भारत की सर्वश्रेष्ठ आयुर्वेदिक हिन्दी वेबसाइट लखैपुर डॉट कॉम पर आपका स्वागत है

06 दिसंबर 2020

जानिए कौन सा आहार खाने से कौन सा दोष कम होगा या बढ़ेगा?

 

dosha aur aahar

दोस्तों, स्वस्थ रहने के लिए उचित आहार-विहार का बड़ा महत्त्व है. एक कहावत भी है - "जैसा खाए अन्न, वैसा रहे मन" 

स्वस्थ रहने के लिए आयुर्वेद के अनुसार आपके भोजन में छह 'रस' होने चाहिए, तभी यह संतुलित भोजन कहलाता है. रस का यहाँ मतलब है स्वाद से. आयुर्वेद के अनुसार दुनिया में जितने भी तरह के आहार और औषधि हैं इसी छह रस में सभी आ जाते हैं. 

अब आप सोच रहे होंगे कि यह छह रस कौन कौन हैं? यह छह रस हैं- 

1) मधुर(मीठा)

2) अम्ल(खट्टा)

3) लवण(नमक या नमकीन)

4) कटु(कड़वा)

5) तिक्त(तीता, तीखा)

6) कषाय(कसैला) 

यही छह रस हैं और इनमे से तीन शीतल यानी तासीर में ठण्डे और तीन उष्ण यानी तासीर में गर्म होते हैं. 

ठण्डे तासीर वाले - मधुर, तिक्त और कषाय 

गर्म तासीर वाले - कटु, अम्ल और लवण 

अब आते हैं मुद्दे की बात पर कि किसी तरह के आहार कौन से दोष को बढ़ाते या कम करते हैं?

सबसे पहले जानते हैं 'वात' कम करने और संतुलन या बैलेंस करने वाले आहार के बारे में.

वात संशमन और संतुलन करने वाले अनाज 

ज्वार, मक्का, जौ, राई, सरसों, हर तरह की दाल, चना इत्यादि इनका सेवन कम मात्रा में करना चाहिए जबकि गेंहूँ, चावल, मूँग की दाल का अधीक सेवन कर सकते हैं. 

वात संशमन और संतुलन करने वाले फल 

चीकू, मीठे बेर, लीची, सेब, अन्नानास, तरबूज, अंजीर, अँगूर, पपीता, अमरुद, बादाम, आलूबुखारा इत्यादि अधीक सेवन कर सकते हैं जबकि ड्राई फ्रूट्स, नाशपाती, आम इत्यादि कम मात्रा में सेवन करना चाहिए

वात संशमन और संतुलन करने वाली सब्जियां 

लौकी, टिंडा, टमाटर, शलजम, भिन्डी, चुकन्दर, गाजर, खीरा इत्यादि. जबकि फूल गोभी, पत्ता गोभी, आलू, सेम, मटर, अंकुरित अनाज, मिर्च-मसाला और मुली का कम से कम सेवन करना चाहिए 

तेल में - तिल तेल, बादाम का तेल, सोयाबीन तेल का सेवन ठीक रहता है. 

यह सब हो गया विस्तार से, आईये अब जान लेते हैं 'वात प्रकोप' बढ़ाने वाले आहार जिसे हमेशा याद रखें, विशेषकर वात प्रक्रति वाले लोग - 

वात प्रकोपक(असंतुलक) आहार - 

भारी भोजन, गरिष्ठ भोजन, फ़ास्ट फ़ूड, जंक फ़ूड, सॉफ्ट ड्रिंक्स, कोल्ड ड्रिंक्स, चटपटा भोजन, हर तरह की मिर्च, रुखा-सुखा भोजन, चना, ज्वर, मूँग, कोदो, पलक, मसूर, चना, तीखा, कषैला, कड़वा और उत्तेजक भोजन इत्यादि. 

पित्त का शमन और संतुलन(Balance) करने वाले आहार 

ठण्डी तासीर वाले सभी आहार पित्त को कम करते हैं. यहाँ पर ध्यान रखें आहार तासीर में ठण्डा होना चाहिए, फ्रिज का आइटम, कोल्ड ड्रिंक्स या आइस क्रीम ठण्डे तो होते हैं पर मूल रूप से इनकी तासीर ठण्डी नहीं होती. 

पित्त कम करने वाले आहार की बात करें तो इसमें देसी गेहूं, पुराना चावल, नारियल, सेब, अंजीर, मीठे अंगूर, किशमिश, तरबूजा, खरबूजा, केला, पपीता, पत्ता गोभी, साग, चुकंदर, परवल, लौकी, तोरई, टिंडा इत्यादि प्रमुख हैं. 

तेल में नारियल तेल, जैतून तेल, सूरजमुखी तेल का सेवन करना चाहिए.

ताज़ा, छाछ, मीठा ठण्डा दूध भी पित्त शामक है. 


अब जान लीजिये पित्त प्रकोपक या पित्त दोष बढ़ाने वाले प्रमुख आहार - 

जिनका पित्त दोष बढ़ा हुआ हो उनको इन चीज़ों से परहेज़ रखना चाहिए जैसे - गर्म और उत्तेजक आहार, अंडा, मछली, नॉन वेज, चाय-काफ़ी, तम्बाकू, शराब, सिगरेट, खट्टा, कड़वा, अधीक नमकीन और तेल वाले भोजन इत्यादि.


कफ का शमन और संतुलन(Balance) करने वाले आहार 

कफ दोष बढ़ा होने पर गर्म तासीर वाले भोजन, गर्म पानी, हल्का, रुखा-सुखा आहार लेना चाहिए. 

कफ को कम और बैलेंस करने वाले आहार यह सब हैं जैसे - जौ, बाजरा, मकई, चना की रोटी, सरसों, फलों में - सेब, नाशपाती, अनार, सब्जियों में - गाजर, गोभी, लहसुन, प्याज़, पत्तेदार सब्जी, पलक, बथुआ, मेथी इत्यादि. 

कफ दोष बढ़ा होने पर दूध और दूध से बने पदार्थ बहुत कम लेना चाहिए. मिठाई का भी सेवन न करें. मसलों में - दालचीनी, मेथी, सोंठ, पीपल, हल्दी, काली मिर्च इत्यादि का सेवन करना चाहिए. 

ठण्डा, खट्टा, मीठा, नमकीन और लुआबदार पदार्थ कफ प्रकोप को बढ़ाते हैं. 


तो दोस्तों, यह थी जानकारी आहार के बारे में कि कौन से दोष में कौन सा आहार खाना चाहिए या परहेज़ करना चाहिए. 

पर एक बात ज़रूर याद रखिये कि आपका डॉक्टर या वैद्य आपकी बीमारी के बारे में बेहतर जनता है, इसलिए वैद्य जी की सलाह के अनुसार परहेज़ अवश्य करें. 



22 नवंबर 2020

Know Your Prakriti | जानिए अपनी प्रकृति को | Tridosha Quiz

 

tridosha quiz

आज चर्चा करने वाला हूँ प्रकृति के बारे में. कफ़, पित्त और वात के बारे में आपने सुना ही होगा. तो आईये जानते हैं कि प्रकृति क्या है? प्रकृति के भेद, प्रकृति की पहचान, इनका स्थान और इसके बारे में सबकुछ विस्तार से - 

शरीर की प्रकृति को Constitution of Body कह सकते हैं. प्रकृति को ही 'तासीर' भी कहा जाता है. 

वात से अस्सी, पित्त से चालीस और कफ से बीस तरह के रोग होते हैं

कफ दोष- शरीर की सरंचना को नियंत्रित और प्रभावित करता है

पित्त दोष - पाचन क्रिया को नियंत्रित और प्रभावित करता है

वात दोष - गति को नियंत्रित और प्रभावित करता है

हमारे आयुर्वेद के मनीषियों ने बहुत पहले ही  बता दिया था गर्भ काल से ही दोषों की प्रकृति मनुष्य पर असर करने लगती है. यह सब कई मॉडर्न रिसर्च से भी साबित हो चूका है



कफ़, पित्त और वात यह तीन तरह की मुख्य प्रकृति होती है पर इसके भी कुछ भेद होते हैं. आचार्य चरक के अनुसार कुल सात प्रकृतियों के शरीर होते हैं.

1) कफ प्रकृति

2) पित्त प्रकृति 

3) वात प्रकृति 

4) वातपित्त प्रकृति 

5) वातकफ प्रकृति 

6) पित्तकफ प्रकृति 

7) वातपित्तकफ प्रकृति या मिश्रित प्रकृति, इसकी को 'सम' प्रकृति भी कहा जाता है.



कफ प्रकृति 

कफ- जल और पृथ्वी का प्रतिनिधि है 

कफ का स्थान 

उरः प्रदेश यानी चेस्ट या सिने के पूरा एरिया, कन्ठ, नासिका, बाहू, आमाशय, छोटे बड़े जॉइंट्स, ग्रीवा, मेद यह सब कफ के स्थान होते हैं.

कफ प्रकृति के गुण -कफ को श्लेष्मा भी कहते हैं यह चिकना, मुलायम, गाढ़ा, स्वाद में मीठा, शीतल यानी ठण्डा और लुआबदार होता है. 

कफ प्रकृति वाले व्यक्ति का चेहरा गोल-मटोल, शरीर गठीला और पुष्ट होता है.

कफ प्रकृति वाले लोग कोई भी काम जल्दबाज़ी में नहीं करते हैं, Slow Activity के होते हैं. मोटापे की प्रवृति होती है, शहनशील होते हैं. 

इनकी चाल धीमी होती है, नीन्द गहरी आती है, शरीर माँसल होता है. कोई निर्णय सोच-समझ का लेते हैं. 

कफ प्रकृति के मनुष्य शांत, सुखी, ओजस्वी, गंभीर और दीर्घायु होते हैं



पित्त प्रकृति 

पित्त - अग्नि और जल का प्रतिनिधि है 

पित्त का स्थान- पित्त का प्रधान स्थान पक्वाशय या आंत और आमाशय की मध्यस्थली(ग्रहणी) है. लिवर-स्प्लीन, हार्ट, स्किन और दृष्टि में भी पित्त का स्थान है. आचार्य चरक के अनुसार रस, रक्त, लसिका, स्वेद और आमाशय पित्त का स्थान है.

