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28 जून 2023

AVN का आयुर्वेदिक उपचार | AVN Ayurvedic Treatment

 

avn ayurvedic treatment

अगर आपकी हड्डियों में दर्द रहता है तो यह पता करना बहुत ज़रूरी है कि यह किस कारण से है. क्यूंकि हड्डियों में दर्द कई कारणों से हो सकता है, जिसमें अर्थराइटिस, ऑस्टियोपोरोसिस और एवैस्कुलर नेक्रोसिस जैसे कारण शामिल हैं लेकिन आज भी बहुत कम लोग एवैस्कुलर नेक्रोसिस (Avascular Necrosis) के बारे में जानते हैं.

क्या है एवैस्कुलर नेक्रोसिस  (Avascular-Necrosis)?

एवैस्कुलर नेक्रोसिस (Avascular Necrosis) हड्डियों में होने वाली ही एक समस्या है जिसमें बोन टिशू यानी हड्डियों के ऊतक मरने लगते हैं. सीधी भाषा में कहा जाए तो हड्डियां गलने लगती हैं।  यह बीमारी होने का कारण रक्त प्रवाह में बाधा होने के कारण टिशू तक पर्याप्त मात्रा में खून का नहीं पहुंच पाना है। और यदि किसी भी ऊतक को खून उचित मात्रा में नहीं मिलेगा तो वहाँ पोषण की कमी होगी जिसके चलते ये ऊतक मरने लगते हैं। इस बीमारी को ऑस्टियोनेक्रोसिस के नाम से भी जाना जाता है। सबसे अधिक यह समस्या कूल्हे की हड्डी में होती है जिसके कारण फेमर का गोल हिस्सा जो कूल्हे का जोड़ बनता है वो गलने लगता है। वैसे तो ये समस्या किसी भी उम्र में हो सकती है लेकिन मुख्य तौर पर 30 से 60 वर्ष के बीच के आयु वर्ग वाले लोग इससे ज्यादा पीड़ित होते है।


एवैस्कुलर नेक्रोसिस के कारण 

शराब व तम्बाकू का बहुत अधिक सेवन एवीएन के पीछे के सबसे बड़े कारण के रूप में जाने जाते हैं।  इसलिए सबसे जरुरी है की आप इन चीज़ों के सेवन से दुरी बनाये रखें। क्योंकि शराब व तम्बाकू से शरीर में बहुत सी वसा की छोटी छोटी बूंदें इधर से उधर बहती रहती हैं और समय के साथ ये छोटी रक्त वाहिनियों में जमा हो कर रक्त के प्रवाह को बंद कर देती हैं। और पोषण ना मिलने से आपकी हड्डियां या जोड़ गलने लगते हैं।


इसके अलावा एवीएन का दुसरा बड़ा कारण है स्टेरॉइड्स का अनियंत्रित व गलत इस्तेमाल। वजन बढ़ने, कम करने के लिए या फिर कद बढ़ने के लिए आज कल बहुत से उत्पादों में बहुत अधिक मात्रा में बिना बताये स्टेरॉइड्स मिला दिए जाते हैं। स्टेरॉइड्स के इसी गलत इस्तेमाल से हड्डियों पर गलत प्रभाव पड़ता है और हड्डियां गलने लगती हैं।

एवैस्कुलर नेक्रोसिस के लक्षण या Symptoms

अगर इस समस्या के लक्षणों की बात की जाए तो ये जरूरी नहीं कि व्यक्ति के अंदर शुरुआती दौर में इस बीमारी के लक्षण दिखाई दें। ज़्यादातर स्थिति अधिक खराब होने पर इसके लक्षण दिखाई देते हैं, क्योंकि हड्डी एक साथ गलने की बजाय धीरे धीरे गलती है। एक सीमा तक तो शरीर दर्द व अन्य लक्षणों को सहन करता है। लेकिन जब हड्डी एक सीमा से अधिक खराब हो जाती है तो अचानक सभी लक्षण एक साथ आने लगते हैं। 

अगर ये समस्या आपके कूल्हे से जुड़ी हुई है तो उस स्थिति में आपके जांघ और कूल्हे की हड्डियों में भयंकर दर्द होता है। चलने में लचक होने लगती है, सोते जागते लगातार दर्द बना रहता है। कूल्हे के अलावा ये बीमारी आपके कंधे, घुटने, हाथ और पैरों को भी प्रभावित कर सकती है। इनमें से किसी भी प्रकार के लक्षण दिखाई देने और जोड़ों में लगातार दर्द रहने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए.

