नाड़ी परीक्षा करना या नब्ज़ चेक करने से शरीर में क्या चल रहा है, और क्या बीमारी है इसका सटीक अनुमान लगाया जाता है. या फिर यह कहिये कि अनुभवी नाड़ी वैद्य आपसे बिना कुछ पूछे आपको क्या-क्या बीमारी है बता देते हैं सिर्फ़ नाड़ी परिक्षण से.
यदि आपको इसमें रूचि है और चाहते हैं कि आपको इसकी थोड़ी-बहुत जानकारी हो जाये तो आपको 'आधुनिक नाड़ी परीक्षा - ई बुक' पढनी चाहिए.
इस से आपको नाड़ी परिक्षण की बेसिक जानकारी हो जाएगी और इसका अभ्यास कर इसमें सक्षम भी हो जायेंगे.
इस ई बुक में नाड़ी परीक्षा की सभी बेसिक जानकारी दी गयी है जैसे -
नाड़ी परीक्षा क्या है?
नाड़ी परिक्षण क्यूँ करते हैं?
नाड़ी परीक्षा कब और कहाँ करना चाहिए?
नाड़ी परीक्षा के स्तर या Levels
नाड़ी परीक्षा के नियम
नाड़ी परीक्षा में प्रयुक्त होने वाले आधुनिक उपकरण इत्यादि
इस ई बुक में आपको मिल जायेगा टेक्स्ट, चार्ट और एनीमेशन भी
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आज की जानकारी है पीतल भस्म के बारे में. पीतल के बर्तन का इस्तेमाल तो आपने कभी न कभी किया ही होगा. इसी पीतल से आयुर्वेद की यह औषधि भी बनायी जाती है, यह जानकर आपको आश्चर्य नहीं होना चाहिए.
पीतल क्या है? इसकी भस्म कैसे बनाई जाती है? इसके क्या-क्या फ़ायदे हैं? और इसका उपयोग कैसे किया जाये? आईये इन सबके बारे में विस्तार से जानते हैं -
पीतल क्या है?
जैसा कि हम सभी देखते हैं कि बर्तन और टूल्स में इसका प्रयोग किया जाता है. पीतल दो तरह की चीज़ों के मिश्रण से बनी धातु है. दो भाग ताँबा और एक भाग जस्ता के मिश्रण से बनने वाली धातु पीतल कहलाती है.
ताँबा और जस्ता से भी आयुर्वेदिक दवा बनती है, ताँबा से बनी औषधि को ताम्र भस्म और जस्ता से बनी औषधि को यशद भस्म कहा जाता है जिसके बारे में बहुत पहले बता चूका हूँ.
ताम्र भस्म और यशद भस्म ही अधीक प्रचलित है और अधीक प्रयोग की जाती है, पीतल भस्म ज़्यादा प्रचलित नहीं.
पीतल भस्म निर्माण विधि
जैसा कि आप सभी जानते हैं कि किसी भी धातु की भस्म बनाने के लिए सबसे पहले इसे शोधित करना होता है. शास्त्रों में कहा गया है कि जिस पीतल को अग्नि में तपाकर काँजी में बुझाने से ताँबे के जैसा रंग निकले और जो देखने में पीला, वज़न में भारी और चोट सहन करने वाला हो उसी पीतल को भस्म बनाने के लिए प्रयोग में लेना चाहिए.
पीतल शुद्धीकरण
पीतल को शुद्ध करने के लिए इसके पतले-पतले पत्तर बनाकर आग में तपाकर हल्दी चूर्ण मिले हुए निर्गुन्डी के रस में सात बार बुझाने से पीतल शुद्ध हो जाता है.
इसे शोधित करने की दूसरी विधि यह है कि पीतल के बुरादे को आग में गर्म कर निर्गुन्डी के रस या फिर काँजी में बुझाने से भी शुद्ध हो जाता है.
पीतल भस्म निर्माण विधि
आयुर्वेदिक ग्रंथों में इसके भस्म बनाने की दो-तीन विधि बताई गयी है. शुद्ध किये गए पीतल कागज़ के जैसे पतले पत्र बनवा लें. इसके बाद शुद्ध गन्धक और शुद्ध मैनशील इसके वज़न के बराबर लेकर घृतकुमारी के रस में घोंटकर पीतल के पत्रों पर लेपकर सुखा लें. इसके बाद सराब सम्पुट में बन्दकर गजपुट की अग्नि दें. इसी तरह से तीन पुट देने से काले रंग की भस्म तैयार होती है. यह सब औषधि निर्माण की टेक्निकल बाते हैं, इसका निर्माण सबके लिए संभव नहीं. बस प्रोसेस समझने के लिए संक्षेप में बता दिया हूँ.