पित्त का मूल गुण उष्ण या गर्म होता है. 

पित्त प्रकृति वाले व्यक्ति मयाने क़द के न लम्बे न बौने, न मोटे न दुबले होते हैं.

शारीरिक शक्ति और सहनशक्ति मध्यम होती है और मेहनती होते हैं

पित्त प्रकृति वालों में गुस्सा जल्दी होना, चिड़चिड़ापन, गर्मी बर्दाश्त नहीं होना, तेज़ भूख लगना, गर्म चीज़ सूट नहीं करना जैसे लक्षण होते हैं.

टाइम के पाबन्द, तेज़ चाल, चैलेंज एक्सेप्ट करने वाले और कंसंट्रेशन वाले होते हैं. 

सात्विक आहार इनको पसन्द होता है. चाय-काफ़ी, नशा और गर्म तासीर वाले भोजन इनको सूट नहीं करते. 

पित्त प्रकृति के लोगों की पाचन शक्ति तेज़ होती है, गर्मी बहुत लगती है और पसीना भी जल्दी आता है. 



वात प्रकृति 

वात का स्थान 

पक्वाशय ही वात या वायु का विशेष स्थान है. अस्थि या हड्डी, पैर की हड्डी और त्वचा में यह विधमान होता है.

वात- आकाश और वायु का प्रतिनिधि है 

वात प्रकृति के गुण - यह रुखा, ठण्डा, लघु जैसे गुणों वाला होता है. 

वात प्रकृति के व्यक्ति का शरीर हल्का, दुबले क़द-काठी वाला होता है, इनकी आवाज़ कमज़ोर और फटी हुयी होती है, कोई भी काम तेज़ी से करते हैं, नीन्द कम आती है, गहरी नींद नहीं आती.

भूख और पाचन शक्ति अनियमित होती है, कब्ज़, चिंता, तनाव जैसी समस्या हो सकती है. 

वात प्रकृति वाले ज़्यादा बात करने वाले, चिन्ता करने वाले, तिल को ताड़ बनाने वाले और किसी बात पर क़ायम नहीं रहने वाले होते हैं.

वात प्रकृति वालों को अवर बल वाला कहा गया है.

वात पित्त प्रकृति 

वात पित्त प्रकृति के व्यक्ति में गर्मी सहन करने की थोड़ी क्षमता होती है. बुद्धि तेज़ होती है, कोई भी चैलेंज एक्सेप्ट करने से पहले थोड़ा घबराते हैं परन्तु पीछे नहीं हटते. संवेदनशीलता, धैर्य की कमी और तनाव जैसे लक्षण इनमे पाए जाते हैं. 

पित्त कफ़ प्रकृति 

इनका शरीर भारी पर सुडौल होता है. चाल और बुद्धि तेज़, गुस्सा और Criticize करने की आदत होती है.

वात कफ प्रकृति 

ऐसे व्यक्ति संवेदनशील, शांत, सुगठित शरीर वाले और शान्ति प्रिय होते हैं. पाचन मन्द होता है और ठण्डा आहार-विहार इनको सूट नहीं करता है. 

सम प्रकृति या त्रिदोष प्रकृति 

ऐसे प्रकृति वालों का तीनो दोष यानी कफ, पित्त और वात बैलेंस होता है. ऐसी व्यक्ति हर तरह से फिट और स्वस्थ होते हैं और लम्बा जीवन जीते हैं. 

तो यह थी प्रकृति के बारे में संक्षेप में जानकारी, चूँकि यह एक लम्बा विषय है इसपर घन्टों चर्चा की जाये तो भी कम पड़ेगा. 

आप किस प्रकृति के हैं आसानी से जानने के लिए आप 'प्रकृति निर्धारक प्रश्नोत्तरी' या क्विज में हिस्सा लेकर जान सकते हैं जिसका लिंक दिया गया है - प्रकृति निर्धारक प्रश्नोत्तरी 



20 नवंबर 2020

Bilwadi Lehya Benefits | बिल्वादि लेह्य/बिल्वाअवलेह के फ़ायदे

 

bilwadi lehya

बिल्वादि लेह्य को बिल्वा अवलेह, बिल्वादि लेह्यम जैसे नामों से जाना जाता है जिसका विवरण 'सहस्र योग'  में मिलता है जिसका मुख्य घटक बिल्व फल मज्जा का कच्चा बेल का गूदा होता है. 

बिल्वादि लेह्य के घटक या कम्पोजीशन 

इसके कम्पोजीशन की बात करें तो इसे बिल्व फल क्वाथ, गुड़, नागरमोथा, धनियाँ, जीरा, छोटी इलायची, दालचीनी, नागकेशर और त्रिकटु यानि सोंठ, मिर्च और पीपल के मिश्रण से अवलेह-पाक निर्माण विधि से बनाया जाता है. 

बिल्वादि लेह्य की मात्रा और सेवन विधि 

5 से 10 ग्राम रोज़ दो-तीन बार या वैद्य जी के निर्देशानुसार 

बिल्वादि लेह्य के फ़ायदे 

उल्टी, दस्त, पेचिश, अरुचि, ग्रहणी या IBS, आँव आना जैसी समस्या होने पर इसका सेवन किया जाता है. 

खाना खाते ही दस्त होना और बार-बार दस्त होने में सही डोज़ में इसका सेवन करना चाहिए.

खाँसी और अस्थमा में भी इस से लाभ होता है. 

चूँकि यह मल बाँधने वाली ग्राही औषधि है तो अधीक मात्रा में सेवन करने से कब्ज़ हो सकता है, इसका ध्यान रखना चाहिए. 

बच्चे-बड़े सभी को इसका सेवन करा सकते हैं, बस इसका डोज़ उम्र के हिसाब से होना चाहिए. 

ऑनलाइन ख़रीदने का लिंक दिया गया है- Dabur Bilwadi Lehya




25 अक्तूबर 2020

Sickle Cell Anemia Ayurvedic Medicine | वैद्य जी की डायरी#20


sickle cell anema ayurvedic upchar

सिकल सेल एनीमिया का नाम आपने सुना ही होगा, एक और जहाँ allopath इसमें फ़ेल है तो वहीँ दूसरी ओर आयुर्वेद इस रोग को नष्ट करने की क्षमता रखता है. वैद्य जी की डायरी में इसी के बारे में आज एक उपयोगी जानकारी दे रहा हूँ - 

सिकल सेल एनीमिया क्या है? 

सिकल सेल एनीमिया खून की ऐसी बीमारी है जिस से खून में RBC या लाल रक्त कोशिकाएँ बहुत कम बनती हैं. आधुनिक विज्ञान इसे जेनेटिक या आनुवांशिक मानता है. 

स्वस्थ शरीर में हीमोग्लोबिन की कोशिका ऐसी होती है जबकि सिकल सेल में कुछ इस तरह की दिखती है. 



इसके रोगी की औसत आयु बहुत कम जाती है. ये सब जानकारी तो आपको कहीं भी मिल जाएगी, आईये जानते हैं कि आयुर्वेद में इसका क्या उपाय है-

सिकल सेल एनीमिया के लिए असरदार आयुर्वेदिक योग -

सिकल सेल एनीमिया नाशक योग 

यह एक बहुत अनुभवी वैद्य जी का योग है जो आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ. इसके लिए आपको यह औषधियाँ लेनी होगी -

सहस्रपुटी अभ्रक भस्म 2 ग्राम + मुक्ता पिष्टी(न. 1) 2 ग्राम + पूर्णचन्द्रोदय मकरध्वज 2 ग्राम + प्रवाल पिष्टी 2 ग्राम + कसीस भस्म 2 ग्राम + पुटपक्व विषमज्वरांतक लौह 1 ग्राम और असली बंशलोचन 5 ग्राम

सिकल सेल एनीमिया नाशक योग की निर्माण विधि कुछ इस तरह से  है- 

सबसे पहले पूर्णचन्द्रोदय मकरध्वज को अच्छी तरह से खरल कर लें इसके बाद बारीक पिसा हुआ बंशलोचन और दुसरे भस्मो को मिलाकर ताज़ी गिलोय के रस, भृंगराज के रस और त्रिफला के क्वाथ की एक-एक भावना देकर सुखाकर रख लें. बस सिकल सेल एनीमिया नाशक योग तैयार है. 

मात्रा और सेवन विधि 

चार रत्ती या 500 mg सुबह-दोपहर-शाम शहद से यह व्यस्क व्यक्ति की मात्रा है. बच्चों को आधी से एक रत्ती तक उनकी उम्र के अनुसार रोज़ तीन बार तक शहद से चटाना चाहिए. 

औषध सेवन काल में पथ्य-अपथ्य का भी पालन कराएँ. नमक, मिर्च-मसाला, तेल, फ्राइड फ़ूड और गरिष्ठ भोजन से परहेज़ करना चाहिए. 

गाजर, टमाटर, चुकन्दर, अनार, खजूर, मुनक्का या किशमिश और अंजीर का सेवन करना चाहिए. 



21 अक्तूबर 2020

बवासीर से परेशान हैं तो यह ज़रूर पियें !!!

 

home remedy for piles

बवासीर बड़ा ही कष्टदायक रोग है, इसे आयुर्वेद में अर्श कहा गया है जबकि अंग्रेजी में पाइल्स और हेमोराइड जैसे नामो से जाना जाता है. पाइल्स के रोगी के लिए छाछ बहुत फ़ायदेमंद होती है, तो आईये इसके बारे में सबकुछ जानते हैं - 

छाछ को आयुर्वेद में तक्र कहते हैं, इसे मट्ठा, बटर मिल्क और यहाँ दुबई और गल्फ कंट्री में लबन जैसे नामों से भी जाना जाता है. 

विधिपूर्वक बना हुआ छाछ बवासीर के रोगियों के लिए दवा की तरह काम करता है चाहे बवासीर कैसी भी हो, ख़ूनी हो या बादी.

तो सवाल यह उठता है कि तक्र या छाछ है क्या और इसे बनाने की सही विधि क्या है?

अच्छी तरह से पके हुए गाय के दूध से जमे हुए दही में इसकी  आधी मात्रा में पानी मिलाकर मथकर मक्खन अलग कर रख लें, यही तक्र या छाछ है. 

