जैसा कि इसके नाम से ही पता चलता है चित्रक मूल और हरीतकी इसका मुख्य घटक होता है. यह अवलेह टाइप की यानी च्यवनप्राश के जैसी दवा होती है.
तो आईये सबसे पहले जानते हैं इसके फ़ायदे
आयुर्वेदानुसार पुराने और बार-बार होने वाले प्रतिश्याय या जुकाम में इसके सेवन से अच्छा लाभ होता है. खांसी, कृमि रोग, गैस, वायु गोला बनना, अस्थमा, बवासीर और मन्दाग्नि जैसे रोगों में भी लाभकारी है.
विशेष रुप से दमा के रोगी को अत्यधिक लाभ पहुंचाता है.
फेफड़ों की श्वासनलीयों को विस्फारित कर श्वास लेने की कठिनाई को दूर करता है.
बदलते मौसम के साथ होने वाले वायरल संक्रमण से बचाता है.
शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है.
फेफड़ों में उपस्थित बलगम को बाहर निकालने में मदद करता है.
अस्थमा के रोगियों के लिए सेवन फायदेमंद होता है.
मौसम के कारण होने वाला जुकाम, ट्यूबरक्लोसिस के रोगियों के लिए फायदेमंद होता है.
पुराने से पुराना नजला जुकाम दूर करता है.
पेट के कीड़े को मारता है.
पाचन तंत्र को मजबूत करता है.
पेट में होने वाली कब्ज गैस की शिकायत को दूर करता है.
आम का पाचन करता है.
अर्श या बवासीर रोग में सेवन करना फायदेमंद है.
चित्रक हरीतकी की मात्रा और सेवन विधि
5 ग्राम या एक स्पून सुबह-शाम गाय के गर्म दूध के साथ लेना चाहिए. पुराने नज़ला-जुकाम में इसके साथ 'जीर्ण प्रतिश्यायहर वटी' और 'प्रतिश्यायहर योग' का इस्तेमाल करने से तेज़ी से लाभ होता है.
इसका कोई साइड इफ़ेक्ट नहीं है, बिल्कुल सुरक्षित औषधि है.
आईये अब जान लेते हैं इसके घटक और निर्माण विधि
आयुर्वेदिक ग्रन्थ सिद्ध योग संग्रह के अनुसार इसकी निर्माण विधि कुछ इस तरह से है-
चित्रक मूल क्वाथ 4 लीटर, आँवले के रस या क्वाथ 4 लीटर, गिलोय का रस चार लीटर, दशमूल क्वाथ 5 लीटर, बड़ी हर्रे का चूर्ण 2.5 किलो, गुड़ चार किलो सभी को मिक्स कर इतना पकायें की हलवे की तरह गाढ़ा हो जाये. इसके बाद इसमें सोंठ, काली मिर्च, पीपल, दालचीनी, तेजपात और छोटी इलायची प्रत्येक 80 ग्राम और जौक्षार 20 गर्म लेकर बारीक चूर्ण बनाकर मिक्स कर रख लें. अब दुसरे दिन इसमें 320 ग्राम शहद और 640 ग्राम शहद मिक्स कर अच्छी तरह से मिलाकर काँच के बर्तन में रख लें. बस यही चित्रक हरीतकी है.
आज वैद्यजी की डायरी में बताने वाला हूँ अपेंडिक्स के आयुर्वेदिक उपचार के बारे में जिस से आप बिना ऑपरेशन के इस बीमारी से छुटकारा पा सकते हैं.
दोस्तों, आपने अक्सर सुना होगा कि फलां आदमी को अपेंडिक्स हो गया और इसका ऑपरेशन कराना पड़ा.
अगर आपको गैस की वजह से भी पेट दर्द है तो कई धूर्त सर्जन लोग पैसा बनाने के चक्कर में मरीज़ को डराकर ऑपरेशन कर देते हैं. जबकि गैस की वजह से होने वाला दर्द ऑपरेशन के बाद भी बना रहता है.
यदि आपने इस तरह की परेशानी झेली है या आपके जानने वाले के साथ ऐसा कुछ हुआ है तो कमेन्ट कर ज़रुर बताईयेगा.
अपेंडिक्स क्या है?
सभी के शरीर में यह होता है जो बड़ी आंत के निचे दाहिनी साइड अँगुली के जैसी लम्बी एक छोटी से पूंछ होती है जो अन्दर से खोखली होती जिसकी लम्बाई दो से चार इंच होती है. इसकी औसत लम्बाई 3.5 इंच होती है.
आंत के साथ पूंछ के जैसा जुड़ा होने से इसे 'आंत्रपुच्छ' कहा जाता है आयुर्वेद में. इसे ही अंगेज़ी में Appendix कहा जाता है.
शरीर में इस अंग का क्या काम है, मेडिकल साइंस अब तक पता नहीं लगा पाया है.
जब किसी वजह से इस अंग में यानी में अपेंडिक्स में सुजन हो जाये तभी इसकी जगह पर पेट में दर्द होता है और तब इसे Appendicitis कहा जाता है. इस स्थिति को आयुर्वेद में आंत्रपुच्छ शोथ, आंत्रपुच्छ प्रदाह, उन्दुकपुच्छशोथ, उपान्त्रशोथ जैसे नामों से जाना जाता है.
तो अब आप समझ गए होंगे कि अपेंडिक्स यानी आंत्रपुच्छ और Appendicitis यानि आंत्रपुच्छ प्रदाह में क्या अन्तर होता है.
आम बोलचाल में लोग Appendicitis को ही अपेंडिक्स बोल देते हैं.
Appendicitis यानि आंत्रपुच्छ शोथ के कारण
इसमें सुजन और संक्रमण होना ही मुख्य कारन है, कई लोगों का मानना है कि निम्बू, संतरा के साबुत बीज या भोजन का कोई अंश जब बड़ी बड़ी आंत से इसमें चला जाता है तब सड़कर वहां रोग की उत्त्पत्ति करता है.