पीतल भस्म की मात्रा और सेवन विधि
60 मिलीग्राम से 125 मिलीग्राम तक सुबह-शाम शहद, अनार के शर्बत या रोगानुसार उचित अनुपान से
आयुर्वेद में इसे विषनाशक, वीर्यवर्द्धक, कृमि और पलित रोगनाशक कहा गया है. इसकी भस्म स्वाद में तीक्ष्ण और रुक्ष होती है, दिखने में काले रंग की काजल की तरह.
इसकी तासीर के बारे में मज़ेदार बात बताऊँ की यह ठण्डा और गर्म दोनों है. यदि से इसे ठण्डी तासीर की चीज़ के साथ सेवन किया जाये तो तासीर में ठण्डा है और अगर गर्म चीज़ के साथ सेवन करेंगे तो गर्म करेगा.
पीतल भस्म के फ़ायदे
रक्तपित्त, कुष्ठव्याधि, वातरोग, पांडू, कामला, प्रमेह, अर्श, संग्रहणी, श्वास इत्यादि रोग नाशक है.
आसान शब्दों में कहूँ तो इसके सेवन से गर्मी, जौंडिस, खून की कमी, बवासीर, दम, IBS, दर्द वाले रोग, गठिया बात, गर्मी, कोढ़ जैसी बीमारियों में फ़ायदा होता है.
इसे वैद्य जी की सलाह से, वैद्य जी देख रेख में ही सेवन करना चाहिए. और अब अंत में एक बात और जान लीजिये कि जिनको ताम्र भस्म सूट नहीं करती उनको यह सूट करती है.
आज की जानकारी है एक ज़बरदस्त आयुर्वेदिक औषधि व्याधिहरण रसायन के बारे में.
इसे कई जगह व्याधिहरण रस के नाम से भी जाना जाता है. यह तेज़ी से असर करने वाली ऐसी औषधि है जो अनुपान भेद से अनेकों रोगों को दूर करती है.
तो आईये जानते हैं व्याधिहरण रसायन गुण, उपयोग निर्माण विधि और फ़ायदे के बारे सबकुछ विस्तार से -
व्याधिहरण रसायन जैसा कि इसके नाम से ही पता चलता है यह व्याधि यानी रोग-बीमारी को दूर करने वाली रसायन औषधि है. यह कूपीपक्व रसायन औषधि है जो तेज़ अग्नि से विशेष विधि से बनाई जाती है.
यह रक्तदोष नाशक, विष नाशक, एन्टी सेप्टिक औषधि है.
व्याधिहरण रसायन के फ़ायदे
यह नए पुराने उपदंश और उसके कारन उत्पन्न लक्षणों को दूर करती है. शास्त्रों में कहा गया है कि उपदंश का विष हड्डी तक पहुँच गया हो तब भी इस से लाभ होता है.
रक्त विकार, गठिया, बात, हर तरह के ज़ख्म, खाज-खुजली, फोड़ा-फुंसी, भगन्दर कुष्ठ तथा चर्म रोगों में जैसे चकत्ते, अण्डवृद्धि, नाखून टेढ़ा होना, शोथ, वृक्कशोथ आदि में गुणकारी है.
अनुभवी वैद्यगण ही इसका प्रयोग करते हैं, वैद्य जी की सलाह के बिना इसे कभी भी न लें.
व्याधिहरण रसायन की मात्रा और सेवन विधि
60 मिलीग्राम से 125 मिलीग्राम तक घी, शहद, अद्रक के रस, पान के रस या रोगानुसार उचित अनुपान से स्थानीय वैद्य जी की देख रेख में ही लेना चाहिए.
व्याधिहरण रसायन के घटक या कम्पोजीशन
यह छह चीज़ों के मिश्रण से बनाया जाता है. इसके निर्माण के लिए चाहिए होता है शुद्ध, पारा, शुद्ध गन्धक, शुद्ध संखिया, शुद्ध हरताल, शुद्ध मैनसिल और रस कपूर सभी समान मात्रा में.