ताज़े छाछ के सेवन से न सिर्फ़ बवासीर बल्कि पेट की बीमारियों में भी फ़ायदा होता है. बवासीर के रोगी जितना हो सके छाछ का सेवन करना चाहिए. पेट की बीमारियों और बवासीर को बिना दवा के दूर करने के लिए प्राकृतिक चिकित्सक 'मट्ठा कल्प' कराते हैं. मट्ठा कल्प के बारे में फिर कभी विस्तार से बताऊंगा.

तक्र या छाछ के सेवन से ठीक हुआ बवासीर दुबारा नहीं होता है, ऐसा चरक संहिता में है.

आचार्य चरक के अनुसार - 

हतानि न विरोहन्ति तक्रेण गुदजानि तू |

भूमावपि निषिक्तं तद्दहेत्तक्रं तृणोलुपम |

कि पुनर्दीप्त कायाग्नने: शुष्कान्यर्शासि देहिन: ||

अर्थात- तक्र द्वारा नष्ट हुए अर्श पुनः उत्पन्न नहीं होते हैं. इसका उदाहरण देते हुए आचार्य चरक कहते हैं कि जब भूमि पर सिंचा हुआ तक्र वहां के त्रिन समूह को जलाता है, तब प्रदीप्ति जठराग्नि वाले मनुष्य शुष्कार्श का क्या कहना. अर्थात तक्र के सेवन से अर्श समूल नष्ट हो जाता है. 

तो इस तरह से आयुर्वेदिक ग्रन्थों से भी यह साबित हो जाता है कि तक्र या छाछ बवासीर के रोगियों के लिए बहुत लाभकारी है. 






11 अक्तूबर 2020

Bajikaran Churna | बाजीकरण चूर्ण - वैद्य जी की डायरी # 19

 

bajikaran churna, vaidya ji ki diary

आज वैद्य जी की डायरी में बताने वाला हूँ बाजीकरण चूर्ण के बारे में जो कमज़ोरी, वीर्य विकार, नामर्दी, शीघ्रपतन, जोड़ों का दर्द और कमर दर्द जैसे रोगों में असरदार है, तो आइये बाजीकरण चूर्ण के बारे में सबकुछ जानते हैं- 

बाजीकरण चूर्ण एक अनुभूत योग है जिसका निर्माण कर प्रयोग किया जाता है.

बाजीकरण चूर्ण के घटक- 

इसके घटक या कम्पोजीशन की बात करें तो इसे बनाने के लिए चाहिए होता है असगंध नागौरी, विधारा और मधुयष्टि एक-एक भाग, देसी सोंठ और गिलोय सत्व चौथाई भाग और मिश्री दो भाग. निर्माण विधि बहुत ही सरल है, सभी काष्टऔषधियों का चूर्ण कर पीसी मिश्री और गिलोय सत्व मिक्स कर रख लें. 

बाजीकरण चूर्ण की मात्रा और सेवन विधि - 

एक स्पून या 5 से 10 ग्राम तक सुबह-शाम फाँक कर ऊपर से मिश्री मिला गुनगुना दूध पियें या गुनगुना पानी. भोजन के बाद ही सेवन करें.

बाजीकरण चूर्ण के फ़ायदे 

इसके सेवन से मर्दाना कमज़ोरी, नामर्दी, वीर्य विकार जैसे समस्त पुरुष यौन रोगों में लाभ होता है. 

जोड़ों का दर्द, कमर दर्द, गठिया-साइटिका जैसे वात रोग, हड्डी से कट-कट की आवाज़ आना जैसी प्रॉब्लम में भी इस से दूर होती है, लगातार इसका सेवन करते रहने से.

पाचन शक्ति को सुधारता है और कब्ज़ दूर करता है. महिला-पुरुष सभी इसका सेवन कर सकते हैं. 

हर मौसम में इसका प्रयोग कर सकते हैं, लॉन्ग टाइम तक सेवन करने से भी कोई नुकसान नहीं होता है. लगातार कुछ समय इसका प्रयोग करने से निश्चित रूपसे लाभ होता है.

यह मार्केट में नहीं मिलता, इसे ख़ुद बनाकर यूज़ करें या फिर अमृत योग मिले हुवे बाजीकरण चूर्ण ऑनलाइन ख़रीद सकते हैं जिसका लिंक दिया गया है- बाजीकरण चूर्ण




01 अक्तूबर 2020

Vatgajendrasingh Ras | वातगजेन्द्रसिंह रस

 

vat gajendra singh ras

वातगजेन्द्रसिंह रस के बारे में जो एक दिव्य औषधि है. यह 80 प्रकार के वातरोग, 40 प्रकार के पित्तरोग और 20 प्रकार के कफ रोगों को दूर करती है. तो आईये जानते हैं वातगजेन्द्रसिंह रस का कम्पोजीशन, गुण-धर्म, निर्माण विधि और इसके उपयोग के बारे में विस्तार से - 

वातगजेन्द्रसिंह रस भैषज्य रत्नावली का योग है जो सिद्धहस्त वैद्यों द्वारा निर्माण कर प्रयोग किया जाता है. आज के समय में इक्का-दुक्का कंपनियां ही इसका निर्माण करती हैं. 

वातगजेन्द्रसिंह रस के घटक या कम्पोजीशन- 

इसे बनाने के लिए चाहिए होता है अभ्रक भसम, लौह भस्म, शुद्ध पारा, शुद्ध गंधक, ताम्र भस्म, नाग भस्म, टंकण भस्म, शोधित बच्छनाग, सेन्धा नमक, लौंग, शोधित हींग और जायफल प्रत्येक 10-10 ग्राम 

छोटी इलायची के बीज, तेजपात, दालचीनी, हर्रे, बहेड़ा और आँवला प्रत्येक 5-5 ग्राम 

वातगजेन्द्रसिंह रस निर्माण विधि - 

सबसे पहले शुद्ध पारा और शुद्ध गंधक को मिक्स कर खरलकर कज्जली बना लें और भस्मो को मिला लें, इसके बाद दूसरी औषधियों का बारीक चूर्ण मिक्स कर घृतकुमारी के रस में घोटकर दो-दो रत्ती या 250 mg की गोलियाँ बनाकर सुखाकर रख लें. यही वातगजेन्द्रसिंह रस है. 

वातगजेन्द्रसिंह रस के गुण - यह एक रसायन औषधि तो है ही, इसके गुणों की बात करें तो यह त्रिदोष नाशक है यानी वात, पित्त और कफ तीनों तरह के दोषों को नष्ट करता है. यह शोधक, दीपक, रक्त वर्द्धक, बल-वीर्य वर्द्धक, मांसवर्द्धक और इन्द्रियों को शक्ति देता है. वात नाड़ियों की विकृति से होने वाले अनेकों रोगों को नष्ट करता है. 

वातगजेन्द्रसिंह रस के फ़ायदे- 

जैसा कि शुरु में बताया 80 प्रकार के वातरोग, 40 प्रकार के पित्तरोग और 20 प्रकार के कफ रोगों को दूर करने में सक्षम है. 

जोड़ों का दर्द, लकवा, पक्षाघात, साइटिका, आमवात जैसे हर तरह के वातरोगों में असरदार है.

वीर्य नाश या अधीक मैथुन के कारण इन्द्रियों की शक्ति क्षीण हो गयी हो तो इसके सेवन से लाभ होता है.

यह आमदोष का दूर करता है और पाचन तंत्र को बल देता है. यह विषनाशक है और सुजन को भी दूर करता है.

इसके सेवन से स्वस्थ मनुष्य अधिक स्वास्थ लाभ करते हैं और रोगी मनुष्य रोगमुक्त हो जाते हैं, यह रोगनाशक उत्तम रसायन है. 

वातगजेन्द्रसिंह रस की मात्रा और सेवन विधि - 

एक- एक गोली सुबह-शाम दूध से लेना चाहिए. 




06 सितंबर 2020

Tapyadi Lauh Benefits | ताप्यादि लौह के गुण और उपयोग

 


खून की कमी, जौंडिस, लिवर-स्प्लीन का बढ़ जाना, पाचन विकृति और कुछ दुसरे रोगों में ताप्यादि लौह का प्रयोग किया जाता है, तो आईये जानते हैं ताप्यादि लौह क्या है? इसके कम्पोजीशन, निर्माण विधि और गुण-उपयोग के बारे में विस्तार से - 

ताप्यादि लौह शास्त्रीय आयुर्वेदिक औषधि है जो लौह प्रधान होती है यानि आयरन रिच 

ताप्यादि लौह का कम्पोजीशन 

सभी लौह-मंडूर वाली औषधियों की तरह इसमें त्रिफला तो होता ही है. इसके सही कम्पोजीशन की बात करें तो इसके घटक कुछ इस तरह से होते हैं -

हर्रे, बहेड़ा, आँवला, सोंठ, मिर्च, पीपल, चित्रकमूल और वायविडंग प्रत्येक 25-25 ग्राम, नागरमोथा 15 ग्राम, चव्य, देवदार, पिपरामूल, दालचीनी और दारूहल्दी प्रत्येक 10-10 ग्राम, लौह भस्म, चाँदी भस्म, स्वर्णमाक्षिक भस्म और शुद्ध शिलाजीत प्रत्येक 100-100 ग्राम, मंडूर भस्म 200 ग्राम और पीसी हुयी मिश्री 320 ग्राम. यही इसका ओरिजिनल कम्पोजीशन होता है.

 आयुर्वेदिक कंपनियां इसे ताप्यादि लौह नम्बर-1 के नाम से बेचती हैं. चाँदी भस्म महँगी होने की वजह से बिना चाँदी भस्म वाला भी ताप्यादि लौह मिलता है जो महँगा नहीं होता, इसका भी वैसे ही इफेक्टिव है पर चाँदी भस्म मिले हुए ताप्यादि लौह से थोड़ा कम असरदार होता है.

ताप्यादि लौह निर्माण विधि 

सभी जड़ी-बूटियों का बारीक कपड़छन चूर्ण बनाकर इसमें भस्में और पीसी मिश्री मिक्स कर एयर टाइट डब्बे में रख लें. 