Appendicitis यानि आंत्रपुच्छ शोथ के लक्षण या Symptoms
इसके लक्षणों की बात करुँ तो यह दर्द वाली बीमारी है. पेट में बहुत तेज़, न सहने वाला दर्द होना ही इसका प्रधान लक्षण होता है. पहले पेट के उपरी हिस्से या नाभि के एरिया में दर्द उठता है इसके बाद निचे दाहिने तरफ़ जाकर दर्द स्थिर हो जाता है. तेज़ दर्द के बाद उल्टी और बुखार जैसे लक्षण भी पाये जाते हैं.
सोनोग्राफी से इस रोग का सटीक निदान हो जाता है, वैसे अनुभवी वैद्यगण रोगी का पेट चेक कर भी बता देते हैं.
Appendicitis यानि आंत्रपुच्छ शोथ का आयुर्वेदिक उपचार
मैं आपको बता देना चाहूँगा कि अगर समस्या बहुत बढ़ी नहीं हो रोग की शुरुआत ही हो तो आयुर्वेदिक उपचार से यह रोग पूरी तरह से ठीक हो जाता है. सिर्फ़ इमरजेंसी में ही इसका ऑपरेशन करवाना चाहिए.
Appendicitis के आयुर्वेदिक उपचार के लिए मैं आपको अनुभवी वैद्यों की सफ़ल चिकित्सा का निचोड़ बता रहा हूँ जो इस बीमारी में शत प्रतिशत सफल है-
Appendicitis के लिए आयुर्वेदिक व्यवस्था
1) शंख वटी दो-दो गोली खाना के बाद गर्म पानी से
2) आंत्रपुच्छ शोथहर योग एक-एक पुड़िया सुबह-शाम शहद से
3) कुमार्यासव 2 स्पून + पुनर्नवारिष्ट 2 + 4 स्पून पानी मिक्स कर सुबह-शाम खाना के बाद
4) उदरशोथारी लेप - दर्द वाली जगह पर रोज़ दो-तीन बार लेप करने के लिए
5) सुगम चूर्ण या पंचसकार चूर्ण रात में सोने से पहले गर्म पानी से
आंत्रपुच्छ शोथहर योग और उदरशोथारी लेप अनुभूत योग है जो बना हुआ आपको मार्केट से नहीं मिलेगा. इन दोना का नुस्खा आपको बता रहा हूँ -
आंत्रपुच्छ शोथहर योग
अग्नितुंडी वटी 20 ग्राम + शुल्वार्जिनी वटी 20 ग्राम + पुनर्नवादि मंडूर 20 ग्राम लेकर पीसकर वरुनादि क्वाथ और घृतकुमारी की एक-एक भावना देकर सुखा कर रख लिया जाता है.
उदरशोथारी लेप
इसे बनाए के लिए चाहिए होता है - दशांग लेप 100 ग्राम + शुद्ध कुचला चूर्ण 10 ग्राम + आमा हल्दी चूर्ण 10 ग्राम. सभी को मिक्स कर रख लें.
इसकी प्रयोग विधि
दो स्पून इस चूर्ण को लेकर स्टील के बर्तन के डालकर इतना पानी मिक्स करें की पेस्ट जैसा हो जाये फिर इसको चूल्हे पर रखकर हलवे के जैसा उबाल कर पका लेना है. इसके बाद सुहाता-सुहाता दर्द वाली जगह पर लेप कर देना है. लेप करने के एक घंटे के बाद जब लेप सुख जाये तो हलके से लेप को छुड़ाकर उस जगह पर कोई तेल क्रीम या विषगर्भ तेल लगा लेना चाहिए.
यह दोनों योग बनाने में यदि किसी कोई समस्या हो तो आप मुझे मेसेज किजिए, मैं उपलब्ध करा दूंगा.
वैद्य जी की डायरी में आज जो प्रयोग मैं बताया हूँ इसे आप वैद्यगण आंत्रपुच्छ शोथ के अलावा बड़ी आंत की सुजन, लिवर-स्प्लीन की सुजन और अग्नाशयशोथ इत्यादि में भी प्रयोग कर सकते हैं.
जैसा कि इसके नाम से ही पता चलता है शक्ति या ताक़त देने वाली, चंद्रोदय सिद्ध मकरध्वज का ही दूसरा नाम है, वटी का मतलब गोली या टेबलेट
पिछली सदी से इसका काफ़ी यूज़ किया जा रहा है. मेरे आयुर्वेद के गुरु जी जो सौ साल की उम्र तक जिये वह भी इसे यूज़ करते थे और कमज़ोरी वाले सभी मरीज़ों को इसे खुद बनाकर देते थे.
शक्ति चन्द्रोदय वटी क्या है?
शक्ति चन्द्रोदय वटी अपने आप में एक बड़ा ही यूनिक फार्मूलेशन है जिसे पुराने वैद्य लोग बनाकर यूज़ करवाते थे, आज के टाइम में इसे इक्का-दुक्का कंपनी ही बनाती है. मार्केटिंग के इस ज़माने में कम्पनियां ज़्यादा प्रॉफिट वाले प्रोडक्ट ही बनाती है.
शक्ति चन्द्रोदय वटी के घटक या कम्पोजीशन
इसके कम्पोजीशन की बात करें तो इसे सिद्ध मकरध्वज, शुद्ध विषबीज, त्रिफला और शुद्ध विजया के मिश्रण से बनाया जाता है.
इसे कौन-कौन लोग यूज़ कर सकते हैं?
इसे 18 साल से की उम्र से लेकर 100 साल तक की उम्र के सभी लोग यूज़ कर सकते हैं. सिर्फ़ हाइपर एसिडिटी और हाई BP वाले लोगों को वैद्य जी की सलाह से ही इसे लेना चाहिए.
इसे कैसे यूज़ करें?
दो-दो गोली सुबह-शाम दूध या पानी से भोजन के लेना चाहिए
इसके क्या-क्या फायदे हैं?
