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28 नवंबर 2021

Navayas Mandur | नवायस मण्डूर के गुण उपयोग और निर्माण विधि

 

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आयुर्वेद की यह प्रसिद्ध औषधि है जिसे नवायस मण्डूर और नवायस लौह के नाम से भी जाना जाता है. इन दोनों में बस कम्पोजीशन का थोड़ा फ़र्क होता है, तो आईये इसके बारे में सबकुछ जानते हैं - 

नवायस मण्डूर के घटक या कम्पोजीशन 

सोंठ, पीपल, काली मिर्च, हर्रे, बहेड़ा, आँवला, नागरमोथा, वायविडंग और चित्रकमूल छाल यह सभी नौ जड़ी-बूटियाँ समान भाग लेकर बारीक कपड़छन चूर्ण बना लिया जाता है. इसके बाद इस चूर्ण के कुल वज़न के बराबर उत्तम क्वालिटी का मण्डूर भस्म मिक्स कर तीन दिनों तक खरल करने से औषधि तैयार हो जाती है. 

नवायस मण्डूर की मात्रा और सेवन विधि 

एक-एक ग्राम सुबह-शाम घी, शहद, छाछ या फिर रोगानुसार उचित अनुपान के साथ 

नवायस मण्डूर के गुण 

आयुर्वेदानुसार यह पाचक, दीपक, शोथनाशक, रसायन और रक्तवर्द्धक जैसे गुणों से भरपूर होता है. 

नवायस मण्डूर के फ़ायदे 

  • एनीमिया या खून की कमी, जौंडिस, लिवर-स्प्लीन का बढ़ जाना, लिवर-स्प्लीन की ख़राबी से होने वाले बुखार में इसके सेवन से अच्छा लाभ होता है. 
  • पाचन शक्ति को ठीक करता है, लिवर की कमजोरी दूर कर भूख बढ़ाता है. 
  • खून की कमी से होने वाली सुजन को दूर करता है. 
  • बच्चों के स्प्लीन बढ़ने से होने वाले, बुखार, कमज़ोरी, पेट बाहर निकल जाना और शरीर सूखने जैसे लक्षण में इसके सेवन से लाभ होता है. 
  • मूल ग्रन्थ के अनुसार पांडू रोग, शोथ, उदररोग, क्रीमी, हृदय रोग, अर्श,भगन्दर इत्यादि में भी इसके सेवन से लाभ होता है. 
  • खून की कमी और सुजन दूर करने के लिए वैद्यगण इसका प्रमुखता से प्रयोग करते हैं. 

नवायस मण्डूर और नवायस लौह में क्या अंतर है?

दोनों के घटक और निर्माण विधि सब एक ही हैं, अंतर बस यह है कि नवायस लौह में 

मण्डूर भस्म की जगह लौह भस्म मिलाकर बनाया जाता है. 

नवायस मण्डूर और नवायस लौह में कौन बेस्ट है?

नवायस मण्डूर बेस्ट है क्यूंकि मण्डूर भस्म ज्यादा सौम्य होता है, और सभी को सूट करता है. इसे अधीक मात्रा में भी प्रयोग कर सकते हैं. 

इसके बारे में यदि आपके मन में कोई सवाल हो तो कमेंट कर पूछिये

ऑनलाइन ख़रीदने का लिंक निचे दिया गया है. 



20 नवंबर 2021

Neelkanth Ras | नीलकण्ठ रस- क्या हैं इसके उपयोग?

 

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इस आयुर्वेदिक औषधि को आज का वैद्य समाज भूल गया है तो आईये नीलकण्ठ रस के गुण उपयोग और निर्माण विधि के बारे में सबकुछ जानते हैं- 

आज के समय में नीलकण्ठ रस शायेद की किसी फार्मेसी के बना हुआ मिले, पहले वैद्यगण इसका निर्माण कर अपने क्लिनिक में इसकी एक शीशी अवश्य रखते थे. सिद्धहस्त वैद्यगण इसका निर्माण कर परिक्षण कर सकते हैं. 

नीलकण्ठ रस के घटक और निर्माण विधि 

शुद्ध पारा, शुद्ध गंधक, शंख भस्म और शुद्ध नीला थोथा सभी समान भाग लेकर सबसे पहले पारा-गंधक को खरलकर कज्जली बना लें, इसके बाद दूसरी सभी चीज़ मिलाकर देवदाली के रस की 21 भावना देकर एक-एक रत्ती की गोलियाँ बनाकर सुखाकर रख लें. यही नीलकण्ठ रस है. 

नीलकण्ठ रस की मात्रा और सेवन विधि 

एक-एक गोली अर्क पुदीना के साथ आवश्यकतानुसार 

नीलकण्ठ रस के फ़ायदे 

इसकी एक गोली खाते ही हर तरह की उल्टी रुक  जाती है, बिल्कुल अंग्रेज़ी दवा की तरह तेज़ी से असर करने वाली औषधि है. 

वमन या उल्टी रोकने के लिए बेहद प्रभावशाली है.

कफ़-पित्त दूषित होने के कारन उत्पन्न वमन या उलटी में आशु लाभकारी औषधि है, वैद्यगण इसका निर्माण कर परीक्षा करें. 




13 नवंबर 2021

जीरकाद्यरिष्ट | Jirakadyarishta

 

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जीरकाद्यरिष्ट क्या है? 

