ठण्ड का मौसम आ गया है और अभी यानी नवम्बर-दिसम्बर से लेकर फरवरी मार्च तक मकरध्वज सेवन करने का सबसे बेस्ट समय है.
जी हाँ दोस्तों, आज मैं मकरध्वज के बारे में कुछ कमाल की जानकारी देने वाला हूँ.
जैसा कि इसके नाम से ही पता चलता है शक्ति या ताक़त देने वाली, चंद्रोदय सिद्ध मकरध्वज का ही दूसरा नाम है, वटी का मतलब गोली या टेबलेट पिछली सदी ...
ठण्ड का मौसम आ गया है और अभी यानी नवम्बर-दिसम्बर से लेकर फरवरी मार्च तक मकरध्वज सेवन करने का सबसे बेस्ट समय है.
जी हाँ दोस्तों, आज मैं मकरध्वज के बारे में कुछ कमाल की जानकारी देने वाला हूँ.
अविपत्तिकर चूर्ण एसिडिटी और पित्त विकारों के लिए यूज़ किया जाता है, यह आप सभी जानते हैं. कई लोगों को इस से एसिडिटी में फ़ायदा नहीं होता है. फ़ायदा क्यूँ नहीं होता है? यह भी मैं बताऊंगा.
अविपत्तिकर चूर्ण का कम्पोजीशन क्या है?
इसे बनाने का तरीका क्या है?
इसका डोज़?
इसके फ़ायदे क्या हैं? क्या इसके कुछ नुकसान या साइड इफेक्ट्स भी हैं?
और यदि आपने इसका सेवन किया तो लाभ क्यूँ नहीं हुआ? इसका दूसरा विकल्प क्या है?
तो आईये इन सभी चीजों के बारे में विस्तार से जानते हैं -
अविपत्तिकर चूर्ण के घटक या कम्पोजीशन
आयुर्वेदिक ग्रन्थ भैषज्य रत्नावली का योग है. इसके घटक या कम्पोजीशन की बात करूँ तो इसे बनाने के लिए चाहिए होता है सोंठ, काली मिर्च, पीपल, हर्रे, बहेड़ा, आँवला, नागरमोथा, विडनमक, वायविडंग, छोटी इलायची और तेजपात प्रत्येक एक-एक तोला, लौंग 11 तोला, निशोथ 44 तोला और मिश्री 66 तोला.
इन्ही जड़ी-बूटियों को पीसकर बनाया गया पाउडर है अविपत्तिकर चूर्ण. अनेकों ब्राण्ड का मार्केट में यह बना हुआ मिल जाता है, बेस्ट क्वालिटी वाले का लिंक दे रहा हूँ.
अविपत्तिकर चूर्ण ऑनलाइन ख़रीदें
निशोथ को ही त्रिवृत, विधारा जैसे नामों से भी जाना जाता है. इसलिए कंफ्यूज न हों, क्यूंकि कोई कम्पनी इसके कम्पोजीशन में निशोथ लिखेगी, कोई विधारा लिखेगी तो कोई त्रिवृत लिखेगी. सभी एक ही चीज़ है.
ग्रन्थ का मूल श्लोक आप पढ़ सकते हैं, जिसमे इसकी निर्माण विधि और फ़ायदे के बारे में श्लोक में बताया गया है.
अविपत्तिकर चूर्ण का डोज़ यानी की मात्रा और सेवन विधि
तीन से छह ग्राम सुबह-शाम ठन्डे पानी, नारियल पानी या धारोष्ण दूध के साथ.
अविपत्तिकर चूर्ण के गुण या प्रॉपर्टीज
यह पित्त शामक है, पित्त और वात को बैलेंस करता है.
अविपत्तिकर चूर्ण के फ़ायदे
यह पैत्तिक विकारों यानी पित्त की विकृति से उत्पन्न समस्याओं को दूर करता है.
एसिडिटी, पेट दर्द, क़ब्ज़, भूख की कमी इत्यादि में इसके सेवन से लाभ होता है.
प्रमेह रोग में भी इसके सेवन से लाभ होता है. यानी यूरिनरी सिस्टम में भी इसका असर होता है.
काफ़ी मात्रा में निशोथ मिला होने से यह क़ब्ज़ को भी दूर कर देता है.
अविपत्तिकर चूर्ण के साइड इफेक्ट्स
वैसे तो यह सुरक्षित औषधि है पर कई लोगों को यह सूट नहीं करती है. कुछ लोगों को इस से पतले दस्त, पेट दर्द और डायरिया जैसी समस्या भी हो सकती है.
लॉन्ग की काफ़ी मात्रा होने से यह कुछ लोगों को सूट नहीं करती है. बच्चों को और प्रेगनेंसी में इसका सेवन नहीं करना चाहिए.
शुगर, BP, अल्सरेटिव कोलाइटिस, दस्त, और Sensitive Stomach वाले लोगों को इसका सेवन नहीं करना चाहिए.
आपने इसका सेवन किया तो लाभ क्यूँ नहीं हुआ?
अगर आप इस यूज़ कर चुके हैं और फ़ायदा नहीं हुआ तो इसका कारण हो सकता है इसका आपको सूट नहीं करना. यदि एसिडिटी के साथ गैस भी समस्या हो तो इसमें शंख भस्म मिलाकर लेना चाहिए.
साथ में सूतशेखर रस, कपर्दक भस्म जैसी औषधि मिक्स कर उचित अनुपान से लेने से ही लाभ होता है.
इसका दूसरा विकल्प क्या है?
इसका दूसरा विकल्प है 'अम्लपित्तान्तक चूर्ण', विकल्प नहीं बल्कि इस से ज़्यादा असरदार और सभी को सूट भी करता है.
अम्लपित्तान्तक चूर्ण एसिडिटी और हाइपर एसिडिटी के लिए चीप एंड बेस्ट मेडिसिन है.
गोक्षुरादि गुग्गुल के बारे में आज कुछ ऐसी जानकारी देने वाला हूँ जिसे कोई नहीं बताएगा.
इसके गुण या प्रॉपर्टीज क्या हैं?
इसके क्या क्या फ़ायदे हैं? किन बीमारियों को यह दूर करता है?
गोक्षुरादि गुग्गुल का डोज़ क्या है? इसे कैसे यूज़ करें?
और क्या इसके कुछ साइड इफेक्ट्स भी है?
तो आईये इन सभी के बारे में सबकुछ विस्तार से जानते हैं -
गोक्षुरादि गुग्गुल
जैसा कि इसके नाम से ही पता चलता है गोक्षुर या गोखुरू नाम की बूटी ही इसका मुख्य घटक यानि की मेन इनग्रीडेंट है.
योगराज गुग्गुल को आप जानते ही हैं, यह आयुर्वेद की बहुत ही प्रसिद्ध दवाओं में से एक है. आज मैं योगराज गुगुल के बारे में कुछ ऐसे सीक्रेट और ऐसे-ऐसे यूज़ बताने वाला हूँ जिसके अक्सर वैद्यगण छुपाते हैं. तो आईये जानते हैं कि योगराज गुग्गुल क्या है? इसका कम्पोजीशन, इसे बनाने का तरीका और गुण उपयोग के बारे में सबकुछ विस्तार से -
योगराज गुग्गुल
मतलब योगो का राजा, या दुसरे शब्दों में कहूँ तो King of the Ayurvedic Medicine
यह वाकई में किंग है राजा है, बहुत सारी बीमारीओं में आँख मूँद कर यूज़ कर सकते हैं. और लम्बे समय तक भी यूज़ कर सकते हैं, छह महिना से दो-चार साल तक लगातार यूज़ करने से भी कोई प्रॉब्लम नहीं होती बल्कि रोग समूल नष्ट होते हैं.
सबसे जानते हैं योगराज गुग्गुल के घटक या कम्पोजीशन -
इसे टोटल 28 तरह की चीज़ें मिलाकर बनाया जाता है. इसके कम्पोजीशन की बात करूँ तो इसे बनाने के लिए चाहिए होता है-
चित्रकमूल, पीपरामूल, अजवायन, काला जीरा, विडंग, अजमोद, सफ़ेद जीरा, देवदार, चव्य, छोटी इलायची, सेंधा नमक, कूठ, रास्ना, गोखरू, धनियाँ, हर्रे, बहेड़ा, आँवला, नागरमोथा, सोंठ, मिर्च, पीपल, दालचीनी, खस, यवक्षार, तालीसपत्र और तेजपत्र प्रत्येक एक-एक तोला या 10 ग्राम. त्रिफला और गिलोय क्वाथ से शुद्ध किया हुआ शोधित गुग्गुल 270 ग्राम और थोड़ी मात्रा में देशी गाय का घी.
योगराज गुग्गुल निर्माण विधि-
सभी जड़ी-बूटियों का बारीक कपड़छन चूर्ण बना लें, इसके बाद शोधित गुग्गुल में चूर्ण मिलाकर इमामदस्ते में डालकर चिपके नहीं इसके लिए थोड़ा-थोड़ा घी मिक्स करते हुए इतना कुटाई करें की गोली बनाने योग्य हो जाये. इसके बाद 500mg की इसकी गोलियाँ बनाकर सुखाकर रख लिया जाता है. यही योगराज गुग्गुल है. पुरे विधि विधान से सही तरीके से शुद्ध किये गए गुग्गुल में प्रोसेस होने से इसकी गोलियां बिल्कुल काले रंग की और सोन्धी खुशबु वाली बनती हैं, जो की असरदार होती हैं. सस्ता बेचने के चक्कर में कुछ कम्पनी सही विधि से नहीं बनाती है और सही रिजल्ट भी नहीं मिलता.
योगराज गुग्गुल की मात्रा और सेवन विधि -
दो से छह गोली रोज़ दो-तीन बार तक आप इसे ले सकते हैं, उचित अनुपान के साथ. बच्चों को कम डोज़ में लेना चाहिए, इसे बच्चे, बड़े,बूढ़े सभी लोग यूज़ कर सकते हैं.
