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02 मई 2024

Gandhak Rasayan | गंधक रसायन - चर्म रोगों का नंबर वन दुश्मन

gandhak rasayan benefits

 गंधक रसायन क्या है?

गंधक रसायन चर्मरोगों या स्किन डिजीज को दूर करने वाली क्लासिकल आयुर्वेदिक मेडिसिन है. इसके इस्तेमाल से खाज-खुजली, एक्जिमा, फोड़े-फुंसी, चकत्ते, छाजन और सफ़ेद दाग से लेकर कुष्ठव्याधि तक नए-पुराने हर तरह के चर्मरोग दूर हो जाते हैं. 

गंधक रसायन का घटक या कम्पोजीशन 

जैसा कि इसके नाम से ही पता चलता है इसका मुख्य घटक शुद्ध गंधक होता है. गंधक को अंग्रेज़ी में Sulphur कहा जाता है. इसे बनाने के लिए चाहिए होता है शुद्ध गंधक के अलावा भावना देने के लिए चातुर्जात क्वाथ, त्रिफला क्वाथ, गिलोय का रस और अदरक का रस. 

बनाने का तरीका यह होता है कि शुद्ध गंधक को चूर्ण बना लें और फिर इसमें चतुर्जात क्वाथ, त्रिफला क्वाथ, गिलोय का रस और अदरक के रस की कम से कम आठ-आठ भावना देकर सुखाकर पीसकर रख लिया जाता है. 

शास्त्रानुसार इसे टोटल चौसठ भावना देकर बनाने का प्रावधान है. पुरे विधि विधान से बना हुआ यह काले रंग का दीखता है. 

गंधक रसायन के औषधिय गुण 

आयुर्वेदानुसार यह तासीर में गर्म, पित्तशामक, कुष्ठाघ्न यानी हर तरह के चर्म रोगों को दूर करने वाला, विषघ्न या विष को दूर करने वाला, जीवाणु-विषाणु नाशक रसायन है. यह Antibacterial, Antiviral, Antibiotic, Antimicrobial, Anti-inflammatory, Anti Leprosy और Blood Purifier जैसे गुणों से भरपूर होता है. 

गंधक रसायन के फ़ायदे 

दाद, खाज-खुजली, एक्जिमा, सोरायसिस, कुष्ठ, सफ़ेद दाग़, फोड़े-फुंसी, फंगल इन्फेक्शन, बालों का गिरना, बालों में रुसी या Dandruff होना जैसी प्रॉब्लम में बेहद असरदार है. 

स्किन में चकत्ते होना, पित्ती उछलना(Urticaria) और कील-मुहाँसों में भी असरदार है. 

रक्तशोधक गुण होने से खून साफ़ करता है और वातरक्त या गठिया रोग में भी फ़ायदेमंद है. 

कुल मिलाकर बस समझ लीजिये कि चर्मरोगों और खून साफ़ करने की यह आयुर्वेद की बेस्ट दवाओं में से एक है. 

गंधक रसायन की मात्रा और सेवन विधि 

बीमारी और रोगी की कंडीशन के अनुसार ही इसका सही डोज़ फिक्स होता है. वैसे 250mg या एक टेबलेट रोज़ दो से तीन बार तक लिया जा सकता है. इसे रोगानुसार उचित अनुपान स्थानीय वैद्य जी की सलाह के अनुसार  निश्चित अवधि के लिए ही यूज़ करना चाहिए. 

गंधक रसायन के साइड इफेक्ट्स

यह एक सुरक्षित औषधि है, इसे एक से छह महिना तक लगातार यूज़ किया जा सकता है. 

क्या दूसरी दवाओं का सेवन करते हुए भी इसका  यूज़ कर सकते हैं?

जी हाँ, होमियोपैथिक या दूसरी कोई अंग्रेज़ी दवा आपकी चलती है तो भी इसका यूज़ कर सकते हैं. बस दूसरी दवा और इसके बीच में आधा से एक घंटा का अन्तर रखना चाहिए. पहले अंग्रेज़ी दवा खाएं, उसके आधा से एक घंटा बाद ही इसका सेवन करें, और अपने डॉक्टर से सलाह अवश्य लें.

