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04 जून 2023

Hartal Bhasma Benefits & Use | हरताल भस्म के चमत्कार

 

hartal bhasma benefits

हरताल तेज़ी से असर करने वाली औषधि है जिसे हरिताल भी कहा जाता है. अंग्रेजी में इसे Arsenic Tri Oxide के नाम से जाना जाता है. 

हरताल तो तरह का होता है. पिण्ड हरताल और तबकिया हरताल 

तबकिया हरताल को पत्र हरताल और वर्कि हरताल जैसे नामों से भी जाना जाता है. इसे कहीं-कहीं हड़ताल भी कहा जाता है. 

इससे मिलते जुलते नाम वाली दवा गोदन्ती हरताल या हरताल गोदन्ती अलग चीज़ है. हरताल गोदन्ती सफ़ेद रंग की होती है जबकि यह वाली हरताल या तबकिया हरताल पिली सुनहरे रंग की होती है.

हरताल भस्म जो है गठिया, कुष्ठ, सिफलिस, हर्प्स, चर्मरोग जैसे अनेकों रोगों को दूर करती है. 

हरताल भस्म निर्माण विधि 

इसकी भस्म बनाकर ही प्रयोग किया जाता है, ऐसे यह ज़हरीली होती है. भस्म बनाने के लिए सोने के जैसी पिली, भरी, चमकदार और छोटे-छोटे साइज़ वाली वर्कि हरताल ही बेस्ट होती है. भस्म बनाने से पहले इसका शोधन करना होता है. 

हरताल शोधन विधि 

हरताल को शोधित करने के लिए सबसे पहले इसे चने के साइज़ के छोटे-छोटे टुकड़े कर मोटे सूती कपड़े में बांधकर मिट्टी की हांडी में पेठे का रस डालने के बाद इसे उसमे लटकाकर मतलब डुबाये हुए छह घंटा तक पकाया जाता है. ऐसे अरेंजमेंट को ही आयुर्वेद में 'दोला यंत्र' कहा जाता है. इसके बाद इसे निकालकर काँच के बर्तन में रखकर, इसमें इतना निम्बू कर रस डाला जाता है की यह डूब जाये. इसी तरह से रोज़ निम्बू का रस बदला जाता है सात दिनों तक. इसके बाद हरताल के टुकड़ों को पानी से धोकर सुखा लिया जाता है. तो इस तरह से हरताल शुद्ध हो जाता है. यह शोधन विधि 'सिद्ध योग संग्रह' में बतायी गयी है. 

हरताल भस्म निर्माण विधि 

जैसा कि आप सभी जानते हैं भस्म बनाना एक जटिल प्रक्रिया है. हरताल की भस्म बनाने से पहले शोधित हरताल को पलाश के जड़ के क्वाथ की तीन भावना देनी होती है. इसके लिए पलाश के जड़ का क्वाथ शहद के इतना गाढ़ा बनाना होता है. 

पलाश के जड़ की तीन भावना देने के बाद इसकी टिकिया या गोला बनाकर मिट्टी के छोटे बर्तन में डालकर कपड़मिट्टी कर सुखाकर गोबर के कन्डो की अग्नि दी जाती है. इसी तरह से 12 पुट अग्नि देने यानि बारह बार अग्नि देने से हरताल भस्म तैयार हो जाती है. 

वैसे यह बना  बनाया मार्किट में मिल जाता है, इसे ऑनलाइन ख़रीदने का लिंक निचे दिया गया है. 

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हरताल भस्म की मात्रा और सेवन विधि 

30 मिलीग्राम से 60 मिलीग्राम तक शहद के साथ या रोगानुसार उचित अनुपान से. इसे स्थानीय वैद्य जी की सलाह से ही सेवन करें नहीं तो सीरियस नुकसान हो सकता है. 

हरताल भस्म के गुण 

यह तासीर में बहुत गर्म होती है. यह कटु एवम अग्नि-दीपक होती है. कफ़ और पित्त दोष को बैलेंस करती है. 

हरताल भस्म के फ़ायदे 

यह वातरक्त, वातरोग, कुष्ठ व्याधि, उपदंश यानि गर्मी की बीमारी, चर्म रोग, मलेरिया, उर्ध्वश्वास, मृगी, सन्निपात, भगंदर जैसे रोगों का नाश करती है. 