योगराज गुग्गुल के गुण या प्रॉपर्टीज
यह वात नाशक है, वातरोग के लिए इसे सभी लोग जानते हैं. पर असल में यह सभी तरह के रोगों को दूर करता है, क्यूंकि यह त्रिदोष नाशक है. विशेस रूप से वात और आम दोष को नष्ट करता है.
योगवाही है यानी जिस भी दवा के साथ यूज़ करेंगे यह उसकी पॉवर को बढ़ा देता है. रसायन है और धातुओं का पोषण करता है.
योगराज गुग्गुल के फ़ायदे
अगर मैं सीधे तौर पर और आसान भाषा कहूँ तो आपको कोई भी रोग क्यूँ न हो, आप इसका सेवन कर सकते हैं.
इसे हर घर में होना चाहिए, घरेलु दवा के तरह आप इसे यूज़ कर सकते हैं. कहाँ, कब और कैसे इसे यूज़ कर सकते हैं यही सब आगे बताने वाला हूँ -
जोड़ों का दर्द, गठिया, आमवात, कमर दर्द जैसे रोगों के लिए इसे सभी लोग यूज़ करते हैं.
आपको अगर बदन दर्द हो जाये, मसल्स में दर्द हो जाये, थकावट हो जाये तो भी इसे गर्म पानी से ले सकते हैं.
कहीं पर इन्फ्लामेशन हो जाये, सुजन हो जाये तो योगराज गुग्गुल को गर्म पानी से लिजिए.
सर्दी-जुकाम, हो जाये, गला ख़राब हो जाये, ठण्ड लग जाये तो भी योगराज गुग्गुल का सेवन कर सकते हैं.
पेट में गैस बनती हो, गोला बनता हो तो योगराज गुग्गुल का इस्तेमाल किजिए
खाँसी हो तो भी इसे यूज़ करना चाहिए, यह अंग्रेज़ी एन्टी बायोटिक की तरह काम करती है वह भी बिना साइड इफ़ेक्ट के.
महिला पुरुष के Reproductive सिस्टम की कोई भी प्रॉब्लम हो तो इसे यूज़ कर सकते हैं. महिलाओं के पीरियड की प्रॉब्लम, पुरुषों के स्पर्म काउंट की प्रॉब्लम सभी में इसे यूज़ कर सकते हैं. किसी भी कारन से महिलाओं को बाँझपन हो तो उसमे भी यह असरदार है.
क़ब्ज़ या Constipation की समस्या हो तो यूज़ कर सकते हैं.
बवासीर, भगंदर में भी इसे यूज़ करना चाहिए.
पेट के कीड़ों को भी योगराज गुग्गुल दूर करता है.
यह बॉडी से टोक्सिंस या विषैले तत्वों को दूर करता है और शरीर को उचित पोषण भी देता है.
योगराज गुग्गुल बॉडी के एक्स्ट्रा फैट को दूर करता है, मोटापा में इसे अवश्य यूज़ करना चाहिए.
यह आपके मेटाबोलिज्म को सही करता है, इम्युनिटी को बढ़ाता है.
अगर आपके एरिया में वायरल फ्लू, वायरल बुखार चल रहा है तो इस से बचने के लिए भी योगराज गुग्गुल को गुनगुने पानी से यूज़ कर सकते हैं.
ब्रेन के लिए भी अच्छा है, यह ब्रेन के टिशुज़ को ताक़त देता है, नर्व को ताक़त देता है, मेमोरी पॉवर भी दुरुस्त करता है. इसे एक अच्छा Nervine टॉनिक भी कह सकते हैं.
दमा या अस्थमा के रोगियों को भी योगराज गुग्गुल का सेवन करना चाहिए.
बहुमूत्र या बार-बार पेशाब आने की समस्या में भी असरदार है.
यह रस-रक्तादि सभी धातुओं को पुष्टि करता है और शरीर में जमे हुए सभी दोषों को दूर कर देता है.
अब आप समझ गए होंगे कि यह कितने काम की दवा है, ऐसे ही नहीं इसे योगराज यानी योगों का राजा कहा गया है.
किसी भी रोग में, कोई भी बीमारी क्यूँ न हो आप इसे यूज़ कर सकते हैं उचित अनुपान से.
उचित अनुपान क्या है?
उचित अनुपान वह औषधि है जो उस रोग को दूर करने में सहायता करती है. जैसे पित्त विकारों में गिलोय, धनियाँ का काढ़ा, एलो वेरा जूस के साथ. कफ के रोगों में अदरक का रस, तुलसी क्वाथ के साथ. इसी तरह से वात रोगों में लेना है तो दशमूल क्वाथ, रास्ना क्वाथ के साथ.
योगराज गुग्गुल के साइड इफ़ेक्ट
इसका कोई साइड इफ़ेक्ट नहीं है, मैंने एक साल तक रेगुलर लोगों को खिलाकर देखा है, कोई प्रॉब्लम नहीं होती है. इसे दो चार साल तक भी यूज़ कर सकते हैं. पित्त प्रकृति और बहुत गर्म तासीर के लोगों को इसे गिलोय के रस, धनियाँ क्वाथ, एलो वेरा जूस, दूध या अमृतारिष्ट इत्यादि के साथ लेना चाहिए.
बिना नमक वाला भोजन करना असंभव तो नहीं बार मुश्किल ज़रूर है. बचपन से ही हमारी ऐसी आदत डाली गयी है, इसके बिना खाना में स्वाद ही नहीं आता, टेस्ट नहीं आता है. आज लगभग 99 प्रतिशत घरों में सफ़ेद नमक ही यूज़ किया जाता है. यह सफ़ेद नमक नहीं बल्कि नमकीन ज़हर है, धीमा ज़हर.
धीमा ज़हर मैं इस लिए कह रहा हूँ यह आपको डायरेक्टली नहीं मारता है, बल्कि चुपके से बहुत-बहुत धीरे मारक बीमारी को जन्म देने में हेल्प करता है और इसे समझ नहीं पाते हैं.
यदि आप चाहते हैं कि इसकी वजह से होने वाली बीमारियों से आप बचे रहें और परिवार सुरक्षित रहे तो आज से और अभी से ही इस सफ़ेद नमक को यूज़ करना बंद कर दीजिये और सेंधा नमक कोई यूज़ कीजिये.
फ्री फ्लोइंग नमक, वाइट नमक, आयोडीन नमक सब बकवास है.
आपको जान कर हैरानी होगी कि हमारे शरीर रोज़ जितने नमक की ज़रूरत होती है वह अलग से बिना नमक खाए ही हमारे भोजन से, यानी रोटी, चावल, सब्ज़ी, फल इत्यादि से पूरी हो जाती है.
आसान शब्दों में कहूँ तो हमारे शरीर को अलग से नमक की कोई ज़रूरत नहीं होती है, और हम हैं कि भर-भर कर अलग बहुत सारी चीज़ों में नमक मिलाकर खाते रहते हैं. जिसके विपरीत प्रभाव से शरीर को नुकसान होता है और बीमारियों का जन्म होता है.
कुछ लोग सोचते हैं कि अरे भईया नमक नहीं खाऊंगा को शरीर को ताक़त नहीं मिलेगी. यह सोच बिल्कुल ग़लत है.
ग़लत कैसे है? आईये मैं आपको एक उदाहरण से समझाता हूँ -
गाय, बैल, सभी जानवर और सभी पक्षी कभी नमक खाते हैं क्या? नहीं ना
किसी जानवर या पक्षी जो जीवनभर नमक नहीं खाता है, उसे नमक नहीं खाने से कमज़ोर होते हुए देखा है क्या? अगर आपने देखा हो तो कमेंट कर ज़रूर बताईयेगा.
अब आप बोलियेगा कि मैंने शुरू में बताया कि सेंधा नमक खाओ, चूँकि आपको शुरू से नमकीन की आदत है तो अचानक से इसे बंद नहीं कर सकते हैं. और नमक बिना स्वाद नहीं आता, इस लिए स्वाद के लिए सेंधा नमक यूज़ कीजिये.
सेंधा नमक का कोई साइड इफ़ेक्ट नहीं है, इसमें कई सारे ज़रूरी मिनरल्स होते है जिस से शरीर को फ़ायदा होता है.
अब बात यह कि सफ़ेद नमक से क्या क्या नुकसान होता है?
मैं आपको फिर से कहता हूँ कि हमारे बॉडी कोई सफ़ेद नमक की कोई ज़रूरत नहीं है. जब कोई ज़रूरत ही नहीं होती और बॉडी में नमक डालते रहेंगे तो बॉडी रियेक्ट करेगी ही और इसके परिणाम स्वरुप आपको हाई ब्लड प्रेशर, स्किन डिजीज, किडनी फेलियर जैसे गंभीर रोग जन्म लेते हैं.
नमक के बारे में आयुर्वेदिक ग्रन्थ चरक संहिता में कहा गया है -
आपातभद्रं प्रयोग समसादगुण्यात, दोषसंचयानुबन्धम||
इसका अर्थ यह है कि अल्पमात्रा में बहुत थोड़ी मात्रा में नमक प्रयोग करने से तत्काल लाभप्रद है, और अधीक मात्रा में और अधीक समय तक प्रयोग करने से यह दोषों का संचय करता है|
आज की मॉडर्न साइंस क्या कहेगी- हमारे ऋषियों में हजारों साल पहले यह बता दिया था. दोषों का संचय का सीधा मतलब है कि दोष जमा होंगे और दोष जमा होंगे तो बीमारी पैदा होगी.
आज के समय में हाई BP और किडनी डिजीज लिए इस सफ़ेद नमक का ज़्यादा इस्तेमाल इसके कारणों में से एक है.
अगर आपको हाई BP की प्रॉब्लम है, किडनी की कोई समस्या है, स्किन की कोई प्रॉब्लम है तो आज से ही सादा नमक को गुड बाय कहिये और सेंधा नमक यूज़ करना शुरू कीजिये, धीरे धीरे ही सही आपको फ़ायदा दिखेगा. कोई हेल्थ इशू नहीं भी है तो वाइट साल्ट को रिप्लेस कीजिये, स्वस्थ रहने के लिए.
आप की जानकारी के लिए मैं आपको बता देना चाहूँगा कि दुबई में रहते हुए भी मैं खाना बनाने से लेकर किसी चीज़ में ऊपर से नमक ऐड करना हो तो उसके लिए भी सेंध नमक ही यूज़ करता हूँ.