एवैस्कुलर नेक्रोसिस का आयुर्वेदिक उपचार 

यदि आप AVN की समस्या से जूझ रहें हैं और जोड़ बदलवाने की समस्या का कोई विकल्प ढूंढ रहे हैं तो आयुर्वेद आपके लिए वरदान साबित हो सकता है, क्यूंकि आयुर्वेद के उपचार द्वारा हड्डी को जाने वाली ब्लड सप्लाई को सुनिश्चित किया जा सकता है इसलिए न केवल हड्डी का गलना रुक जाता है बल्कि जो नए और आरंभिक केस होते हैं वहाँ पर व्याधि के रुकने के साथ साथ हड्डी के उत्तक दुबारा भी बनने लगते हैं। यानी की एवीएन के ग्रेड में भी सुधार होता है। 

संक्षेपतः क्रिया योगो

निदान परिवर्जनम।। 

का ध्यान रखते हुए सबसे पहले रोग के कारणों का त्याग करना होगा, परहेज़ करना होगा.

AVN की आयुर्वेदिक औषधि व्यवस्था 

यहाँ मैं एवैस्कुलर नेक्रोसिस के लिए कुछ आयुर्वेदिक योग  बता रहा हूँ जिसे वैद्यगण अपने रोगीयों पर प्रयोग कर यश अर्जित कर सकते हैं - 

व्यवस्था पत्र -1

1) वृहत वातचिन्तामणि रस 1 ग्राम + नवरत्न कल्पामृत रस 3 ग्राम + प्रवाल पंचामृत रस मुक्त युक्त 10 ग्राम + गिलोय सत्व 10 ग्राम. सभी को खरल कर 60 पुड़िया बना लें. एक-एक पुडिया रोज़ तीन बार शहद से लेना है.

2) चन्द्रप्रभा वटी 2 गोली+ योगराज गुग्गुल 2 गोली + शिलाजित्वादि वटी 2 गोली मिलाकर रोज़ तीन बार गुनगुने पानी से 

3) अश्वगन्धारिष्ट 2 स्पून + दशमूलारिष्ट 2 स्पून बराबर मात्रा में पानी मिलाकर भोजन के बाद रोज़ दो बार 

व्यवस्था पत्र -2

1) योगेन्द्र रस 125 mg + शिलाजित्वादि लौह 125 mg + प्रवाल पंचामृत रस मुक्त युक्त 250 mg + गिलोय सत्व 250 mg + असगंध चूर्ण 1 ग्राम = 1 मात्रा, यह एक डोज़ है, ऐसी एक-एक डोज़ डेली 3 बार शहद से. 

2) योगराज गुग्गुल 2-2 गोली रोज़ दो बार गुनगुने पानी से 

3) दशमूलारिष्ट 2 स्पून + अश्वगंधारिष्ट 2 स्पून बराबर मात्रा में पानी मिलाकर भोजन के बाद 

इन सब के साथ में जीवन्त्यादि घृत, स्वर्ण बसन्त मालती, रुदन्ति कैप्सूल जैसी औषधि भी रोग और रोगी की दशा के अनुसार ऐड करना चाहिए.

तो इस तरह से औषधि सेवन से इस रोग में लाभ हो जाता है, समस्या बढ़ी हुयी हो तो पंचकर्मा भी आवश्यक होता है. 

अपने प्रिय पाठकों को बताना चाहूँगा कि यह सब दवा खुद से यूज़ न करें, स्थानीय वैद्य जी की देख रेख में ही सेवन करें. ख़ुद से यूज़ करने के लिए आप मेरा अनुभूत योग बाजीकरण चूर्ण और वातरोगहर वटी गोल्ड का सेवन कर सकते हैं, जिसका लिंक दिया गया है. 


बाजीकरण चूर्ण 

वातरोगहर वटी गोल्ड


04 जून 2023

Hartal Bhasma Benefits & Use | हरताल भस्म के चमत्कार

 

hartal bhasma benefits

हरताल तेज़ी से असर करने वाली औषधि है जिसे हरिताल भी कहा जाता है. अंग्रेजी में इसे Arsenic Tri Oxide के नाम से जाना जाता है. 

हरताल तो तरह का होता है. पिण्ड हरताल और तबकिया हरताल 

तबकिया हरताल को पत्र हरताल और वर्कि हरताल जैसे नामों से भी जाना जाता है. इसे कहीं-कहीं हड़ताल भी कहा जाता है. 

इससे मिलते जुलते नाम वाली दवा गोदन्ती हरताल या हरताल गोदन्ती अलग चीज़ है. हरताल गोदन्ती सफ़ेद रंग की होती है जबकि यह वाली हरताल या तबकिया हरताल पिली सुनहरे रंग की होती है.

हरताल भस्म जो है गठिया, कुष्ठ, सिफलिस, हर्प्स, चर्मरोग जैसे अनेकों रोगों को दूर करती है. 

