आज मैं आयुर्वेद में वर्णित कुछ चुनिन्दा गर्भ निरोधक प्रयोग बता रहा हूँ जिसके सेवन से गर्भ की स्थिति से बचा जा सकता है. यह सारे प्रयोग विशेष रूप से महिलाओं के लिए है, तो आईये सबकुछ विस्तार से जानते हैं-
1) पीपल, वयविडंग और भुना सुहागा सभी बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बनाकर रख लें. इस चूर्ण को मासिकधर्म के समय चार दिन तक ठन्डे पानी से सेवन करने से गर्भ स्थिति की कोई सम्भावना नहीं रहती है.
2) आँवला, रसौत और हरीतकी समभाग लेकर इसका चूर्ण बनाकर तीन से दस ग्राम तक मासिक धर्म के समय सेवन करते रहने से गर्भधारण नहीं होता.
3) मासिक धर्म के बाद तीन दिनों तक सात चमेली के फुल जो स्त्री प्रतिदिन सेवन करती है उसे एक वर्ष के लिए गर्भ नहीं रहता. इसी प्रकार से प्रति वर्ष करते रहने से स्त्री गर्भधारण से बच सकती है.
4) नीम की एक निम्बौली को चबाकर ऊपर से गर्म पानी या मक्खन का सेवन करने से स्त्री को एक वर्ष तक गर्भ की स्थिति नहीं रहती.
5) यदि स्त्री एक महीने तक एक लौंग प्रतिदिन निगलती रहे तो गर्भधारण नहीं होता है. यदि किन्ही को स्थायी गर्निभनिरोध की तैयार औषधि चाहिए तो हमसे संपर्क कर सकते हैं.
गुल्गुलुतिक्तकम क्वाथ को दक्षिण भारत के वैद्यगण ही अधीक प्रयोग में लाते हैं. इसका रिजल्ट भी अच्छा है, आशातीत लाभ मिलता है. केरला आयुर्वेदा, कोट्टक्कल आयुर्वेद जैसी कंपनियों का यह मिल जाता है. इसे गुल्गुलूतिक्तकम कषाय के नाम से भी जाना जाता है.
आईये सबसे पहले एक नज़र डालते हैं इसके कम्पोजीशन पर
आयुर्वेदिक ग्रन्थ अष्टांग हृदयम में इसे गुल्गुलूतिक्तकम घृत के रूप में बताया गया है.
नीम, पटोल, व्याघ्री, गुडूची, वासा, पाठा, विडंग, सूरदारू, गजपकुल्य, यवक्षार, सज्जीक्षार, नागरमोथा, हल्दी, मिश्रेया, चव्य, कुठ, तेजोवती, काली मिर्च, वत्सका, दिप्याका, अग्नि, रोहिणी, अरुश्करा, बच, पिपरामूल, युक्ता, मंजीठ, अतीस, विशानी, यवानी और शुद्ध गुग्गुल के मिश्रण से बनाया जाता है.
जैसा कि आप समझ सकते हैं कि यह क्वाथ है तो यह सिरप या लिक्विड फॉर्म में होती है. कुछ कम्पनियां इसे टेबलेट फॉर्म में भी बनाती हैं. मूल ग्रन्थ में घृत की ही कल्पना की गयी है, यह घी फॉर्म में भी मिलता है, सभी के समान लाभ हैं.
गुल्गुलुतिक्तकम क्वाथ के गुण या प्रॉपर्टीज
इसके गुणों की बात करें तो यह वात और कफ़ नाशक है. वात और कफ़ दोष को बैलेंस करती है त्वचा और अस्थि लेवल तक. तासीर में गर्म है.
गुल्गुलुतिक्तकम क्वाथ के फ़ायदे
गठिया, वात, जोड़ों का दर्द, सुजन, रुमाटायद अर्थराइटिस इत्यादि में सफ़लतापूर्वक प्रयोग किया जाता है.
जल्दी न भरने वाले ज़ख्म, चकत्ते, साइनस में भी लाभकारी है.
हर तरह के चर्मरोगों, त्वचा विकारों जैसे फोड़े-फुन्सी, एक्जिमा, सोरायसिस इत्यादि में भी वैद्यगण इसका सेवन कराते हैं.
मोटापा, हृदय रोग, हाई कोलेस्ट्रॉल, हाई LDL इत्यादि में भी लाभकारी है.