शक्ति चन्द्रोदय वटी के फ़ायदे की बात करूँ तो इन रोगों में यूज़ करना चाहिए जैसे-
प्रमेह, स्वप्नदोष, धातु स्राव, हस्तमैथुन के कारण होने वाली कमज़ोरी, शीघ्रपतन, वीर्य का पतलापन, मानसिक नपुंसकता, स्नायुविक दुर्बलता यानी नर्वस Weakness, वृद्धावस्था जन्य दुर्बलता यानी बुढ़ापे की कमज़ोरी, मधुमेह जन्य दुर्बलता यानी डायबिटीज की वजह से होने वाली कमजोरी, लो BP की वजह से होने वाली कमज़ोरी, किसी भी बीमारी के बाद होने वाली कमजोरी, जनरल Weakness, सर दर्द, कमर दर्द, सर्दी-जुकाम और पाचन की कमजोरी इत्यादि.
आसान भाषा में कहूँ तो अगर आपको किसी भी तरह की मर्दाना कमज़ोरी है, धात की प्रॉब्लम है, टाइमिंग की प्रॉब्लम है, मास्टरबेशन की वजह से हुयी कमज़ोरी है तो इसका यूज़ कर सकते हैं.
ज़्यादा उम्र के लोग और शुगर के पेशेन्ट भी इसका इस्तेमाल कर कमज़ोरी दूर कर सकते हैं.
शक्ति चन्द्रोदय वटी का कोई नुकसान भी है?
इसका कोई साइड इफ़ेक्ट या नुकसान नहीं होता है. इसकी इसकी तासीर थोड़ी गर्म होती है तो अगर आप पित्त प्रकृति के या गर्म तासीर के हैं, हाई BP है और बदन में गर्मी की ज़्यादा प्रॉब्लम है तो इसे गिलोय सत्व के साथ, किसी ठंडी तासीर की चीज़ के साथ या फिर वैद्य जी की सलाह से ही इसका इस्तेमाल करें.
इसे लगातार तीन महिना या ज़्यादा टाइम तक भी यूज़ कर सकते हैं.
यह एक क्लासिक आयुर्वेदिक मेडिसिन है जैसा कि इसके नाम से ही पता चलता है-
चन्द्रप्रभा वटी
चन्द्र का मतलब है चाँद और प्रभा का मतलब होता है चमक या ग्लो यानी मून ग्लो लाइट और वटी का मतलब होता है गोली या टेबलेट
शारंगधर संहिता और भैषज्य रत्नावली नाम की आयुर्वेदिक ग्रन्थ में इसका वर्णन मिलता है.
सबसे पहले जानते हैं इसके टॉप 10 बेनेफिट्स आसान भषा में और इसके बाद जानेंगे कि आयुर्वेदिक ग्रंथों में इसके क्या क्या फ़ायदे बताये गए हैं.
1) Urinary tract health
पेशाब की बीमारियों के लिए यह काफी पोपुलर है, यह न सिर्फ यूरिनरी सिस्टम को हेल्दी बनाती है बल्कि बार-बार पेशाब आना, पेशाब की जलन और यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन जैसी समस्या को दूर करती है.
2) Kidney Function
किडनी या गुर्दे को हेल्दी रखने में यह असरदार है. शरीर की गन्दगी को बाहर निकालती और किडनी फंक्शन को दुरुस्त रखती है.
3) Bladder Support
यह हर्बल फॉर्मूलेशन मूत्राशय के स्वास्थ्य को बनाए रखने और मूत्राशय से संबंधित समस्याओं को कम करने में सहायता करता है.
4) Reproductive Health
चंद्रप्रभा वटी का उपयोग अक्सर पुरुषों और महिलाओं दोनों में प्रजनन सम्बन्धी समस्याओं को दूर करने के लिए किया जाता है. यह लेडीज के पीरियड साइकिल को सुचारू करती है और पीरियड रिलेटेड प्रोब्लेम्स को दूर करने में मदद करती है. जबकि पुरुषों के वीर्य विकार, नाईट फॉल, धत गिरना जैसी समस्या को दूर करने में सहायक है.
5) Prostate Health
प्रोस्टेट ग्लैंड से जुड़ी सभी समस्याओं के लिए काफी पॉपुलर है, प्रोस्टेट को स्वस्थ रखने में यह असरदार है. बढ़े हुए प्रोस्टेट ग्लैंड को नार्मल करने के लिए इसका यूज़ करना ही चाहिए.
6) Digestive Support
ऐसा माना जाता है कि यह पाचन में सहायता करती है. चंद्रप्रभा वटी पाचन संबंधी परेशानी को दूर करने और उचित पोषक तत्व अवशोषण में सहायता कर सकती है.
7) Joint Health
इस हर्बल फॉर्मूलेशन का उपयोग अक्सर जॉइंट हेल्थ को सपोर्ट करने और जोड़ों के दर्द और सूजन को कम करने के लिए किया जाता है.
8) Energy And Vitality
माना जाता है कि चंद्रप्रभा वटी ऊर्जा के स्तर को बढ़ाती है और समग्र जीवनी शक्ति को बढ़ावा देती है.
9) Blood Sugar Balance
हेल्दी ब्लड शुगर लेवल बनाये रखने में भी चन्द्रप्रभा वटी सहायक है. इसलिए इसे डायबिटीज के मरीज़ भी यूज़ कर सकते हैं.
10) Detoxification
यह बॉडी से Toxins और अपशिष्ट पदार्थों को निकालती है यानी कि Detoxifying में मदद करती है.
तो यह थे चंद्रप्रभा वटी के टॉप 10 फ़ायदे.
आयुर्वेद में इसके क्या क्या फ़ायदे बताये गए हैं?
यह वात, पित्त और कफ़ तीनों दोषों को बैलेंस करती है तो यह हर तरह की सभी बीमारियों में असरदार है. आयुर्वेद में इसे योगवाही भी कहा गया है. योगवाही का मतलब यह होता है कि इसे किसी भी दवा या चीज़ के साथ मिलाकर खाने से यह उस चीज़ का पॉवर बढ़ा देती है.
