्ट सेफ़ दवा है, किसी तरह कोई साइड इफ़ेक्ट या नुकसान नहीं होता. लॉन्ग टाइम तक भी यूज़ कर सकते हैं. बच्चे, बड़े-बूढ़े सभी इसका इस्तेमाल कर सकते हैं. प्रेगनेंसी में इसका इस्तेमाल न करें.

इसके 10 कैप्सूल की क़ीमत 75 रुपया है जबकि 100 ML के सिरप की क़ीमत 115 रुपया है, इसे दवा दुकान से या फिर ऑनलाइन ख़रीद सकते हैं निचे दिए लिंक से - 



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02 अप्रैल 2018

Vaidya Ji Ki Diary # 6 Thyroid Herbal Treatment | थायराइड की आयुर्वेदिक चिकित्सा


वैद्य जी की डायरी में आज मैं बताने वाला हूँ थायराइड की आयुर्वेदिक चिकित्सा के बारे में.

जी हाँ दोस्तों, अगर आपका थायराइड लेवल बढ़ा हो और अंग्रेजी दवाएँ खाने से भी फ़ायदा नहीं हो रहा हो, तो भी चिन्ता की कोई बात नहीं है. मेरा बताया गया आयुर्वेदिक नुस्खा यूज़ कर इस बीमारी से मुक्ति पा सकते हैं. तो आईये जानते हैं थायराइड को दूर करने वाले आयुर्वेदिक योग की पूरी डिटेल - 

थायराइड का आयुर्वेदिक योग इस्तेमाल करने से पहले थायराइड का टेस्ट करवा लें ताकि पता चले कि दवा से कितना फ़ायदा मिल रहा है. 

थायराइड दूर करने का आयुर्वेदिक योग -

इसके लिए आपको जो भी क्लासिकल आयुर्वेदिक मेडिसिन चाहिए उनके नाम कुछ इस तरह से हैं -

गंडमाला कण्डन रस - 10 gram

त्र्यूषनाद्य लौह - 10 gram 

पुनर्नवा मंडूर - 10 gram 

आरोग्यवर्धिनी वटी - 10 gram 

सभी को अच्छी तरह से पीसकर बराबर मात्रा की 40 पुड़िया बना लें. इसे एक-एक पुड़िया शहद में मिक्स कर खायें और ऊपर से 'पुनर्नवा अर्क' 20 ML + 'मकोय अर्क' 20 ML मिक्स कर पीना है. 

कांचनार गुग्गुल 2 गोली + गोक्षुरादि गुग्गुल 2 गोली सुबह शाम लेना है. सभी दवा खाना के बाद लेना है. यह व्यस्क व्यक्ति की मात्रा है. 

बताया गया योग 20 दिन तक यूज़ करने के बाद टेस्ट कराकर देखना चाहिए. 

लगातार कुछ महीने तक यूज़ करने से न सिर्फ थायराइड की प्रॉब्लम दूर होती है बल्कि पाचन क्रिया भी सुधर जाती है और बढ़ा हुआ वज़न भी कम जाता है. 

थायराइड दूर करने का बताया गया योग स्थानीय वैद्य जी की देख रेख में ही यूज़ करें. 

आज के इस योग में बताई गयी औषधि त्र्यूषनाद्य लौह, अर्क पुनर्नवा और अर्क मकोय की डिटेल जानकारी आने वाले समय में दूंगा. 

गंडमाला कण्डन रस, कांचनार गुग्गुल, गोक्षुरादि गुग्गुल, पुनर्नवा मंडूर और आरोग्यवर्धिनी वटी की जानकारी हमारे चैनल और वेबसाइट पर पहले से ही मौजूद है. 

वैद्य जी की डायरी के कुछ दुसरे सफ़ल आयुर्वेदिक प्रयोग -