इंडिया में आपको पंसारी की दुकान से सेंधा नमक नाम से पत्थर जैसे टुकड़े मिल जायेंगे, जिसे पीसकर यूज़ कर सकते हैं.
वैसे पिंक साल्ट के नाम से पाउडर और दानेदार फॉर्म में भी मिल जाता है, जिसे ऑनलाइन ख़रीदने का लिंक दिया गया है.
और अंत में यह भी बता दूँ कि आयुर्वेदिक दवाओं में सेंधा नमक ही प्रमुखता से प्रयोग किया जाता है. टोटल पांच तरह के नमक आयुर्वेद में बताये गए हैं, अगर इनके बारे में भी जानकारी चाहते हैं तो कमेंट कर ज़रूर बताईयेगा.
आज मैं जिस आयुर्वेदिक औषधि की जानकारी देने वाला हूँ उसका नाम है- वातेभ केशरी रस
जी हाँ दोस्तों इसका नाम आपने शायेद ही पहले सुना हो. इसलिए मैं आपके लिए आयुर्वेद की गुप्त औषधियों की जानकारी लेकर आते रहता हूँ.
आपका ज़्यादा समय न लेते हुए आईये जानते हैं वातेभ केशरी रस गुण-उपयोग, फ़ायदे, इसका कम्पोजीशन और निर्माण विधि के बारे में सबकुछ विस्तार से -
वातेभ केशरी रस का घटक या कम्पोजीशन
इसे बनाने के आपको चाहिए होगा शुद्ध बच्छनाग, शुद्ध सोमल, काली मिर्च, लौंग, जायफल, छुहारे की गुठली और करीर की कोंपलें प्रत्येक 10-10 ग्राम, अहिफेन और मिश्री प्रत्येक 20-20 ग्राम.
वातेभ केशरी रस निर्माण विधि
बनाने का तरीका यह है कि सभी चीज़ों का बारीक कपड़छन कर बरगद के दूध में मर्दन कर सरसों के बराबर की गोलियाँ बनाकर सुखाकर रख लें. बस यही वातेभ केशरी रस है. यह एक गुप्त-सिद्ध योग है, कहीं भी किसी कंपनी का बना हुआ नहीं मिलता है. पुराने वैद्यगण इसका निर्माण कर यश अर्जित करते थे.
वातेभ केशरी रस की मात्रा और सेवन विधि
एक से तीन गोली तक रोज़ दो से तीन बार तक रोगानुसार उचित अनुपान के साथ देना चाहिए.
वातेभ केशरी रस फ़ायदे
यह वात और कफ़ दोष से उत्पन्न अनेकों रोगों को दूर करने में बेजोड़ है.
न्युमोनिया में इसे मिश्री के साथ देने से न्युमोनिया दूर होता है.
खाँसी और अस्थमा में इसे शहद के साथ लेना चाहिए.
मरन्नासन रोगी को इसे अकरकरा और सफ़ेद कत्था के साथ देने से रोगी की जान बच जाती है.
हिचकी रोग में मूली के बीज के क्वाथ के साथ देना चाहिए.
दस्त या लूज़ मोशन में जीरा के चूर्ण के साथ सेवन करना चाहिए.
रक्त प्रदर में शहद या घी के साथ सेवन करने से समस्या दूर होती है.
नपुंसकता और शीघ्रपतन जैसे रोगों में मलाई के साथ सेवन करें.
सुज़ाक में गुलकन्द के साथ और
पॉवर-स्टैमिना बढ़ाने के लिए इसे जायफल के साथ सेवन करना चाहिए.
चित्रक हरीतकी
जैसा कि इसके नाम से ही पता चलता है चित्रक मूल और हरीतकी इसका मुख्य घटक होता है. यह अवलेह टाइप की यानी च्यवनप्राश के जैसी दवा होती है.
तो आईये सबसे पहले जानते हैं इसके फ़ायदे
आयुर्वेदानुसार पुराने और बार-बार होने वाले प्रतिश्याय या जुकाम में इसके सेवन से अच्छा लाभ होता है. खांसी, कृमि रोग, गैस, वायु गोला बनना, अस्थमा, बवासीर और मन्दाग्नि जैसे रोगों में भी लाभकारी है.
विशेष रुप से दमा के रोगी को अत्यधिक लाभ पहुंचाता है.
फेफड़ों की श्वासनलीयों को विस्फारित कर श्वास लेने की कठिनाई को दूर करता है.
बदलते मौसम के साथ होने वाले वायरल संक्रमण से बचाता है.
शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है.
फेफड़ों में उपस्थित बलगम को बाहर निकालने में मदद करता है.
अस्थमा के रोगियों के लिए सेवन फायदेमंद होता है.
मौसम के कारण होने वाला जुकाम, ट्यूबरक्लोसिस के रोगियों के लिए फायदेमंद होता है.
पुराने से पुराना नजला जुकाम दूर करता है.
पेट के कीड़े को मारता है.
पाचन तंत्र को मजबूत करता है.
पेट में होने वाली कब्ज गैस की शिकायत को दूर करता है.
आम का पाचन करता है.
अर्श या बवासीर रोग में सेवन करना फायदेमंद है.
चित्रक हरीतकी की मात्रा और सेवन विधि
5 ग्राम या एक स्पून सुबह-शाम गाय के गर्म दूध के साथ लेना चाहिए. पुराने नज़ला-जुकाम में इसके साथ 'जीर्ण प्रतिश्यायहर वटी' और 'प्रतिश्यायहर योग' का इस्तेमाल करने से तेज़ी से लाभ होता है.
इसका कोई साइड इफ़ेक्ट नहीं है, बिल्कुल सुरक्षित औषधि है.
आईये अब जान लेते हैं इसके घटक और निर्माण विधि
आयुर्वेदिक ग्रन्थ सिद्ध योग संग्रह के अनुसार इसकी निर्माण विधि कुछ इस तरह से है-
चित्रक मूल क्वाथ 4 लीटर, आँवले के रस या क्वाथ 4 लीटर, गिलोय का रस चार लीटर, दशमूल क्वाथ 5 लीटर, बड़ी हर्रे का चूर्ण 2.5 किलो, गुड़ चार किलो सभी को मिक्स कर इतना पकायें की हलवे की तरह गाढ़ा हो जाये. इसके बाद इसमें सोंठ, काली मिर्च, पीपल, दालचीनी, तेजपात और छोटी इलायची प्रत्येक 80 ग्राम और जौक्षार 20 गर्म लेकर बारीक चूर्ण बनाकर मिक्स कर रख लें. अब दुसरे दिन इसमें 320 ग्राम शहद और 640 ग्राम शहद मिक्स कर अच्छी तरह से मिलाकर काँच के बर्तन में रख लें. बस यही चित्रक हरीतकी है.
आज वैद्यजी की डायरी में बताने वाला हूँ अपेंडिक्स के आयुर्वेदिक उपचार के बारे में जिस से आप बिना ऑपरेशन के इस बीमारी से छुटकारा पा सकते हैं.
दोस्तों, आपने अक्सर सुना होगा कि फलां आदमी को अपेंडिक्स हो गया और इसका ऑपरेशन कराना पड़ा.
अगर आपको गैस की वजह से भी पेट दर्द है तो कई धूर्त सर्जन लोग पैसा बनाने के चक्कर में मरीज़ को डराकर ऑपरेशन कर देते हैं. जबकि गैस की वजह से होने वाला दर्द ऑपरेशन के बाद भी बना रहता है.
यदि आपने इस तरह की परेशानी झेली है या आपके जानने वाले के साथ ऐसा कुछ हुआ है तो कमेन्ट कर ज़रुर बताईयेगा.
अपेंडिक्स क्या है?
सभी के शरीर में यह होता है जो बड़ी आंत के निचे दाहिनी साइड अँगुली के जैसी लम्बी एक छोटी से पूंछ होती है जो अन्दर से खोखली होती जिसकी लम्बाई दो से चार इंच होती है. इसकी औसत लम्बाई 3.5 इंच होती है.
आंत के साथ पूंछ के जैसा जुड़ा होने से इसे 'आंत्रपुच्छ' कहा जाता है आयुर्वेद में. इसे ही अंगेज़ी में Appendix कहा जाता है.
शरीर में इस अंग का क्या काम है, मेडिकल साइंस अब तक पता नहीं लगा पाया है.
जब किसी वजह से इस अंग में यानी में अपेंडिक्स में सुजन हो जाये तभी इसकी जगह पर पेट में दर्द होता है और तब इसे Appendicitis कहा जाता है. इस स्थिति को आयुर्वेद में आंत्रपुच्छ शोथ, आंत्रपुच्छ प्रदाह, उन्दुकपुच्छशोथ, उपान्त्रशोथ जैसे नामों से जाना जाता है.
तो अब आप समझ गए होंगे कि अपेंडिक्स यानी आंत्रपुच्छ और Appendicitis यानि आंत्रपुच्छ प्रदाह में क्या अन्तर होता है.
आम बोलचाल में लोग Appendicitis को ही अपेंडिक्स बोल देते हैं.
Appendicitis यानि आंत्रपुच्छ शोथ के कारण
इसमें सुजन और संक्रमण होना ही मुख्य कारन है, कई लोगों का मानना है कि निम्बू, संतरा के साबुत बीज या भोजन का कोई अंश जब बड़ी बड़ी आंत से इसमें चला जाता है तब सड़कर वहां रोग की उत्त्पत्ति करता है.
Appendicitis यानि आंत्रपुच्छ शोथ के लक्षण या Symptoms
इसके लक्षणों की बात करुँ तो यह दर्द वाली बीमारी है. पेट में बहुत तेज़, न सहने वाला दर्द होना ही इसका प्रधान लक्षण होता है. पहले पेट के उपरी हिस्से या नाभि के एरिया में दर्द उठता है इसके बाद निचे दाहिने तरफ़ जाकर दर्द स्थिर हो जाता है. तेज़ दर्द के बाद उल्टी और बुखार जैसे लक्षण भी पाये जाते हैं.