शारंगधर संहिता के मूल श्लोक को यदि आप पढ़ें तो यह इन सब बीमारियों को दूर करती है -
प्रमेह यानी मधुमेह या डायबिटीज
पेशाब की तकलीफ, पेशाब का इन्फेक्शन, पेशाब की रुकावट, कब्ज़, गैस-पेट फूलना, पेट दर्द, ट्यूमर, Fibroid, सिस्ट, कैंसर, हर्निया, एनीमिया, जौंडिस, लिवर सिरोसिस, कमर दर्द, दमा या अस्थमा, सर्दी जुकाम, एक्जिमा, बवासीर, खुजली, तिल्ली बढ़ना, फिशर, दांत की बीमारी, आँख की बीमारी, महिलाओं की पीरियड प्रॉब्लम, पुरुषों का वीर्य विकार, शीघ्रपतन, स्वप्नदोष, धात, कमजोरी, प्रोस्टेट, पाचन शक्ति की कमजोरी और अरुचि यानी खाने की इच्छा नहीं होना इत्यादि.
वैद्यगण इसे किडनी स्टोन, किडनी फेलियर, Chronic Kidney Disorder, Proteinurea, GFR और fallopian tube की ब्लॉकेज इत्यादि में भी इसका यूज़ करवाते हैं.
इसे कब और कितना यूज़ करें?
इसे आप रोज़ दो से 6 गोली तक यूज़ कर सकते हैं. आपकी प्रॉब्लम और बॉडी कंडीशन के अनुसार ही इसका डोज़ लेना चाहिए. इसका नार्मल डोज़ दो गोली सुबह-शाम है. इसे लम्बे समय तक भी यूज़ कर सकते हैं. प्रोस्टेट जैसी समस्या में इसे कम से कम 6 महीने तक भी लेना पड़ सकता है.
अंग्रेज़ी दवा ले रहे हैं तो इसका यूज़ कर सकते हैं?
हाँ बिल्कुल इसका यूज़ कर सकते हैं, अंग्रेजी दवा और इसके बीच में कम से कम 30 मिनट का गैप रखें.
क्या होम्योपैथिक दवा लेते हुए इसका यूज़ कर सकते हैं?
हाँ, बिल्कुल यूज़ कर सकते हैं. होमियो दवा के साथ यह किसी तरह की प्रतिक्रिया नहीं करती है.
हमेशा इसे स्थानीय वैद्य जी की सलाह के अनुसार ही लेना चाहिए. कम डोज़ लेने से वांछित लाभ नहीं मिलेगा और ज़्यादा डोज़ होने से पेट अपसेट भी हो सकता है.
चन्द्रप्रभा वटी के साइड इफेक्ट्स
यह ऐसी हर्बल दवा है जो सदियों से यूज़ की जा रही है जो पूरी तरह से सुरक्षित है और इसका कोई साइड इफेक्ट्स नहीं है. इसमें गुग्गुल, शिलाजीत, लौह भस्म, स्वर्णमाक्षिक भस्म जैसी चीज़ मिली होती है, यदि आपको इनमे से किसी चीज़ एलर्जी है तो इसका ध्यान रखते हुए यूज़ करना चाहिए.
आवश्यक मात्रा से ज़्यादा डोज़ लेने से पेट की गड़बड़ी हो सकती है.
सबसे बेस्ट चन्द्रप्रभा वटी कौन सी है?
चूँकि मुझे यह दवा बनाने का काफ़ी अनुभव रहा है तो मैं कह सकता हूँ कि जो दिखने में पूरी तरह से काली टेबलेट हो तो वह बेस्ट है. बेस्ट वाली चन्द्रप्रभा वटी के 50 ग्राम के पैक की क़ीमत है 275 रुपया आज की तारीख में, जिसे ऑनलाइन ख़रीदने का लिंक डिस्क्रिप्शन में दिया गया है.
और अब अंत में जान लेते हैं चन्द्रप्रभा वटी के घटक यानि कम्पोजीशन और निर्माण विधि के बारे में -
निशोथ, दन्तिमूल, तेज़पात, दालचीनी, बड़ी इलायची, और बंशलोचन प्रत्येक 20-20 ग्राम
लौह भस्म 40 ग्राम, मिश्री 80 ग्राम, शुद्ध शिलाजीत और शुद्ध गुगुल प्रत्येक 160 ग्राम.
सभी जड़ी बूटियों का बारीक कपड़छन चूर्ण बना लें और गुगुल को इमामदस्ते में कूटें जब गुगुल नर्म हो जाये तो शिलाजीत, भस्म और जड़ी-बूटियों का चूर्ण मिला कर गिलोय के रस में तिन दिनों तक खरल में डाल कर मर्दन करना चाहिए. और इसके बाद 500 मिलीग्राम की गोलियां बना कर सुखा कर रख लें.
चन्द्रप्रभा वटी के बारे में कुछ और जानना चाहते हैं तो कमेंट कर पूछ सकते हैं.
अगर आपकी हड्डियों में दर्द रहता है तो यह पता करना बहुत ज़रूरी है कि यह किस कारण से है. क्यूंकि हड्डियों में दर्द कई कारणों से हो सकता है, जिसमें अर्थराइटिस, ऑस्टियोपोरोसिस और एवैस्कुलर नेक्रोसिस जैसे कारण शामिल हैं लेकिन आज भी बहुत कम लोग एवैस्कुलर नेक्रोसिस (Avascular Necrosis) के बारे में जानते हैं.
क्या है एवैस्कुलर नेक्रोसिस (Avascular-Necrosis)?
