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27 मार्च 2023

गर्भनिरोधक आयुर्वेदिक नुस्खे - वैद्य लखैपुरी

garbhnirodhak nuskhe

आज मैं आयुर्वेद में वर्णित कुछ चुनिन्दा गर्भ निरोधक प्रयोग बता रहा हूँ जिसके सेवन से गर्भ की स्थिति से बचा जा सकता है. यह सारे प्रयोग विशेष रूप से महिलाओं के लिए है, तो आईये सबकुछ विस्तार से जानते हैं- 

1) पीपल, वयविडंग और भुना सुहागा सभी बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बनाकर रख लें. इस चूर्ण को मासिकधर्म के समय चार दिन तक ठन्डे पानी से सेवन करने से गर्भ स्थिति की कोई सम्भावना नहीं रहती है. 

2) आँवला, रसौत और हरीतकी समभाग लेकर इसका चूर्ण बनाकर तीन से दस ग्राम तक मासिक धर्म के समय सेवन करते रहने से गर्भधारण नहीं होता. 

3) मासिक धर्म के बाद तीन दिनों तक सात चमेली के फुल जो स्त्री प्रतिदिन सेवन करती है उसे एक वर्ष के लिए गर्भ नहीं रहता. इसी प्रकार से प्रति वर्ष करते रहने से स्त्री गर्भधारण से बच सकती है. 

4) नीम की एक निम्बौली को चबाकर ऊपर से गर्म पानी या मक्खन का सेवन करने से स्त्री को एक वर्ष तक गर्भ की स्थिति नहीं रहती. 

5) यदि स्त्री एक महीने तक एक लौंग प्रतिदिन निगलती रहे तो गर्भधारण नहीं होता है. यदि किन्ही को स्थायी  गर्निभनिरोध की तैयार औषधि चाहिए तो हमसे संपर्क कर सकते हैं. 


पुत्र प्राप्ति( बेटा पैदा करने वाली) की सहायक औषधि 




07 फ़रवरी 2023

गुल्गुलुतिक्तकम क्वाथ के फ़ायदे | Gulguluthiktakam Kwath Benefits & Use

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गुल्गुलुतिक्तकम क्वाथ को दक्षिण भारत के वैद्यगण ही अधीक प्रयोग में लाते हैं. इसका रिजल्ट भी अच्छा है, आशातीत लाभ मिलता है. केरला आयुर्वेदा, कोट्टक्कल आयुर्वेद जैसी कंपनियों का यह मिल जाता है. इसे गुल्गुलूतिक्तकम कषाय के नाम से भी जाना जाता है. 

आईये सबसे पहले एक नज़र डालते हैं इसके कम्पोजीशन पर 

आयुर्वेदिक ग्रन्थ अष्टांग हृदयम में इसे गुल्गुलूतिक्तकम घृत के रूप में बताया गया है. 

gulguluthiktkam kwath ingredients

नीम, पटोल, व्याघ्री, गुडूची, वासा, पाठा, विडंग, सूरदारू, गजपकुल्य, यवक्षार, सज्जीक्षार, नागरमोथा,  हल्दी, मिश्रेया, चव्य, कुठ, तेजोवती, काली मिर्च, वत्सका, दिप्याका, अग्नि, रोहिणी, अरुश्करा, बच, पिपरामूल, युक्ता, मंजीठ, अतीस, विशानी, यवानी और शुद्ध गुग्गुल के मिश्रण से बनाया जाता है. 


जैसा कि आप समझ सकते हैं कि यह क्वाथ है तो यह सिरप या लिक्विड फॉर्म में होती है. कुछ कम्पनियां इसे टेबलेट फॉर्म में भी बनाती हैं. मूल ग्रन्थ में घृत की ही कल्पना की गयी है, यह घी फॉर्म में भी मिलता है, सभी के समान लाभ हैं.

गुल्गुलुतिक्तकम क्वाथ के गुण या प्रॉपर्टीज 

इसके गुणों की बात करें तो यह वात और कफ़ नाशक है. वात और कफ़ दोष को बैलेंस करती है त्वचा और अस्थि लेवल तक. तासीर में गर्म है. 

गुल्गुलुतिक्तकम क्वाथ के फ़ायदे 

गठिया, वात, जोड़ों का दर्द, सुजन, रुमाटायद अर्थराइटिस इत्यादि में सफ़लतापूर्वक प्रयोग किया जाता है.

जल्दी न भरने वाले ज़ख्म, चकत्ते, साइनस में भी लाभकारी है.