आईये अब आसान भाषा में जानते हैं कि किन-किन बीमारीओं में इसका सेवन करना चाहिए - 

वातरक्त और वात रोगों में 

जब रोगी शरीर हिला भी न सके, शरीर जकड गया हो, हाथ-पैर की ऊँगली टेढ़ी हो गयी हो, हड्डियाँ मूड़ गयी हों, हड्डी में दर्द, नसों में खिंचाव हो, जोड़-जोड़ जकड़ गया हो, शून्यता आ गयी हो, यानी की छूने पर सेन्स नहीं होता हो, स्किन फटी-फटी हो, सुजन हो तो ऐसी स्थिति में रोगी को इसके सेवन से लाभ होता है. 

ऐसे रोगी को घी के साथ इसका सेवन करना चाहिए और ऊपर से ताज़ी गिलोय का रस पीना चाहिए. 

सिफलिस के नए पुराने सभी स्टेज में इसके सेवन से लाभ होता है. 

कुष्ठ रोग में भी विधि पूर्वक इसका सेवन कराया जाता है. 

अपस्मार यानि मृगी के रोग में वैद्यगण इसे ब्रह्मी के साथ सेवन करवाते हैं. 

एक बार मैं फिर से आपको बता दूँ कि इस कभी भी खुद से यूज़ न करें, वैद्य जी देख रेख में उनकी सलाह से ही इसका सेवन करना चाहिए. 




31 मई 2023

Narsimha Rasayan | नारसिंह रसायन

 

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नारसिंह रसायन का वर्णन आयुर्वेदिक ग्रन्थ 'अष्टांग ह्रदय' में मिलता है, जिसके अनुसार इसका सेवन करने वाले को सिंह के समान शक्ति मिलती है, सेक्सुअल पॉवर बढ़ जाता है और अनेकों रोग दूर होते हैं. 

जैसा कि संस्कृत श्लोक देख सकते हैं, इसका मतलब आसान भाषा में आपको समझाता हूँ - 


  • इसका सेवन करने वाला का शरीर मज़बूत बन जाता है और बीमारियाँ दूर रहती हैं.
  • इसका सेवन करने वाले मनुष्य का शरीर जंगली भैंसे की तरह शक्तिशाली हो जाता है. 
  • इसके सेवन से घोड़े की तरह की फुर्ती, शक्ति और स्पीड प्राप्त होती है.
  • इसके सेवन से यौन क्षमता/सेक्सुअल पॉवर बढ़ जाती है.
  • बॉडी के मसल्स बनते हैं और बॉडी को पॉवर स्टैमिना मिलता है. 
  • इसका सेवन करने वाले के बाल लम्बे, मज़बूत और चमकदार हो  जाते हैं.
  • इसके सेवन से आवाज़, बुद्धि, यादाश्त इत्यादि बढ़ जाती है. 
  • इस रसायन के सेवन से शरीर आग में तपते सोने के जैसा शुद्ध और चमकदार बन जाता है. 

नारसिंह रसायन का त्रिदोष पर असर होता है यानी यह वात, पित्त और कफ तीनो को शान्त करता है. 

नारसिंह रसायन के फ़ायदे 

नारसिंह रसायन को पंचकर्मा के 'स्नेहन कर्म' के लिए प्रमुखता से यूज़ किया जाता है. 

इसके मुख्य फ़ायदों की बात करूँ तो इसे वेट गेन करने, मसल्स को मज़बूत बनाने, बुद्धि बढ़ाने, थकावट दूर करने के लिए प्रयोग किया जाता है. 

इसके सेवन से बाल तो बढ़ते ही हैं, पुरुषों की दाढ़ी-मूँछ बढ़ाने में भी  लाभकारी है. 

जिम करने वालों को इसके सेवन से मसल्स बनाने में सहायता मिलती है.

शीघ्रपतन में भी  यह लाभकारी है. 

नारसिंह रसायन की मात्रा और सेवन विधि 

हाफ से एक टी स्पून तक सुबह-शाम ख़ाली पेट या स्थानीय वैद्य जी सलाह के अनुसार ही इसका सेवन करना चाहिए

ऑनलाइन आप इसे ख़रीद सकते हैं, जिसका लिंक दिया गया है. 