हरताल भस्म निर्माण विधि 

इसकी भस्म बनाकर ही प्रयोग किया जाता है, ऐसे यह ज़हरीली होती है. भस्म बनाने के लिए सोने के जैसी पिली, भरी, चमकदार और छोटे-छोटे साइज़ वाली वर्कि हरताल ही बेस्ट होती है. भस्म बनाने से पहले इसका शोधन करना होता है. 

हरताल शोधन विधि 

हरताल को शोधित करने के लिए सबसे पहले इसे चने के साइज़ के छोटे-छोटे टुकड़े कर मोटे सूती कपड़े में बांधकर मिट्टी की हांडी में पेठे का रस डालने के बाद इसे उसमे लटकाकर मतलब डुबाये हुए छह घंटा तक पकाया जाता है. ऐसे अरेंजमेंट को ही आयुर्वेद में 'दोला यंत्र' कहा जाता है. इसके बाद इसे निकालकर काँच के बर्तन में रखकर, इसमें इतना निम्बू कर रस डाला जाता है की यह डूब जाये. इसी तरह से रोज़ निम्बू का रस बदला जाता है सात दिनों तक. इसके बाद हरताल के टुकड़ों को पानी से धोकर सुखा लिया जाता है. तो इस तरह से हरताल शुद्ध हो जाता है. यह शोधन विधि 'सिद्ध योग संग्रह' में बतायी गयी है. 

हरताल भस्म निर्माण विधि 

जैसा कि आप सभी जानते हैं भस्म बनाना एक जटिल प्रक्रिया है. हरताल की भस्म बनाने से पहले शोधित हरताल को पलाश के जड़ के क्वाथ की तीन भावना देनी होती है. इसके लिए पलाश के जड़ का क्वाथ शहद के इतना गाढ़ा बनाना होता है. 

पलाश के जड़ की तीन भावना देने के बाद इसकी टिकिया या गोला बनाकर मिट्टी के छोटे बर्तन में डालकर कपड़मिट्टी कर सुखाकर गोबर के कन्डो की अग्नि दी जाती है. इसी तरह से 12 पुट अग्नि देने यानि बारह बार अग्नि देने से हरताल भस्म तैयार हो जाती है. 

वैसे यह बना  बनाया मार्किट में मिल जाता है, इसे ऑनलाइन ख़रीदने का लिंक निचे दिया गया है. 

हरताल भस्म  ऑनलाइन ख़रीदें अमेज़न से 

हरताल भस्म की मात्रा और सेवन विधि 

30 मिलीग्राम से 60 मिलीग्राम तक शहद के साथ या रोगानुसार उचित अनुपान से. इसे स्थानीय वैद्य जी की सलाह से ही सेवन करें नहीं तो सीरियस नुकसान हो सकता है. 

हरताल भस्म के गुण 

यह तासीर में बहुत गर्म होती है. यह कटु एवम अग्नि-दीपक होती है. कफ़ और पित्त दोष को बैलेंस करती है. 

हरताल भस्म के फ़ायदे 

यह वातरक्त, वातरोग, कुष्ठ व्याधि, उपदंश यानि गर्मी की बीमारी, चर्म रोग, मलेरिया, उर्ध्वश्वास, मृगी, सन्निपात, भगंदर जैसे रोगों का नाश करती है. 

आईये अब आसान भाषा में जानते हैं कि किन-किन बीमारीओं में इसका सेवन करना चाहिए - 

वातरक्त और वात रोगों में 

जब रोगी शरीर हिला भी न सके, शरीर जकड गया हो, हाथ-पैर की ऊँगली टेढ़ी हो गयी हो, हड्डियाँ मूड़ गयी हों, हड्डी में दर्द, नसों में खिंचाव हो, जोड़-जोड़ जकड़ गया हो, शून्यता आ गयी हो, यानी की छूने पर सेन्स नहीं होता हो, स्किन फटी-फटी हो, सुजन हो तो ऐसी स्थिति में रोगी को इसके सेवन से लाभ होता है. 

ऐसे रोगी को घी के साथ इसका सेवन करना चाहिए और ऊपर से ताज़ी गिलोय का रस पीना चाहिए. 

सिफलिस के नए पुराने सभी स्टेज में इसके सेवन से लाभ होता है. 

कुष्ठ रोग में भी विधि पूर्वक इसका सेवन कराया जाता है. 

अपस्मार यानि मृगी के रोग में वैद्यगण इसे ब्रह्मी के साथ सेवन करवाते हैं. 

एक बार मैं फिर से आपको बता दूँ कि इस कभी भी खुद से यूज़ न करें, वैद्य जी देख रेख में उनकी सलाह से ही इसका सेवन करना चाहिए.