यह आयुर्वेद के आसव-अरिष्ट केटेगरी की औषधि है जो तरल या लिक्विड रूप में होती है, जिसमे दुसरे रिष्ट की तरह कुछ मात्रा में सेल्फ़ जनरेटेड अल्कोहल भी होता है. 

जीरकाद्यरिष्ट के घटक या कम्पोजीशन 

जैसा कि इसके नाम से ही पता चलता है इसका मुख्य घटक जीरा होता है. मूल ग्रन्थ के अनुसार इसके घटक और निर्माण विधि कुछ इस प्रकार से हैं - 

10 सेर सफ़ेद जीरा लेकर इसे 2 मन 22 सेर 32 तोला पानी में क्वाथ करें, जब साढ़े 25 सेर 8 तोला पानी बच जाये तो इसमें गुड़ 15 सेर, धायफूल 15 तोला, सोंठ का चूर्ण 8 तोला, लौंग, बड़ी इलायची, दालचीनी, तेजपात, नागकेशर, जायफल, मोथा और अजवायन प्रत्येक चार-चार तोला लेकर मोटा-मोटा कूटकर काढ़े में मिलाकर मिट्टी के चिकने पात्र या चीनी मिटटी के घड़े में भरकर एक माह के लिए संधान के लिए छोड़ दें, एक माह बाद कपड़े से छानकर काँच के बोतलों में भरकर रख लें. 

निर्माण विधि कुछ समझ में आई? सभी को समझ नहीं आयेगी, जाने दिजिए. यह बना हुआ मार्केट में मिल जाता है. 

जीरकाद्यरिष्ट की मात्रा और सेवन विधि 

15 से 30 ML तक सुबह-शाम भोजन के बाद 

जीरकाद्यरिष्ट के फ़ायदे 

यह पेट की बीमारियों के लिए फ़ायदेमंद है. 

मूल ग्रन्थ के अनुसार यह रुचिकारक, अग्निप्रदीपक, मधुर, शीतल और विष-दोष शामक है. 

यह पाचन शक्ति को ठीक करता है, भूख बढ़ाता है और अफारा को दूर करता है. 

मन्दाग्नि, संग्रहणी और अतिसार में लाभकारी है. 

गर्भाशय की शुद्धि करता है, सुतिकारोग में भी लाभकारी  है. 

इसे आप आयुर्वेदिक दवा दुकान से ख़रीद सकते हैं, ऑनलाइन खरीदने का लिंक दिया गया है. 




05 नवंबर 2021

Medohar Vidangadi Lauh | मेदोहर विडंगादि लौह

 

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यह एक शास्त्रीय आयुर्वेदिक औषधि है जो मेदरोग के अलावा कई दुसरे रोगों को दूर करती है, तो आईये मेदोहर विडंगादि लौह के बारे में सब कुछ जानते हैं - 

मेदोहर विडंगादि लौह 

जैसा कि इसके नाम से ही पता चलता है मेद का हरण करने वाली विडंग इत्यादि द्रव्यों से बनी लौह युक्त औषधि. यहाँ पर मेद का मतलब फैट या मोटापा से है. 

जैसा कि मैंने पहले ही कहा कि यह एक शास्त्रीय औषधि है जो आयुर्वेदिक शास्त्र 'भैषज्य रत्नावली' में वर्णित है. 

मेदोहर विडंगादि लौह के घटक या कम्पोजीशन 

इसका कम्पोजीशन बड़ा ही उत्तम है, इसे वायविडंग, हर्रे, बहेड़ा, आंवला, नागरमोथा, सोंठ, पीपल, बेल-गिरी, सफ़ेद चन्दन, सुगंधवाला, पाठा, खस, बला मूल और लौह भस्म के संयोग से बनाया जाता है. 

मेदोहर विडंगादि लौह की निर्माण विधि 

आपकी जानकारी के लिए इसे बनाने की विधि बता दे रहा हूँ. इसे बनाने के लिए बताई गयी सभी जड़ी-बूटियाँ बराबर वज़न में लेकर बारीक चूर्ण बना लिया जाता है. इसके बाद इस चूर्ण के कुल वज़न के बराबर उत्तम लौह भस्म मिलाकर खरलकर पानी मिक्स कर 250 mg की गोलियाँ बनाकर सुखाकर रख लिया जाता है. कुछ वैद्य लोग इसे गोली न बनाकर ऐसे ही पाउडर फॉर्म ही रखते हैं. 

मेदोहर विडंगादि लौह की मात्रा और सेवन विधि 

एक से दो गोली या 250 से 500 mg तक सुबह-शाम गर्म पानी, शहद या जौ के पानी से. या फिर वैद्य जी की सलाह के अनुसार ही इसका सेवन करना चाहिए. 

मेदोहर विडंगादि लौह के फ़ायदे 

शरीर की अतिरिक्त वसा, चर्बी या मोटापा को दूर करता है. 

आलस को दूर कर बल और कान्ति की वृद्धि करता है 

जठराग्नि को तेज़ करता है, शरीर में खून की कमी को दूर करता है 

यह उत्तम बाजीकरण भी है, प्रमेह रोगों में भी लाभकारी है

इन सब के अलावा यह आयुर्वेदिक ग्रन्थ के अनुसार सोमरोग, कृमि रोग, पांडू, कामला में भी प्रभाशाली है. 

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