हर तरह के चर्मरोगों, त्वचा विकारों जैसे फोड़े-फुन्सी, एक्जिमा, सोरायसिस इत्यादि में भी वैद्यगण इसका सेवन कराते हैं.

मोटापा, हृदय रोग, हाई कोलेस्ट्रॉल, हाई LDL इत्यादि में भी लाभकारी है. 

बस कुल मिलाकर समझ लीजिये कि जहाँ भी वात और कफ़ दोष की वृद्धि हो इसका प्रयोग किया जाता है. 

गुल्गुलुतिक्तकम क्वाथ की मात्रा और सेवन विधि 

5 से 10 ML सुबह-शाम गुनगुने पानी में मिक्स कर लेना चाहिए. यदि इसे टेबलेट फॉर्म में लेना हो तो 2 टेबलेट सुबह-शाम लें या फिर स्थानीय वैद्य जी की सलाह के अनुसार ही लें. 

पित्त प्रकृति वाले व्यक्ति या फिर जिनका पित्त दोष भी बढ़ा हो, गैस्ट्रिक की समस्या हो तो सावधानीपूर्वक वैद्य जी देख रेख में ही लें. 

यदि आप पहले से होम्योपैथिक दवा, या अंग्रेज़ी दवा भी लेते हैं तो भी इसका सेवन कर सकते हैं, टाइम गैप देकर. 

गुल्गुलुतिक्तकम क्वाथ कहाँ मिलेगा? 

यह हर जगह दुकान में नहीं मिलती है, इसे आप घर बैठे ऑनलाइन मंगा सकते हैं जिसका लिंक निचे दिया गया है. 









24 जनवरी 2023

Pinda Taila Benefits & Usage | पिण्ड तेल के फ़ायदे | Pinda Tailam

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पिण्ड तेल को पिण्ड तैलम भी कहा जाता है. विशेष रूपसे दक्षिण भारत में ही इसे पिण्ड तैलम के नाम से जाना जाता है. 

पिण्ड तेल के फ़ायदे  

यह दर्द दूर करने वाला तेल है जिसे ख़ासकर गठिया, Arthritits में प्रयोग किया जाता है. 

इसके प्रयोग से सुजन, जोड़ों का दर्द, अकड़न, वैरीकोस वेंस,  शरीर का दाह या जलन इत्यादि में लाभ होता है. 

जोड़ों के दर्द-सुजन, सुजन की लाल होना, जलन होना जैसी समस्या होने पर इसकी मालिश करनी चाहिए.

वैरीकोस वेंस में दर्द जलन हो तो इसकी बहुत हलकी मालिश करें या क्रीम के जैसा ही लगायें. वैरीकोस वेंस में दबाव नहीं डालना चाहिए.

इसे जले-कटे और ज़ख्म पर भी लगाया जाता है. यह सिर्फ़ बाहरी प्रयोग की औषधि है. 

पिण्ड तेल का कोई साइड इफ़ेक्ट या दुष्प्रभाव नहीं होता है, लम्बे समय तक इसका प्रयोग कर सकते हैं. रोज़ दो-तीन बार या आवश्यकतानुसार इसकी मालिश कर सकते हैं. 

सावधानी - यह काफ़ी चिकना और चिपचिपा तेल होता है, एड़ी में इसकी मालिश के बाद एक आदमी नंगा पैर फर्श पर चला तो स्लिप कर गिर गया और कमर में फ्रैक्चर आ गया, मतलब लेने के देने पड़ गए. इसलिए दोस्तों ध्यान से इसकी मालिश करें, यदि पैर या तलवों में लगाना हो तो मालिश के बाद अच्छे से पोछ लिया करें. 

पिण्ड तेल के घटक और निर्माण विधि - 

आयुर्वेदिक ग्रन्थ चरक संहिता में इसका वर्णन मिलता है. इसके घटक या कम्पोजीशन की बात की जाये तो इसे बनाने के लिए चाहिए होता है- देशी मोम(मधुमक्खी वाला) 280 ग्राम, मंजीठ 455 ग्राम, सर्जारस 186 ग्राम, सारिवा 455 ग्राम, तिल तेल 6 लीटर और पानी 24 लीटर. बनाने के तरीका है यह है कि जड़ी बूटियों का जौकुट चूर्ण कर तेल-पानी मिलाकर मंद अग्नि पर तेल-पाक विधि से तेल सिद्ध कर लिया जाता है. 