व्याधिहरण रसायन निर्माण विधि
इसके निर्माण के लिए सबसे पहले पारा-गंधक की कज्जली बनाकर दूसरी चीज़े मिक्स घोटने के बाद आतिशी शीशी में भरकर 'बालुका यंत्र' में रखकर क्रम से मृदु, मध्यम और तीक्ष्ण आँच लगातार तीन दिन तक दी जाती है. इसके बाद ठण्डा होने पर शीशी निकालकर दवा निकाल ली जाती है.
इसे बनाने की प्रक्रिया जटिल है, बस आपकी जानकारी के लिए संक्षेप में बताया हूँ. सिद्धहस्त अनुभवी वैद्य ही इसका निर्माण कर सकते हैं, सब के बस की बात नहीं.
नवजीवन रस वास्तव में मनुष्य को नया जीवन देता है, तो आईये जानते हैं कि नवजीवन रस क्या है? और जानेंगे इसके गुण उपयोग, फ़ायदे और निर्माण विधि के बारे में सब कुछ विस्तार से -
नवजीवन रस
जैसा कि इसके नाम से ही पता चलता है नया जीवन देने वाली रसायन औषधि
नवजीवन रस के गुण
इसके गुणों की बात करें तो यह दीपक, पाचक है, शरीर में वात और कफ़ दोष को संतुलित करता है.
नवजीवन रस के फ़ायदे
जहाँ तक नवजीवन रस के फ़ायदे की बात है तो वैद्यगण अनुपान भेद से इसे कई रोगों में प्रयोग करते हैं.
कुचला प्रधान औषधि होने से यह नस नाड़ियों को शक्ति देता है और जागृत करता है. ज्ञान वाहिनी नाड़ियों, चेष्टावाहिनी नाड़ियों और शुक्रवाहिनी नाड़ियों इसका अच्छा प्रभाव पड़ता है.
आसान शब्दों में कहूँ तो भूलने की बीमारी, यादाश्त की कमज़ोरी, नसों की कमज़ोरी, मर्दाना कमज़ोरी और माईग्रेन जैसी प्रॉब्लम में भी इस से फ़ायदा होता है.
शरीर की कमज़ोरी, खून की कमी, थकावट को दूर करता है
इसके सेवन से पाचक प्रचुर मात्रा में उत्त्पन्न होने और आमरस को पचाने से दस्त की पुरानी बीमारी, पेट दर्द, आँतों का दर्द जैसी परेशानी भी दूर होती है.
नवजीवन रस की मात्रा और सेवन विधि
एक-एक गोली या 125 mg की मात्रा में सुबह-शाम अदरक के रस के साथ शहद मिक्स कर या फिर रोगानुसार उचित अनुपान के साथ सेवन करना चाहिए.
इसे स्थानीय वैद्य जी की देख रेख में ही लें
वीर्य विकारों में बंग भस्म, प्रवाल भस्म इत्यादि के साथ मक्खन से, माईग्रेन और दीमाग को ताक़त देने के लिए अभ्रक भस्म के साथ घी या उचित अनुपान से अनुभवी वैद्यगण इसका प्रयोग कराते हैं. कहने का मतलब है कि वैद्य की सलाह के बिना इसका सेवन नहीं करें.
आयुर्वेदिक कंपनीयों का यह मार्किट में मिल जाता है. जानकारी के लिए इसकी निर्माण विधि भी बता रहा हूँ -
नवजीवन रस निर्माण विधि
इसके निर्माण के लिय चाहिए होता है शोधित कुचला, लौह भस्म, रस सिन्दूर और त्रिकटु का बारीक कपड़छन चूर्ण सभी समान भाग
निर्माण विधि यह है कि सबसे पहले रस सिन्दूर को खरल कर दूसरी चीजें मिलाकर देसी अदरक के रस में एक दिन तक घोंटकर एक-एक रत्ती की गोलियाँ बनाकर सुखाकर रख लिया जाता है. बस यही नवजीवन रस कहलाता है.
तो दोस्तों, यह थी आज की जानकारी नवजीवन रस के बारे में,कोई सवाल हो तो कमेंट कर पूछिये, आपके सवालों का स्वागत है.