एवैस्कुलर नेक्रोसिस (Avascular Necrosis) हड्डियों में होने वाली ही एक समस्या है जिसमें बोन टिशू यानी हड्डियों के ऊतक मरने लगते हैं. सीधी भाषा में कहा जाए तो हड्डियां गलने लगती हैं। यह बीमारी होने का कारण रक्त प्रवाह में बाधा होने के कारण टिशू तक पर्याप्त मात्रा में खून का नहीं पहुंच पाना है। और यदि किसी भी ऊतक को खून उचित मात्रा में नहीं मिलेगा तो वहाँ पोषण की कमी होगी जिसके चलते ये ऊतक मरने लगते हैं। इस बीमारी को ऑस्टियोनेक्रोसिस के नाम से भी जाना जाता है। सबसे अधिक यह समस्या कूल्हे की हड्डी में होती है जिसके कारण फेमर का गोल हिस्सा जो कूल्हे का जोड़ बनता है वो गलने लगता है। वैसे तो ये समस्या किसी भी उम्र में हो सकती है लेकिन मुख्य तौर पर 30 से 60 वर्ष के बीच के आयु वर्ग वाले लोग इससे ज्यादा पीड़ित होते है।
एवैस्कुलर नेक्रोसिस के कारण
शराब व तम्बाकू का बहुत अधिक सेवन एवीएन के पीछे के सबसे बड़े कारण के रूप में जाने जाते हैं। इसलिए सबसे जरुरी है की आप इन चीज़ों के सेवन से दुरी बनाये रखें। क्योंकि शराब व तम्बाकू से शरीर में बहुत सी वसा की छोटी छोटी बूंदें इधर से उधर बहती रहती हैं और समय के साथ ये छोटी रक्त वाहिनियों में जमा हो कर रक्त के प्रवाह को बंद कर देती हैं। और पोषण ना मिलने से आपकी हड्डियां या जोड़ गलने लगते हैं।
इसके अलावा एवीएन का दुसरा बड़ा कारण है स्टेरॉइड्स का अनियंत्रित व गलत इस्तेमाल। वजन बढ़ने, कम करने के लिए या फिर कद बढ़ने के लिए आज कल बहुत से उत्पादों में बहुत अधिक मात्रा में बिना बताये स्टेरॉइड्स मिला दिए जाते हैं। स्टेरॉइड्स के इसी गलत इस्तेमाल से हड्डियों पर गलत प्रभाव पड़ता है और हड्डियां गलने लगती हैं।
एवैस्कुलर नेक्रोसिस के लक्षण या Symptoms
अगर इस समस्या के लक्षणों की बात की जाए तो ये जरूरी नहीं कि व्यक्ति के अंदर शुरुआती दौर में इस बीमारी के लक्षण दिखाई दें। ज़्यादातर स्थिति अधिक खराब होने पर इसके लक्षण दिखाई देते हैं, क्योंकि हड्डी एक साथ गलने की बजाय धीरे धीरे गलती है। एक सीमा तक तो शरीर दर्द व अन्य लक्षणों को सहन करता है। लेकिन जब हड्डी एक सीमा से अधिक खराब हो जाती है तो अचानक सभी लक्षण एक साथ आने लगते हैं।
अगर ये समस्या आपके कूल्हे से जुड़ी हुई है तो उस स्थिति में आपके जांघ और कूल्हे की हड्डियों में भयंकर दर्द होता है। चलने में लचक होने लगती है, सोते जागते लगातार दर्द बना रहता है। कूल्हे के अलावा ये बीमारी आपके कंधे, घुटने, हाथ और पैरों को भी प्रभावित कर सकती है। इनमें से किसी भी प्रकार के लक्षण दिखाई देने और जोड़ों में लगातार दर्द रहने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए.
एवैस्कुलर नेक्रोसिस का आयुर्वेदिक उपचार
यदि आप AVN की समस्या से जूझ रहें हैं और जोड़ बदलवाने की समस्या का कोई विकल्प ढूंढ रहे हैं तो आयुर्वेद आपके लिए वरदान साबित हो सकता है, क्यूंकि आयुर्वेद के उपचार द्वारा हड्डी को जाने वाली ब्लड सप्लाई को सुनिश्चित किया जा सकता है इसलिए न केवल हड्डी का गलना रुक जाता है बल्कि जो नए और आरंभिक केस होते हैं वहाँ पर व्याधि के रुकने के साथ साथ हड्डी के उत्तक दुबारा भी बनने लगते हैं। यानी की एवीएन के ग्रेड में भी सुधार होता है।
संक्षेपतः क्रिया योगो
निदान परिवर्जनम।।
का ध्यान रखते हुए सबसे पहले रोग के कारणों का त्याग करना होगा, परहेज़ करना होगा.
AVN की आयुर्वेदिक औषधि व्यवस्था
यहाँ मैं एवैस्कुलर नेक्रोसिस के लिए कुछ आयुर्वेदिक योग बता रहा हूँ जिसे वैद्यगण अपने रोगीयों पर प्रयोग कर यश अर्जित कर सकते हैं -
व्यवस्था पत्र -1
1) वृहत वातचिन्तामणि रस 1 ग्राम + नवरत्न कल्पामृत रस 3 ग्राम + प्रवाल पंचामृत रस मुक्त युक्त 10 ग्राम + गिलोय सत्व 10 ग्राम. सभी को खरल कर 60 पुड़िया बना लें. एक-एक पुडिया रोज़ तीन बार शहद से लेना है.
2) चन्द्रप्रभा वटी 2 गोली+ योगराज गुग्गुल 2 गोली + शिलाजित्वादि वटी 2 गोली मिलाकर रोज़ तीन बार गुनगुने पानी से
3) अश्वगन्धारिष्ट 2 स्पून + दशमूलारिष्ट 2 स्पून बराबर मात्रा में पानी मिलाकर भोजन के बाद रोज़ दो बार
व्यवस्था पत्र -2
1) योगेन्द्र रस 125 mg + शिलाजित्वादि लौह 125 mg + प्रवाल पंचामृत रस मुक्त युक्त 250 mg + गिलोय सत्व 250 mg + असगंध चूर्ण 1 ग्राम = 1 मात्रा, यह एक डोज़ है, ऐसी एक-एक डोज़ डेली 3 बार शहद से.