यदि आप पहले से कोई विटामिन या सप्लीमेंट यूज़ करते हैं तो भी इसका सेवन कर सकते हैं. 

डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर, हृदय रोग से पीड़ित व्यक्ति को सावधानीपूर्वक स्थानीय वैद्य जी की सलाह से ही इसका सेवन करना चाहिए. 

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28 अप्रैल 2024

Vrihat Bangeshwar Ras | वृहत बंगेश्वर रस

 

vrihat bangeshwar ras

यह स्वप्न दोष, प्रमेह, धात गिरना, वीर्य विकार, मर्दाना कमज़ोरी जैसे समस्त मूत्र रोगों और पुरुष यौन रोगों में असरदार है. तो आईये इन सब के बारे में सबकुछ विस्तार से जानते हैं - 

बंगेश्वर रस 

बंग भस्म इसका एक घटक होता है इसलिए ही इसका नाम बंगेश्वर रस रखा गया है. आयुर्वेदिक ग्रन्थ भैषज्य रत्नावली और रसेन्द्र सार संग्रह में इसका वर्णन मिलता है. 

वृहत बंगेश्वर रस में स्वर्ण भस्म भी मिला होता है जबकि  बंगेश्वर रस में स्वर्ण भस्म नहीं होता और इसका कम्पोजीशन भी थोड़ा अलग होता है. आपकी जानकारी के लिए दोनों के घटक या कम्पोजीशन बता रहा हूँ, सबसे पहले जानते हैं 

बंगेश्वर रस के घटक या कम्पोजीशन 

बंग भस्म, कान्त लौह भस्म, अभ्रक भस्म और नागकेशर का बारीक चूर्ण सभी बराबर मात्रा में लेकर घृतकुमारी की सात भावना देकर बहुत अच्छे से खरल कर एक-एक रत्ती की गोलियाँ बना ली जाती हैं. यही बंगेश्वर रस है, इसे बंगेश्वर रस साधारण भी कहा जाता है. 

वृहत बंगेश्वर रस के घटक या कम्पोजीशन 

जैसा कि इसके नाम में वृहत लगने से ही पता चलता है कि इसका नुस्खा बड़ा है. वृहत बंगेश्वर रस के घटक या कम्पोजीशन की बात करूँ तो इसे बनाने के लिए चाहिए होता है बंग भस्म, शुद्ध पारा, शुद्ध गंधक, अभ्रक भस्म, चाँदी भस्म और कपूर प्रत्येक एक-एक तोला और स्वर्ण भस्म और मोती भस्म प्रत्येक 3-3 माशा 

निर्माण विधि यह होती है कि सबसे पहले पारा-गंधक को खरल कर कज्जली बनाकर दुसरे सभी घटक मिलाकर भाँगरे के रस में खरलकर एक-एक रत्ती की गोलियाँ बनाकर सुखा लिया जाता है. यही वृहत बंगेश्वर रस कहलाता है. यह बना हुआ मिलता है, ऑनलाइन ख़रीदने का लिंक विडियो की डिस्क्रिप्शन में दिया गया है. 

वृहत बंगेश्वर रस की मात्रा और सेवन विधि क्या है? किस अनुपान से इसका सेवन करने से पूरा लाभ मिलता है?

इसकी मात्रा या डोज़ की बात करूँ तो एक से दो गोली सुबह-शाम शहद लेना चाहिए. 

इसका पूरा फ़ायदा पाने के लिए शहद के साथ इसे चाटकर ऊपर से एक ग्लास गाय का दूध या फिर बकरी का दूध पीना चाहिए. 

वृहत बंगेश्वर रस के गुण और उपयोग 

यह त्रिदोष पर असर करता है यानी कि वात, पित्त और कफ़ तीनों को बैलेंस करता है. यह रसायन और बाजीकरण होता है. आयु, बल, वीर्यवर्धक, कान्तिवर्धक और दुर्बलतानाशक जैसे गुणों से भरपूर होता है. 

वृहत बंगेश्वर रस के फ़ायदे 

आयुर्वेदिक ग्रन्थ के अनुसार वृहत बंगेश्वर रस के सेवन से नए पुराने सभी प्रकार के प्रमेह अच्छे होते हैं. 