चूँकि औषध निर्माण का मेरा काफ़ी अनुभव रहा है तो बता दूँ कि चित्रकमूल और दारूहल्दी जैसी काष्ट औषधियों का बारीक चूर्ण बनाना बड़े ही परिश्रम का कार्य है. इनके छोटे-छोटे टुकड़े कर इमामदस्ते में डालकर जौकूट कर लें इसके बाद ही ग्राइंडर में डालकर पीसना चाहिए. हमारे समय में तो इमामदस्ते में ही कुटना पड़ता था, ग्राइंडर तो दूर की बात, गाँव में बिजली ही नहीं थी. 

ताप्यादि लौह की मात्रा और सेवन विधि 

तीन-तीन रत्ती या 375 से 500 mg तक दिन में दो बार मूली के रस या गोमूत्र से. 

ताप्यादि लौह के फ़ायदे

आयुर्वेदानुसार पांडू, कामला, प्रमेह, शोथ या सुजन और यकृत-प्लीहा रोगों को दूर करता है. 

ज़्यादा दिनों तक बुखार रहने से रस, रक्त, धातु और इन्द्री कमज़ोर होने से शारीरिक कमज़ोरी आ जाती है, पाचन ख़राब, खून की कमी, सुजन जैसी प्रॉब्लम होने पर इसके सेवन से लाभ होता है. 

किसी भी कारण से होने वाली खून की कमी, जौंडिस, कामला, लिवर-स्प्लीन का बढ़ जाना, आँख, चेहरा, हाथ-पैर की सुजन जैसी समस्या इसके सेवन से दूर होती है. इसके सेवन से हीमोग्लोबिन नार्मल हो जाता है.

प्रमेह, आँतों की कमजोरी, पाचन शक्ति की कमजोरी और शारीरिक कमज़ोरी में भी इस से लाभ होता है. 

महिलाओं के पीरियड रिलेटेड रोगों में भी इसके सेवन से लाभ होता है. 

लौह, मंडूर, शिलाजीत और चाँदी का मिश्रण होने से यह टॉनिक का भी काम करता है. 

इसके घटकों को ध्यान में रखते हुए वैद्यगण अनेकों रोगों  में सफलतापूर्वक प्रयोग करते हैं. 

आयुर्वेदिक कंपनियों का यह मिल जाता है, ऑनलाइन खरीदने का लिंक दिया गया है- 


30 अगस्त 2020

Krimimudgar Ras | कृमिमुद्गर रस

 

krimimudgar ras

कृमिमुद्गर रस शास्त्रीय आयुर्वेदिक औषधि है जिसका वर्णन 'रसराजसुन्दर' नामक ग्रन्थ में मिलता है. 

कृमिमुद्गर रस  के घटक या कम्पोजीशन - 

शुद्ध पारा एक भाग, शुद्ध गंधक दो भाग, अजमोद तीन भाग, वायविडंग चार भाग, शुद्ध कुचला पाँच भाग और पलाश के बीज छह भाग 

कृमिमुद्गर रस  निर्माण विधि - 

यानी यह बनता कैसे है? इसे बनाने के लिए सबसे पहले शुद्ध पारा और शुद्ध गन्धक को पत्थर के खरल में डालकर इतना खरल किया जाता है कि बिल्कुल काले रंग का काजल की तरह बन जाये. इसके बाद दूसरी सभी चीजों का बारीक पिसा हुआ चूर्ण मिक्स कर रख लें. इसकी गोली या टेबलेट भी बनायी जाती है. 



कृमिमुद्गर रस  की मात्रा और सेवन विधि -

दो से चार रत्ती या 250 mg से 500 mg तक. या यूँ समझ लीजिये की एक से दो गोली तक शहद के साथ खाकर ऊपर से नागरमोथा का क्वाथ पीना चाहिए. नागरमोथा क्वाथ न मिले तो विडंगासव या विडंगारिष्ट ले सकते हैं. 

तीन दिन तक इसे लेने के बाद जुलाब लेना चाहिए. या फिर पेट साफ़ करने वाली औषधि. जुलाब या विरेचन के लिए 'इच्छाभेदी रस' जैसी दवा लेनी चाहिए. या फिर रोगी कमज़ोर हो तो एरण्ड तेल या पंचसकार जैसा सौम्य विरेचन ही लेना चाहिए. 

कृमिमुद्गर रस के फ़ायदे -

कफ़ संचय से होने वाले पेट के कीड़ों के लिए तेज़ी से असर करने वाली दवा है. 

यह कृमिकुठार रस से ज़्यादा तेज़ और पावरफुल है, इस बात का ध्यान रखें.

पेट में कीड़े होने की वजह से होने वाला पेट दर्द, पेट फूलना, अरुचि, उल्टी, भूख नहीं लगना जैसी प्रॉब्लम दूर होती है इसके सेवन से. 

पेट में कीड़े होने के कारण कई बार शरीर में खुजली और लाल चकत्ते भी हो जाते हैं और लोग इसे एलर्जी समझ बैठते हैं. ऐसी स्थिति में कृमिमुद्गर रस का सेवन करना चाहिए.

कृमिमुद्गर रस न सिर्फ पेट के कीड़े बल्कि शरीर के दुसरे भाग के कृमिजनित रोगों में भी असरदार है. इसीलिए फ़ाइलेरिया की औषधि 'श्लीपदहर योग' का यह एक घटक है. 

कृमिमुद्गर रस के साइड इफ़ेक्ट -

चूँकि यह कुचला प्रधान योग है तो कोमल प्रकृति वालों को सूट नहीं करता और स्वाद में बहुत कड़वी होती है, इस लिए इसका टेबलेट निगलना ही उचित रहता है. हालाँकि इसकी गोली को पीसकर सेवन करना ही उत्तम है. 

कृमिमुद्गर रस मिलेगा कहाँ? यह ऑनलाइन मिलेगा जिसका लिंक दिया गया है-  Krimimudgar Ras 10 gram‎ 

From Amazon - Krimudgar Ras 




21 अगस्त 2020

Nagarjunabhra Ras | नागार्जुनाभ्र रस हृदय रोगों की चमत्कारी औषधि

 


नागार्जुनाभ्र रस एक शास्त्रीय औषधि है जो ह्रदय रोगों के अतिरिक्त दुसरे रोगों में भी असरदार है. 

नागार्जुनाभ्र रस के घटक या कम्पोजीशन -

 सहस्रपुटी अभ्रक भस्म और अर्जुन छाल का क्वाथ मात्र दो चीज़ ही इसके घटक हैं. 
उत्तम क्वालिटी के सहस्रपुटी वज्राभ्रक भस्म में अर्जुन छाल के क्वाथ की सात भावना देकर खरलकर एक-एक रत्ती की गोलियां बनाकर सुखाकर रख लें. यही नागार्जुनाभ्र रस है. कुछ वैद्यगण सहस्रपुटी की जगह साधारण अभ्रक भस्म से ही इसे बनाते हैं, यह भी असरदार है बस इसकी गोलियां दो-दो रत्ती की बनानी चाहिए. 

नागार्जुनाभ्र रस गुण या प्रॉपर्टीज- 

यह हृदयशूल या दिल का दर्द दूर करने वाला, त्रिदोष नाशक, बल-वीर्य वर्धक और रसायन जैसे गुणों से भरपूर है.

नागार्जुनाभ्र रस के फ़ायदे- 

किसी भी वजह से होने वाला दिल का दर्द, एनजाइना, वाल्व का दर्द, हार्ट के मसल्स का दर्द, सीने में ज़ोर लगने से होने वाला दर्द को दूर करता है.

हार्ट की सुजन, जकड़न, भारीपन, खून की कमी, हार्ट की कमज़ोरी को दूर करता है. 
धड़कन, हार्ट बीट कम ज्यादा होना में असरदार है. यह हृदय की अनियमित गति को नियमित करने में बेहद असरदार है. 

मतलब आप समझ सकते हैं कि हार्ट की हर तरह की समस्या में यह असरदार है, बल्कि यह हार्ट के अलावा कुछ दूसरी प्रॉब्लम में भी असरदार है जैसे - 

भूख की कमी, एनीमिया, खून की कमी, एसिडिटी, जौंडिस, रक्तपित्त, सुजन, टी. बी., मलेरिया, दस्त, उल्टी और पाचन विकृति में भी इस से लाभ होता है. 

चूँकि अभ्रक भस्म इसका मुख्य घटक है जो अपने आप में योगवाही और रसायन गुणों से भरपूर होता है तो यह बल-वीर्य वर्धक और रसायन औषधि भी है. चेहरे की चमक को बढ़ाकर अन्दर से शक्ति देता है. 

यह न सिर्फ दिल बल्कि दिमाग के लिए भी असरदार है, नर्वस सिस्टम की कमज़ोरी दूर करता है और मेमोरी पॉवर बढ़ाता है. 

नागार्जुनाभ्र रस एक औषधि है जिसे सभी लोग यूज़ कर सकते हैं, हार्ट की दूसरी दवाओं की तरह इसका यूज़ करने के लिए कोई ज्यादा सोच विचार करने की ज़रूरत नहीं होती, क्यूंकि यह बिलकुल सेफ़ दवा है. 

नागार्जुनाभ्र रस की मात्रा और सेवन विधि -

एक-एक गोली सुबह-शाम शहद से 

50 ग्राम की कीमत है सिर्फ़ 300 रुपया जिसका लिंक दिया गया है -  Nagarjunabhra Ras

29 मई 2020

Thalassemia Ayurvedic Treatment | थैलेसिमिया का आयुर्वेदिक उपचार | Vaidya Ji Ki Diary#18


आज वैद्य जी की डायरी में मैं बात करने वाला हूँ थैलेसिमिया के आयुर्वेदिक उपचार के बारे में. जी हाँ दोस्तों, थैलेसिमिया का नाम सुना होगा इसके बारे में आयुर्वेद क्या कहता है और कौन-कौन सी औषधि इसके लिए लेनी चाहिए आईये सब विस्तार से जानते हैं - 

थैलेसिमिया क्या है?