2) योगराज गुग्गुल 2-2 गोली रोज़ दो बार गुनगुने पानी से
3) दशमूलारिष्ट 2 स्पून + अश्वगंधारिष्ट 2 स्पून बराबर मात्रा में पानी मिलाकर भोजन के बाद
इन सब के साथ में जीवन्त्यादि घृत, स्वर्ण बसन्त मालती, रुदन्ति कैप्सूल जैसी औषधि भी रोग और रोगी की दशा के अनुसार ऐड करना चाहिए.
तो इस तरह से औषधि सेवन से इस रोग में लाभ हो जाता है, समस्या बढ़ी हुयी हो तो पंचकर्मा भी आवश्यक होता है.
अपने प्रिय पाठकों को बताना चाहूँगा कि यह सब दवा खुद से यूज़ न करें, स्थानीय वैद्य जी की देख रेख में ही सेवन करें. ख़ुद से यूज़ करने के लिए आप मेरा अनुभूत योग बाजीकरण चूर्ण और वातरोगहर वटी गोल्ड का सेवन कर सकते हैं, जिसका लिंक दिया गया है.
हरताल तेज़ी से असर करने वाली औषधि है जिसे हरिताल भी कहा जाता है. अंग्रेजी में इसे Arsenic Tri Oxide के नाम से जाना जाता है.
हरताल तो तरह का होता है. पिण्ड हरताल और तबकिया हरताल
तबकिया हरताल को पत्र हरताल और वर्कि हरताल जैसे नामों से भी जाना जाता है. इसे कहीं-कहीं हड़ताल भी कहा जाता है.
इससे मिलते जुलते नाम वाली दवा गोदन्ती हरताल या हरताल गोदन्ती अलग चीज़ है. हरताल गोदन्ती सफ़ेद रंग की होती है जबकि यह वाली हरताल या तबकिया हरताल पिली सुनहरे रंग की होती है.
हरताल भस्म जो है गठिया, कुष्ठ, सिफलिस, हर्प्स, चर्मरोग जैसे अनेकों रोगों को दूर करती है.
हरताल भस्म निर्माण विधि
इसकी भस्म बनाकर ही प्रयोग किया जाता है, ऐसे यह ज़हरीली होती है. भस्म बनाने के लिए सोने के जैसी पिली, भरी, चमकदार और छोटे-छोटे साइज़ वाली वर्कि हरताल ही बेस्ट होती है. भस्म बनाने से पहले इसका शोधन करना होता है.
हरताल शोधन विधि
हरताल को शोधित करने के लिए सबसे पहले इसे चने के साइज़ के छोटे-छोटे टुकड़े कर मोटे सूती कपड़े में बांधकर मिट्टी की हांडी में पेठे का रस डालने के बाद इसे उसमे लटकाकर मतलब डुबाये हुए छह घंटा तक पकाया जाता है. ऐसे अरेंजमेंट को ही आयुर्वेद में 'दोला यंत्र' कहा जाता है. इसके बाद इसे निकालकर काँच के बर्तन में रखकर, इसमें इतना निम्बू कर रस डाला जाता है की यह डूब जाये. इसी तरह से रोज़ निम्बू का रस बदला जाता है सात दिनों तक. इसके बाद हरताल के टुकड़ों को पानी से धोकर सुखा लिया जाता है. तो इस तरह से हरताल शुद्ध हो जाता है. यह शोधन विधि 'सिद्ध योग संग्रह' में बतायी गयी है.
हरताल भस्म निर्माण विधि
जैसा कि आप सभी जानते हैं भस्म बनाना एक जटिल प्रक्रिया है. हरताल की भस्म बनाने से पहले शोधित हरताल को पलाश के जड़ के क्वाथ की तीन भावना देनी होती है. इसके लिए पलाश के जड़ का क्वाथ शहद के इतना गाढ़ा बनाना होता है.
पलाश के जड़ की तीन भावना देने के बाद इसकी टिकिया या गोला बनाकर मिट्टी के छोटे बर्तन में डालकर कपड़मिट्टी कर सुखाकर गोबर के कन्डो की अग्नि दी जाती है. इसी तरह से 12 पुट अग्नि देने यानि बारह बार अग्नि देने से हरताल भस्म तैयार हो जाती है.
वैसे यह बना बनाया मार्किट में मिल जाता है, इसे ऑनलाइन ख़रीदने का लिंक निचे दिया गया है.
30 मिलीग्राम से 60 मिलीग्राम तक शहद के साथ या रोगानुसार उचित अनुपान से. इसे स्थानीय वैद्य जी की सलाह से ही सेवन करें नहीं तो सीरियस नुकसान हो सकता है.
हरताल भस्म के गुण
यह तासीर में बहुत गर्म होती है. यह कटु एवम अग्नि-दीपक होती है. कफ़ और पित्त दोष को बैलेंस करती है.
हरताल भस्म के फ़ायदे
यह वातरक्त, वातरोग, कुष्ठ व्याधि, उपदंश यानि गर्मी की बीमारी, चर्म रोग, मलेरिया, उर्ध्वश्वास, मृगी, सन्निपात, भगंदर जैसे रोगों का नाश करती है.
आईये अब आसान भाषा में जानते हैं कि किन-किन बीमारीओं में इसका सेवन करना चाहिए -
वातरक्त और वात रोगों में
जब रोगी शरीर हिला भी न सके, शरीर जकड गया हो, हाथ-पैर की ऊँगली टेढ़ी हो गयी हो, हड्डियाँ मूड़ गयी हों, हड्डी में दर्द, नसों में खिंचाव हो, जोड़-जोड़ जकड़ गया हो, शून्यता आ गयी हो, यानी की छूने पर सेन्स नहीं होता हो, स्किन फटी-फटी हो, सुजन हो तो ऐसी स्थिति में रोगी को इसके सेवन से लाभ होता है.