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इसे भी जानिए - 

नारसिंह चूर्ण के फ़ायदे 



20 मई 2023

Gallstone symptoms & treatment | पित्त पत्थरी क्यूँ होती है? 5 F क्या है? पित्त पत्थरी का उपचार

pitta patthri ka upchar

आपने सुना और देखा होगा कि फलां को पित्ते की पत्थरी या Gallstone हो गयी थी जिसकी वजह से ऑपरेशन करवाना पड़ा. आपको पता होना चाहिए कि Gallstone के लिए ऑपरेशन की एकमात्र उपाय नहीं है बल्कि उचित उपचार से अधिकतर लोगों की पित्त की पत्थरी बिना ऑपरेशन ही निकल जाती है. तो आईये आज जानते हैं पित्त पत्थरी होने के कारन और उपचार के बारे में सबकुछ विस्तार से - 

जिनका भी पित्त पत्थरी के लिए ऑपरेशन हो चूका है उनको आज या कल अधिकतर लोगों को जीवनभर के लिए पाचन की समस्या हो सकती है, या फिर यह कहिये की समस्या हो ही जाती है. क्यूंकि ऑपरेशन कर पूरा पित्ताशय या गाल ब्लैडर ही निकाल दिया जाता है, जिसके कारण पाचक पित्त का स्राव नहीं होता है. 

पित्त पत्थरी होने के कारन 

आजकल पित्त पत्थरी के रोगी बड़ी संख्या में हैं और निरन्तर बढ़ते ही जा रहे हैं तो सवाल यह उठता है कि आख़िर वह कौन सी वजह है जो इस रोग को तेज़ी से बढ़ा रही है. इसके कारणों को दो तरह से देखा जा सकता है. 

1) सहायक कारन 2) मुख्य कारन 

1) सहायक कारन यह सब होते हैं जैसे - 

आयु- 40 साल से ऊपर के लोगों को गालस्टोन की सम्भावना अधीक होती है.

जेंडर- हालाँकि गालस्टोन किसी को भी हो सकता है पर महिलायें इस बीमारी की चपेट में ज़्यादा आती हैं 

आदत- लेज़ी लाइफ़ स्टाइल और बैठे-बैठे काम करने वालों में इस बीमारी की सम्भावना अधीक होती है. इसके अलावा और भी कुछ स्थितियाँ होती हैं जिसमे यह रोग पनप सकता है जैसे- गर्भावस्था, हार्ट और लंग्स डिजीज, मोटापा, जेनेटिक फैक्टर, स्किन कलर और मौसम का प्रभाव इत्यादि

5 F क्या होता है?

चिकित्सकगण सहायक कारणों को 5F के नाम से याद करते हैं- 1) फैटी, 2) फिमेल, 3) फोर्टी, 4) फर्टायल, 5) फेयर 

फेयर से यहाँ यह समझिये कि जिनका रंग साफ़ होता है उनको पित्त पत्थरी की सम्भावना अधीक होती है.

पित्त पत्थरी के मुख्य कारन 

पित्ताशय की पत्थरी के मुख्य कारणों की बात करें तो संक्रमण(इन्फेक्शन), पित्त का अवरोध और कोलेस्ट्रॉल का ज़्यादा बढ़ना मुख्य कारन मने जाते हैं. 

संक्रमण(इन्फेक्शन) के कारन - 

मिक्स या इन्फेक्टेड गालस्टोन पित्ताशय की सुजन की वजह से बनती है, सुजन के कारन पित्त द्योतक एवम पित्त लवण में कोलेस्ट्रॉल का रासायनिक संगठन ढीला पड़ जाता है जिस से वे आसानी से टूट जाते हैं, जब पित्त लवण कोलेस्ट्रॉल को अलग कर देता है तब यह अवक्षेपित हो जाता है. संक्रमित पित्ताशय पित्त लवण को तेज़ी से अवशोषित कर लेता है लेकिन कोलेस्ट्रॉल बहुत धीरे-धीरे अवशोषित होता है. इसी कारन से कोलेस्ट्रॉल की अवक्षेपित होने की प्रवृति हो जाती है और जब कोलेस्ट्रॉल का केन्द्रक बन जाता है तब बिलीरुबिन इसके चारों तरफ जमकर मिश्रित पत्थरी बनाने लगती है. 