सोनोग्राफी से इस रोग का सटीक निदान हो जाता है, वैसे अनुभवी वैद्यगण रोगी का पेट चेक कर भी बता देते हैं.
Appendicitis यानि आंत्रपुच्छ शोथ का आयुर्वेदिक उपचार
मैं आपको बता देना चाहूँगा कि अगर समस्या बहुत बढ़ी नहीं हो रोग की शुरुआत ही हो तो आयुर्वेदिक उपचार से यह रोग पूरी तरह से ठीक हो जाता है. सिर्फ़ इमरजेंसी में ही इसका ऑपरेशन करवाना चाहिए.
Appendicitis के आयुर्वेदिक उपचार के लिए मैं आपको अनुभवी वैद्यों की सफ़ल चिकित्सा का निचोड़ बता रहा हूँ जो इस बीमारी में शत प्रतिशत सफल है-
Appendicitis के लिए आयुर्वेदिक व्यवस्था
1) शंख वटी दो-दो गोली खाना के बाद गर्म पानी से
2) आंत्रपुच्छ शोथहर योग एक-एक पुड़िया सुबह-शाम शहद से
3) कुमार्यासव 2 स्पून + पुनर्नवारिष्ट 2 + 4 स्पून पानी मिक्स कर सुबह-शाम खाना के बाद
4) उदरशोथारी लेप - दर्द वाली जगह पर रोज़ दो-तीन बार लेप करने के लिए
5) सुगम चूर्ण या पंचसकार चूर्ण रात में सोने से पहले गर्म पानी से
आंत्रपुच्छ शोथहर योग और उदरशोथारी लेप अनुभूत योग है जो बना हुआ आपको मार्केट से नहीं मिलेगा. इन दोना का नुस्खा आपको बता रहा हूँ -
आंत्रपुच्छ शोथहर योग
अग्नितुंडी वटी 20 ग्राम + शुल्वार्जिनी वटी 20 ग्राम + पुनर्नवादि मंडूर 20 ग्राम लेकर पीसकर वरुनादि क्वाथ और घृतकुमारी की एक-एक भावना देकर सुखा कर रख लिया जाता है.
उदरशोथारी लेप
इसे बनाए के लिए चाहिए होता है - दशांग लेप 100 ग्राम + शुद्ध कुचला चूर्ण 10 ग्राम + आमा हल्दी चूर्ण 10 ग्राम. सभी को मिक्स कर रख लें.
इसकी प्रयोग विधि
दो स्पून इस चूर्ण को लेकर स्टील के बर्तन के डालकर इतना पानी मिक्स करें की पेस्ट जैसा हो जाये फिर इसको चूल्हे पर रखकर हलवे के जैसा उबाल कर पका लेना है. इसके बाद सुहाता-सुहाता दर्द वाली जगह पर लेप कर देना है. लेप करने के एक घंटे के बाद जब लेप सुख जाये तो हलके से लेप को छुड़ाकर उस जगह पर कोई तेल क्रीम या विषगर्भ तेल लगा लेना चाहिए.
यह दोनों योग बनाने में यदि किसी कोई समस्या हो तो आप मुझे मेसेज किजिए, मैं उपलब्ध करा दूंगा.
वैद्य जी की डायरी में आज जो प्रयोग मैं बताया हूँ इसे आप वैद्यगण आंत्रपुच्छ शोथ के अलावा बड़ी आंत की सुजन, लिवर-स्प्लीन की सुजन और अग्नाशयशोथ इत्यादि में भी प्रयोग कर सकते हैं.
जैसा कि इसके नाम से ही पता चलता है शक्ति या ताक़त देने वाली, चंद्रोदय सिद्ध मकरध्वज का ही दूसरा नाम है, वटी का मतलब गोली या टेबलेट
पिछली सदी से इसका काफ़ी यूज़ किया जा रहा है. मेरे आयुर्वेद के गुरु जी जो सौ साल की उम्र तक जिये वह भी इसे यूज़ करते थे और कमज़ोरी वाले सभी मरीज़ों को इसे खुद बनाकर देते थे.
शक्ति चन्द्रोदय वटी क्या है?
शक्ति चन्द्रोदय वटी अपने आप में एक बड़ा ही यूनिक फार्मूलेशन है जिसे पुराने वैद्य लोग बनाकर यूज़ करवाते थे, आज के टाइम में इसे इक्का-दुक्का कंपनी ही बनाती है. मार्केटिंग के इस ज़माने में कम्पनियां ज़्यादा प्रॉफिट वाले प्रोडक्ट ही बनाती है.
शक्ति चन्द्रोदय वटी के घटक या कम्पोजीशन
इसके कम्पोजीशन की बात करें तो इसे सिद्ध मकरध्वज, शुद्ध विषबीज, त्रिफला और शुद्ध विजया के मिश्रण से बनाया जाता है.
इसे कौन-कौन लोग यूज़ कर सकते हैं?
इसे 18 साल से की उम्र से लेकर 100 साल तक की उम्र के सभी लोग यूज़ कर सकते हैं. सिर्फ़ हाइपर एसिडिटी और हाई BP वाले लोगों को वैद्य जी की सलाह से ही इसे लेना चाहिए.
इसे कैसे यूज़ करें?
दो-दो गोली सुबह-शाम दूध या पानी से भोजन के लेना चाहिए
इसके क्या-क्या फायदे हैं?
शक्ति चन्द्रोदय वटी के फ़ायदे की बात करूँ तो इन रोगों में यूज़ करना चाहिए जैसे-
प्रमेह, स्वप्नदोष, धातु स्राव, हस्तमैथुन के कारण होने वाली कमज़ोरी, शीघ्रपतन, वीर्य का पतलापन, मानसिक नपुंसकता, स्नायुविक दुर्बलता यानी नर्वस Weakness, वृद्धावस्था जन्य दुर्बलता यानी बुढ़ापे की कमज़ोरी, मधुमेह जन्य दुर्बलता यानी डायबिटीज की वजह से होने वाली कमजोरी, लो BP की वजह से होने वाली कमज़ोरी, किसी भी बीमारी के बाद होने वाली कमजोरी, जनरल Weakness, सर दर्द, कमर दर्द, सर्दी-जुकाम और पाचन की कमजोरी इत्यादि.
आसान भाषा में कहूँ तो अगर आपको किसी भी तरह की मर्दाना कमज़ोरी है, धात की प्रॉब्लम है, टाइमिंग की प्रॉब्लम है, मास्टरबेशन की वजह से हुयी कमज़ोरी है तो इसका यूज़ कर सकते हैं.
ज़्यादा उम्र के लोग और शुगर के पेशेन्ट भी इसका इस्तेमाल कर कमज़ोरी दूर कर सकते हैं.
शक्ति चन्द्रोदय वटी का कोई नुकसान भी है?
इसका कोई साइड इफ़ेक्ट या नुकसान नहीं होता है. इसकी इसकी तासीर थोड़ी गर्म होती है तो अगर आप पित्त प्रकृति के या गर्म तासीर के हैं, हाई BP है और बदन में गर्मी की ज़्यादा प्रॉब्लम है तो इसे गिलोय सत्व के साथ, किसी ठंडी तासीर की चीज़ के साथ या फिर वैद्य जी की सलाह से ही इसका इस्तेमाल करें.
इसे लगातार तीन महिना या ज़्यादा टाइम तक भी यूज़ कर सकते हैं.
शक्ति चन्द्रोदय वटी ऑनलाइन ख़रीदें
यह एक क्लासिक आयुर्वेदिक मेडिसिन है जैसा कि इसके नाम से ही पता चलता है-
चन्द्रप्रभा वटी
चन्द्र का मतलब है चाँद और प्रभा का मतलब होता है चमक या ग्लो यानी मून ग्लो लाइट और वटी का मतलब होता है गोली या टेबलेट
शारंगधर संहिता और भैषज्य रत्नावली नाम की आयुर्वेदिक ग्रन्थ में इसका वर्णन मिलता है.
सबसे पहले जानते हैं इसके टॉप 10 बेनेफिट्स आसान भषा में और इसके बाद जानेंगे कि आयुर्वेदिक ग्रंथों में इसके क्या क्या फ़ायदे बताये गए हैं.
1) Urinary tract health
पेशाब की बीमारियों के लिए यह काफी पोपुलर है, यह न सिर्फ यूरिनरी सिस्टम को हेल्दी बनाती है बल्कि बार-बार पेशाब आना, पेशाब की जलन और यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन जैसी समस्या को दूर करती है.
2) Kidney Function
किडनी या गुर्दे को हेल्दी रखने में यह असरदार है. शरीर की गन्दगी को बाहर निकालती और किडनी फंक्शन को दुरुस्त रखती है.
3) Bladder Support
यह हर्बल फॉर्मूलेशन मूत्राशय के स्वास्थ्य को बनाए रखने और मूत्राशय से संबंधित समस्याओं को कम करने में सहायता करता है.
4) Reproductive Health
चंद्रप्रभा वटी का उपयोग अक्सर पुरुषों और महिलाओं दोनों में प्रजनन सम्बन्धी समस्याओं को दूर करने के लिए किया जाता है. यह लेडीज के पीरियड साइकिल को सुचारू करती है और पीरियड रिलेटेड प्रोब्लेम्स को दूर करने में मदद करती है. जबकि पुरुषों के वीर्य विकार, नाईट फॉल, धत गिरना जैसी समस्या को दूर करने में सहायक है.
5) Prostate Health
प्रोस्टेट ग्लैंड से जुड़ी सभी समस्याओं के लिए काफी पॉपुलर है, प्रोस्टेट को स्वस्थ रखने में यह असरदार है. बढ़े हुए प्रोस्टेट ग्लैंड को नार्मल करने के लिए इसका यूज़ करना ही चाहिए.
6) Digestive Support
ऐसा माना जाता है कि यह पाचन में सहायता करती है. चंद्रप्रभा वटी पाचन संबंधी परेशानी को दूर करने और उचित पोषक तत्व अवशोषण में सहायता कर सकती है.
7) Joint Health
इस हर्बल फॉर्मूलेशन का उपयोग अक्सर जॉइंट हेल्थ को सपोर्ट करने और जोड़ों के दर्द और सूजन को कम करने के लिए किया जाता है.
