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25 अक्तूबर 2020

Sickle Cell Anemia Ayurvedic Medicine | वैद्य जी की डायरी#20


sickle cell anema ayurvedic upchar

सिकल सेल एनीमिया का नाम आपने सुना ही होगा, एक और जहाँ allopath इसमें फ़ेल है तो वहीँ दूसरी ओर आयुर्वेद इस रोग को नष्ट करने की क्षमता रखता है. वैद्य जी की डायरी में इसी के बारे में आज एक उपयोगी जानकारी दे रहा हूँ - 

सिकल सेल एनीमिया क्या है? 

सिकल सेल एनीमिया खून की ऐसी बीमारी है जिस से खून में RBC या लाल रक्त कोशिकाएँ बहुत कम बनती हैं. आधुनिक विज्ञान इसे जेनेटिक या आनुवांशिक मानता है. 

स्वस्थ शरीर में हीमोग्लोबिन की कोशिका ऐसी होती है जबकि सिकल सेल में कुछ इस तरह की दिखती है. 



इसके रोगी की औसत आयु बहुत कम जाती है. ये सब जानकारी तो आपको कहीं भी मिल जाएगी, आईये जानते हैं कि आयुर्वेद में इसका क्या उपाय है-

सिकल सेल एनीमिया के लिए असरदार आयुर्वेदिक योग -

सिकल सेल एनीमिया नाशक योग 

यह एक बहुत अनुभवी वैद्य जी का योग है जो आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ. इसके लिए आपको यह औषधियाँ लेनी होगी -

सहस्रपुटी अभ्रक भस्म 2 ग्राम + मुक्ता पिष्टी(न. 1) 2 ग्राम + पूर्णचन्द्रोदय मकरध्वज 2 ग्राम + प्रवाल पिष्टी 2 ग्राम + कसीस भस्म 2 ग्राम + पुटपक्व विषमज्वरांतक लौह 1 ग्राम और असली बंशलोचन 5 ग्राम

सिकल सेल एनीमिया नाशक योग की निर्माण विधि कुछ इस तरह से  है- 

सबसे पहले पूर्णचन्द्रोदय मकरध्वज को अच्छी तरह से खरल कर लें इसके बाद बारीक पिसा हुआ बंशलोचन और दुसरे भस्मो को मिलाकर ताज़ी गिलोय के रस, भृंगराज के रस और त्रिफला के क्वाथ की एक-एक भावना देकर सुखाकर रख लें. बस सिकल सेल एनीमिया नाशक योग तैयार है. 

मात्रा और सेवन विधि 

चार रत्ती या 500 mg सुबह-दोपहर-शाम शहद से यह व्यस्क व्यक्ति की मात्रा है. बच्चों को आधी से एक रत्ती तक उनकी उम्र के अनुसार रोज़ तीन बार तक शहद से चटाना चाहिए. 

औषध सेवन काल में पथ्य-अपथ्य का भी पालन कराएँ. नमक, मिर्च-मसाला, तेल, फ्राइड फ़ूड और गरिष्ठ भोजन से परहेज़ करना चाहिए. 

गाजर, टमाटर, चुकन्दर, अनार, खजूर, मुनक्का या किशमिश और अंजीर का सेवन करना चाहिए. 



21 अक्तूबर 2020

बवासीर से परेशान हैं तो यह ज़रूर पियें !!!

 

home remedy for piles

बवासीर बड़ा ही कष्टदायक रोग है, इसे आयुर्वेद में अर्श कहा गया है जबकि अंग्रेजी में पाइल्स और हेमोराइड जैसे नामो से जाना जाता है. पाइल्स के रोगी के लिए छाछ बहुत फ़ायदेमंद होती है, तो आईये इसके बारे में सबकुछ जानते हैं - 

छाछ को आयुर्वेद में तक्र कहते हैं, इसे मट्ठा, बटर मिल्क और यहाँ दुबई और गल्फ कंट्री में लबन जैसे नामों से भी जाना जाता है. 

विधिपूर्वक बना हुआ छाछ बवासीर के रोगियों के लिए दवा की तरह काम करता है चाहे बवासीर कैसी भी हो, ख़ूनी हो या बादी.