मॉडर्न साइंस ने इसे थैलेसिमिया का नाम दिया है जिसके कारण शरीर में खून की इतनी कमी हो जाती है कि रोगी को प्रत्येक दस-पंद्रह दिनों में ब्लड Transfusion कराना पड़ता है जीवन भर, एलोपैथ में इसका कोई और उपाय नहीं है इसके अलावा. लिवर-स्प्लीन का बढ़ जाना, पीला-लाल पेशाब होना, हल्का बुखार, पीली आँखें, पीला शरीर, रक्तपित्त जैसे लक्षण इसमें पाए जाते हैं. यह अधिकतर बच्चों में पाया जाता है, पर यह किसी को भी हो सकता है. इसके कारण, लक्षण तो आपको हर जगह मिल जायेंगे गूगल करने पर भी, इन सब पर अधीक चर्चा न कर आईये जानते हैं -

थैलेसिमिया को आयुर्वेद क्या कहता है?

आयुर्वेदिक ग्रंथों में इस नाम से कोई रोग नहीं मिलता है. परन्तु इसके कारण और लक्षण के अनुसार कठिन पांडू रोग मान सकते हैं. थैलेसिमिया के रोगी आयुर्वेद की शरण में नहीं आते हैं. पर आयुर्वेद में इसका समाधान है.

थैलेसिमिया की आयुर्वेदिक चिकित्सा 

आयुर्वेदिक औषधियों से थैलेसिमिया का उपचार संभव है, उचित चिकित्सा मिलने से रक्त कणों का क्षरण रुक जाता है, नया खून बनने लगता है और ख़ून चढ़ाने की ज़रूरत नहीं पड़ती, पर इसमें समय लगता है और धैर्यपूर्वक औषधि सेवन करनी पड़ती है. 

थैलेसिमिया को कठिन पांडू रोग मानकर ही चिकित्सा करनी चाहिए. इसके लिए औषधि व्यवस्था कुछ इस प्रकार से करें - 

1) सिद्ध स्वर्णमाक्षिक भस्म 5 ग्राम + ताप्यादी लौह 5 ग्राम + स्वर्णबसन्त मालती 5 ग्राम + कहरवा पिष्टी 5 ग्राम + गिलोय सत्व 5 ग्राम + पुनर्नवादि मंडूर 5 ग्राम, सभी को अच्छी तरह से खरलकर बराबर मात्रा की 40 पुड़िया बना लें(यह व्यस्क व्यक्ति की मात्रा है)

सेवन विधि- एक-एक पुड़िया सुबह-शाम शहद से 

2) कुमार्यासव दो स्पून + पुनर्नवारिष्ट 2 स्पून + एक कप पानी में मिक्स कर भोजन के बाद रोज़ दो बार 

यही औषधि वैद्य जी के देख रेख में लगातार सेवन करते रहने से थैलेसिमिया के रोगी को धीरे-धीरे लाभ हो जाता है. ब्लड ट्रांसफ्यूज़न कराने की अवधि धीरे-धीरे बढ़ जाती है और कुछ महीनों में ब्लड ट्रांसफ्यूज़न की आवश्यकता नहीं रहती. मतलब किसी-किसी को हफ़्ता दस दिन में खून चढ़ाना पड़ता है तो धीरे-धीरे यह Duration बढ़ जाता है, क्यूंकि शरीर में नया खून बनने लगता है. 

सभी औषधि उत्तम क्वालिटी की होनी चाहिए तभी वांछित लाभ मिलेगा. अगर औषधि मिलने में समस्या हो तो इस नम्बर पर संपर्क कर सकते हैं. 
+971524115684(Dubai), 07645065097(India), My WhatsApp



30 अप्रैल 2020

Bhuvan Bhaskar Ras | भुवन भास्कर रस - कैन्सर की आयुर्वेदिक औषधि


भुवन भास्कर रस एक स्वर्णकल्प है जिसमे भस्मों के अलावा जड़ी-बूटियों का भी मिश्रण होता है.

भुवन भास्कर रस के घटक- कज्जली 10 ग्राम, शुद्ध गंधक, शुद्ध हरताल, शुद्ध मैनसिल, स्वर्ण भस्म, अभ्रक भस्म सहस्रपुटी, लौह भस्म और खर्पर भस्म प्रत्येक 5-5 ग्राम, बंग भस्म, नाग भस्म, ताम्र भस्म प्रत्येक 10-10 ग्राम, गोखरू, शुद्ध भिलावा, सोंठ, मिर्च, पीपल, गिलोय, विदारी कन्द और वराही कन्द प्रत्येक 5-5 ग्राम.

निर्माण विधि - सभी जड़ी-बूटियों का बारीक चूर्ण कर अलग रख लें, कज्जली और भस्मों को अच्छी तरह से मिक्स करने के बाद जड़ी-बूटियों के चूर्ण को मिलाकर आँवला के रस और नीम के पत्तों के रस की अलग-अलग एक-एक भावना देकर सुखाकर रख लें. 

भुवन भास्कर रस की मात्रा और सेवन विधि - 125 मिलीग्राम से 250 मिलीग्राम तक 2 स्पून शहद और चौथाई स्पून देसी घी में मिक्स कर चाटकर खाना चाहिए, रोज़ दो बार सुबह-शाम

हर तरह के कैंसर की प्रथम अवस्था में बेहद असरदार है. ब्लड कैंसर, थ्रोट कैंसर, ब्रेन कैंसर, ब्रैस्ट कैंसर, पेट का कैंसर और कैंसर वाले ट्यूमर, सिस्ट, अबुर्द, शिश्नाबुर्द में भी प्रयोग कर सकते है.

चिकित्सक बन्धु से आग्रह है कि इस योग का निर्माण कर रोगियों पर प्रयोग कराएँ और जो भी रिजल्ट मिलता है ज़रूर बताएं. 



17 अप्रैल 2020

Ajwain Benefits and Usage | अजवायन पेट की बीमारियों के लिए रामबाण



अजवायन का कोई परिचय देने की ज़रूरत नहीं है यह आपके किचन में ही मिल जायेगा. 

अजवायन मुख्यतः तीन तरह की होती है जंगली अजवायन, ख़ुरासानी अजवायन और अजमोद या अजमोदा 

जंगली अजवायन तो मुश्किल से ही मिलती है, अजमोद जो है साइज़ में बड़ी होती है और ख़ुरासानी अजवायन ही अक्सर रसोई में प्रयोग की जाती है.

अजवायन के गुण -

आयुर्वेदानुसार अजवायन तीक्ष्ण, चरपरी, पाचक, अग्निवर्धक, वायु एवम कफ़ नाशक और कृमिनाशक जैसे गुणों से भरपूर होती है. 

पेट की बीमारीयों के लिए यह बहुत ही असरदार होती है. गैस, वायु गोला बनना, अपच, पेट दर्द, अजीर्ण, पेचिश, उल्टी-दस्त, पेट के कीड़े, लिवर और स्प्लीन के रोगों में असरदार है. 

आईये अब जानते हैं अजवायन के कुछ औषधिय प्रयोग - 

अपच या बदहज़मी होने पर - अजवायन, सोंठ, सेंधा नमक और हर्रे बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बनाकर रख लें. इस चूर्ण को एक-एक चम्मच रोज़ तीन बार लेने से अपच और अजीर्ण जैसी समस्या दूर होती है. 

पेट दर्द, डकार, पेट के भारीपन में - पीसी हुयी अजवायन एक स्पून और खाने वाला सोडा चौथाई स्पून मिक्स कर भोजन के बाद लेना चाहिय. अजवायन को अदरक के रस में भिगाकर सुखाकर रख लें. पेट दर्द होने पर आधा स्पून इसका सेवन करने से लाभ होता है.

बच्चों के हरे पीले दस्त और उल्टी होने पर - एक चुटकी अजवायन के बारीक चूर्ण को दूध के साथ मिक्स कर चटाना चाहिए. 

पेट के कीड़े होने पर - अजवायन और वायविडंग बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बनाकर रख लें. इस चूर्ण को शहद और अन्नानास के रस के साथ देने से बच्चों के पेट के कीड़े दूर होते हैं. 

उदर विकार के लिए - अजवायन 50 ग्राम, ग्वारपाठा का रस 25 ग्राम और नौसादर 2 ग्राम लेकर एक काँच के जार में मिक्स कर धुप में रख 4-5 दिन रख दें. अब इस मिश्रण को 1 स्पून प्रतिदिन दो-तीन बार सेवन करने से हर तरह के उदर विकार नष्ट हो जाते हैं. 

भूख की कमी होने पर - पीसी हुयी अजवायन, सोंठ का चूर्ण, काला नमक और आक की कली बराबर मात्रा में लेकर खरल कर मटर के साइज़ की गोलियाँ बनाकर सुखाकर रख लें. दो-दो गोली सुबह-शाम लेने से अग्नि तीव्र हो जाती है, भूख खुलकर लगने लगती है. अपच, गैस जैसी पेट की बीमारियाँ दूर होती हैं. 

एक स्पून अजवायन को दो कप पानी में उबालें और जब एक कप पानी बचे तो छानकर इस पानी को भोजन के बाद पीने से गैस-अपच जैसी प्रॉब्लम नहीं होती और हाजमा ठीक रहता है. 

अजवायन को पीसकर पेट पर लेप करने से  भी गैस की प्रॉब्लम में आराम मिलता है. बच्चों के पेट फूलने पर अजवायन को आग में जलाकर इसके धुवें से पेट की सिकाई करने से लाभ होता है. 

तो ये थी आज की जानकारी, अजवायन के इस छोटे से दाने के बड़े-बड़े गुण के बारे में. 





13 मार्च 2020

Amalki Rasayan Benefits in Hindi | आमलकी रसायन के बेजोड़ फ़ायदे


यह एक शास्त्रीय आयुर्वेदिक औषधि है जो लिवर, पाचन तंत्र, दिल, दिमाग, स्किन, आँख और बालों की बीमारियों के लिए बेहद असरदार है. तो आईये इसके बारे में विस्तार से जानते हैं - 

आमलकी रसायन जैसा कि इसके नाम से ही पता चलता है इसका मुख्य घटक आंवला होता है, आयुर्वेद में आमला को आमलकी भी कहा जाता है. आयुर्वेद में आवंला में आयुर्वेद की बहुत प्रशंसा है, इसके बेजोड़ गुणों के कारन ही इसे रसायन औषधि माना जाता है. 