वैसे यह बना हुआ मार्केट में उपलब्ध है ऑनलाइन ख़रीद सकते हैं निचे दिए गए लिंक से -

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19 जनवरी 2023

Mahasudarshan Kadha | महासुदर्शन काढ़ा

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महासुदर्शन काढ़ा आयुर्वेदिक औषधि है जिसके सेवन से हर तरह की बुखार, पाचन विकृति, सर दर्द, खाँसी, खून की कमी, जौंडिस और लिवर के रोग इत्यादि दूर होते हैं. तो आईये इसके गुण, उपयोग, फ़ायदे और निर्माण विधि के बारे में सबकुछ जानते हैं - 

काढ़ा को क्वाथ भी कहा जाता है. काढ़ा और क्वाथ में बीच में कंफ्यूज न हों, दोनों एक ही चीज़ है. कोई कम्पनी महासुदर्शन काढ़ा के नाम से बनाती है तो कोई कम्पनी महासुदर्शन क्वाथ के नाम से.

महासुदर्शन काढ़ा का कम्पोजीशन महासुदर्शन चूर्ण के जैसा ही होता है. महासुदर्शन चूर्ण के बारे में आप पहले से ही जानते हैं. 

महासुदर्शन चूर्ण की जानकारी 


महासुदर्शन काढ़ा के घटक या कम्पोजीशन 

इसके निर्माण के लिए चाहिए होता है हर्रे, बहेड़ा, आँवला, हल्दी, दारुहल्दी, छोटी कटेरी, बड़ी कटेरी, कचूर, सोंठ, काली मिर्च, पीपल, पीपलामूल, मूर्वा, गिलोय, धमासा, कुटकी, पित्तपापड़ा, नागरमोथा, त्रायमाण(बनफ्सा), नेत्रबाला(खश), अजवायन, इन्द्रजौ, भारंगी, सहजन बीज, शुद्ध फिटकरी, बच, दालचीनी, कमल के फूल, उशीर, सफ़ेद चन्दन, अतीस, बलामूल, शालपर्णी, वायविडंग, तगर, चित्रकमूल छाल, देवदारु, चव्य, पटोलपत्र, कालमेघ, करंज की मींगी, लौंग, बंशलोचन, काकोली, तेजपात, जावित्री, तालिसपत्र प्रत्येक 8 तोला, 8 माशा 4 रत्ती लेना है, चिरायता 2 सेर 10 छटाक 3 तोला 4 माशे लेकर सबको जौकूट कर 64 सेर पानी में पकाया जाता है. 16 सेर जल शेष रहने पर छानकर इसमें 6 सेर गुड़ और धाय के फूल 10 छटाक डालकर आसव-अरिष्ट निर्माण विधि के अनुसार एक महिना के सन्धान होने के लिए छोड़ दिया जाता है. इसके बाद छानकर बोतलों में भर लिया जाता है.  बस यही महासुदर्शन काढ़ा है. 


महासुदर्शन काढ़ा के गुण 

ज्वरघ्न है अर्थात बुखार को दूर करता है, शरीर के दाह को दूर करता है यानी बॉडी में कूलैंट की तरह काम करता है. पाचन का काम करता है, पित्त रेचन काम करता है यानि बॉडी के एक्स्ट्रा पित्त को बाहर निकालता है.

महासुदर्शन काढ़ा के फ़ायदे 

इसके सेवन से हर तरह के बुखार दूर होते हैं. चाहे बुखार नयी हो या पुरानी हो या फिर मलेरिया हो या फिर कुछ और हो, सभी प्रकार के ज्वर समूल नष्ट होते हैं. 

भूख की कमी, कमज़ोरी, सर दर्द, खांसी, कमर दर्द, जौंडिस, खून की कमी, अपच, गर्मी, शरीर का पीलापन इत्यादि हर तरह के लक्षणों को दूर करता है. 

किसी भी कारण से होने वाले बुखार में, महिला, पुरुष, बच्चे-बूढ़े सभी लोग इसका यूज़ कर सकते हैं. 

इसके सेवन बुखार दूर होकर शरीर स्वस्थ होता है, बुखार की अंग्रेज़ी दवाओं की तरह साइड इफ़ेक्ट नहीं होता है. 

यदि आप कोई अंग्रेज़ी दवा का सेवन करते हैं तो भी थोड़ा टाइम गैप देकर इसका सेवन कर सकते हैं.

होम्योपैथिक दवा का इस्तेमाल करते हुए भी आप इसे यूज़ कर सकते हैं. 