अवरोध के कारन- 

40 साल से अधीक उम्र की महिलायें, मोटी और जिनको कई बार डिलीवरी हुयी हो उनमे अधिकतर अवरोध के कारन ही पित्त पत्थरी बनती है. 

पित्त एवम रक्त कोलेस्ट्रॉल की अधीक मात्रा के कारन -

 इसमें पित्त के पतन के कारण प्रतिक्रिया स्वरुप पित्त गाढ़ा होने लगता है, कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बढ़ जाती है और पित्त लवण का संग्रह होने लगता है. जिसके फलस्वरुप पित्ताशय में अलग होने लगता है और पत्थरी बनना शुरू हो जाता है. 

यह सब तो हो गए पित्त पत्थरी या गालस्टोन के कारन, आईये अब जानते हैं गालस्टोन के प्रकार पर चर्चा करते हैं. 

पित्त पत्थरी या गालस्टोन के प्रकार 

पत्थरी को आयुर्वेद में अश्मरी कहा जाता है और पित्त पत्थरी या पित्ताशय की पत्थरी को पित्ताश्मरी के नाम से जाना जाता है. 

पित्त पत्थरी में कोलेस्ट्रॉल,  बिलीरूबीन और कैल्शियम यही तीन मुख्य घटक होते हैं और इसी के आधार पर गालस्टोन के तीन प्रकार हैं.

1) कोलेस्ट्रॉल अश्मरी, 2) रंजक अश्मरी और 3) मिश्रित अश्मरी 

कोलेस्ट्रॉल अश्मरी 

कोलेस्ट्रॉल का चयापचय ठीक तरह से न हो पाने के कारन यह पत्थरी बनती है. यह सफ़ेद रंग की बड़े आकार की अण्डाकार, प्रायः संख्या में एक, हलकी चमकती हुयी होती है. पित्ताशय में अधीक पित्त, कोलेस्ट्रॉल और अवरोध रहने से ही कोलेस्ट्रॉल वाली पत्थरी बनती है. यह शान्त होती है और सामान्यतः इसके कोई लक्षण दिखाई नहीं देते हैं. परन्तु जब यह पित्ताशय की गर्दन में अटक जाये तब परेशानी पैदा करती है. 

रन्जक अश्मरी 

यह संख्या में एक या अनेक, बहुत छोटी, भुरभुरी सी और बिलरूबीन से युक्त रहती है. इसमें कोलेस्ट्रॉल नहीं होता है. चयापचय में दोष होने से भी इसकी उत्पत्ति होती है. 

मिश्रित अश्मरी 

यह कोलेस्ट्रॉल, बिलरूबीन और कैल्शियम की बनी होती है. इसमें 80 प्रतिशत तक पित्त रहता है. इस तरह की पत्थरी का रंग पिला और भूरा होता है. एक पत्थरी रहने पर इसका तल चमकीला होता है. 

पित्त पत्थरी या गालस्टोन के लक्षण 

पत्थरी के स्थान और परिस्थिति के अनुसार रोग के लक्षणों में भिन्नता मिलती है. जब पत्थरी पित्ताशय में रहती है तो उस समय रोगी को इसका कुछ भी अहसास नहीं होता है कि उसको गालस्टोन है या पित्ताशय में पत्थरी है. 

जब तक तेज़ पेट दर्द नहीं होता कुछ पता नहीं चलता है. कई बार लोगों को किसी दुसरे रोग के जाँच के दौरान अल्ट्रासाउंड कराने पर इसका पता चलता है. 

जब पत्थरी पित्तकोष नलिका या साधारण पित्त नलिका अटक जाती है तब बहुत तेज़ दर्द होता है. यह दर्द लहर के रूप में बढ़ता हुआ दायीं तरफ़ बगल में कंधे तक पहुँचता है. पित्त की पत्थरी का दर्द निचे की तरह कभी नहीं जाता है. आज के समय में सोनोग्राफी जैसी तकनीक से इसका सटीक निदान होता है. 

पित्त पत्थरी या गालस्टोन का उपचार 

अगर किसी को पित्त की पत्थरी का पता चला हो और कोई इमरजेंसी नहीं हो तो इसके लिए सबसे पहले आयुर्वेदिक उपचार लेना चाहिए. दो-तीन महीने में साधारण गालस्टोन निकल जाती है. औषधि से यदि कोई भी लाभ न हो तभी अन्तिम उपाय के रूप में ऑपरेशन करवाना चाहिए. 