आयुर्वेदिक ग्रन्थ 'रसतंत्र सार व सिद्ध प्रयोग संग्रह' का यह योग है जिसे तीन-चार तरीक़े से  बनाया जाता है. परन्तु सभी की समानता यह है कि सभी का मुख्य घटक आँवला ही है. दुसरे तरीक़ों में आँवला के अलावा पिप्पली, घी और मिश्री जैसे घटक होते हैं, यहाँ पर मैं सबसे ज़्यादा पॉपुलर और इफेक्टिव विधि के बारे में ही बताने वाला हूँ. 

आमलकी रसायन के घटक और निर्माण विधि 

आँवला चूर्ण और आँवला का रस 

गुठली निकालकर आँवला का बारीक चूर्ण बना लें और फिर इसमें आँवले के रस की भावना देकर पत्थर के खरल में घुटाई करें. इसी तरह से 21 भावना देकर छाया में सुखाकर अच्छी तरह से खरलकर रख लेना चाहिए. यही असली और पॉपुलर आमलकी रसायन है. 

आमलकी रसायन के गुण या प्रॉपर्टीज 

विटामिन सी की प्रचुर मात्रा होने के साथ-साथ इसमें कई तरह के गुण पाए जाते हैं जैसे - एंटी ऑक्सीडेंट, एन्टी एजिंग, Antacid या अम्ल पित्त नाशक, पाचक, लिवर-स्प्लीन को प्रोटेक्ट करने वाली और रसायन जैसे गुणों से भरपूर है. 

यह सौम्य और शीतल या तासीर में ठण्डी औषधि है जो बीमारीओं को दूर कर स्वास्थ की रक्षा करती है. 

आमलकी रसायन के फ़ायदे 

यह दिल, दिमाग, पेट, लिवर-स्प्लीन, आंख, स्किन से लेकर बालों के लिए भी असरदार औषधि है. 

पित्त दोष, शरीर की गर्मी, सीने की जलन, एसिडिटी, हाइपर एसिडिटी, पेप्टिक अल्सर इत्यादि को करती है. अक्सर वैद्यगण दुसरे योगों के साथ इसका सेवन कराते हैं. 

आँखों की बीमारी, बालों का गिरना, समय से पहले सफ़ेद होना, खून की कमी, हीमोग्लोबिन कम होना इत्यादि में भी इसके सेवन से अच्छा लाभ होता है. 

विधि पूर्वक इसका सेवन करने से चुस्ती-फुर्ती आती है और यौवन बना रहता है. 

आमलकी रसायन की मात्रा और सेवन विधि 

एक से तीन ग्राम तक सुबह-शाम गाय का घी, शहद या गर्म पानी से या फिर डॉक्टर की सलाह के अनुसार उचित अनुपान से लेना चाहिए. 

विधि पूर्वक  बने हुए आमलकी रसायन के 50 ग्राम की क़ीमत है सिर्फ़ 155 रुपया जिसका लिंक निचे दिया गया है. 


29 फ़रवरी 2020

Basant Tilak Ras | बसन्त तिलक रस के फ़ायदे


यह भैषज्य रत्नावली का एक स्वर्णयुक्त योग है जिसे कई तरह के रोगों में  प्रयोग  करने का प्रावधान है परन्तु यह ज़्यादा प्रचलित योग नहीं है, तो आईये इसके बारे में थोड़ा विस्तार से जानते हैं - 

बसन्त तिलक रस के घटक या कम्पोजीशन - 

आयुर्वेदिक ग्रन्थ भैषज्य रत्नावली के अनुसार इसके घटक कुछ इस प्रकार से हैं - लौह भस्म, बंग भस्म, स्वर्णमाक्षिक भस्म, स्वर्ण भस्म,रजत भस्म, अभ्रक भस्म, मोती पिष्टी और प्रवाल पिष्टी प्रत्येक 10-10 ग्राम.

जायफल, जावित्री, दालचीनी, छोटी इलायची के दाने, तेजपात और नागकेशर प्रत्येक 10-10 ग्राम का बारीक कपड़छन चूर्ण 

बसन्त तिलक रस निर्माण विधि - 

इसकी निर्माण विधि बड़ा ही सरल है. सभी भस्मो और दूसरी औषधि के कपड़छन चूर्ण को अच्छी तरह से मिक्स कर त्रिफला के क्वाथ में तीन घन्टे तक घोंटकर एक-एक रत्ती या 125mg की गोलियाँ बनाकर छाया में सुखाकर रख लिया जाता है.

बसन्त तिलक रस के गुण 

इसके गुणों की बात करें तो यह त्रिदोष नाशक, उदर-वात शामक, बाजीकरण, बल-वीर्य वर्द्धक, ह्रदय को बल देना, प्रमेह नाशक और रसायन गुणों से भरपूर होता है. 

बसन्त तिलक रस के फ़ायदे 

प्रमेह, बहुमूत्र, मधुमेह इत्यादि में इसके सेवन से लाभ होता है. 

वात व्याधि, सन्निपात, अपस्मार, उन्माद या पागलपन और हैजा जैसा रोगों की उत्तम औषधि है. 

वीर्य विकार, शुक्रदोष और मूत्र रोगों में इसका अच्छा प्रभाव मिलता है. 
यह दिल और दिमाग को ताक़त देता है और टेंशन दूर कर अच्छी नींद लाने में मदद करता है. 

बसन्त तिलक रस की मात्रा और सेवन विधि 

एक से दो गोली तक सुबह-शाम शहद, गिलोय के रस या शतावर के रस के साथ. इसे आयुर्वेदिक डॉक्टर की देख रेख में भी लेना चाहिए. 

बैद्यनाथ के 10 टेबलेट की क़ीमत क़रीब 400 रुपया है, जो आयुर्वेदिक मेडिकल स्टोर से मिल सकता है. 





23 फ़रवरी 2020

Anti Snoring Drops | एन्टी स्नोरिंग ड्रॉप्स - खर्राटा बन्द करने की दवा


वैद्य जी की डायरी में आज मैं स्नोरिंग या खर्राटे की समस्या का समाधान लेकर आया हूँ. जी हाँ दोस्तों, खर्राटा लेने वाला आदमी तो गहरी नीन्द में सोया रहता है परन्तु उसके पास सोने वाले आदमी की नीन्द हराम हो जाती है. खर्राटा या स्नोरिंग की समस्या आजकल कुछ ज़्यादा ही है. अगर पति-पत्नी में से किसी को खर्राटे की समस्या हो तो फिर बहुत ज़्यादा प्रॉब्लम हो जाती है. इस प्रॉब्लम को दूर करने के लिए बहुत ही असरदार और चीप एंड बेस्ट दवा एंटी स्नोरिंग ड्रॉप्स है, तो आईये इसके बारे में थोड़ा बहुत जानते हैं - 

आप मानें या न मानें आयुर्वेद में हर बीमारी का ईलाज है, बस ज़रूरत है तो ग्रन्थों का गहन अध्यन करने और रिसर्च करने की. मैंने इसके लिए बहुत अध्यन किया पर कोई आसान सा और सटीक उपाय नहीं मिल रहा था. लास्ट टाइम जब मैं इंडिया गया था तो आयुर्वेद के अपने गुरु से इस समस्या के बारे में चर्चा किया था और अपना आईडिया बताया था. तब जाकर यह योग Finalize हुआ, हालाँकि यह भी कोई आसान योग नहीं पर यूज़ करने के लिए इजी  है. 

इसका नाम मैं रखा हूँ - एन्टी स्नोरिंग ड्रॉप्स 

सोने से पहले नाक के दोनों छिद्रों में दो- तीन ड्रॉप्स तक डालना होता है. कुछ ही दिनों में आवाज़ कम होने लगती है और समस्या से मुक्ति मिलती है. एक पैक की प्राइस है सिर्फ़ 600 रुपया, जो ऑनलाइन अवेलेबल है lakhaipur.in पर जिसका लिंक निचे दिया जा रहा है, सिमित मात्रा में अभी उपलब्ध है. 



एंटी स्नोरिंग ड्रॉप्स के घटक और निर्माण विधि -

यह पूरी तरह से आयुर्वेदिक और आर्गेनिक दवा जो 100% सुरक्षित है. आम आदमी के लिए इसे बनाना सम्भव नहीं है. इसके लिए औषधि निर्माण में दक्ष चिकित्सक बन्धु मुझसे संपर्क कर सकते हैं. 

मुझे खर्राटा नहीं आता है, अगर मेरे पास सोने वाला कोई आदमी खर्राटा लेने लगे तो मेरी नींद उड़ जाती है. मैं इसका बड़ा भुक्तहोगी हूँ, आपके पास सोने वाला कोई खर्राटा ले तो कितनी परेशानी होती है, मैं बेहतर समझ सकता हूँ. 

तो मेरे भाईयों और बहनों, अगर आपकी भी नींद किसी के खर्राटे से ख़राब होती है तो एंटी स्नोरिंग ड्रॉप्स का प्रयोग कराईये और चैन की नीन्द सोयिये. 

कई लोगों पर इसका टेस्ट करा चूका हूँ, बड़ा ही उत्साहजनक परिणाम मिला है. दस में से साथ-आठ लोगों को इसी से लाभ हो जाता है. एंटी स्नोरिंग ड्रॉप्स से जिनको कोई फ़र्क नहीं पड़ता है उनको खाने वाली औषधि सेवन करनी होती है, जो कि वैद्य जी की डायरी के एक दुसरे पोस्ट में बताया हूँ. 





14 फ़रवरी 2020

Amir Ras Benefits in Hindi | अमीर रस एक बेजोड़ औषधि


आज की जानकारी है शास्त्रीय आयुर्वेदिक औषधि अमीर रस के बारे में. आप जो सोच रहे वैसा अमीर-ग़रीब वाला अमीर नहीं बल्कि इस दवा का नाम ही कुछ ऐसा है सबसे अलग. आयुर्वेदानुसार यह सुज़ाक और आतशक की  बेजोड़ औषधि है, तो आईये इसके बारे में थोड़ा-बहुत जानते हैं - 

अमीर रस जैसा कि इसके नाम में ही रस जुड़ा हुआ है, यह एक रसायन औषधि है जो बहुत तेज़ी से असर करती है. 