बस कुल मिलाकर समझ लीजिये कि जहाँ भी वात और कफ़ दोष की वृद्धि हो इसका प्रयोग किया जाता है.
गुल्गुलुतिक्तकम क्वाथ की मात्रा और सेवन विधि
5 से 10 ML सुबह-शाम गुनगुने पानी में मिक्स कर लेना चाहिए. यदि इसे टेबलेट फॉर्म में लेना हो तो 2 टेबलेट सुबह-शाम लें या फिर स्थानीय वैद्य जी की सलाह के अनुसार ही लें.
पित्त प्रकृति वाले व्यक्ति या फिर जिनका पित्त दोष भी बढ़ा हो, गैस्ट्रिक की समस्या हो तो सावधानीपूर्वक वैद्य जी देख रेख में ही लें.
यदि आप पहले से होम्योपैथिक दवा, या अंग्रेज़ी दवा भी लेते हैं तो भी इसका सेवन कर सकते हैं, टाइम गैप देकर.
गुल्गुलुतिक्तकम क्वाथ कहाँ मिलेगा?
यह हर जगह दुकान में नहीं मिलती है, इसे आप घर बैठे ऑनलाइन मंगा सकते हैं जिसका लिंक निचे दिया गया है.
पिण्ड तेल को पिण्ड तैलम भी कहा जाता है. विशेष रूपसे दक्षिण भारत में ही इसे पिण्ड तैलम के नाम से जाना जाता है.
पिण्ड तेल के फ़ायदे
यह दर्द दूर करने वाला तेल है जिसे ख़ासकर गठिया, Arthritits में प्रयोग किया जाता है.
इसके प्रयोग से सुजन, जोड़ों का दर्द, अकड़न, वैरीकोस वेंस, शरीर का दाह या जलन इत्यादि में लाभ होता है.
जोड़ों के दर्द-सुजन, सुजन की लाल होना, जलन होना जैसी समस्या होने पर इसकी मालिश करनी चाहिए.
वैरीकोस वेंस में दर्द जलन हो तो इसकी बहुत हलकी मालिश करें या क्रीम के जैसा ही लगायें. वैरीकोस वेंस में दबाव नहीं डालना चाहिए.
इसे जले-कटे और ज़ख्म पर भी लगाया जाता है. यह सिर्फ़ बाहरी प्रयोग की औषधि है.
पिण्ड तेल का कोई साइड इफ़ेक्ट या दुष्प्रभाव नहीं होता है, लम्बे समय तक इसका प्रयोग कर सकते हैं. रोज़ दो-तीन बार या आवश्यकतानुसार इसकी मालिश कर सकते हैं.
सावधानी - यह काफ़ी चिकना और चिपचिपा तेल होता है, एड़ी में इसकी मालिश के बाद एक आदमी नंगा पैर फर्श पर चला तो स्लिप कर गिर गया और कमर में फ्रैक्चर आ गया, मतलब लेने के देने पड़ गए. इसलिए दोस्तों ध्यान से इसकी मालिश करें, यदि पैर या तलवों में लगाना हो तो मालिश के बाद अच्छे से पोछ लिया करें.
पिण्ड तेल के घटक और निर्माण विधि -
आयुर्वेदिक ग्रन्थ चरक संहिता में इसका वर्णन मिलता है. इसके घटक या कम्पोजीशन की बात की जाये तो इसे बनाने के लिए चाहिए होता है- देशी मोम(मधुमक्खी वाला) 280 ग्राम, मंजीठ 455 ग्राम, सर्जारस 186 ग्राम, सारिवा 455 ग्राम, तिल तेल 6 लीटर और पानी 24 लीटर. बनाने के तरीका है यह है कि जड़ी बूटियों का जौकुट चूर्ण कर तेल-पानी मिलाकर मंद अग्नि पर तेल-पाक विधि से तेल सिद्ध कर लिया जाता है.