आयुर्वेदिक औषधि में मैं अपने रोगियों को मेरी अनुभूत औषधि 'पित्ताश्मरी नाशक योग' सेवन करने की सलाह देता हूँ, जिसका लिंक दिया गया है. 

'पित्ताश्मरी नाशक योग'

इसके साथ 'एक्स्ट्रा वर्जिन ओलिव आयल' भी निम्बू के रस के साथ प्रचुर मात्रा में रोगानुसार लेना चाहिए. 



08 मई 2023

Indukanta Ghrita | इन्दुकान्त घृत के गुण उपयोग और निर्माण विधि

 

indukanta ghrita benefits

जैसा कि इसके नाम से ही पता चलता है यह घृत या घी से बनी हुयी औषधि है जिसे मुख्य रूप से स्नेहकर्म के लिए प्रयोग किया जाता है. 

इन्दुकान्त घृत के घटक 

पूति करंज छाल 100 ग्राम, देवदार 100 ग्राम, दशमूल 100 ग्राम, गाय का दूध 1200 मिली लीटर और गाय का घी 1200 ग्राम, साथ में प्रक्षेप द्रव्य के रूप में पिप्पली, चव्य, चित्रक, सोंठ, पीपरामूल और सेंधा नमक प्रत्येक 200 ग्राम लेना होता है. 

इन्दुकान्त घृत निर्माण विधि 

घृत पाक निर्माण विधि के अनुसार सभी क्वाथ द्रव्य को मोटा-मोटा कूटकर 20 लीटर पानी में क्वाथ बनाया जाता है, जब 5 लीटर पानी शेष बचता है तो इसे छानकर घी, गाय का दूध और प्रक्षेप द्रव्य का कल्क मिलाकर घृत सिद्ध कर फिर से छानकर रख लिया जाता है. यही इन्दुकान्त घृत और इन्दुकान्त घृतम के नाम से जानी जाती है. 

इन्दुकान्त घृत की मात्रा और सेवन विधि 

आधा से एक चम्मच भोजन से पहले दो से तीन बार. इसकी सेवन विधि और आवश्यक मात्रा रोगी के अनुसार ही निर्धारित की जाती है पंचकर्मा और स्नेहन कर्म इत्यादि के लिए

इन्दुकान्त घृत के फ़ायदे 

यह पेट दर्द, पेप्टिक अलसर, जीर्ण ज्वर, कमज़ोरी, थकान और पेट के रोगों में प्रयोग की जाती है. 

पेप्टिक अल्सर में वैद्यगण इसे कल्प विधान से भी प्रयोग कराते हैं. 

इसे स्थानीय वैद्य जी की सलाह से देख रेख में ही यूज़ करना चाहिए.

इसे आप अमेज़न से ऑनलाइन ख़रीद सकते हैं, जिसका लिंक निचे दिया गया है - 

इन्दुकान्त घृत ऑनलाइन ख़रीदें 




27 मार्च 2023

गर्भनिरोधक आयुर्वेदिक नुस्खे - वैद्य लखैपुरी

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आज मैं आयुर्वेद में वर्णित कुछ चुनिन्दा गर्भ निरोधक प्रयोग बता रहा हूँ जिसके सेवन से गर्भ की स्थिति से बचा जा सकता है. यह सारे प्रयोग विशेष रूप से महिलाओं के लिए है, तो आईये सबकुछ विस्तार से जानते हैं- 

1) पीपल, वयविडंग और भुना सुहागा सभी बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बनाकर रख लें. इस चूर्ण को मासिकधर्म के समय चार दिन तक ठन्डे पानी से सेवन करने से गर्भ स्थिति की कोई सम्भावना नहीं रहती है. 

2) आँवला, रसौत और हरीतकी समभाग लेकर इसका चूर्ण बनाकर तीन से दस ग्राम तक मासिक धर्म के समय सेवन करते रहने से गर्भधारण नहीं होता. 

3) मासिक धर्म के बाद तीन दिनों तक सात चमेली के फुल जो स्त्री प्रतिदिन सेवन करती है उसे एक वर्ष के लिए गर्भ नहीं रहता. इसी प्रकार से प्रति वर्ष करते रहने से स्त्री गर्भधारण से बच सकती है. 