रस कपूर, दार चिकना, सिंगरफ, चाँदी, सफ़ेद संखिया और सेंधा नमक जैसी चीज़ें इसका मुख्य घटक हैं. इसके निर्माण विधि पर चर्चा न कर आईये इसके गुणों की बात करते हैं. 

अमीर रस के गुण या प्रॉपर्टीज - 

आयुर्वेदानुसार यह कीटाणु नाशक, तीव्र रक्तशोधक यानि तेज़ी से खून साफ़ करने वाला, बिल्कुल किसी अंग्रेज़ी इंजेक्शन की तरह, वात और कफ़ नाशक है. 

अमीर रस के फ़ायदे 

सुज़ाक और आतशक यानि Gonorrohea और Syphillis या गर्मी की बीमारी की यह बेजोड़ दवा है. ग्रन्थों में इसे इन बीमारियों की 'रामबाण' औषधि कहा गया है. 
सुज़ाक और सिफलिस की वजह से होने वाले जोड़ों के दर्द, गठिया और वात रोगों में भी इस से अच्छा लाभ होता है. यह रक्त वाहिनी और वात वाहिनी नाड़ियों के विक्षोभ को दूर कर अर्धांग वात और सन्धिगत वात को दूर कर देता है. 

अमीर रस की मात्रा और सेवन विधि - 

125 mg से 250 mg तक सुबह-शाम सिर्फ़ दस दिनों तक. पुराने रोगों में इसे इक्कीस दिन तक सेवन करने का प्रावधान है रोगी के बलाबल अनुसार. 

इसे मुनक्का के अन्दर निगलकर खाने का नियम है ताकि दांत में टच न हो. पर बेस्ट यह है कि इसे कैप्सूल में भरकर यूज़ किया जाये. दांत में टच होने से दाँत ख़राब हो जाते हैं. 

मुझे एक घटना याद आती है- मेरे एरिया के एक नौसिखिये वैद्य जी ने रोगी को इसे मुनक्के में तो दिया था पर रोगी ने इसे निगलने की बजे चबा दिया था और इसकी वजह से उसके दाँतों की कंडीशन ख़राब हो गयी थी. बहरहाल, इसे विधि पूर्वक ही सेवन करना चाहिए, और वैद्य की जी देख रेख में यूज़ करना चाहिए. 

विडियो देखने वाले सभी दर्शकों से अनुरोध है कि इस औषधि को कभी भी अपने मन से यूज़ न करें, नहीं तो सीरियस नुकसान भी हो सकता है. 




04 फ़रवरी 2020

Corona Virus Ayurvedic Treatment | कोरोना वायरस का आयुर्वेदिक उपचार


कोरोना वायरस के बारे में आपने न्यूज़ में सुना ही होगा, चीन से शुरू होने वाली यह  बीमारी दुनिया के कई मुल्कों तक फैल चुकी है. हमारे देश भारत में इसके कुछ मामले सामने आये हैं और यहाँ दुबई में भी इसकी एंट्री हो चुकी है. हजारों लोग इस से संक्रमित हो चुके हैं और सैंकड़ों लोगों की मौत भी हो चुकी है. विश्व स्वास्थ संगठन इसे वैश्विक संकट घोषित कर चूका है. एलोपैथ वालों का कहना है कि इस बीमारी का अब तक कोई इलाज नहीं है. आयुर्वेद इसके बारे में क्या कहता है? क्या आयुर्वेद में इसकी कोई दवा है? आईये यही सब के बारे में विस्तार से जानते हैं - 

चूँकि यह नए टाइप का वायरस है जो पहले कभी नहीं पाया गया, इसलिए वैज्ञानिक इसका इसका इलाज ढूंढने में दिन-रात लगे हैं. 

सबसे पहले समाज लीजिये इसके लक्षण -

इसका संक्रमण होने पर जुकाम, सर दर्द, खांसी, गले में खराश, बुखार, छिंक आना, थकान, न्युमोनिया, फेफड़े में सुजन, साँस लेने में तकलीफ़ जैसे लक्षण पाए जाते हैं. 

इस तरह की बीमारी के लिए आयुर्वेद क्या कहता है? 

हर साल कुछ न कुछ नयी बीमारी आती है और आने वाले समय में भी इस तरह का नया वायरस आयेगा इसमें कोई शक नहीं. पर आयुर्वेद में आज से हजारों साल पहले इस तरह की बीमारी का ईलाज बताया गया है. इसके लिए आयुर्वेद के मुख्य सिद्धांत को ध्यान में रखना होगा. 

इस तरह कि बीमारी का नाम आयुर्वेद के प्राचीन ग्रंथों में भले ही न मिले, पर इस तरह के संक्रमण का उपचार बताया ज़रूर गया है. 

तो सवाल यह उठता है कि इस तरह के संक्रमण और लक्षण में कौन सी दवा का प्रयोग किया जाये? 

तो जवाब बड़ा ही सिंपल है- लक्षण के अनुसार औषधि का सेवन कराना चाहिए 
आयुर्वेदिक औषधि की बात की जाये तो मेरे दिमाग में दो दवा का नाम आता है - त्रैलोक्य चिन्तामणि रस और त्रिभुवनकीर्ति रस 

दोनों में से एक-एक रत्ती शहद के साथ सेवन कर यष्टि मधु और वासा क्वाथ दिया जाये तो कोरोना वायरस के लक्षणों का शमन हो सकता है. 

कैसे?

त्रैलोक्य चिन्तामणि रस स्वर्ण युक्त बहुमूल्य औषधि है. इसके घटकों पर आप नज़र डालेंगे तो पाएंगे कि यह कीटाणु, वायरस नाशक, फेफड़ों और ह्रदय को बल देने वाला, और वात शामक जैसे अनेको गुणों से भरपूर है. स्वर्ण भस्म एक बेजोड़ एन्टी वायरल और एंटी बायोटिक है.

इसी तरह से त्रिभुवनकीर्ति रस बुखार, फ्लू और सांस की तकलीफ़ जैसे लक्षणों को दूर करने में बेजोड़ है. 

 तो ये है मेरी राय कोरोना वायरस के लक्षणों में प्रयोग करने लायक आयुर्वेदिक औषधि के बारे में. इसके बारे में आपके क्या विचार है, कमेन्ट कर ज़रूर बताएं. 

कोरोना वायरस के संक्रमण से कैसे बचें?

जैसा की सभी जानते हैं Prevention is better than Cure तो इसके संक्रमण से बचने के लिए 

अगर घर से बाहर कहीं पब्लिक एरिया में जाते हैं तो मास्क लगायें, बिना ज़रूरत के बाहर निकलने से बचें, हाथों की अच्छी तरह से साबुन और पानी से सफाई करें. 
छींकते समय नाक और मुँह ढकें. सर्दी जुकाम से पीड़ित लोगों के पास जाने से बचें. मेड इन चाइना वाले किसी भी सामान को न तो छुएँ और न ही घर लायें. 

आजकल यह बात तेज़ी से फैल रही है कि Chinese सामान को छूने से भी इसका इन्फेक्शन हो सकता है. हालाँकि अब तक इसका कोई पुख्ता सुबूत नहीं है पर संभव हो सकता है. 

तो यह सब उपाय हैं इस से बचने के, पर सबसे बड़ी बात आपको बता दूँ कि सारा उपाय एक तरफ़ और आपकी  रोग प्रतिरोधक क्षमता दूसरी तरफ़ है. अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाएं, कोई भी वायरस अटैक नहीं करेगा. इसके लिए तुलसी का पत्ता, गिलोय का रस और आँवला जैसी चीजों का सेवन किजिए. 



26 जनवरी 2020

Purushatva Vardhak Set | पुरुषत्व वर्द्धक सेट- मर्दानगी बढ़ाने वाली आयुर्वेदिक औषधि


पुरुषत्व वर्द्धक यानी मर्दानगी बढ़ाने वाली दवा. इस सेट या किट में तीन तरह की दवा है टेबलेट- स्वर्ण मदन पिल्स, सिरप- पौरुष सुधा और तिला इन्द्रोज 

स्वर्ण मदन पिल्स - सुनहरी टेबलेट है जिसके मुख्य घटक हैं  विदारीकन्द, त्रिफला, कौंच बीज, अर्जुन, शिलाजीत, शुद्ध गुग्गुल, स्वर्ण बंग, लौह भस्म और प्रवाल भस्म 
इसे दो-दो टेबलेट सुबह-दोपहर-शाम भोजन के बाद दूध से लेना होता है.

सीरप पौरुष सुधा - इसके मुख्य घटक हैं सफ़ेद मुस्ली, अश्वगंधा, शतावर, बिदारी कन्द, मुनक्का इत्यादि. इसे पांच ML प्रतिदिन दो बार भोजन के बाद लेना है.

तिला इन्द्रोज - यह मालिश का तेल है, इसे तीन-चार बून्द लेकर सोने से पहले इन्द्री पर हल्की मालिश करनी होती है. 

यह पूरा सेट पुरे 20 दिन का है, एक महीने में 20 दिन ही इसका इस्तेमाल करना होता है. 10 दिन के गैप के बाद फिर से इसका इस्तेमाल कर सकते हैं, अगर प्रॉब्लम ज़्यादा हो तो. 

नयी प्रॉब्लम में 20 दिनों में ही फ़ायदा दिखता है, समस्या पुरानी हो तो इसका तीन-चार सेट प्रयोग कर लेना चाहिए. 

पुरुषत्व वर्द्धक या पी. वी. सेट के फ़ायदे- 

यह एक रसायन और बाजीकरण योग है जो वीर्य दोष दूरकर भरपूर मात्रा में निर्दोष और गाढ़े वीर्य का निर्माण करता है. जनरल Weakness, शारीरिक कमज़ोरी, शीघ्रपतन, इरेक्टाइल डिसफंक्शन, लैंगिक दुर्बलता, नसों की कमज़ोरी, ढीलापन, स्वप्नदोष, वीर्य विकार, नामर्दी इत्यादि को दूर कर नयी ऊर्जा और शक्ति का संचार करता है. 

इसमें दी गयी दवाईओं के प्रयोग से रोगी शीघ्र रोगमुक्त होकर स्वस्थ, पुष्ट और रोगमुक्त होकर रति क्रिया का भरपूर आनन्द उठाता है. 