पूरी तरह से सुरक्षित औषधि है, इसका कोई साइड इफ़ेक्ट नहीं होता है. 

महासुदर्शन काढ़ा की मात्रा और सेवन विधि 

15 से 30 ML तक बराबर मात्रा में पानी मिलाकर रोज़ दो से चार-पाँच बार तक ले सकते हैं. या फिर स्थानीय वैद्य जी की सलाह के अनुसार ही लेना चाहिए. 

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29 दिसंबर 2022

Marichyadi Vati | मरिच्यादि वटी/गुटिका

 

marichyadi vati

मरिच्यादि वटी आयुर्वेद का एक प्रसिद्ध योग है जो आयुर्वेदिक ग्रन्थ शारंगधर संहिता में वर्णित है. इसे खाँसी, सर्दी, जुकाम, टोंसिल इत्यादि में प्रयोग किया जाता है, तो आईये जानते हैं मरिच्यादि वटी के गुण, उपयोग और निर्माण विधि के बारे में सबकुछ विस्तार से - 

मरिच्यादि वटी का एक घटक मिर्च है, यानी काली मिर्च. इसी से इसका नाम मरिच्यादि वटी रखा गया है. 

मरिच्यादि वटी के घटक या कम्पोजीशन 

marichyadi gutika


काली मिर्च और पीपल प्रत्येक 10 ग्राम, जावा खार 6 ग्राम, अनार का छिलका 20 ग्राम और गुड़ 80 ग्राम 

मरिच्यादि वटी निर्माण विधि 

इसे बनाने का तरीका यह है कि सबसे पहले गुड़ के अलावा सभी चीज़ों का बारीक चूर्ण बना लें. इसके बाद गुड़ की चाशनी बनाकर सभी चीजों को मिलाकर अच्छी तरह से कुटाई करने के बाद 3-3 रत्ती या 375 mg की गोलियाँ बनाकर सुखाकर रख लें. बस मरिच्यादि वटी तैयार है. 

मरिच्यादि वटी के गुण या प्रॉपर्टीज 

यह वात और कफ़ दोष को संतुलित करती है.

मरिच्यादि वटी की मात्रा और सेवन विधि 

एक-एक गोली दिन में पांच-छह बार तक मुँह में रखकर चुसना चाहिए. या फिर गर्म पानी से.

मरिच्यादि वटी के फ़ायदे 

यह सुखी-गीली हर तरह की खाँसी में उपयोगी है. 

इसके सेवन से सर्दी, खाँसी, जुकाम, गले की खराबी, गला बैठना और टॉन्सिल्स बढ़ जाने पर होने वाली परेशानी भी दूर होती है. टॉन्सिल्स बढ़ा हो तो इसे गर्म पानी के साथ लेना चाहिए.

यदि टॉन्सिल्स की समस्या अक्सर होती रहती हो तो इस से छुटकारा पाने के लिए मेरा अनुभूत योग 'टॉन्सिल्स क्योर योग' का सेवन कर सकते हैं. 

मरिच्यादि वटी 

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तो दोस्तों, यह थी आज की जानकारी मरिच्यादि वटी के बारे में, कोई सवाल हो तो कमेंट कर बताईये. यहाँ तक विडियो देखा है तो कमेंट कर ज़रूर बताईये.

Watch in Video here- 





25 दिसंबर 2022

Eladi Vati | एलादि वटी- गुण उपयोग और निर्माण विधि

eladi vati
एला का मतलब आयुर्वेद में होता है इलायची, एलादि वटी का एक घटक एला या इलायची है इसलिए इसलिए इसका नाम एलादि वटी है. छोटी इलायची और बड़ी इलायची को आयुर्वेद में लघु एला और दीर्घ एला कहा जाता है. 

एलादि वटी के घटक या कम्पोजीशन 

इसके निर्माण के लिए चाहिए होता है छोटी इलायची, तेजपात और दालचीनी प्रत्येक 6-6 ग्राम, पीपल 20 ग्राम, मिश्री, मुलेठी, पिण्ड खजूर बीज निकली हुयी और मुनक्का बीज निकला हुआ प्रत्येक 40 ग्राम

एलादि वटी निर्माण विधि 

सुखी हुयी चीजों को कूट-पीसकर चूर्ण बना लें और मुनक्का और खजूर को सिल पर पीसकर सभी को अच्छी तरह मिक्स करते हुए थोड़ी मात्रा में शहद भी मिला लें. इसके बाद छोटे बेर के साइज़ की गोलियाँ बनाकर सुखाकर रख लें. बस एलादि वटी तैयार है. 