8) Energy And Vitality
माना जाता है कि चंद्रप्रभा वटी ऊर्जा के स्तर को बढ़ाती है और समग्र जीवनी शक्ति को बढ़ावा देती है.
9) Blood Sugar Balance
हेल्दी ब्लड शुगर लेवल बनाये रखने में भी चन्द्रप्रभा वटी सहायक है. इसलिए इसे डायबिटीज के मरीज़ भी यूज़ कर सकते हैं.
10) Detoxification
यह बॉडी से Toxins और अपशिष्ट पदार्थों को निकालती है यानी कि Detoxifying में मदद करती है.
तो यह थे चंद्रप्रभा वटी के टॉप 10 फ़ायदे.
आयुर्वेद में इसके क्या क्या फ़ायदे बताये गए हैं?
यह वात, पित्त और कफ़ तीनों दोषों को बैलेंस करती है तो यह हर तरह की सभी बीमारियों में असरदार है. आयुर्वेद में इसे योगवाही भी कहा गया है. योगवाही का मतलब यह होता है कि इसे किसी भी दवा या चीज़ के साथ मिलाकर खाने से यह उस चीज़ का पॉवर बढ़ा देती है.
शारंगधर संहिता के मूल श्लोक को यदि आप पढ़ें तो यह इन सब बीमारियों को दूर करती है -
प्रमेह यानी मधुमेह या डायबिटीज
पेशाब की तकलीफ, पेशाब का इन्फेक्शन, पेशाब की रुकावट, कब्ज़, गैस-पेट फूलना, पेट दर्द, ट्यूमर, Fibroid, सिस्ट, कैंसर, हर्निया, एनीमिया, जौंडिस, लिवर सिरोसिस, कमर दर्द, दमा या अस्थमा, सर्दी जुकाम, एक्जिमा, बवासीर, खुजली, तिल्ली बढ़ना, फिशर, दांत की बीमारी, आँख की बीमारी, महिलाओं की पीरियड प्रॉब्लम, पुरुषों का वीर्य विकार, शीघ्रपतन, स्वप्नदोष, धात, कमजोरी, प्रोस्टेट, पाचन शक्ति की कमजोरी और अरुचि यानी खाने की इच्छा नहीं होना इत्यादि.
वैद्यगण इसे किडनी स्टोन, किडनी फेलियर, Chronic Kidney Disorder, Proteinurea, GFR और fallopian tube की ब्लॉकेज इत्यादि में भी इसका यूज़ करवाते हैं.
इसे कब और कितना यूज़ करें?
इसे आप रोज़ दो से 6 गोली तक यूज़ कर सकते हैं. आपकी प्रॉब्लम और बॉडी कंडीशन के अनुसार ही इसका डोज़ लेना चाहिए. इसका नार्मल डोज़ दो गोली सुबह-शाम है. इसे लम्बे समय तक भी यूज़ कर सकते हैं. प्रोस्टेट जैसी समस्या में इसे कम से कम 6 महीने तक भी लेना पड़ सकता है.
अंग्रेज़ी दवा ले रहे हैं तो इसका यूज़ कर सकते हैं?
हाँ बिल्कुल इसका यूज़ कर सकते हैं, अंग्रेजी दवा और इसके बीच में कम से कम 30 मिनट का गैप रखें.
क्या होम्योपैथिक दवा लेते हुए इसका यूज़ कर सकते हैं?
हाँ, बिल्कुल यूज़ कर सकते हैं. होमियो दवा के साथ यह किसी तरह की प्रतिक्रिया नहीं करती है.
हमेशा इसे स्थानीय वैद्य जी की सलाह के अनुसार ही लेना चाहिए. कम डोज़ लेने से वांछित लाभ नहीं मिलेगा और ज़्यादा डोज़ होने से पेट अपसेट भी हो सकता है.
चन्द्रप्रभा वटी के साइड इफेक्ट्स
यह ऐसी हर्बल दवा है जो सदियों से यूज़ की जा रही है जो पूरी तरह से सुरक्षित है और इसका कोई साइड इफेक्ट्स नहीं है. इसमें गुग्गुल, शिलाजीत, लौह भस्म, स्वर्णमाक्षिक भस्म जैसी चीज़ मिली होती है, यदि आपको इनमे से किसी चीज़ एलर्जी है तो इसका ध्यान रखते हुए यूज़ करना चाहिए.
आवश्यक मात्रा से ज़्यादा डोज़ लेने से पेट की गड़बड़ी हो सकती है.
सबसे बेस्ट चन्द्रप्रभा वटी कौन सी है?
चूँकि मुझे यह दवा बनाने का काफ़ी अनुभव रहा है तो मैं कह सकता हूँ कि जो दिखने में पूरी तरह से काली टेबलेट हो तो वह बेस्ट है. बेस्ट वाली चन्द्रप्रभा वटी के 50 ग्राम के पैक की क़ीमत है 275 रुपया आज की तारीख में, जिसे ऑनलाइन ख़रीदने का लिंक डिस्क्रिप्शन में दिया गया है.
और अब अंत में जान लेते हैं चन्द्रप्रभा वटी के घटक यानि कम्पोजीशन और निर्माण विधि के बारे में -
इसके लिए आपको ये सब चाहिए होगा -
कपूरकचरी, बच, नागरमोथा, चिरायता, गिलोय, देवदारु, हल्दी, अतीस, दारू-हल्दी, चित्रकमूल छाल, धनियाँ, बड़ी हर्रे, बहेड़ा, आंवला, चव्य, वायविडंग, गजपीपल, छोटी पीपल, सोंठ, काली मिर्च, स्वर्णमाक्षिक भस्म, सज्जी खार, यवक्षार, सेंधा नमक, सोंचर नमक, सांभर नमक, छोटी ईलायची के बीज, कबाबचीनी, गोखुरू और सफ़ेद चन्दन प्रत्येक 5-5 ग्राम
निशोथ, दन्तिमूल, तेज़पात, दालचीनी, बड़ी इलायची, और बंशलोचन प्रत्येक 20-20 ग्राम
लौह भस्म 40 ग्राम, मिश्री 80 ग्राम, शुद्ध शिलाजीत और शुद्ध गुगुल प्रत्येक 160 ग्राम.
सभी जड़ी बूटियों का बारीक कपड़छन चूर्ण बना लें और गुगुल को इमामदस्ते में कूटें जब गुगुल नर्म हो जाये तो शिलाजीत, भस्म और जड़ी-बूटियों का चूर्ण मिला कर गिलोय के रस में तिन दिनों तक खरल में डाल कर मर्दन करना चाहिए. और इसके बाद 500 मिलीग्राम की गोलियां बना कर सुखा कर रख लें.
चन्द्रप्रभा वटी के बारे में कुछ और जानना चाहते हैं तो कमेंट कर पूछ सकते हैं.
विडियो में यहाँ देखिये
अगर आपकी हड्डियों में दर्द रहता है तो यह पता करना बहुत ज़रूरी है कि यह किस कारण से है. क्यूंकि हड्डियों में दर्द कई कारणों से हो सकता है, जिसमें अर्थराइटिस, ऑस्टियोपोरोसिस और एवैस्कुलर नेक्रोसिस जैसे कारण शामिल हैं लेकिन आज भी बहुत कम लोग एवैस्कुलर नेक्रोसिस (Avascular Necrosis) के बारे में जानते हैं.
क्या है एवैस्कुलर नेक्रोसिस (Avascular-Necrosis)?
एवैस्कुलर नेक्रोसिस (Avascular Necrosis) हड्डियों में होने वाली ही एक समस्या है जिसमें बोन टिशू यानी हड्डियों के ऊतक मरने लगते हैं. सीधी भाषा में कहा जाए तो हड्डियां गलने लगती हैं। यह बीमारी होने का कारण रक्त प्रवाह में बाधा होने के कारण टिशू तक पर्याप्त मात्रा में खून का नहीं पहुंच पाना है। और यदि किसी भी ऊतक को खून उचित मात्रा में नहीं मिलेगा तो वहाँ पोषण की कमी होगी जिसके चलते ये ऊतक मरने लगते हैं। इस बीमारी को ऑस्टियोनेक्रोसिस के नाम से भी जाना जाता है। सबसे अधिक यह समस्या कूल्हे की हड्डी में होती है जिसके कारण फेमर का गोल हिस्सा जो कूल्हे का जोड़ बनता है वो गलने लगता है। वैसे तो ये समस्या किसी भी उम्र में हो सकती है लेकिन मुख्य तौर पर 30 से 60 वर्ष के बीच के आयु वर्ग वाले लोग इससे ज्यादा पीड़ित होते है।
एवैस्कुलर नेक्रोसिस के कारण
शराब व तम्बाकू का बहुत अधिक सेवन एवीएन के पीछे के सबसे बड़े कारण के रूप में जाने जाते हैं। इसलिए सबसे जरुरी है की आप इन चीज़ों के सेवन से दुरी बनाये रखें। क्योंकि शराब व तम्बाकू से शरीर में बहुत सी वसा की छोटी छोटी बूंदें इधर से उधर बहती रहती हैं और समय के साथ ये छोटी रक्त वाहिनियों में जमा हो कर रक्त के प्रवाह को बंद कर देती हैं। और पोषण ना मिलने से आपकी हड्डियां या जोड़ गलने लगते हैं।
इसके अलावा एवीएन का दुसरा बड़ा कारण है स्टेरॉइड्स का अनियंत्रित व गलत इस्तेमाल। वजन बढ़ने, कम करने के लिए या फिर कद बढ़ने के लिए आज कल बहुत से उत्पादों में बहुत अधिक मात्रा में बिना बताये स्टेरॉइड्स मिला दिए जाते हैं। स्टेरॉइड्स के इसी गलत इस्तेमाल से हड्डियों पर गलत प्रभाव पड़ता है और हड्डियां गलने लगती हैं।
एवैस्कुलर नेक्रोसिस के लक्षण या Symptoms
अगर इस समस्या के लक्षणों की बात की जाए तो ये जरूरी नहीं कि व्यक्ति के अंदर शुरुआती दौर में इस बीमारी के लक्षण दिखाई दें। ज़्यादातर स्थिति अधिक खराब होने पर इसके लक्षण दिखाई देते हैं, क्योंकि हड्डी एक साथ गलने की बजाय धीरे धीरे गलती है। एक सीमा तक तो शरीर दर्द व अन्य लक्षणों को सहन करता है। लेकिन जब हड्डी एक सीमा से अधिक खराब हो जाती है तो अचानक सभी लक्षण एक साथ आने लगते हैं।
अगर ये समस्या आपके कूल्हे से जुड़ी हुई है तो उस स्थिति में आपके जांघ और कूल्हे की हड्डियों में भयंकर दर्द होता है। चलने में लचक होने लगती है, सोते जागते लगातार दर्द बना रहता है। कूल्हे के अलावा ये बीमारी आपके कंधे, घुटने, हाथ और पैरों को भी प्रभावित कर सकती है। इनमें से किसी भी प्रकार के लक्षण दिखाई देने और जोड़ों में लगातार दर्द रहने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए.