विशुद्ध आयुर्वेदिक औषधि है, इसके सेवन से किसी भी तरह कोई साइड इफ़ेक्ट या नुकसान नहीं होता है. 21 साल से कम उम्र के लोगों का इसका प्रयोग नहीं करना है. 

20 दिन के पुरे एक सेट की कीमत है सिर्फ़ 700 रुपया जिस ऑनलाइन खरीदने का लिंक दिया गया है- Buy Online 


कामशक्ति वर्द्धक सेट स्वर्ण, हीरक और मोती युक्त शीघ्रपतन की औषधि 





09 जनवरी 2020

Sangjarahat Bhasma | संगजराहत भस्म, गुण उपयोग, निर्माण और प्रयोग विधि


यह एक शास्त्रीय आयुर्वेदिक औषधि है जो रक्तपित्त, बॉडी में कहीं से भी ब्लीडिंग होना, ल्यूकोरिया, धात रोग, सुजाक और पायरिया जैसे अनेकों रोगों में प्रयोग की जाती है, तो आईये जानते हैं संगजराहत भस्म क्या है? इसके गुण, उपयोग और निर्माण विधि के बारे में विस्तर से -

संगजराहत भस्म क्या है?

संग का मतलब होता है पत्थर यह एक तरह का खनिज होता है. यह सफ़ेद रंग का चिकना और बड़ा ही मुलायम पत्थर होता है. इसे घीया पाठा भी कहा जाता है. यूनानी में इसे संगजराहत ही कहते हैं जबकि संस्कृत में इसे दुग्ध पाषाण के नाम से जाना जाता है. दुग्ध का मतलब दूध और पाषाण का मतलब पत्थर, दूध की तरह सफ़ेद रंग का होने से इसे संस्कृत में दुग्ध पाषाण कहा गया है.

अंग्रेज़ी में इसे Talc और Soft Stone नाम से जाना जाता है. दन्त मंजन और Talcum Powder में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है.

संगजराहत भस्म निर्माण विधि - 

सबसे पहले इसके टुकड़ों को आग में गर्म कर गावज़बाँ के काढ़े में बुझाना चाहिए इसके बाद मिट्टी का एक बर्तन लेकर उसमे पहले घृतकुमारी का गूदा डाला जाता है उसके बाद संगजराहत और फिर ऊपर से घृतकुमारी का गूदा डालकर बर्तन का मूंह बंदकर सम्पुट की अग्नि दी जाती है. ठण्डा होने पर बारीक पीसकर रख लिया जाता है. कुछ वैद्य लोग इसे डायरेक्ट घृतकुमारी के गूदे के साथ भस्म बनाते हैं तो कुछ लोग घृत कुमारी की जगह नीम के पत्तों के साथ इसकी भस्म बनाते हैं. एक आलसी वैद्य जी को बिना भस्म बनाये इसका इस्तेमाल करते हुवे देखा, जो कि बिल्कुल ग़लत है. ऐसे ही लोग आयुर्वेद को बदनाम करते हैं. एक्सटर्नल यूज़ के लिए चलेगा पर इंटरनल यूज़ के लिए विधि पूर्वक भस्म बनाना बहुत ज़रूरी है.

संगजराहत भस्म के गुण या Properties 

इसके गुणों की बात करें तो आयुर्वेद और यूनानी मतानुसार यह तासीर में ठण्डी और पित्तशामक है. यह खून बहना रोकने में बेहद असरदार है. यह रक्त पित्त, ख़ूनी दस्त, ख़ूनी उल्टी, श्वेत प्रदर, रक्तप्रदर, स्वप्नदोष, सुजाक और पायरिया जैसी दांत की बीमारियों में भी असरदार है.

संगजराहत भस्म की मात्रा और सेवन विधि – 500mg से एक ग्राम तक सुबह-शाम शहद, मक्खन, मलाई या रोगानुसार अनुपान से.

आईये अब जानते हैं रोगानुसार संगजराहत भस्म के प्रयोग -

रक्त पित्त(कहीं से भी ब्लीडिंग होने)में - संगजराहत भस्म 5 ग्राम + कामदुधा रस मोती युक्त 1 ग्राम + वल्लभ रसायन 2.5 ग्राम. सभी को मिलाकर 10 ख़ुराक बना लेना है. एक-एक मात्रा सुबह-शाम दूब घास के रस के साथ देना चाहिए. साथ में उशिरासव भी पीना चाहिय.

स्वप्नदोष(स्वप्न प्रमेह, नाईटफॉल) में- संगजराहत भस्म 10 ग्राम + प्रवाल पिष्टी 5 ग्राम + स्फटिक भस्म 5 ग्राम + आमलकी रसायन 20 ग्राम. सभी को मिलाकर 40 डोज़ बना लें. एक-एक डोज़ सुबह-शाम गिलोय के रस से देना चाहिए.

पूयमेह(सुज़ाक) में - संगजराहत भस्म 500mg शहद से सुबह-शाम देना चाहिए और ऊपर से चन्दनासव पीना चाहिए.

दन्तरोग(मसूड़ों से खून आना, दांत हिलना) में - संगजराहत भस्म में स्फटिक भस्म और माजूफल का चूर्ण मिक्स कर मंजन करना चाहिए. हमारे स्टोर पर मिलने वाला दन्त रक्षक पाउडर में संगजराहत मुख्य घटक है और यह दन्त मंजन दाँतों की समस्या के लिए बेजोड़ है. यह सारी जानकारी मेरी पुस्तक 'आधुनिक आयुर्वेदिक चिकित्सा' में भी दी गयी है.

कट छिल जाने या किसी तरह की इंजुरी होने पर- किसी धारदार चीज़ से कट छिल जाने पर संगजराहत भस्म को पाउडर की तरह डालकर पट्टी कर देने से न सिर्फ़ ब्लीडिंग बन्द हो जाती है बल्कि इन्फेक्शन होने का भी ख़तरा नहीं रहता है. तो इस तरह से संगजराहत भस्म हर घर में रखने लायक घरेलु औषधि भी है.

संगजराहत भस्म मार्केट बहुत मुश्किल से मिलता है, पर यह अवेलेबल है ऑनलाइन जिसका लिंक  दिया गया है. 50 ग्राम की क़ीमत सिर्फ़ 60 रुपया है.


06 जनवरी 2020

Sanda Oil | सांडा तेल - जानिए इसकी सच्चाई


सांडा आयल या सांडे के तेल बारे में लगभग सभी जानते हैं, इसे लोग मर्दाना कमज़ोरी में यूज़ करते हैं. सांडे का तेल है क्या? क्या सच में इसकी मालिश से पुरुषों के यौन अंग की कमज़ोरी दूर होती है? इसके बारे में आयुर्वेद क्या कहता है? क्या इसका प्रयोग करना चाहिए? आईये सबकुछ डिटेल में जानते हैं इसके बारे में- 

सबसे पहले जानते हैं कि सांडा है क्या चीज़?

सांडा एक तरह का रेगिस्तानी छिपकली है जो भारत और पाकिस्तान के रेगिस्तानी इलाक़ो, जंगलों और कई दुसरे देशों में भी पाया जाता है. इसी की वसा या  चर्बी का तेल निकाल कर लोग बेचते हैं. 

फुटपाथ पर बाज़ारों में मजमा लगाकर इसका तेल बेचने वाले लोग अक्सर दिख जायेंगे. कई जगह पर साप्ताहिक बाज़ारों में भी यह लोग दिख जाते हैं. झारखण्ड में तो मैंने अक्सर आदिवासियों को इसे बेचते हुए देखा है. कम पढ़े लिखे और अनपढ़ लोग सुनी-सुनाई बातों में आकर इसे यूज़ करते है और कई लोगों को तो इस से नुकसान भी हो जाता है. 

इसे बेचने वाले कुछ लोग तो असली तेल देने के लिए इसे आपके सामने की चिर-फाड़ कर चर्बी को पिघलाकर तेल बनाकर देते हैं. 

इसे बेचने वाले लोग कभी एक जगह नहीं टिकते और बड़े धूर्त होते हैं, बड़ी-बड़ी बातें करते हैं. इसकी मालिश से ये हो जायेगा वो जायेगा. 

तो क्या सांडे का तेल असरदार होता है? 

जैसा कि दावा किया जाता है एफ्रोडेसियाक या यौनेक्षा बढ़ाता है, सांडे का तेल इरेक्टाइल डिसफंक्शन और लिंग की कमज़ोरी को दूर कर देता है, यह बिल्कुल ग़लत है. इसके तेल में किसी जानवर में पाई जाने वाली चर्बी के गुण ही हैं. 
आधुनिक डॉक्टर भी इसे नहीं मानते जबकि आयुर्वेद में भी इसका कोई प्रयोग  नहीं बताया गया है. 

आपने देखा होगा इसका तेल बेचने वाले लोग जिन्दा सांडा को रखे रहते हैं जो भागता नहीं है, क्यूंकि इसके कमर के हड्डी को तोड़ दिया जाता है. जब कमर की हड्डी ही टूट गयी हो तो बेचारा मासूम प्राणी हिल भी कैसे सकता है? 

इसी मिथक और अन्धविश्वास के चलते यह बेजुबान जानवर अपनी जान गँवा रहा है और लगभग विलुप्त होने की कगार पर है. 

मिथक और सच्चाई - 

सांडा के बारे में बात बहुत पुराने समय से चली आ रही है कि इस प्राणी में अद्भुत शक्ति पाई जाती है जिसकी वजह से यह रेगिस्तान के तपाने वाली गर्मी में भी ज़िन्दा रहता है, इसलिए इसके तेल को लोग पावरफुल मानते हैं. यह सब बिल्कुल झूठ है, इसमें कोई सच्चाई नहीं, मॉडर्न रिसर्च से भी यह साबित हो चूका है कि इसके तेल में ऐसा कोई गुण नहीं. 

मर्दाना कमज़ोरी के लिए अगर मालिश ही करनी है तो आयुर्वेद में इसके लिए कई तरह के तेल हैं, इनका इस्तेमाल कीजिये. M-Oil और तरंग मसाज आयल का प्रयोग कीजिये और फ़ायदा उठाइए बिना किसी साइड इफ़ेक्ट के. यह ऑनलाइन अवेलेबल है जिसका लिंक  दिया गया है.