सभी तरह मूत्र रोग और मूत्र संक्रमण जैसे पेशाब की जलन, बहुमूत्र, UTI इत्यादि रोग दूर होते हैं.

पुरुषों के यौन रोग जैसे सोते हुए नींद में वीर्य निकल जाना, वीर्यवाहिनी नाड़ियों की कमज़ोरी, मल-मूत्र त्यागते हुए वीर्य निकल जाना इत्यादि रोग दूर होते हैं. 

ग्रन्थ के अनुसार शुक्रक्षय से उत्पन्न मन्दाग्नि, आमदोष, अरुचि, हलिमक, रक्तपित्त, ग्रहणीदोष, मूत्र और वीर्यदोष आदि सभी विकार नष्ट होते हैं. 

आसान भाषा में अगर कहा जाये तो यह पुरुष यौन अंग के रोग और मूत्र रोगों की असरदार औषधि है. यह धातुओं को पुष्ट कर शरीर को स्वस्थ और निरोगी बना देती है. 

क्या इसके कुछ साइड इफेक्ट्स भी हैं? 

यह एक सुरक्षित औषधि है, इसका कोई साइड इफ़ेक्ट या नुकसान नहीं होता है. सही डोज़ में उचित अनुपान के साथ वैद्य जी की सलाह से इसका सेवन करना चाहिए. 

क्या दूसरी दवाओं का सेवन करते हुए भी इसका  यूज़ कर सकते हैं?

जी हाँ, होमियोपैथिक या दूसरी कोई अंग्रेज़ी दवा आपकी चलती है तो भी इसका यूज़ कर सकते हैं. बस दूसरी दवा और इसके बीच में आधा से एक घंटा का अन्तर रखना चाहिए. पहले अंग्रेज़ी दवा खाएं, उसके आधा से एक घंटा बाद ही इसका सेवन करें, और अपने डॉक्टर से सलाह अवश्य लें.

यदि आप पहले से कोई विटामिन या सप्लीमेंट यूज़ करते हैं तो भी इसका सेवन कर सकते हैं. लगातार एक महिना तक इसका सेवन कर सकते हैं. 

वृहत बंगेश्वर रस और बंगेश्वर रस में कौन सा बेस्ट होता है? कौन सा यूज़ करना चाहिए और कहाँ से ख़रीदें?

वृहत बंगेश्वर रस जो स्वर्णयुक्त होती है, इसका ही यूज़ करें क्यूंकि यही बेस्ट है. यह आयुर्वेदिक दवा दुकान में मिल जाती है. अलग-अलग कम्पनी का अलग-अलग प्राइस होता है. ऑनलाइन ख़रीदने का लिंक निचे दिया गया है. 

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21 अप्रैल 2024

Kansya Bhasma Benefits & Usage | काँस्य भस्म, गुण उपयोग एवं निर्माण विधि

 

kansya bhasma

कांसा नाम की धातु से ही कांस्य भस्म बनाई जाती है. इसे ही अंग्रेज़ी में ब्रोंज़ नाम से जाना जाता है. यह कृमि रोग, चर्मरोग, कुष्ठरोग और आँखों की बीमारियों इत्यादि अनेको रोगों में असरदार है, तो आइये कांस्य भस्म में गुण, उपयोग, फ़ायदे और निर्माण विधि के बारे में सबकुछ विस्तार से जानते हैं - 

कांसा को ही आयुर्वेद में काँस्य कहा जाता है. इसके बर्तन अक्सर हमारे घरों में यूज़ किये जाते थे, इसके अच्छे गुणों के कारन. आज के ज़माने में तो इसका बहुत कम ही प्रयोग किया जाता है. कांसे के बर्तन में खाने या पानी पीने से भी बहुत फ़ायदा होता है, यह आप जानते ही हैं. 

इसी काँसे को शोधित कर पुरे विधी विधान से इसके भस्म का निर्माण किया जाता है, काँस्य भस्म निर्माण विधि विडियो के अंत के पुरे विस्तार से बताऊंगा. 