ऐसे रोगी को घी के साथ इसका सेवन करना चाहिए और ऊपर से ताज़ी गिलोय का रस पीना चाहिए.
सिफलिस के नए पुराने सभी स्टेज में इसके सेवन से लाभ होता है.
कुष्ठ रोग में भी विधि पूर्वक इसका सेवन कराया जाता है.
अपस्मार यानि मृगी के रोग में वैद्यगण इसे ब्रह्मी के साथ सेवन करवाते हैं.
एक बार मैं फिर से आपको बता दूँ कि इस कभी भी खुद से यूज़ न करें, वैद्य जी देख रेख में उनकी सलाह से ही इसका सेवन करना चाहिए.
नारसिंह रसायन का वर्णन आयुर्वेदिक ग्रन्थ 'अष्टांग ह्रदय' में मिलता है, जिसके अनुसार इसका सेवन करने वाले को सिंह के समान शक्ति मिलती है, सेक्सुअल पॉवर बढ़ जाता है और अनेकों रोग दूर होते हैं.
जैसा कि संस्कृत श्लोक देख सकते हैं, इसका मतलब आसान भाषा में आपको समझाता हूँ -
इसका सेवन करने वाला का शरीर मज़बूत बन जाता है और बीमारियाँ दूर रहती हैं.
इसका सेवन करने वाले मनुष्य का शरीर जंगली भैंसे की तरह शक्तिशाली हो जाता है.
इसके सेवन से घोड़े की तरह की फुर्ती, शक्ति और स्पीड प्राप्त होती है.
इसके सेवन से यौन क्षमता/सेक्सुअल पॉवर बढ़ जाती है.
बॉडी के मसल्स बनते हैं और बॉडी को पॉवर स्टैमिना मिलता है.
इसका सेवन करने वाले के बाल लम्बे, मज़बूत और चमकदार हो जाते हैं.
इसके सेवन से आवाज़, बुद्धि, यादाश्त इत्यादि बढ़ जाती है.
इस रसायन के सेवन से शरीर आग में तपते सोने के जैसा शुद्ध और चमकदार बन जाता है.
नारसिंह रसायन का त्रिदोष पर असर होता है यानी यह वात, पित्त और कफ तीनो को शान्त करता है.
नारसिंह रसायन के फ़ायदे
नारसिंह रसायन को पंचकर्मा के 'स्नेहन कर्म' के लिए प्रमुखता से यूज़ किया जाता है.
इसके मुख्य फ़ायदों की बात करूँ तो इसे वेट गेन करने, मसल्स को मज़बूत बनाने, बुद्धि बढ़ाने, थकावट दूर करने के लिए प्रयोग किया जाता है.
इसके सेवन से बाल तो बढ़ते ही हैं, पुरुषों की दाढ़ी-मूँछ बढ़ाने में भी लाभकारी है.
जिम करने वालों को इसके सेवन से मसल्स बनाने में सहायता मिलती है.
शीघ्रपतन में भी यह लाभकारी है.
नारसिंह रसायन की मात्रा और सेवन विधि
हाफ से एक टी स्पून तक सुबह-शाम ख़ाली पेट या स्थानीय वैद्य जी सलाह के अनुसार ही इसका सेवन करना चाहिए
ऑनलाइन आप इसे ख़रीद सकते हैं, जिसका लिंक दिया गया है.
आपने सुना और देखा होगा कि फलां को पित्ते की पत्थरी या Gallstone हो गयी थी जिसकी वजह से ऑपरेशन करवाना पड़ा. आपको पता होना चाहिए कि Gallstone के लिए ऑपरेशन की एकमात्र उपाय नहीं है बल्कि उचित उपचार से अधिकतर लोगों की पित्त की पत्थरी बिना ऑपरेशन ही निकल जाती है. तो आईये आज जानते हैं पित्त पत्थरी होने के कारन और उपचार के बारे में सबकुछ विस्तार से -
जिनका भी पित्त पत्थरी के लिए ऑपरेशन हो चूका है उनको आज या कल अधिकतर लोगों को जीवनभर के लिए पाचन की समस्या हो सकती है, या फिर यह कहिये की समस्या हो ही जाती है. क्यूंकि ऑपरेशन कर पूरा पित्ताशय या गाल ब्लैडर ही निकाल दिया जाता है, जिसके कारण पाचक पित्त का स्राव नहीं होता है.
पित्त पत्थरी होने के कारन
आजकल पित्त पत्थरी के रोगी बड़ी संख्या में हैं और निरन्तर बढ़ते ही जा रहे हैं तो सवाल यह उठता है कि आख़िर वह कौन सी वजह है जो इस रोग को तेज़ी से बढ़ा रही है. इसके कारणों को दो तरह से देखा जा सकता है.
1) सहायक कारन 2) मुख्य कारन
1) सहायक कारन यह सब होते हैं जैसे -
आयु- 40 साल से ऊपर के लोगों को गालस्टोन की सम्भावना अधीक होती है.
जेंडर- हालाँकि गालस्टोन किसी को भी हो सकता है पर महिलायें इस बीमारी की चपेट में ज़्यादा आती हैं
आदत- लेज़ी लाइफ़ स्टाइल और बैठे-बैठे काम करने वालों में इस बीमारी की सम्भावना अधीक होती है. इसके अलावा और भी कुछ स्थितियाँ होती हैं जिसमे यह रोग पनप सकता है जैसे- गर्भावस्था, हार्ट और लंग्स डिजीज, मोटापा, जेनेटिक फैक्टर, स्किन कलर और मौसम का प्रभाव इत्यादि
5 F क्या होता है?
चिकित्सकगण सहायक कारणों को 5F के नाम से याद करते हैं- 1) फैटी, 2) फिमेल, 3) फोर्टी, 4) फर्टायल, 5) फेयर
फेयर से यहाँ यह समझिये कि जिनका रंग साफ़ होता है उनको पित्त पत्थरी की सम्भावना अधीक होती है.