एलादि वटी की मात्रा और सेवन विधि 

एक-एक गोली दिन भर में चार-पांच बार मुँह में रखकर चुसना चाहिए. इसे दूध से भी लिया जाता है. या फिर स्थानीय वैद्य जी की सलाह के अनुसार ही इसका प्रयोग करें. 

एलादि वटी के गुण 

यह पित्त शामक है और कफ़ दोष को भी मिटाती है. 

एलादि वटी के फ़ायदे 

इसके सेवन से सुखी खांसी, टी. बी. वाली खाँसी, मुँह से खून आना, रक्तपित्त, उल्टी, बुखार, प्यास, जी घबराना, बेहोश, गला बैठना इत्यादि में लाभ होता है. 

पित्त और कफ़ दोष के लक्षणों में वैद्यगण इसका सेवन कराते हैं. 

सुखी खाँसी जिसमे कफ़ चिपक जाने से बार-बार खाँसी उठती हो, सांस लेने भी दिक्कत हो तो इस गोली को चूसने से कफ़ ढीला होकर निकल जाता है. 

खाँसी में पित्त बढ़ा होने से खाँसने पर खून तक आने लगता है, ऐसी स्थिति में इसका सेवन करना चाहिए.

खून की उल्टी, हिचकी, चक्कर, पेट दर्द,  बहुत प्यास लगना जैसी समस्या होने पर इसे चुसना चाहिए. 

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19 दिसंबर 2022

Kameshwar Modak | कामेश्वर मोदक - आयुर्वेदिक लड्डू

 

kameshwar modak

यह एक ऐसा लड्डू है जिसे खाने से पुरुषों का पॉवर-स्टैमिना बढ़ता है, मरदाना कमज़ोरी दूर होकर शीघ्रपतन और वीर्य विकार जैसे रोग दूर हो जाते हैं. तो आईये जानते हैं कामेश्वर मोदक का फ़ॉर्मूला, बनाने का तरीका और फ़ायदे के बारे में सबकुछ विस्तार से - 

कामेश्वर मोदक 

आयुर्वेद में मोदक का मतलब होता है लड्डू, काम का मतलब सेक्स और ईश्वर का अर्थ आप जानते ही हैं. यौन क्षमता या सेक्स पॉवर बढ़ाने में यह बेजोड़ है. 

कामेश्वर मोदक के घटक या कम्पोजीशन 

इसके कम्पोजीशन की बात करें तो इसे बनाने के लिए चाहिए होगा अभ्रक भस्म, कायफल, कूठ, असगंध, गिलोय, मेथी, मोचरस, विदारीकन्द, सफ़ेद मूसली, गोखरू, तालमखाना, केला-कन्द, शतावर, अजमोद, उड़द, तिल, मुलेठी, नागबला, धनियाँ, कपूर, मैनफल, जायफल, सेंधा नमक, भारंगी, काकड़ासिंघी, भांगरा, सोंठ, काली मिर्च, पीपल, जीरा, काला जीरा, चित्रकमूल छाल, दालचीनी, तेजपात, बड़ी इलायची, नागकेशर, सफ़ेद पुनर्नवामूल, गजपीपल, मुनक्का बीज निकला हुआ, सन के बीज, बांसामूल की छाल, सेमल मूसला, हर्रे, आँवला, शुद्ध कौंच बीज प्रत्येक 10-10 ग्राम,  शुद्ध भांग बीज 110 ग्राम, गाय का घी 100 ग्राम, शहद 100 ग्राम और चाशनी बनाने के लिए चीनी एक किलो 

कामेश्वर मोदक निर्माण विधि 

इसे बनाने का तरीका यह है कि सबसे पहले सभी जड़ी-बूटियों का बारीक कपड़छन चूर्ण बना लें. अभ्रक भस्म को चूर्ण बनाने के बाद में मिक्स करें. चीनी की लच्छेदार चाशनी बनाकर चूर्ण और घी डालकर अच्छे तरह से मिलाने के बाद चूल्हे से उतार कर थोड़ा ठण्डा होने पर शहद मिलाकर अच्छी तरह से घोंटकर छोटे-छोटे लड्डू बना लें. ठीक मोती-चूर के लड्डू के साइज़ के लड्डू बनाना है. बस कामेश्वर मोदक तैयार है. 

कामेश्वर मोदक की मात्रा और सेवन विधि 

रोज़ एक लड्डू सुबह नाश्ते के बाद दूध से लेना चाहिए.