किस धातु के बर्तन में खाना बनाने और खाने के क्या फ़ायदे और नुकसान हैं, इसकी पूरी जानकारी के लिए आप यहाँ पढ़ सकते हैं. 

सबसे पहले जानते हैं काँस्य भस्म के गुण 

आयुर्वेदानुसार काँस्य भस्म लघु, तिक्त यानी स्वाद में कड़वा, उष्ण यानी की तासीर में गर्म और दीपन-पाचन जैसे गुणों से भरपूर होता है. यह विशेषरूप से वात-पित्त जनित रोगों में लाभकारी है. 

काँस्य भस्म की मात्रा और सेवन विधि 

एक से दो रत्ती यानी कि 125mg से 250mg तक शहद या गुलकंद मिलाकर इसका सेवन करना चाहिए.

काँस्य भस्म के फ़ायदे

कृमि रोग यानी पेट के कीड़ों और पेट की बीमारियों के लिए - 

कब्ज़ के कारन जब पेट में मल सड़कर पेट में कीड़े हो गए हों, भूख की कमी और पाचन की कमज़ोरी हो गयी हो तो काँस्य भस्म को शहद के साथ सेवन करना चाहिए. साथ में विडंग चूर्ण, विडंगारिष्ट इत्यादि का भी सेवन करना चाहिए. 

चर्मरोग या स्किन डिजीज के लिए - 

स्किन की हर तरह की प्रॉब्लम में काँस्य भस्म का सेवन कर सकते हैं. स्किन का रूखापन, एक्जिमा और कुष्ठ व्याधि इत्यादि रोगों में कांस्य भस्म को, गंधक रसायन और निम्बादि चूर्ण जैसे योग के साथ सेवन करना चाहिए. 

आँखों की बीमारियों में - 

कांस्य भस्म को सप्तामृत लौह और महात्रिफलादि घृत जैसी औषधियों के साथ सेवन करने से लाभ होता है. 

प्रमेह रोगों में यानी की धात और मूत्र रोगों में 

प्रमेह रोगों में भी इसके सेवन से लाभ होता है. रोगानुसार इसके साथ प्रवाल पिष्टी, चन्द्रप्रभा वटी, आमलकी रसायन जैसी औषधि का सेवन कर लाभ उठा सकते हैं. 

कांस्य भस्म कैसे बनता है ? 

भस्म बनाना एक जटिल प्रक्रिया होती है, आपकी जानकारी के लिए इसकी पूरी प्रक्रिया बता रहा हूँ. 

जैसा कि आप सभी जानते हैं कि किसी भी धातु की भस्म बनाने के लिए सबसे पहले उस धातु का शोधन किया जाता है. शास्त्रों में कांसे के दो भेद बताये गए हैं. पहला - तैलिक कांस्य और दूसरा पुष्प कांस्य. पुष्प कांस्य को ही भस्म बनाने के लिए श्रेष्ठ माना गया है. 

सबसे पहले जानते हैं कांसा की शोधन विधि - 

कांसा के छोटे छोटे पत्तर बनाकर इसे आग में तपाकर बारी-बारी से तिल तेल, छाछ, गोमूत्र, कांजी और कुल्थी क्वाथ में सात-सात बार बुझाने से कांसा शुद्ध हो जाता है. इसके बाद नमक मिले इमली पानी में तीन घंटे तक उबाल लेने से विशेष शुद्धी हो जाती है. इसके बाद इसके पत्रों को खराद मशीन की सहायता से बुरादा बनवा लेना चाहिए.

भस्म विधि - 

भस्म बनाने के लिए शोधित कांसे का बुरादा 100 ग्राम लेकर इसमें 100 ग्राम सेंधा नमक और उतना ही शुद्ध गंधक मिलाकर निम्बू के रस की एक भावना देकर मिट्टी के सकोरे में बन्दकर कपड़मिटटी कर गजपुट की अग्नि दी जाती है. ठण्डा होने पर इसे निकालकर पीसकर फिर इसके वज़न के बराबर शुद्ध गन्धक मिलाकर निम्बू के रस की भावना देकर गजपुट की अग्नि दें. इसके बाद फिर से इसी प्रोसेस को रिपीट करते हुए एक और अग्नि दी जाती है. 