तो सवाल यह उठता है कि तक्र या छाछ है क्या और इसे बनाने की सही विधि क्या है?

अच्छी तरह से पके हुए गाय के दूध से जमे हुए दही में इसकी  आधी मात्रा में पानी मिलाकर मथकर मक्खन अलग कर रख लें, यही तक्र या छाछ है. 

ताज़े छाछ के सेवन से न सिर्फ़ बवासीर बल्कि पेट की बीमारियों में भी फ़ायदा होता है. बवासीर के रोगी जितना हो सके छाछ का सेवन करना चाहिए. पेट की बीमारियों और बवासीर को बिना दवा के दूर करने के लिए प्राकृतिक चिकित्सक 'मट्ठा कल्प' कराते हैं. मट्ठा कल्प के बारे में फिर कभी विस्तार से बताऊंगा.

तक्र या छाछ के सेवन से ठीक हुआ बवासीर दुबारा नहीं होता है, ऐसा चरक संहिता में है.

आचार्य चरक के अनुसार - 

हतानि न विरोहन्ति तक्रेण गुदजानि तू |

भूमावपि निषिक्तं तद्दहेत्तक्रं तृणोलुपम |

कि पुनर्दीप्त कायाग्नने: शुष्कान्यर्शासि देहिन: ||

अर्थात- तक्र द्वारा नष्ट हुए अर्श पुनः उत्पन्न नहीं होते हैं. इसका उदाहरण देते हुए आचार्य चरक कहते हैं कि जब भूमि पर सिंचा हुआ तक्र वहां के त्रिन समूह को जलाता है, तब प्रदीप्ति जठराग्नि वाले मनुष्य शुष्कार्श का क्या कहना. अर्थात तक्र के सेवन से अर्श समूल नष्ट हो जाता है. 

तो इस तरह से आयुर्वेदिक ग्रन्थों से भी यह साबित हो जाता है कि तक्र या छाछ बवासीर के रोगियों के लिए बहुत लाभकारी है. 






11 अक्तूबर 2020

Bajikaran Churna | बाजीकरण चूर्ण - वैद्य जी की डायरी # 19

 

bajikaran churna, vaidya ji ki diary

आज वैद्य जी की डायरी में बताने वाला हूँ बाजीकरण चूर्ण के बारे में जो कमज़ोरी, वीर्य विकार, नामर्दी, शीघ्रपतन, जोड़ों का दर्द और कमर दर्द जैसे रोगों में असरदार है, तो आइये बाजीकरण चूर्ण के बारे में सबकुछ जानते हैं- 

बाजीकरण चूर्ण एक अनुभूत योग है जिसका निर्माण कर प्रयोग किया जाता है.

बाजीकरण चूर्ण के घटक- 

इसके घटक या कम्पोजीशन की बात करें तो इसे बनाने के लिए चाहिए होता है असगंध नागौरी, विधारा और मधुयष्टि एक-एक भाग, देसी सोंठ और गिलोय सत्व चौथाई भाग और मिश्री दो भाग. निर्माण विधि बहुत ही सरल है, सभी काष्टऔषधियों का चूर्ण कर पीसी मिश्री और गिलोय सत्व मिक्स कर रख लें. 

बाजीकरण चूर्ण की मात्रा और सेवन विधि - 

एक स्पून या 5 से 10 ग्राम तक सुबह-शाम फाँक कर ऊपर से मिश्री मिला गुनगुना दूध पियें या गुनगुना पानी. भोजन के बाद ही सेवन करें.

बाजीकरण चूर्ण के फ़ायदे 

इसके सेवन से मर्दाना कमज़ोरी, नामर्दी, वीर्य विकार जैसे समस्त पुरुष यौन रोगों में लाभ होता है. 

जोड़ों का दर्द, कमर दर्द, गठिया-साइटिका जैसे वात रोग, हड्डी से कट-कट की आवाज़ आना जैसी प्रॉब्लम में भी इस से दूर होती है, लगातार इसका सेवन करते रहने से.

पाचन शक्ति को सुधारता है और कब्ज़ दूर करता है. महिला-पुरुष सभी इसका सेवन कर सकते हैं. 

