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22 नवंबर 2020

Know Your Prakriti | जानिए अपनी प्रकृति को | Tridosha Quiz

 

tridosha quiz

आज चर्चा करने वाला हूँ प्रकृति के बारे में. कफ़, पित्त और वात के बारे में आपने सुना ही होगा. तो आईये जानते हैं कि प्रकृति क्या है? प्रकृति के भेद, प्रकृति की पहचान, इनका स्थान और इसके बारे में सबकुछ विस्तार से - 

शरीर की प्रकृति को Constitution of Body कह सकते हैं. प्रकृति को ही 'तासीर' भी कहा जाता है. 

वात से अस्सी, पित्त से चालीस और कफ से बीस तरह के रोग होते हैं

कफ दोष- शरीर की सरंचना को नियंत्रित और प्रभावित करता है

पित्त दोष - पाचन क्रिया को नियंत्रित और प्रभावित करता है

वात दोष - गति को नियंत्रित और प्रभावित करता है

हमारे आयुर्वेद के मनीषियों ने बहुत पहले ही  बता दिया था गर्भ काल से ही दोषों की प्रकृति मनुष्य पर असर करने लगती है. यह सब कई मॉडर्न रिसर्च से भी साबित हो चूका है



कफ़, पित्त और वात यह तीन तरह की मुख्य प्रकृति होती है पर इसके भी कुछ भेद होते हैं. आचार्य चरक के अनुसार कुल सात प्रकृतियों के शरीर होते हैं.

1) कफ प्रकृति

2) पित्त प्रकृति 

3) वात प्रकृति 

4) वातपित्त प्रकृति 

5) वातकफ प्रकृति 

6) पित्तकफ प्रकृति 

7) वातपित्तकफ प्रकृति या मिश्रित प्रकृति, इसकी को 'सम' प्रकृति भी कहा जाता है.



कफ प्रकृति 

कफ- जल और पृथ्वी का प्रतिनिधि है 

कफ का स्थान 

उरः प्रदेश यानी चेस्ट या सिने के पूरा एरिया, कन्ठ, नासिका, बाहू, आमाशय, छोटे बड़े जॉइंट्स, ग्रीवा, मेद यह सब कफ के स्थान होते हैं.

कफ प्रकृति के गुण -कफ को श्लेष्मा भी कहते हैं यह चिकना, मुलायम, गाढ़ा, स्वाद में मीठा, शीतल यानी ठण्डा और लुआबदार होता है. 

कफ प्रकृति वाले व्यक्ति का चेहरा गोल-मटोल, शरीर गठीला और पुष्ट होता है.

कफ प्रकृति वाले लोग कोई भी काम जल्दबाज़ी में नहीं करते हैं, Slow Activity के होते हैं. मोटापे की प्रवृति होती है, शहनशील होते हैं. 

इनकी चाल धीमी होती है, नीन्द गहरी आती है, शरीर माँसल होता है. कोई निर्णय सोच-समझ का लेते हैं. 

कफ प्रकृति के मनुष्य शांत, सुखी, ओजस्वी, गंभीर और दीर्घायु होते हैं



पित्त प्रकृति 

पित्त - अग्नि और जल का प्रतिनिधि है 

पित्त का स्थान- पित्त का प्रधान स्थान पक्वाशय या आंत और आमाशय की मध्यस्थली(ग्रहणी) है. लिवर-स्प्लीन, हार्ट, स्किन और दृष्टि में भी पित्त का स्थान है. आचार्य चरक के अनुसार रस, रक्त, लसिका, स्वेद और आमाशय पित्त का स्थान है.

पित्त का मूल गुण उष्ण या गर्म होता है. 

पित्त प्रकृति वाले व्यक्ति मयाने क़द के न लम्बे न बौने, न मोटे न दुबले होते हैं.

शारीरिक शक्ति और सहनशक्ति मध्यम होती है और मेहनती होते हैं

पित्त प्रकृति वालों में गुस्सा जल्दी होना, चिड़चिड़ापन, गर्मी बर्दाश्त नहीं होना, तेज़ भूख लगना, गर्म चीज़ सूट नहीं करना जैसे लक्षण होते हैं.

टाइम के पाबन्द, तेज़ चाल, चैलेंज एक्सेप्ट करने वाले और कंसंट्रेशन वाले होते हैं. 

सात्विक आहार इनको पसन्द होता है. चाय-काफ़ी, नशा और गर्म तासीर वाले भोजन इनको सूट नहीं करते. 

पित्त प्रकृति के लोगों की पाचन शक्ति तेज़ होती है, गर्मी बहुत लगती है और पसीना भी जल्दी आता है. 