इसके बाद अगला प्रोसेस यह होता है कि इसे ठण्डा होने पर गजपुट से निकालकर पिस लें और एक कड़ाही पर कपड़ा बाँधकर कपड़े पर थोड़ी-थोड़ी भस्म और पानी डालते रहें और हाथ से चलाते रहें. इसी तरह से पानी के साथ भस्म को छान लें. छानने के बाद भस्म को तीन-चार घंटा तक पड़ा रहने दें ताकि भस्म कड़ाही के पेंदे में जम जाये. 

इसके बाद ऊपर का पानी निथार कर अलग कर दें. जब तक पानी हरे रंग आता रहे इसी तरह से घुटाई कर पानी से छानते रहें. जब पानी में हरापन आना बन्द हो जाये तब भस्म को फिर से अच्छी तरह से घुटाई करें और इसमें थोड़ा सा तेल डालकर कड़ाही को भट्ठी में चढ़ाकर आँच लगाकर तेल को जला लें, इस दौरान भस्म को चलाते रहें. इसके बाद जब तेल पूरी तरह से जल जाये तो स्वांग शीतल होने पर भस्म को पीसकर कपड़छन कर काँच के बर्तन में भर कर रख लें. यही कांस्य भस्म होता है. 

जानिए आपके घर में जिस बर्तन में खाना बनाया जाता है उसके क्या नुकसान हैं? 


07 मार्च 2024

Medohar Guggul | मेदोहर गुग्गुल के बारे में क्या आप यह जानते हैं?


ओबेसिटी यानि की मोटापा आज के वैश्विक समस्या है, कई लोग मोटापे से परेशान हैं और तरह-तरह की दवा खाने के बाद भी उनका वज़न टस से मस नहीं होता. इसी मोटापा को दूर करने वाली शास्त्रीय आयुर्वेदिक औषधि मेदोहर गुग्गुल के बारे में आज विस्तार से बताने वाला हूँ. 

मेदोहर गुग्गुल 

जैसा कि इसके नाम से ही पता चलता है मेदोहर,  मेद यानि कि फैट या चर्बी का हरण करने वाली गुग्गुल वाली औषधि. 

मेदोहर गुग्गुल का घटक या कम्पोजीशन 

मेदोहर गुग्गुल का कम्पोजीशन बड़ा ही बेहतरीन है इसमें शुद्ध गुग्गुल, पीपल, सोंठ, काली मिर्च, मोथा, चित्रकमूल, हरीतकी, विभितकी, आमला, वायविडंग और एरण्ड तेल का मिश्रण होता है. इसे गुग्गुल वाली औषधि निर्माण विधि से ही इसकी गोलियाँ बनायी जाती हैं, जो कि बिल्कुल काले रंग की होती है. 

मेदोहर गुग्गुल की मात्रा और सेवन विधि 

दो-दो गोली सुबह-शाम गुनगुने पानी से. आवश्यकतानुसार रोज़ छह से आठ गोली तक ली जा सकती है. 


मेदोहर गुग्गुल के फ़ायदे 

वेट लॉस के लिए यह एक बेहतरीन दवा है, इस से बेहतर कोई दवा नहीं हो सकती. यह बॉडी के एक्स्ट्रा फैट को बर्न कर वज़न कम करती है. 

वज़न कम करना इसका मेन काम हैऔर इसके साथ साथ इस से रिलेटेड बीमारियों जैसे शुगर, जोड़ों का दर्द, फैटी लीवर, कोलेस्ट्रॉल बढ़ा होना, पेट की चर्बी, उठने-बैठने में तकलीफ़ होना, साँस की तकलीफ़ होना और कफ़ दोष को भी दूर करती है. 

शरीर के मेटाबोलिज्म को ठीक करते हुवे वज़न कम करने की यह बेस्ट दवा है, इस से किसी तरह का कोई साइड इफ़ेक्ट या नुकसान नहीं होता है. 

मेदोहर गुग्गुल ऐसी दवा है जो तुरन्त आपका वज़न कम नहीं कर देगी, ऐसा बिल्कुल मत सोचें की इसके सेवन से 10-15 दिन में ही आपका दो-चार किलो वज़न कम जायेगा. कई लोगों को इस से धीरे धीरे लाभ होता है, पर निश्चित रूप से वज़न कमता है और स्थायी लाभ रहता है. 