4) नीम की एक निम्बौली को चबाकर ऊपर से गर्म पानी या मक्खन का सेवन करने से स्त्री को एक वर्ष तक गर्भ की स्थिति नहीं रहती. 

5) यदि स्त्री एक महीने तक एक लौंग प्रतिदिन निगलती रहे तो गर्भधारण नहीं होता है. यदि किन्ही को स्थायी  गर्निभनिरोध की तैयार औषधि चाहिए तो हमसे संपर्क कर सकते हैं. 


पुत्र प्राप्ति( बेटा पैदा करने वाली) की सहायक औषधि 




07 फ़रवरी 2023

गुल्गुलुतिक्तकम क्वाथ के फ़ायदे | Gulguluthiktakam Kwath Benefits & Use

gulguluthikthakam kwath benefits

गुल्गुलुतिक्तकम क्वाथ को दक्षिण भारत के वैद्यगण ही अधीक प्रयोग में लाते हैं. इसका रिजल्ट भी अच्छा है, आशातीत लाभ मिलता है. केरला आयुर्वेदा, कोट्टक्कल आयुर्वेद जैसी कंपनियों का यह मिल जाता है. इसे गुल्गुलूतिक्तकम कषाय के नाम से भी जाना जाता है. 

आईये सबसे पहले एक नज़र डालते हैं इसके कम्पोजीशन पर 

आयुर्वेदिक ग्रन्थ अष्टांग हृदयम में इसे गुल्गुलूतिक्तकम घृत के रूप में बताया गया है. 

gulguluthiktkam kwath ingredients

नीम, पटोल, व्याघ्री, गुडूची, वासा, पाठा, विडंग, सूरदारू, गजपकुल्य, यवक्षार, सज्जीक्षार, नागरमोथा,  हल्दी, मिश्रेया, चव्य, कुठ, तेजोवती, काली मिर्च, वत्सका, दिप्याका, अग्नि, रोहिणी, अरुश्करा, बच, पिपरामूल, युक्ता, मंजीठ, अतीस, विशानी, यवानी और शुद्ध गुग्गुल के मिश्रण से बनाया जाता है. 


जैसा कि आप समझ सकते हैं कि यह क्वाथ है तो यह सिरप या लिक्विड फॉर्म में होती है. कुछ कम्पनियां इसे टेबलेट फॉर्म में भी बनाती हैं. मूल ग्रन्थ में घृत की ही कल्पना की गयी है, यह घी फॉर्म में भी मिलता है, सभी के समान लाभ हैं.

गुल्गुलुतिक्तकम क्वाथ के गुण या प्रॉपर्टीज 

इसके गुणों की बात करें तो यह वात और कफ़ नाशक है. वात और कफ़ दोष को बैलेंस करती है त्वचा और अस्थि लेवल तक. तासीर में गर्म है. 

गुल्गुलुतिक्तकम क्वाथ के फ़ायदे 

गठिया, वात, जोड़ों का दर्द, सुजन, रुमाटायद अर्थराइटिस इत्यादि में सफ़लतापूर्वक प्रयोग किया जाता है.

जल्दी न भरने वाले ज़ख्म, चकत्ते, साइनस में भी लाभकारी है.

हर तरह के चर्मरोगों, त्वचा विकारों जैसे फोड़े-फुन्सी, एक्जिमा, सोरायसिस इत्यादि में भी वैद्यगण इसका सेवन कराते हैं.

मोटापा, हृदय रोग, हाई कोलेस्ट्रॉल, हाई LDL इत्यादि में भी लाभकारी है. 

बस कुल मिलाकर समझ लीजिये कि जहाँ भी वात और कफ़ दोष की वृद्धि हो इसका प्रयोग किया जाता है. 

गुल्गुलुतिक्तकम क्वाथ की मात्रा और सेवन विधि 

5 से 10 ML सुबह-शाम गुनगुने पानी में मिक्स कर लेना चाहिए. यदि इसे टेबलेट फॉर्म में लेना हो तो 2 टेबलेट सुबह-शाम लें या फिर स्थानीय वैद्य जी की सलाह के अनुसार ही लें. 