वैसे यह बना हुआ मार्केट में उपलब्ध है ऑनलाइन ख़रीद सकते हैं निचे दिए गए लिंक से -
महासुदर्शन काढ़ा आयुर्वेदिक औषधि है जिसके सेवन से हर तरह की बुखार, पाचन विकृति, सर दर्द, खाँसी, खून की कमी, जौंडिस और लिवर के रोग इत्यादि दूर होते हैं. तो आईये इसके गुण, उपयोग, फ़ायदे और निर्माण विधि के बारे में सबकुछ जानते हैं -
काढ़ा को क्वाथ भी कहा जाता है. काढ़ा और क्वाथ में बीच में कंफ्यूज न हों, दोनों एक ही चीज़ है. कोई कम्पनी महासुदर्शन काढ़ा के नाम से बनाती है तो कोई कम्पनी महासुदर्शन क्वाथ के नाम से.
महासुदर्शन काढ़ा का कम्पोजीशन महासुदर्शन चूर्ण के जैसा ही होता है. महासुदर्शन चूर्ण के बारे में आप पहले से ही जानते हैं.
इसके निर्माण के लिए चाहिए होता है हर्रे, बहेड़ा, आँवला, हल्दी, दारुहल्दी, छोटी कटेरी, बड़ी कटेरी, कचूर, सोंठ, काली मिर्च, पीपल, पीपलामूल, मूर्वा, गिलोय, धमासा, कुटकी, पित्तपापड़ा, नागरमोथा, त्रायमाण(बनफ्सा), नेत्रबाला(खश), अजवायन, इन्द्रजौ, भारंगी, सहजन बीज, शुद्ध फिटकरी, बच, दालचीनी, कमल के फूल, उशीर, सफ़ेद चन्दन, अतीस, बलामूल, शालपर्णी, वायविडंग, तगर, चित्रकमूल छाल, देवदारु, चव्य, पटोलपत्र, कालमेघ, करंज की मींगी, लौंग, बंशलोचन, काकोली, तेजपात, जावित्री, तालिसपत्र प्रत्येक 8 तोला, 8 माशा 4 रत्ती लेना है, चिरायता 2 सेर 10 छटाक 3 तोला 4 माशे लेकर सबको जौकूट कर 64 सेर पानी में पकाया जाता है. 16 सेर जल शेष रहने पर छानकर इसमें 6 सेर गुड़ और धाय के फूल 10 छटाक डालकर आसव-अरिष्ट निर्माण विधि के अनुसार एक महिना के सन्धान होने के लिए छोड़ दिया जाता है. इसके बाद छानकर बोतलों में भर लिया जाता है. बस यही महासुदर्शन काढ़ा है.
महासुदर्शन काढ़ा के गुण
ज्वरघ्न है अर्थात बुखार को दूर करता है, शरीर के दाह को दूर करता है यानी बॉडी में कूलैंट की तरह काम करता है. पाचन का काम करता है, पित्त रेचन काम करता है यानि बॉडी के एक्स्ट्रा पित्त को बाहर निकालता है.
महासुदर्शन काढ़ा के फ़ायदे
इसके सेवन से हर तरह के बुखार दूर होते हैं. चाहे बुखार नयी हो या पुरानी हो या फिर मलेरिया हो या फिर कुछ और हो, सभी प्रकार के ज्वर समूल नष्ट होते हैं.
भूख की कमी, कमज़ोरी, सर दर्द, खांसी, कमर दर्द, जौंडिस, खून की कमी, अपच, गर्मी, शरीर का पीलापन इत्यादि हर तरह के लक्षणों को दूर करता है.
किसी भी कारण से होने वाले बुखार में, महिला, पुरुष, बच्चे-बूढ़े सभी लोग इसका यूज़ कर सकते हैं.
इसके सेवन बुखार दूर होकर शरीर स्वस्थ होता है, बुखार की अंग्रेज़ी दवाओं की तरह साइड इफ़ेक्ट नहीं होता है.
यदि आप कोई अंग्रेज़ी दवा का सेवन करते हैं तो भी थोड़ा टाइम गैप देकर इसका सेवन कर सकते हैं.
होम्योपैथिक दवा का इस्तेमाल करते हुए भी आप इसे यूज़ कर सकते हैं.
पूरी तरह से सुरक्षित औषधि है, इसका कोई साइड इफ़ेक्ट नहीं होता है.
महासुदर्शन काढ़ा की मात्रा और सेवन विधि
15 से 30 ML तक बराबर मात्रा में पानी मिलाकर रोज़ दो से चार-पाँच बार तक ले सकते हैं. या फिर स्थानीय वैद्य जी की सलाह के अनुसार ही लेना चाहिए.