वात प्रकृति 

वात का स्थान 

पक्वाशय ही वात या वायु का विशेष स्थान है. अस्थि या हड्डी, पैर की हड्डी और त्वचा में यह विधमान होता है.

वात- आकाश और वायु का प्रतिनिधि है 

वात प्रकृति के गुण - यह रुखा, ठण्डा, लघु जैसे गुणों वाला होता है. 

वात प्रकृति के व्यक्ति का शरीर हल्का, दुबले क़द-काठी वाला होता है, इनकी आवाज़ कमज़ोर और फटी हुयी होती है, कोई भी काम तेज़ी से करते हैं, नीन्द कम आती है, गहरी नींद नहीं आती.

भूख और पाचन शक्ति अनियमित होती है, कब्ज़, चिंता, तनाव जैसी समस्या हो सकती है. 

वात प्रकृति वाले ज़्यादा बात करने वाले, चिन्ता करने वाले, तिल को ताड़ बनाने वाले और किसी बात पर क़ायम नहीं रहने वाले होते हैं.

वात प्रकृति वालों को अवर बल वाला कहा गया है.

वात पित्त प्रकृति 

वात पित्त प्रकृति के व्यक्ति में गर्मी सहन करने की थोड़ी क्षमता होती है. बुद्धि तेज़ होती है, कोई भी चैलेंज एक्सेप्ट करने से पहले थोड़ा घबराते हैं परन्तु पीछे नहीं हटते. संवेदनशीलता, धैर्य की कमी और तनाव जैसे लक्षण इनमे पाए जाते हैं. 

पित्त कफ़ प्रकृति 

इनका शरीर भारी पर सुडौल होता है. चाल और बुद्धि तेज़, गुस्सा और Criticize करने की आदत होती है.

वात कफ प्रकृति 

ऐसे व्यक्ति संवेदनशील, शांत, सुगठित शरीर वाले और शान्ति प्रिय होते हैं. पाचन मन्द होता है और ठण्डा आहार-विहार इनको सूट नहीं करता है. 

सम प्रकृति या त्रिदोष प्रकृति 

ऐसे प्रकृति वालों का तीनो दोष यानी कफ, पित्त और वात बैलेंस होता है. ऐसी व्यक्ति हर तरह से फिट और स्वस्थ होते हैं और लम्बा जीवन जीते हैं. 

तो यह थी प्रकृति के बारे में संक्षेप में जानकारी, चूँकि यह एक लम्बा विषय है इसपर घन्टों चर्चा की जाये तो भी कम पड़ेगा. 

आप किस प्रकृति के हैं आसानी से जानने के लिए आप 'प्रकृति निर्धारक प्रश्नोत्तरी' या क्विज में हिस्सा लेकर जान सकते हैं जिसका लिंक दिया गया है - प्रकृति निर्धारक प्रश्नोत्तरी 



20 नवंबर 2020

Bilwadi Lehya Benefits | बिल्वादि लेह्य/बिल्वाअवलेह के फ़ायदे

 

bilwadi lehya

बिल्वादि लेह्य को बिल्वा अवलेह, बिल्वादि लेह्यम जैसे नामों से जाना जाता है जिसका विवरण 'सहस्र योग'  में मिलता है जिसका मुख्य घटक बिल्व फल मज्जा का कच्चा बेल का गूदा होता है. 

बिल्वादि लेह्य के घटक या कम्पोजीशन 

इसके कम्पोजीशन की बात करें तो इसे बिल्व फल क्वाथ, गुड़, नागरमोथा, धनियाँ, जीरा, छोटी इलायची, दालचीनी, नागकेशर और त्रिकटु यानि सोंठ, मिर्च और पीपल के मिश्रण से अवलेह-पाक निर्माण विधि से बनाया जाता है. 

बिल्वादि लेह्य की मात्रा और सेवन विधि 

5 से 10 ग्राम रोज़ दो-तीन बार या वैद्य जी के निर्देशानुसार 

बिल्वादि लेह्य के फ़ायदे 

उल्टी, दस्त, पेचिश, अरुचि, ग्रहणी या IBS, आँव आना जैसी समस्या होने पर इसका सेवन किया जाता है. 

खाना खाते ही दस्त होना और बार-बार दस्त होने में सही डोज़ में इसका सेवन करना चाहिए.

खाँसी और अस्थमा में भी इस से लाभ होता है. 

चूँकि यह मल बाँधने वाली ग्राही औषधि है तो अधीक मात्रा में सेवन करने से कब्ज़ हो सकता है, इसका ध्यान रखना चाहिए. 

बच्चे-बड़े सभी को इसका सेवन करा सकते हैं, बस इसका डोज़ उम्र के हिसाब से होना चाहिए. 

ऑनलाइन ख़रीदने का लिंक दिया गया है- Dabur Bilwadi Lehya