जैसा कि आप सभी जानते हैं पुरुष रोगों में मैं अक्सर एम- आयल सजेस्ट करता हूँ जो पुरुषों के अंग विशेष के ढीलापन, टेढ़ापन, पतलापन और छोटापन जैसी समस्याओं में असरदार है.
तो आईये आज इसका कम्पोजीशन और फ़ायदे के बारे में सबकुछ विस्तार से जानते हैं-
एम- आयल
एम का यहाँ पर दो अर्थ है - मेल और मसाज, पूरा मतलब है पुरुषों के लिए मसाज का तेल
सबसे पहले एक नज़र इसके कम्पोजीशन पर
इसके कम्पोजीशन की बात करें तो इसे असगंध, शतावर, मैनसिल, हरताल, त्रिकटु, अकरकरा, कनेर, सेंधा नमक, पंचकोल, दशमूल, त्रिजात, जुन्द, केसर, लघु पंचकमूल, वृहत पंचकमूल, अष्टवर्ग और चतुर्जात जैसी जड़ी-बूटियों के द्वारा त्रिगुण तेल में तेल-पाक विधि से सिद्ध कर बनाया जाता है.
एम- आयल के फ़ायदे
यह लिंग का ढीलापन, छोटापन, तनाव की कमी, लूज़ रहना, नसें दिखना, बेजान रहना जैसी पुरुषों की सभी समस्या को दूर करता है.
नपुँसकता को दूर करता है और साइज़ को इम्प्रूव करने में भी मदद करता है.
कुल मिलाकर देखा जाये तो पुरुषों हर तरह की समस्या के लिए इसे बेफिक्र हो कर इस्तेमाल कर सकते हैं. यह पूरी तरह से सुरक्षित है, इसके प्रयोग से छाले-फुन्सी या किसी भी तरह का कोई साइड इफ़ेक्ट नहीं होता है.
सुबह-शाम इसकी मालिश करनी चाहिए
30 ML की क़ीमत है 300 रूपये, जिसे ऑनलाइन ख़रीदने का लिंक दिया गया है.
यह एक शास्त्रीय रसायन औषधि है जो अतिसार में प्रयोग की जाती है. तो आईये जानते हैं गंगाधर रस के घटक, निर्माण विधि और फ़ायदे के बारे में विस्तार से -
गंगाधर रस के घटक या कम्पोजीशन
इसके निर्माण के लिए चाहिए होता है शुद्ध पारा, शुद्ध गंधक, अभ्रक भस्म, कुटज छाल, अतीस, लोध्र पठानी, बेल गिरी और धाय के फूल प्रत्येक बराबर वज़न में.
निर्माण विधि यह है कि सबसे पहले पारा-गंधक की कज्जली बना लें, इसके बाद दूसरी सभी चीजों का बारीक कपड़छन चूर्ण मिक्स कर पोस्त डोडा के क्वाथ में तीन दिनों तक खरल करने के बाद दो-दो रत्ती की गोलियां बनाकर सुखाकर रख लिया जाता है. यही गंगाधर रस कहलाता है.
गंगाधर की मात्रा और सेवन विधि
एक-एक गोली रोज़ दो-तीन बार तक छाछ के साथ या फिर रोगानुसार उचित अनुपान से, वैद्य जी की देख रेख में ही लें.
गंगाधर रस के गुण
यह स्तंभक, संग्राही, आमपाचक जैसे गुणों से भरपूर होता है.
गंगाधर रस के फ़ायदे
यह हर तरह के अतिसार यानी दस्त या लूज़ मोशन रोकने वाली औषधि है.
मूल ग्रन्थ के अनुसार यह रक्तातिसार और आमातिसार में बहुत लाभ करती है.
यह मन्दाग्नि को दूर करती है और भूख बढ़ाती है.
आसान शब्दों में कहूँ तो यह पतले दस्त, डायरिया, ख़ूनी दस्त और आँव वाले दस्त की असरदार दवा है.
आज की जानकारी है सर्पगन्धारिष्ट के बारे में. आज से पहले आपने इसका नाम शायेद ही सुना होगा. मैं अक्सर आयुर्वेद की वैसी औषधियों की जानकारी लेकर आता हूँ जो कहीं और नहीं मिलती.
तो आईये जानते हैं कि सर्पगन्धारिष्ट क्या है? इसकी निर्माण विधि, गुण-धर्म और फ़ायदे के बारे में सबकुछ विस्तार से-
यह आसव-अरिष्ट केटेगरी की औषधि है जो सिरप या लिक्विड फॉर्म में होती है.