पित्त प्रकृति वाले व्यक्ति या फिर जिनका पित्त दोष भी बढ़ा हो, गैस्ट्रिक की समस्या हो तो सावधानीपूर्वक वैद्य जी देख रेख में ही लें. 

यदि आप पहले से होम्योपैथिक दवा, या अंग्रेज़ी दवा भी लेते हैं तो भी इसका सेवन कर सकते हैं, टाइम गैप देकर. 

गुल्गुलुतिक्तकम क्वाथ कहाँ मिलेगा? 

यह हर जगह दुकान में नहीं मिलती है, इसे आप घर बैठे ऑनलाइन मंगा सकते हैं जिसका लिंक निचे दिया गया है. 









24 जनवरी 2023

Pinda Taila Benefits & Usage | पिण्ड तेल के फ़ायदे | Pinda Tailam

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पिण्ड तेल को पिण्ड तैलम भी कहा जाता है. विशेष रूपसे दक्षिण भारत में ही इसे पिण्ड तैलम के नाम से जाना जाता है. 

पिण्ड तेल के फ़ायदे  

यह दर्द दूर करने वाला तेल है जिसे ख़ासकर गठिया, Arthritits में प्रयोग किया जाता है. 

इसके प्रयोग से सुजन, जोड़ों का दर्द, अकड़न, वैरीकोस वेंस,  शरीर का दाह या जलन इत्यादि में लाभ होता है. 

जोड़ों के दर्द-सुजन, सुजन की लाल होना, जलन होना जैसी समस्या होने पर इसकी मालिश करनी चाहिए.

वैरीकोस वेंस में दर्द जलन हो तो इसकी बहुत हलकी मालिश करें या क्रीम के जैसा ही लगायें. वैरीकोस वेंस में दबाव नहीं डालना चाहिए.

इसे जले-कटे और ज़ख्म पर भी लगाया जाता है. यह सिर्फ़ बाहरी प्रयोग की औषधि है. 

पिण्ड तेल का कोई साइड इफ़ेक्ट या दुष्प्रभाव नहीं होता है, लम्बे समय तक इसका प्रयोग कर सकते हैं. रोज़ दो-तीन बार या आवश्यकतानुसार इसकी मालिश कर सकते हैं. 

सावधानी - यह काफ़ी चिकना और चिपचिपा तेल होता है, एड़ी में इसकी मालिश के बाद एक आदमी नंगा पैर फर्श पर चला तो स्लिप कर गिर गया और कमर में फ्रैक्चर आ गया, मतलब लेने के देने पड़ गए. इसलिए दोस्तों ध्यान से इसकी मालिश करें, यदि पैर या तलवों में लगाना हो तो मालिश के बाद अच्छे से पोछ लिया करें. 

पिण्ड तेल के घटक और निर्माण विधि - 

आयुर्वेदिक ग्रन्थ चरक संहिता में इसका वर्णन मिलता है. इसके घटक या कम्पोजीशन की बात की जाये तो इसे बनाने के लिए चाहिए होता है- देशी मोम(मधुमक्खी वाला) 280 ग्राम, मंजीठ 455 ग्राम, सर्जारस 186 ग्राम, सारिवा 455 ग्राम, तिल तेल 6 लीटर और पानी 24 लीटर. बनाने के तरीका है यह है कि जड़ी बूटियों का जौकुट चूर्ण कर तेल-पानी मिलाकर मंद अग्नि पर तेल-पाक विधि से तेल सिद्ध कर लिया जाता है. 

वैसे यह बना हुआ मार्केट में उपलब्ध है ऑनलाइन ख़रीद सकते हैं निचे दिए गए लिंक से -

पिण्ड तेल घर बैठे ऑनलाइन ख़रीदें अमेज़न से






19 जनवरी 2023

Mahasudarshan Kadha | महासुदर्शन काढ़ा

mahasudarshan kadha

महासुदर्शन काढ़ा आयुर्वेदिक औषधि है जिसके सेवन से हर तरह की बुखार, पाचन विकृति, सर दर्द, खाँसी, खून की कमी, जौंडिस और लिवर के रोग इत्यादि दूर होते हैं. तो आईये इसके गुण, उपयोग, फ़ायदे और निर्माण विधि के बारे में सबकुछ जानते हैं - 

काढ़ा को क्वाथ भी कहा जाता है. काढ़ा और क्वाथ में बीच में कंफ्यूज न हों, दोनों एक ही चीज़ है. कोई कम्पनी महासुदर्शन काढ़ा के नाम से बनाती है तो कोई कम्पनी महासुदर्शन क्वाथ के नाम से.