पित्त पत्थरी के मुख्य कारन
पित्ताशय की पत्थरी के मुख्य कारणों की बात करें तो संक्रमण(इन्फेक्शन), पित्त का अवरोध और कोलेस्ट्रॉल का ज़्यादा बढ़ना मुख्य कारन मने जाते हैं.
संक्रमण(इन्फेक्शन) के कारन -
मिक्स या इन्फेक्टेड गालस्टोन पित्ताशय की सुजन की वजह से बनती है, सुजन के कारन पित्त द्योतक एवम पित्त लवण में कोलेस्ट्रॉल का रासायनिक संगठन ढीला पड़ जाता है जिस से वे आसानी से टूट जाते हैं, जब पित्त लवण कोलेस्ट्रॉल को अलग कर देता है तब यह अवक्षेपित हो जाता है. संक्रमित पित्ताशय पित्त लवण को तेज़ी से अवशोषित कर लेता है लेकिन कोलेस्ट्रॉल बहुत धीरे-धीरे अवशोषित होता है. इसी कारन से कोलेस्ट्रॉल की अवक्षेपित होने की प्रवृति हो जाती है और जब कोलेस्ट्रॉल का केन्द्रक बन जाता है तब बिलीरुबिन इसके चारों तरफ जमकर मिश्रित पत्थरी बनाने लगती है.
अवरोध के कारन-
40 साल से अधीक उम्र की महिलायें, मोटी और जिनको कई बार डिलीवरी हुयी हो उनमे अधिकतर अवरोध के कारन ही पित्त पत्थरी बनती है.
पित्त एवम रक्त कोलेस्ट्रॉल की अधीक मात्रा के कारन -
इसमें पित्त के पतन के कारण प्रतिक्रिया स्वरुप पित्त गाढ़ा होने लगता है, कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बढ़ जाती है और पित्त लवण का संग्रह होने लगता है. जिसके फलस्वरुप पित्ताशय में अलग होने लगता है और पत्थरी बनना शुरू हो जाता है.
यह सब तो हो गए पित्त पत्थरी या गालस्टोन के कारन, आईये अब जानते हैं गालस्टोन के प्रकार पर चर्चा करते हैं.
पित्त पत्थरी या गालस्टोन के प्रकार
पत्थरी को आयुर्वेद में अश्मरी कहा जाता है और पित्त पत्थरी या पित्ताशय की पत्थरी को पित्ताश्मरी के नाम से जाना जाता है.
पित्त पत्थरी में कोलेस्ट्रॉल, बिलीरूबीन और कैल्शियम यही तीन मुख्य घटक होते हैं और इसी के आधार पर गालस्टोन के तीन प्रकार हैं.
1) कोलेस्ट्रॉल अश्मरी, 2) रंजक अश्मरी और 3) मिश्रित अश्मरी
कोलेस्ट्रॉल अश्मरी
कोलेस्ट्रॉल का चयापचय ठीक तरह से न हो पाने के कारन यह पत्थरी बनती है. यह सफ़ेद रंग की बड़े आकार की अण्डाकार, प्रायः संख्या में एक, हलकी चमकती हुयी होती है. पित्ताशय में अधीक पित्त, कोलेस्ट्रॉल और अवरोध रहने से ही कोलेस्ट्रॉल वाली पत्थरी बनती है. यह शान्त होती है और सामान्यतः इसके कोई लक्षण दिखाई नहीं देते हैं. परन्तु जब यह पित्ताशय की गर्दन में अटक जाये तब परेशानी पैदा करती है.
रन्जक अश्मरी
यह संख्या में एक या अनेक, बहुत छोटी, भुरभुरी सी और बिलरूबीन से युक्त रहती है. इसमें कोलेस्ट्रॉल नहीं होता है. चयापचय में दोष होने से भी इसकी उत्पत्ति होती है.
मिश्रित अश्मरी
यह कोलेस्ट्रॉल, बिलरूबीन और कैल्शियम की बनी होती है. इसमें 80 प्रतिशत तक पित्त रहता है. इस तरह की पत्थरी का रंग पिला और भूरा होता है. एक पत्थरी रहने पर इसका तल चमकीला होता है.
पित्त पत्थरी या गालस्टोन के लक्षण
पत्थरी के स्थान और परिस्थिति के अनुसार रोग के लक्षणों में भिन्नता मिलती है. जब पत्थरी पित्ताशय में रहती है तो उस समय रोगी को इसका कुछ भी अहसास नहीं होता है कि उसको गालस्टोन है या पित्ताशय में पत्थरी है.
जब तक तेज़ पेट दर्द नहीं होता कुछ पता नहीं चलता है. कई बार लोगों को किसी दुसरे रोग के जाँच के दौरान अल्ट्रासाउंड कराने पर इसका पता चलता है.
जब पत्थरी पित्तकोष नलिका या साधारण पित्त नलिका अटक जाती है तब बहुत तेज़ दर्द होता है. यह दर्द लहर के रूप में बढ़ता हुआ दायीं तरफ़ बगल में कंधे तक पहुँचता है. पित्त की पत्थरी का दर्द निचे की तरह कभी नहीं जाता है. आज के समय में सोनोग्राफी जैसी तकनीक से इसका सटीक निदान होता है.
पित्त पत्थरी या गालस्टोन का उपचार
अगर किसी को पित्त की पत्थरी का पता चला हो और कोई इमरजेंसी नहीं हो तो इसके लिए सबसे पहले आयुर्वेदिक उपचार लेना चाहिए. दो-तीन महीने में साधारण गालस्टोन निकल जाती है. औषधि से यदि कोई भी लाभ न हो तभी अन्तिम उपाय के रूप में ऑपरेशन करवाना चाहिए.
आयुर्वेदिक औषधि में मैं अपने रोगियों को मेरी अनुभूत औषधि 'पित्ताश्मरी नाशक योग' सेवन करने की सलाह देता हूँ, जिसका लिंक दिया गया है.