हर मौसम में इसका प्रयोग कर सकते हैं, लॉन्ग टाइम तक सेवन करने से भी कोई नुकसान नहीं होता है. लगातार कुछ समय इसका प्रयोग करने से निश्चित रूपसे लाभ होता है.

यह मार्केट में नहीं मिलता, इसे ख़ुद बनाकर यूज़ करें या फिर अमृत योग मिले हुवे बाजीकरण चूर्ण ऑनलाइन ख़रीद सकते हैं जिसका लिंक दिया गया है- बाजीकरण चूर्ण




01 अक्तूबर 2020

Vatgajendrasingh Ras | वातगजेन्द्रसिंह रस

 

vat gajendra singh ras

वातगजेन्द्रसिंह रस के बारे में जो एक दिव्य औषधि है. यह 80 प्रकार के वातरोग, 40 प्रकार के पित्तरोग और 20 प्रकार के कफ रोगों को दूर करती है. तो आईये जानते हैं वातगजेन्द्रसिंह रस का कम्पोजीशन, गुण-धर्म, निर्माण विधि और इसके उपयोग के बारे में विस्तार से - 

वातगजेन्द्रसिंह रस भैषज्य रत्नावली का योग है जो सिद्धहस्त वैद्यों द्वारा निर्माण कर प्रयोग किया जाता है. आज के समय में इक्का-दुक्का कंपनियां ही इसका निर्माण करती हैं. 

वातगजेन्द्रसिंह रस के घटक या कम्पोजीशन- 

इसे बनाने के लिए चाहिए होता है अभ्रक भसम, लौह भस्म, शुद्ध पारा, शुद्ध गंधक, ताम्र भस्म, नाग भस्म, टंकण भस्म, शोधित बच्छनाग, सेन्धा नमक, लौंग, शोधित हींग और जायफल प्रत्येक 10-10 ग्राम 

छोटी इलायची के बीज, तेजपात, दालचीनी, हर्रे, बहेड़ा और आँवला प्रत्येक 5-5 ग्राम 

वातगजेन्द्रसिंह रस निर्माण विधि - 

सबसे पहले शुद्ध पारा और शुद्ध गंधक को मिक्स कर खरलकर कज्जली बना लें और भस्मो को मिला लें, इसके बाद दूसरी औषधियों का बारीक चूर्ण मिक्स कर घृतकुमारी के रस में घोटकर दो-दो रत्ती या 250 mg की गोलियाँ बनाकर सुखाकर रख लें. यही वातगजेन्द्रसिंह रस है. 

वातगजेन्द्रसिंह रस के गुण - यह एक रसायन औषधि तो है ही, इसके गुणों की बात करें तो यह त्रिदोष नाशक है यानी वात, पित्त और कफ तीनों तरह के दोषों को नष्ट करता है. यह शोधक, दीपक, रक्त वर्द्धक, बल-वीर्य वर्द्धक, मांसवर्द्धक और इन्द्रियों को शक्ति देता है. वात नाड़ियों की विकृति से होने वाले अनेकों रोगों को नष्ट करता है. 

वातगजेन्द्रसिंह रस के फ़ायदे- 

जैसा कि शुरु में बताया 80 प्रकार के वातरोग, 40 प्रकार के पित्तरोग और 20 प्रकार के कफ रोगों को दूर करने में सक्षम है. 

जोड़ों का दर्द, लकवा, पक्षाघात, साइटिका, आमवात जैसे हर तरह के वातरोगों में असरदार है.

वीर्य नाश या अधीक मैथुन के कारण इन्द्रियों की शक्ति क्षीण हो गयी हो तो इसके सेवन से लाभ होता है.

यह आमदोष का दूर करता है और पाचन तंत्र को बल देता है. यह विषनाशक है और सुजन को भी दूर करता है.

इसके सेवन से स्वस्थ मनुष्य अधिक स्वास्थ लाभ करते हैं और रोगी मनुष्य रोगमुक्त हो जाते हैं, यह रोगनाशक उत्तम रसायन है. 

वातगजेन्द्रसिंह रस की मात्रा और सेवन विधि - 

एक- एक गोली सुबह-शाम दूध से लेना चाहिए.