कामेश्वर मोदक के गुण या प्रॉपर्टीज 

यह बाजीकरण, कामाग्निसंदीपन, वीर्य स्तम्भक, वात नाशक और बुद्धिवर्द्धक गुणों से भरपूर होता है. 

कामेश्वर मोदक के फ़ायदे 

मरदाना कमज़ोरी, सेक्स की इच्छा नहीं होना, शीघ्रपतन, वीर्य का पतलापन जैसी पुरुषों की हर तरह की समस्या में इसके सेवन से लाभ होता है. 

यह पॉवर-स्टैमिना बढ़ाता है, कमज़ोरी दूर कर शरीर को शक्ति देता है.

फेफड़ों की कमजोरी, खांसी, अस्थमा, टी.बी., अतिसार, अर्श, प्रमेह इत्यादि में भी लाभकारी है.

कुल मिलाकर बस यह समझ लीजिये कि ठण्ड के मौसम में इसे बनाकर यूज़ कर सकते हैं. अगर नहीं बना सकें तो इसी के जैसा फायदा देनी वाली दवा 'बाजीकरण चूर्ण' यूज़ कीजिये.


14 दिसंबर 2022

Punswan Yog | पुंसवन योग- पुत्र प्राप्ति की अनुभूत औषधि

punswa yog combo

आज मैं बताने वाला हूँ आयुर्वेदिक औषधि पुंसवन योग के बारे जिसमे सेवन से पुत्र प्राप्ति होती है यानी बेटा होता है. तो आईये पुंसवन योग के मात्रा, सेवन विधि और फायदों के बारे में सबकुछ विस्तार से जानते हैं - 

पुंसवन योग क्या है?

यह एक अनुभूत आयुर्वेदिक योग है जो आयुर्वेद के पुंसवन कर्म पर आधारित है. दिव्य जड़ी-बूटियों का मिश्रण और साथ शुद्ध स्वर्ण की मात्रा भी इस औषधि अपने आप में बेजोड़ बनाती है. 

punswan yog

बेटा की चाह रखने वाले दम्पतियों के लिए यह वरदान के समान है. सैंकड़ों महिलाओं की मनोकामना इसके सेवन पूरी हुयी है. बस समय पूरी श्रध्दा और विश्वास के साथ विधि पूर्वक इसका सेवन करना चाहिए. प्रेगनेंसी कन्फर्म होते ही यथाशीघ्र इसका सेवन करना चाहिए.

पुंसवन योग की मात्रा और सेवन विधि -

पुंसवन योग चूँकि स्वर्णयुक्त औषधि है तो इसमें 40 + 7 कैप्सूल होते हैं, जो टोटल 47 दिन का डोज़ है.

इसे प्रतिदिन सुबह सिर्फ़ एक कैप्सूल ख़ाली पेट दूध के साथ लेना होता है. सबसे पहले 7 कैप्सूल वाले पैक में से एक हफ्ता इसके बाद 40 कैप्सूल वाला पैक. 

पुंसवन योग के साथ में पुंसवन कैप्सूल भी सेवन करने से अधीक सफलता मिलती है. जैसा कि आप सभी जानते हैं पुंसवन कैप्सूल के बारे में काफ़ी पहले बताया हूँ. पुंसवन कैप्सूल को बछड़े वाली देसी गाय के दूध में लेने का विधान है. पर यह सभी जगह सभी के लिए सुलभ नहीं होने से पुंसवन योग और पुंसवन कैप्सूल दोनों का सेवन करने की सलाह देता हूँ. इसके लिए किसी भी गाय का दूध चलेगा. 

पुंसवन कैप्सूल का लिंक 

आपको किसी तरह का कनफ्यूज़न न हो इसके लिए पुंसवन योग और पुंसवन कैप्सूल दोनों के कॉम्बो पैक या कम्पलीट कोर्स का लिंक  दिया जा रहा है, जहाँ से आप आसानी से आर्डर कर सकते हैं. 

पुंसवन योग कॉम्बो पैक ऑनलाइन ख़रीदें 

पुंसवन योग के बारे में कोई सवाल हो तो कमेंट कर पूछिये, आपके सवालों का स्वागत है. 

इस जानकारी को ज़्यादा से ज्यादा शेयर कर दीजिये ताकि पुत्र प्राप्ति की चाह रखने लोगों को इसका लाभ मिल सके. आपका एक शेयर किसी की ज़िन्दगी में ख़ुशियाँ ला सकता है. 

जय हिन्द, जय आयुर्वेद 

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