एवैस्कुलर नेक्रोसिस का आयुर्वेदिक उपचार
यदि आप AVN की समस्या से जूझ रहें हैं और जोड़ बदलवाने की समस्या का कोई विकल्प ढूंढ रहे हैं तो आयुर्वेद आपके लिए वरदान साबित हो सकता है, क्यूंकि आयुर्वेद के उपचार द्वारा हड्डी को जाने वाली ब्लड सप्लाई को सुनिश्चित किया जा सकता है इसलिए न केवल हड्डी का गलना रुक जाता है बल्कि जो नए और आरंभिक केस होते हैं वहाँ पर व्याधि के रुकने के साथ साथ हड्डी के उत्तक दुबारा भी बनने लगते हैं। यानी की एवीएन के ग्रेड में भी सुधार होता है।
संक्षेपतः क्रिया योगो
निदान परिवर्जनम।।
का ध्यान रखते हुए सबसे पहले रोग के कारणों का त्याग करना होगा, परहेज़ करना होगा.
AVN की आयुर्वेदिक औषधि व्यवस्था
यहाँ मैं एवैस्कुलर नेक्रोसिस के लिए कुछ आयुर्वेदिक योग बता रहा हूँ जिसे वैद्यगण अपने रोगीयों पर प्रयोग कर यश अर्जित कर सकते हैं -
व्यवस्था पत्र -1
1) वृहत वातचिन्तामणि रस 1 ग्राम + नवरत्न कल्पामृत रस 3 ग्राम + प्रवाल पंचामृत रस मुक्त युक्त 10 ग्राम + गिलोय सत्व 10 ग्राम. सभी को खरल कर 60 पुड़िया बना लें. एक-एक पुडिया रोज़ तीन बार शहद से लेना है.
2) चन्द्रप्रभा वटी 2 गोली+ योगराज गुग्गुल 2 गोली + शिलाजित्वादि वटी 2 गोली मिलाकर रोज़ तीन बार गुनगुने पानी से
3) अश्वगन्धारिष्ट 2 स्पून + दशमूलारिष्ट 2 स्पून बराबर मात्रा में पानी मिलाकर भोजन के बाद रोज़ दो बार
व्यवस्था पत्र -2
1) योगेन्द्र रस 125 mg + शिलाजित्वादि लौह 125 mg + प्रवाल पंचामृत रस मुक्त युक्त 250 mg + गिलोय सत्व 250 mg + असगंध चूर्ण 1 ग्राम = 1 मात्रा, यह एक डोज़ है, ऐसी एक-एक डोज़ डेली 3 बार शहद से.
2) योगराज गुग्गुल 2-2 गोली रोज़ दो बार गुनगुने पानी से
3) दशमूलारिष्ट 2 स्पून + अश्वगंधारिष्ट 2 स्पून बराबर मात्रा में पानी मिलाकर भोजन के बाद
इन सब के साथ में जीवन्त्यादि घृत, स्वर्ण बसन्त मालती, रुदन्ति कैप्सूल जैसी औषधि भी रोग और रोगी की दशा के अनुसार ऐड करना चाहिए.
तो इस तरह से औषधि सेवन से इस रोग में लाभ हो जाता है, समस्या बढ़ी हुयी हो तो पंचकर्मा भी आवश्यक होता है.
अपने प्रिय पाठकों को बताना चाहूँगा कि यह सब दवा खुद से यूज़ न करें, स्थानीय वैद्य जी की देख रेख में ही सेवन करें. ख़ुद से यूज़ करने के लिए आप मेरा अनुभूत योग बाजीकरण चूर्ण और वातरोगहर वटी गोल्ड का सेवन कर सकते हैं, जिसका लिंक दिया गया है.
हरताल तेज़ी से असर करने वाली औषधि है जिसे हरिताल भी कहा जाता है. अंग्रेजी में इसे Arsenic Tri Oxide के नाम से जाना जाता है.
हरताल तो तरह का होता है. पिण्ड हरताल और तबकिया हरताल
तबकिया हरताल को पत्र हरताल और वर्कि हरताल जैसे नामों से भी जाना जाता है. इसे कहीं-कहीं हड़ताल भी कहा जाता है.
इससे मिलते जुलते नाम वाली दवा गोदन्ती हरताल या हरताल गोदन्ती अलग चीज़ है. हरताल गोदन्ती सफ़ेद रंग की होती है जबकि यह वाली हरताल या तबकिया हरताल पिली सुनहरे रंग की होती है.
हरताल भस्म जो है गठिया, कुष्ठ, सिफलिस, हर्प्स, चर्मरोग जैसे अनेकों रोगों को दूर करती है.
हरताल भस्म निर्माण विधि
इसकी भस्म बनाकर ही प्रयोग किया जाता है, ऐसे यह ज़हरीली होती है. भस्म बनाने के लिए सोने के जैसी पिली, भरी, चमकदार और छोटे-छोटे साइज़ वाली वर्कि हरताल ही बेस्ट होती है. भस्म बनाने से पहले इसका शोधन करना होता है.
हरताल शोधन विधि
हरताल को शोधित करने के लिए सबसे पहले इसे चने के साइज़ के छोटे-छोटे टुकड़े कर मोटे सूती कपड़े में बांधकर मिट्टी की हांडी में पेठे का रस डालने के बाद इसे उसमे लटकाकर मतलब डुबाये हुए छह घंटा तक पकाया जाता है. ऐसे अरेंजमेंट को ही आयुर्वेद में 'दोला यंत्र' कहा जाता है. इसके बाद इसे निकालकर काँच के बर्तन में रखकर, इसमें इतना निम्बू कर रस डाला जाता है की यह डूब जाये. इसी तरह से रोज़ निम्बू का रस बदला जाता है सात दिनों तक. इसके बाद हरताल के टुकड़ों को पानी से धोकर सुखा लिया जाता है. तो इस तरह से हरताल शुद्ध हो जाता है. यह शोधन विधि 'सिद्ध योग संग्रह' में बतायी गयी है.
हरताल भस्म निर्माण विधि
जैसा कि आप सभी जानते हैं भस्म बनाना एक जटिल प्रक्रिया है. हरताल की भस्म बनाने से पहले शोधित हरताल को पलाश के जड़ के क्वाथ की तीन भावना देनी होती है. इसके लिए पलाश के जड़ का क्वाथ शहद के इतना गाढ़ा बनाना होता है.
पलाश के जड़ की तीन भावना देने के बाद इसकी टिकिया या गोला बनाकर मिट्टी के छोटे बर्तन में डालकर कपड़मिट्टी कर सुखाकर गोबर के कन्डो की अग्नि दी जाती है. इसी तरह से 12 पुट अग्नि देने यानि बारह बार अग्नि देने से हरताल भस्म तैयार हो जाती है.
वैसे यह बना बनाया मार्किट में मिल जाता है, इसे ऑनलाइन ख़रीदने का लिंक निचे दिया गया है.
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हरताल भस्म की मात्रा और सेवन विधि
30 मिलीग्राम से 60 मिलीग्राम तक शहद के साथ या रोगानुसार उचित अनुपान से. इसे स्थानीय वैद्य जी की सलाह से ही सेवन करें नहीं तो सीरियस नुकसान हो सकता है.
हरताल भस्म के गुण
यह तासीर में बहुत गर्म होती है. यह कटु एवम अग्नि-दीपक होती है. कफ़ और पित्त दोष को बैलेंस करती है.
हरताल भस्म के फ़ायदे
यह वातरक्त, वातरोग, कुष्ठ व्याधि, उपदंश यानि गर्मी की बीमारी, चर्म रोग, मलेरिया, उर्ध्वश्वास, मृगी, सन्निपात, भगंदर जैसे रोगों का नाश करती है.
आईये अब आसान भाषा में जानते हैं कि किन-किन बीमारीओं में इसका सेवन करना चाहिए -
वातरक्त और वात रोगों में
जब रोगी शरीर हिला भी न सके, शरीर जकड गया हो, हाथ-पैर की ऊँगली टेढ़ी हो गयी हो, हड्डियाँ मूड़ गयी हों, हड्डी में दर्द, नसों में खिंचाव हो, जोड़-जोड़ जकड़ गया हो, शून्यता आ गयी हो, यानी की छूने पर सेन्स नहीं होता हो, स्किन फटी-फटी हो, सुजन हो तो ऐसी स्थिति में रोगी को इसके सेवन से लाभ होता है.
ऐसे रोगी को घी के साथ इसका सेवन करना चाहिए और ऊपर से ताज़ी गिलोय का रस पीना चाहिए.
सिफलिस के नए पुराने सभी स्टेज में इसके सेवन से लाभ होता है.
कुष्ठ रोग में भी विधि पूर्वक इसका सेवन कराया जाता है.
अपस्मार यानि मृगी के रोग में वैद्यगण इसे ब्रह्मी के साथ सेवन करवाते हैं.
एक बार मैं फिर से आपको बता दूँ कि इस कभी भी खुद से यूज़ न करें, वैद्य जी देख रेख में उनकी सलाह से ही इसका सेवन करना चाहिए.