महासुदर्शन काढ़ा का कम्पोजीशन महासुदर्शन चूर्ण के जैसा ही होता है. महासुदर्शन चूर्ण के बारे में आप पहले से ही जानते हैं. 

महासुदर्शन चूर्ण की जानकारी 


महासुदर्शन काढ़ा के घटक या कम्पोजीशन 

इसके निर्माण के लिए चाहिए होता है हर्रे, बहेड़ा, आँवला, हल्दी, दारुहल्दी, छोटी कटेरी, बड़ी कटेरी, कचूर, सोंठ, काली मिर्च, पीपल, पीपलामूल, मूर्वा, गिलोय, धमासा, कुटकी, पित्तपापड़ा, नागरमोथा, त्रायमाण(बनफ्सा), नेत्रबाला(खश), अजवायन, इन्द्रजौ, भारंगी, सहजन बीज, शुद्ध फिटकरी, बच, दालचीनी, कमल के फूल, उशीर, सफ़ेद चन्दन, अतीस, बलामूल, शालपर्णी, वायविडंग, तगर, चित्रकमूल छाल, देवदारु, चव्य, पटोलपत्र, कालमेघ, करंज की मींगी, लौंग, बंशलोचन, काकोली, तेजपात, जावित्री, तालिसपत्र प्रत्येक 8 तोला, 8 माशा 4 रत्ती लेना है, चिरायता 2 सेर 10 छटाक 3 तोला 4 माशे लेकर सबको जौकूट कर 64 सेर पानी में पकाया जाता है. 16 सेर जल शेष रहने पर छानकर इसमें 6 सेर गुड़ और धाय के फूल 10 छटाक डालकर आसव-अरिष्ट निर्माण विधि के अनुसार एक महिना के सन्धान होने के लिए छोड़ दिया जाता है. इसके बाद छानकर बोतलों में भर लिया जाता है.  बस यही महासुदर्शन काढ़ा है. 


महासुदर्शन काढ़ा के गुण 

ज्वरघ्न है अर्थात बुखार को दूर करता है, शरीर के दाह को दूर करता है यानी बॉडी में कूलैंट की तरह काम करता है. पाचन का काम करता है, पित्त रेचन काम करता है यानि बॉडी के एक्स्ट्रा पित्त को बाहर निकालता है.

महासुदर्शन काढ़ा के फ़ायदे 

इसके सेवन से हर तरह के बुखार दूर होते हैं. चाहे बुखार नयी हो या पुरानी हो या फिर मलेरिया हो या फिर कुछ और हो, सभी प्रकार के ज्वर समूल नष्ट होते हैं. 

भूख की कमी, कमज़ोरी, सर दर्द, खांसी, कमर दर्द, जौंडिस, खून की कमी, अपच, गर्मी, शरीर का पीलापन इत्यादि हर तरह के लक्षणों को दूर करता है. 

किसी भी कारण से होने वाले बुखार में, महिला, पुरुष, बच्चे-बूढ़े सभी लोग इसका यूज़ कर सकते हैं. 

इसके सेवन बुखार दूर होकर शरीर स्वस्थ होता है, बुखार की अंग्रेज़ी दवाओं की तरह साइड इफ़ेक्ट नहीं होता है. 

यदि आप कोई अंग्रेज़ी दवा का सेवन करते हैं तो भी थोड़ा टाइम गैप देकर इसका सेवन कर सकते हैं.

होम्योपैथिक दवा का इस्तेमाल करते हुए भी आप इसे यूज़ कर सकते हैं. 

पूरी तरह से सुरक्षित औषधि है, इसका कोई साइड इफ़ेक्ट नहीं होता है. 

महासुदर्शन काढ़ा की मात्रा और सेवन विधि 

15 से 30 ML तक बराबर मात्रा में पानी मिलाकर रोज़ दो से चार-पाँच बार तक ले सकते हैं. या फिर स्थानीय वैद्य जी की सलाह के अनुसार ही लेना चाहिए. 

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