सर्पगन्धारिष्ट के फ़ायदे
यह औषधि हाई ब्लड प्रेशर और इस से सम्बंधित विकारों में बहुत अच्छा लाभ करती है.
इस के सेवन से वायु विकार नष्ट होकर शान्ति मिलती है.
उर्ध्वगामी वायु के कारण होने वाले उपद्रवों का इससे शमन होकर ह्रदय और मस्तिष्क को शान्ति मिलती है.
अनिद्रा या नीन्द नहीं आना और हिस्टीरिया में भी इसका अच्छा प्रभाव होता है.
शामक तथा जीवनीय औषधियों का मिश्रण होने से सर्पगन्धा का कार्यक्षेत्र और भी बढ़ जाता है.
किडनी पर भी इसका अच्छा असर होता है, इस से पेशाब साफ़ आता है और खून की गर्मी दूर होती है.
सर्पगन्धारिष्ट की मात्रा और सेवन विधि
15 से 30 ML तक सुबह-शाम बराबर मात्रा में पानी मिलाकर भोजन के बाद लेना चाहिए.
सर्पगन्धारिष्ट मार्किट में नहीं मिलती है, सिद्धहस्त वैद्यगण इसका निर्माण ख़ुद करते हैं. इसके जैसा ही काम करने वाली औषधि 'सर्पगन्धा वटी' मिल जाएगी जिसका लिंक दिया गया है.
इसे बनाने के लिए चाहिए होता है सर्पगन्धा 5 किलो, बला, असगंध, जटामांसी प्रत्येक 500 ग्राम, शालपर्णी, प्रिश्नपर्णी, नागबला, गम्भारी, गोखरू, जीवक, ऋषभक, मेदा, महा मेदा, ऋद्धि, वृद्धि, काकोली, क्षीरकाकोली, पीपल की छाल, वट की छाल, पलाश की छाल, गूलर की छाल, खस, गन्ध तृष्ण, कुश की जड़, काश की जड़, सरकंडा की जड़, रास्ना, कचूर, बड़ी हर्रे, कूठ और मुलेठी प्रत्येक 120 ग्राम
सभी चीज़ों को जौकूट कर 60 लीटर पानी में पकाया जाता है. जब 20 लीटर पानी शेष बचे तो इसे चूल्हे से उतार कर छानकर, 5 किलो चीनी, 4 किलो शहद, धाय के फूल डेढ़ किलो अच्छी तरह से मिलाने के बाद
नागकेशर, प्रियंगु, तालीसपत्र, तेज पात, दालचीनी और शीतल चीनी प्रत्येक 60 ग्राम लेकर चूर्ण बनाकर प्रक्षेप द्रव्य के रूप में मिलाकर संधिबंद कर सन्धान के लिए एक महीने के लिए रख दिया जाता है. एक महिना बाद छानकर बोतल में भरकर रख लें. यही सर्पगन्धारिष्ट है.
आज की आयुर्वेदिक औषधि का नाम है 'शिवताण्डव रस' तो आईये जानते हैं कि शिवताण्डव रस क्या है? इसकी निर्माण विधि और उपयोग के बारे में सबकुछ विस्तार से -
शिवताण्डव रस
इसका यह नाम कैसे पड़ा यह तो मुझे नहीं पता पर इसका वर्णन 'रस तरंग्नी' में है. इसके घटक और निर्माण विधि कुछ इस प्रकार से है -
शिवताण्डव रस निर्माण के लिए चाहिए होता है शुद्ध बच्छनाग, रस सिन्दूर, शुद्ध पारद, शुद्ध गंधक और शुद्ध हरताल प्रत्येक 10-10 ग्राम और काली मिर्च का बारीक कपड़छन चूर्ण 40 ग्राम.
निर्माण विधि यह है कि सबसे पहले पारा-गंधक की कज्जली बनाकर दूसरी सभी चीज़ें मिक्स कर अदरक के रस में घोटकर एक-एक रत्ती की गोलियां बनाकर सुखाकर रख लिया जाता है. यही शिवताण्डव रस कहलाता है.
इसे सन्निपात रोग की उत्तम औषधि कहा गया है. रोगानुसार मात्रा और अनुपान देना चाहिए.