मेदोहर गुग्गुल मोटापा के मूल कारण पर असर करती है जिस से मोटापा के रोगियों का कायाकल्प हो जाता है.

मेदोहर गुग्गुल को कैसे यूज़ करें कि इसका पूरा फ़ायदा मिले?

दो गोली सुबह-शाम इसका नार्मल डोज़ है, आपकी ऐज और वज़न के अनुसार इसका डोज़ बढ़ भी सकता है. 

मेदोहर गुग्गुल के साथ फैटकिल कैप्सूल, फैटकिल चूर्ण, फैटोनिल टेबलेट या योगराज गुग्गुल के सेवन से जल्दी लाभ मिलता है. इस तरह से प्रयोग करवाकर अनेकों रोगियों को लाभान्वित किया हूँ. 

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फैटकिल कैप्सूल ऑनलाइन ख़रीदें 

फैटकिल चूर्ण ऑनलाइन ख़रीदें 

फैटोनिल टेबलेट 

क्या इसके कोई साइड इफेक्ट्स भी हैं?

नहीं, सही डोज़ में स्थानीय वैद्य जी की सलाह से इसका सेवन करने से कोई साइड इफ़ेक्ट या नुकसान नहीं होता है. 

अंग्रेज़ी दवा, कोई विटामिन या होमियो दवा आपकी पहले से चलती हो तो भी इसका यूज़ कर सकते हैं, बस दूसरी दवाओं और इसके बिच में आधा घंटा का गैप रखें. 

प्रेगनेंसी में इसका इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. 

14 फ़रवरी 2024

Thyroid Ayurvedic Medicine- Thayocare Capsule | थायोकेयर कैप्सूल

thyroid treatment

आज एक बहुत ही स्पेशल औषधि थायोकेयर कैप्सूल के बारे में जानकारी देने वाला हूँ जो थायराइड की समस्या के लिए बेहद असरदार है. 

कुछ लोग सोचते हैं कि आयुर्वेद में थायराइड का प्रॉपर ईलाज नहीं है, जो की ग़लत है. भईया आयुर्वेद में थायराइड का सफ़ल उपचार है. 

सबसे पहले जानते हैं थायोकेयर कैप्सूल के कम्पोजीशन के बारे में 

इसके घटक या कम्पोजीशन की बात करूँ तो यह शास्त्रीय आयुर्वेदिक औषधियों और जड़ी बूटियों का एक बेहतरीन योग है. इसे कांचनार गुग्गुल, पुनर्नवादि मंडूर, आरोग्यवर्धिनी वटी, त्र्युषनाध लौह, कुटकी घनसत्व और विडंग घनसत्व के मिश्रण से बनाया गया है. 
 

थायोकेयर कैप्सूल का डोज़ यानि कि मात्रा और सेवन विधि 

एक से दो कैप्सूल रात में सोने से पहले गर्म पानी से लें. या फिर बढ़ी हुयी अवस्था में दो-दो कैप्सूल सुबह-शाम गर्म पानी से. जब थायराइड का लेवल नार्मल हो जाये उसके बाद भी कुछ महीने तक एक कैप्सूल रोज़ सेवन करना चाहिए. 15 साल से कम उम्र के रोगी को कैप्सूल तोड़कर आधी मात्रा में देना चाहिए.

थायोकेयर कैप्सूल के फ़ायदे 

इसके फायदों की बात करूँ तो यह अबनोर्मल थायराइड लेवल को नार्मल करता है और इस कारन से शरीर में उत्पन्न हुयी विकृतियों को दूर करता है. 

थायराइड ग्रंथि की विकृति से उत्पन्न सभी समस्याओं की दूर करने में असरदार है. 
लॉन्ग टाइम तक इसका सेवन कर सकते हैं, किसी भी तरह का कोई भी साइड इफ़ेक्ट नहीं  होता है. 

इसका सेवन करते हुए सफ़ेद नमक, चावल और चिकनाई वाले आहार से परहेज़ करना चाहिए.