नारसिंह रसायन का वर्णन आयुर्वेदिक ग्रन्थ 'अष्टांग ह्रदय' में मिलता है, जिसके अनुसार इसका सेवन करने वाले को सिंह के समान शक्ति मिलती है, सेक्सुअल पॉवर बढ़ जाता है और अनेकों रोग दूर होते हैं.
जैसा कि संस्कृत श्लोक देख सकते हैं, इसका मतलब आसान भाषा में आपको समझाता हूँ -
नारसिंह रसायन का त्रिदोष पर असर होता है यानी यह वात, पित्त और कफ तीनो को शान्त करता है.
नारसिंह रसायन के फ़ायदे
नारसिंह रसायन को पंचकर्मा के 'स्नेहन कर्म' के लिए प्रमुखता से यूज़ किया जाता है.
इसके मुख्य फ़ायदों की बात करूँ तो इसे वेट गेन करने, मसल्स को मज़बूत बनाने, बुद्धि बढ़ाने, थकावट दूर करने के लिए प्रयोग किया जाता है.
इसके सेवन से बाल तो बढ़ते ही हैं, पुरुषों की दाढ़ी-मूँछ बढ़ाने में भी लाभकारी है.
जिम करने वालों को इसके सेवन से मसल्स बनाने में सहायता मिलती है.
शीघ्रपतन में भी यह लाभकारी है.
नारसिंह रसायन की मात्रा और सेवन विधि
हाफ से एक टी स्पून तक सुबह-शाम ख़ाली पेट या स्थानीय वैद्य जी सलाह के अनुसार ही इसका सेवन करना चाहिए
ऑनलाइन आप इसे ख़रीद सकते हैं, जिसका लिंक दिया गया है.
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इसे भी जानिए -
जिनका भी पित्त पत्थरी के लिए ऑपरेशन हो चूका है उनको आज या कल अधिकतर लोगों को जीवनभर के लिए पाचन की समस्या हो सकती है, या फिर यह कहिये की समस्या हो ही जाती है. क्यूंकि ऑपरेशन कर पूरा पित्ताशय या गाल ब्लैडर ही निकाल दिया जाता है, जिसके कारण पाचक पित्त का स्राव नहीं होता है.
पित्त पत्थरी होने के कारन
आजकल पित्त पत्थरी के रोगी बड़ी संख्या में हैं और निरन्तर बढ़ते ही जा रहे हैं तो सवाल यह उठता है कि आख़िर वह कौन सी वजह है जो इस रोग को तेज़ी से बढ़ा रही है. इसके कारणों को दो तरह से देखा जा सकता है.
1) सहायक कारन 2) मुख्य कारन
1) सहायक कारन यह सब होते हैं जैसे -
आयु- 40 साल से ऊपर के लोगों को गालस्टोन की सम्भावना अधीक होती है.
जेंडर- हालाँकि गालस्टोन किसी को भी हो सकता है पर महिलायें इस बीमारी की चपेट में ज़्यादा आती हैं
आदत- लेज़ी लाइफ़ स्टाइल और बैठे-बैठे काम करने वालों में इस बीमारी की सम्भावना अधीक होती है. इसके अलावा और भी कुछ स्थितियाँ होती हैं जिसमे यह रोग पनप सकता है जैसे- गर्भावस्था, हार्ट और लंग्स डिजीज, मोटापा, जेनेटिक फैक्टर, स्किन कलर और मौसम का प्रभाव इत्यादि
5 F क्या होता है?
चिकित्सकगण सहायक कारणों को 5F के नाम से याद करते हैं- 1) फैटी, 2) फिमेल, 3) फोर्टी, 4) फर्टायल, 5) फेयर
फेयर से यहाँ यह समझिये कि जिनका रंग साफ़ होता है उनको पित्त पत्थरी की सम्भावना अधीक होती है.
पित्त पत्थरी के मुख्य कारन
पित्ताशय की पत्थरी के मुख्य कारणों की बात करें तो संक्रमण(इन्फेक्शन), पित्त का अवरोध और कोलेस्ट्रॉल का ज़्यादा बढ़ना मुख्य कारन मने जाते हैं.
संक्रमण(इन्फेक्शन) के कारन -
मिक्स या इन्फेक्टेड गालस्टोन पित्ताशय की सुजन की वजह से बनती है, सुजन के कारन पित्त द्योतक एवम पित्त लवण में कोलेस्ट्रॉल का रासायनिक संगठन ढीला पड़ जाता है जिस से वे आसानी से टूट जाते हैं, जब पित्त लवण कोलेस्ट्रॉल को अलग कर देता है तब यह अवक्षेपित हो जाता है. संक्रमित पित्ताशय पित्त लवण को तेज़ी से अवशोषित कर लेता है लेकिन कोलेस्ट्रॉल बहुत धीरे-धीरे अवशोषित होता है. इसी कारन से कोलेस्ट्रॉल की अवक्षेपित होने की प्रवृति हो जाती है और जब कोलेस्ट्रॉल का केन्द्रक बन जाता है तब बिलीरुबिन इसके चारों तरफ जमकर मिश्रित पत्थरी बनाने लगती है.
अवरोध के कारन-
40 साल से अधीक उम्र की महिलायें, मोटी और जिनको कई बार डिलीवरी हुयी हो उनमे अधिकतर अवरोध के कारन ही पित्त पत्थरी बनती है.
पित्त एवम रक्त कोलेस्ट्रॉल की अधीक मात्रा के कारन -
इसमें पित्त के पतन के कारण प्रतिक्रिया स्वरुप पित्त गाढ़ा होने लगता है, कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बढ़ जाती है और पित्त लवण का संग्रह होने लगता है. जिसके फलस्वरुप पित्ताशय में अलग होने लगता है और पत्थरी बनना शुरू हो जाता है.
यह सब तो हो गए पित्त पत्थरी या गालस्टोन के कारन, आईये अब जानते हैं गालस्टोन के प्रकार पर चर्चा करते हैं.
पित्त पत्थरी या गालस्टोन के प्रकार
पत्थरी को आयुर्वेद में अश्मरी कहा जाता है और पित्त पत्थरी या पित्ताशय की पत्थरी को पित्ताश्मरी के नाम से जाना जाता है.
पित्त पत्थरी में कोलेस्ट्रॉल, बिलीरूबीन और कैल्शियम यही तीन मुख्य घटक होते हैं और इसी के आधार पर गालस्टोन के तीन प्रकार हैं.
1) कोलेस्ट्रॉल अश्मरी, 2) रंजक अश्मरी और 3) मिश्रित अश्मरी
कोलेस्ट्रॉल अश्मरी
कोलेस्ट्रॉल का चयापचय ठीक तरह से न हो पाने के कारन यह पत्थरी बनती है. यह सफ़ेद रंग की बड़े आकार की अण्डाकार, प्रायः संख्या में एक, हलकी चमकती हुयी होती है. पित्ताशय में अधीक पित्त, कोलेस्ट्रॉल और अवरोध रहने से ही कोलेस्ट्रॉल वाली पत्थरी बनती है. यह शान्त होती है और सामान्यतः इसके कोई लक्षण दिखाई नहीं देते हैं. परन्तु जब यह पित्ताशय की गर्दन में अटक जाये तब परेशानी पैदा करती है.
रन्जक अश्मरी
यह संख्या में एक या अनेक, बहुत छोटी, भुरभुरी सी और बिलरूबीन से युक्त रहती है. इसमें कोलेस्ट्रॉल नहीं होता है. चयापचय में दोष होने से भी इसकी उत्पत्ति होती है.
मिश्रित अश्मरी
यह कोलेस्ट्रॉल, बिलरूबीन और कैल्शियम की बनी होती है. इसमें 80 प्रतिशत तक पित्त रहता है. इस तरह की पत्थरी का रंग पिला और भूरा होता है. एक पत्थरी रहने पर इसका तल चमकीला होता है.
पित्त पत्थरी या गालस्टोन के लक्षण
पत्थरी के स्थान और परिस्थिति के अनुसार रोग के लक्षणों में भिन्नता मिलती है. जब पत्थरी पित्ताशय में रहती है तो उस समय रोगी को इसका कुछ भी अहसास नहीं होता है कि उसको गालस्टोन है या पित्ताशय में पत्थरी है.
जब तक तेज़ पेट दर्द नहीं होता कुछ पता नहीं चलता है. कई बार लोगों को किसी दुसरे रोग के जाँच के दौरान अल्ट्रासाउंड कराने पर इसका पता चलता है.
जब पत्थरी पित्तकोष नलिका या साधारण पित्त नलिका अटक जाती है तब बहुत तेज़ दर्द होता है. यह दर्द लहर के रूप में बढ़ता हुआ दायीं तरफ़ बगल में कंधे तक पहुँचता है. पित्त की पत्थरी का दर्द निचे की तरह कभी नहीं जाता है. आज के समय में सोनोग्राफी जैसी तकनीक से इसका सटीक निदान होता है.
पित्त पत्थरी या गालस्टोन का उपचार
अगर किसी को पित्त की पत्थरी का पता चला हो और कोई इमरजेंसी नहीं हो तो इसके लिए सबसे पहले आयुर्वेदिक उपचार लेना चाहिए. दो-तीन महीने में साधारण गालस्टोन निकल जाती है. औषधि से यदि कोई भी लाभ न हो तभी अन्तिम उपाय के रूप में ऑपरेशन करवाना चाहिए.
आयुर्वेदिक औषधि में मैं अपने रोगियों को मेरी अनुभूत औषधि 'पित्ताश्मरी नाशक योग' सेवन करने की सलाह देता हूँ, जिसका लिंक दिया गया है.
इसके साथ 'एक्स्ट्रा वर्जिन ओलिव आयल' भी निम्बू के रस के साथ प्रचुर मात्रा में रोगानुसार लेना चाहिए.
जैसा कि इसके नाम से ही पता चलता है यह घृत या घी से बनी हुयी औषधि है जिसे मुख्य रूप से स्नेहकर्म के लिए प्रयोग किया जाता है.
इन्दुकान्त घृत के घटक
पूति करंज छाल 100 ग्राम, देवदार 100 ग्राम, दशमूल 100 ग्राम, गाय का दूध 1200 मिली लीटर और गाय का घी 1200 ग्राम, साथ में प्रक्षेप द्रव्य के रूप में पिप्पली, चव्य, चित्रक, सोंठ, पीपरामूल और सेंधा नमक प्रत्येक 200 ग्राम लेना होता है.
इन्दुकान्त घृत निर्माण विधि
घृत पाक निर्माण विधि के अनुसार सभी क्वाथ द्रव्य को मोटा-मोटा कूटकर 20 लीटर पानी में क्वाथ बनाया जाता है, जब 5 लीटर पानी शेष बचता है तो इसे छानकर घी, गाय का दूध और प्रक्षेप द्रव्य का कल्क मिलाकर घृत सिद्ध कर फिर से छानकर रख लिया जाता है. यही इन्दुकान्त घृत और इन्दुकान्त घृतम के नाम से जानी जाती है.
इन्दुकान्त घृत की मात्रा और सेवन विधि
आधा से एक चम्मच भोजन से पहले दो से तीन बार. इसकी सेवन विधि और आवश्यक मात्रा रोगी के अनुसार ही निर्धारित की जाती है पंचकर्मा और स्नेहन कर्म इत्यादि के लिए
इन्दुकान्त घृत के फ़ायदे
यह पेट दर्द, पेप्टिक अलसर, जीर्ण ज्वर, कमज़ोरी, थकान और पेट के रोगों में प्रयोग की जाती है.
पेप्टिक अल्सर में वैद्यगण इसे कल्प विधान से भी प्रयोग कराते हैं.
इसे स्थानीय वैद्य जी की सलाह से देख रेख में ही यूज़ करना चाहिए.
इसे आप अमेज़न से ऑनलाइन ख़रीद सकते हैं, जिसका लिंक निचे दिया गया है -
आज मैं आयुर्वेद में वर्णित कुछ चुनिन्दा गर्भ निरोधक प्रयोग बता रहा हूँ जिसके सेवन से गर्भ की स्थिति से बचा जा सकता है. यह सारे प्रयोग विशेष रूप से महिलाओं के लिए है, तो आईये सबकुछ विस्तार से जानते हैं-
1) पीपल, वयविडंग और भुना सुहागा सभी बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बनाकर रख लें. इस चूर्ण को मासिकधर्म के समय चार दिन तक ठन्डे पानी से सेवन करने से गर्भ स्थिति की कोई सम्भावना नहीं रहती है.
2) आँवला, रसौत और हरीतकी समभाग लेकर इसका चूर्ण बनाकर तीन से दस ग्राम तक मासिक धर्म के समय सेवन करते रहने से गर्भधारण नहीं होता.
3) मासिक धर्म के बाद तीन दिनों तक सात चमेली के फुल जो स्त्री प्रतिदिन सेवन करती है उसे एक वर्ष के लिए गर्भ नहीं रहता. इसी प्रकार से प्रति वर्ष करते रहने से स्त्री गर्भधारण से बच सकती है.
4) नीम की एक निम्बौली को चबाकर ऊपर से गर्म पानी या मक्खन का सेवन करने से स्त्री को एक वर्ष तक गर्भ की स्थिति नहीं रहती.
5) यदि स्त्री एक महीने तक एक लौंग प्रतिदिन निगलती रहे तो गर्भधारण नहीं होता है. यदि किन्ही को स्थायी गर्निभनिरोध की तैयार औषधि चाहिए तो हमसे संपर्क कर सकते हैं.
पुत्र प्राप्ति( बेटा पैदा करने वाली) की सहायक औषधि
गुल्गुलुतिक्तकम क्वाथ को दक्षिण भारत के वैद्यगण ही अधीक प्रयोग में लाते हैं. इसका रिजल्ट भी अच्छा है, आशातीत लाभ मिलता है. केरला आयुर्वेदा, कोट्टक्कल आयुर्वेद जैसी कंपनियों का यह मिल जाता है. इसे गुल्गुलूतिक्तकम कषाय के नाम से भी जाना जाता है.
आईये सबसे पहले एक नज़र डालते हैं इसके कम्पोजीशन पर
आयुर्वेदिक ग्रन्थ अष्टांग हृदयम में इसे गुल्गुलूतिक्तकम घृत के रूप में बताया गया है.
नीम, पटोल, व्याघ्री, गुडूची, वासा, पाठा, विडंग, सूरदारू, गजपकुल्य, यवक्षार, सज्जीक्षार, नागरमोथा, हल्दी, मिश्रेया, चव्य, कुठ, तेजोवती, काली मिर्च, वत्सका, दिप्याका, अग्नि, रोहिणी, अरुश्करा, बच, पिपरामूल, युक्ता, मंजीठ, अतीस, विशानी, यवानी और शुद्ध गुग्गुल के मिश्रण से बनाया जाता है.
जैसा कि आप समझ सकते हैं कि यह क्वाथ है तो यह सिरप या लिक्विड फॉर्म में होती है. कुछ कम्पनियां इसे टेबलेट फॉर्म में भी बनाती हैं. मूल ग्रन्थ में घृत की ही कल्पना की गयी है, यह घी फॉर्म में भी मिलता है, सभी के समान लाभ हैं.
गुल्गुलुतिक्तकम क्वाथ के गुण या प्रॉपर्टीज
इसके गुणों की बात करें तो यह वात और कफ़ नाशक है. वात और कफ़ दोष को बैलेंस करती है त्वचा और अस्थि लेवल तक. तासीर में गर्म है.
गुल्गुलुतिक्तकम क्वाथ के फ़ायदे
गठिया, वात, जोड़ों का दर्द, सुजन, रुमाटायद अर्थराइटिस इत्यादि में सफ़लतापूर्वक प्रयोग किया जाता है.
जल्दी न भरने वाले ज़ख्म, चकत्ते, साइनस में भी लाभकारी है.
हर तरह के चर्मरोगों, त्वचा विकारों जैसे फोड़े-फुन्सी, एक्जिमा, सोरायसिस इत्यादि में भी वैद्यगण इसका सेवन कराते हैं.
मोटापा, हृदय रोग, हाई कोलेस्ट्रॉल, हाई LDL इत्यादि में भी लाभकारी है.
बस कुल मिलाकर समझ लीजिये कि जहाँ भी वात और कफ़ दोष की वृद्धि हो इसका प्रयोग किया जाता है.
गुल्गुलुतिक्तकम क्वाथ की मात्रा और सेवन विधि
5 से 10 ML सुबह-शाम गुनगुने पानी में मिक्स कर लेना चाहिए. यदि इसे टेबलेट फॉर्म में लेना हो तो 2 टेबलेट सुबह-शाम लें या फिर स्थानीय वैद्य जी की सलाह के अनुसार ही लें.
पित्त प्रकृति वाले व्यक्ति या फिर जिनका पित्त दोष भी बढ़ा हो, गैस्ट्रिक की समस्या हो तो सावधानीपूर्वक वैद्य जी देख रेख में ही लें.
यदि आप पहले से होम्योपैथिक दवा, या अंग्रेज़ी दवा भी लेते हैं तो भी इसका सेवन कर सकते हैं, टाइम गैप देकर.
गुल्गुलुतिक्तकम क्वाथ कहाँ मिलेगा?
यह हर जगह दुकान में नहीं मिलती है, इसे आप घर बैठे ऑनलाइन मंगा सकते हैं जिसका लिंक निचे दिया गया है.
पिण्ड तेल को पिण्ड तैलम भी कहा जाता है. विशेष रूपसे दक्षिण भारत में ही इसे पिण्ड तैलम के नाम से जाना जाता है.
पिण्ड तेल के फ़ायदे
यह दर्द दूर करने वाला तेल है जिसे ख़ासकर गठिया, Arthritits में प्रयोग किया जाता है.
इसके प्रयोग से सुजन, जोड़ों का दर्द, अकड़न, वैरीकोस वेंस, शरीर का दाह या जलन इत्यादि में लाभ होता है.
जोड़ों के दर्द-सुजन, सुजन की लाल होना, जलन होना जैसी समस्या होने पर इसकी मालिश करनी चाहिए.
वैरीकोस वेंस में दर्द जलन हो तो इसकी बहुत हलकी मालिश करें या क्रीम के जैसा ही लगायें. वैरीकोस वेंस में दबाव नहीं डालना चाहिए.
इसे जले-कटे और ज़ख्म पर भी लगाया जाता है. यह सिर्फ़ बाहरी प्रयोग की औषधि है.
पिण्ड तेल का कोई साइड इफ़ेक्ट या दुष्प्रभाव नहीं होता है, लम्बे समय तक इसका प्रयोग कर सकते हैं. रोज़ दो-तीन बार या आवश्यकतानुसार इसकी मालिश कर सकते हैं.
सावधानी - यह काफ़ी चिकना और चिपचिपा तेल होता है, एड़ी में इसकी मालिश के बाद एक आदमी नंगा पैर फर्श पर चला तो स्लिप कर गिर गया और कमर में फ्रैक्चर आ गया, मतलब लेने के देने पड़ गए. इसलिए दोस्तों ध्यान से इसकी मालिश करें, यदि पैर या तलवों में लगाना हो तो मालिश के बाद अच्छे से पोछ लिया करें.
पिण्ड तेल के घटक और निर्माण विधि -
आयुर्वेदिक ग्रन्थ चरक संहिता में इसका वर्णन मिलता है. इसके घटक या कम्पोजीशन की बात की जाये तो इसे बनाने के लिए चाहिए होता है- देशी मोम(मधुमक्खी वाला) 280 ग्राम, मंजीठ 455 ग्राम, सर्जारस 186 ग्राम, सारिवा 455 ग्राम, तिल तेल 6 लीटर और पानी 24 लीटर. बनाने के तरीका है यह है कि जड़ी बूटियों का जौकुट चूर्ण कर तेल-पानी मिलाकर मंद अग्नि पर तेल-पाक विधि से तेल सिद्ध कर लिया जाता है.
वैसे यह बना हुआ मार्केट में उपलब्ध है ऑनलाइन ख़रीद सकते हैं निचे दिए गए लिंक से -
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