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28 अप्रैल 2024

Vrihat Bangeshwar Ras | वृहत बंगेश्वर रस

 

vrihat bangeshwar ras

यह स्वप्न दोष, प्रमेह, धात गिरना, वीर्य विकार, मर्दाना कमज़ोरी जैसे समस्त मूत्र रोगों और पुरुष यौन रोगों में असरदार है. तो आईये इन सब के बारे में सबकुछ विस्तार से जानते हैं - 

बंगेश्वर रस 

बंग भस्म इसका एक घटक होता है इसलिए ही इसका नाम बंगेश्वर रस रखा गया है. आयुर्वेदिक ग्रन्थ भैषज्य रत्नावली और रसेन्द्र सार संग्रह में इसका वर्णन मिलता है. 

वृहत बंगेश्वर रस में स्वर्ण भस्म भी मिला होता है जबकि  बंगेश्वर रस में स्वर्ण भस्म नहीं होता और इसका कम्पोजीशन भी थोड़ा अलग होता है. आपकी जानकारी के लिए दोनों के घटक या कम्पोजीशन बता रहा हूँ, सबसे पहले जानते हैं 

बंगेश्वर रस के घटक या कम्पोजीशन 

बंग भस्म, कान्त लौह भस्म, अभ्रक भस्म और नागकेशर का बारीक चूर्ण सभी बराबर मात्रा में लेकर घृतकुमारी की सात भावना देकर बहुत अच्छे से खरल कर एक-एक रत्ती की गोलियाँ बना ली जाती हैं. यही बंगेश्वर रस है, इसे बंगेश्वर रस साधारण भी कहा जाता है. 

वृहत बंगेश्वर रस के घटक या कम्पोजीशन 

जैसा कि इसके नाम में वृहत लगने से ही पता चलता है कि इसका नुस्खा बड़ा है. वृहत बंगेश्वर रस के घटक या कम्पोजीशन की बात करूँ तो इसे बनाने के लिए चाहिए होता है बंग भस्म, शुद्ध पारा, शुद्ध गंधक, अभ्रक भस्म, चाँदी भस्म और कपूर प्रत्येक एक-एक तोला और स्वर्ण भस्म और मोती भस्म प्रत्येक 3-3 माशा 

निर्माण विधि यह होती है कि सबसे पहले पारा-गंधक को खरल कर कज्जली बनाकर दुसरे सभी घटक मिलाकर भाँगरे के रस में खरलकर एक-एक रत्ती की गोलियाँ बनाकर सुखा लिया जाता है. यही वृहत बंगेश्वर रस कहलाता है. यह बना हुआ मिलता है, ऑनलाइन ख़रीदने का लिंक विडियो की डिस्क्रिप्शन में दिया गया है. 

वृहत बंगेश्वर रस की मात्रा और सेवन विधि क्या है? किस अनुपान से इसका सेवन करने से पूरा लाभ मिलता है?

इसकी मात्रा या डोज़ की बात करूँ तो एक से दो गोली सुबह-शाम शहद लेना चाहिए. 

इसका पूरा फ़ायदा पाने के लिए शहद के साथ इसे चाटकर ऊपर से एक ग्लास गाय का दूध या फिर बकरी का दूध पीना चाहिए. 

वृहत बंगेश्वर रस के गुण और उपयोग 

यह त्रिदोष पर असर करता है यानी कि वात, पित्त और कफ़ तीनों को बैलेंस करता है. यह रसायन और बाजीकरण होता है. आयु, बल, वीर्यवर्धक, कान्तिवर्धक और दुर्बलतानाशक जैसे गुणों से भरपूर होता है. 

वृहत बंगेश्वर रस के फ़ायदे 

आयुर्वेदिक ग्रन्थ के अनुसार वृहत बंगेश्वर रस के सेवन से नए पुराने सभी प्रकार के प्रमेह अच्छे होते हैं. 

सभी तरह मूत्र रोग और मूत्र संक्रमण जैसे पेशाब की जलन, बहुमूत्र, UTI इत्यादि रोग दूर होते हैं.

पुरुषों के यौन रोग जैसे सोते हुए नींद में वीर्य निकल जाना, वीर्यवाहिनी नाड़ियों की कमज़ोरी, मल-मूत्र त्यागते हुए वीर्य निकल जाना इत्यादि रोग दूर होते हैं. 

ग्रन्थ के अनुसार शुक्रक्षय से उत्पन्न मन्दाग्नि, आमदोष, अरुचि, हलिमक, रक्तपित्त, ग्रहणीदोष, मूत्र और वीर्यदोष आदि सभी विकार नष्ट होते हैं. 

आसान भाषा में अगर कहा जाये तो यह पुरुष यौन अंग के रोग और मूत्र रोगों की असरदार औषधि है. यह धातुओं को पुष्ट कर शरीर को स्वस्थ और निरोगी बना देती है. 

क्या इसके कुछ साइड इफेक्ट्स भी हैं? 

यह एक सुरक्षित औषधि है, इसका कोई साइड इफ़ेक्ट या नुकसान नहीं होता है. सही डोज़ में उचित अनुपान के साथ वैद्य जी की सलाह से इसका सेवन करना चाहिए. 

क्या दूसरी दवाओं का सेवन करते हुए भी इसका  यूज़ कर सकते हैं?

जी हाँ, होमियोपैथिक या दूसरी कोई अंग्रेज़ी दवा आपकी चलती है तो भी इसका यूज़ कर सकते हैं. बस दूसरी दवा और इसके बीच में आधा से एक घंटा का अन्तर रखना चाहिए. पहले अंग्रेज़ी दवा खाएं, उसके आधा से एक घंटा बाद ही इसका सेवन करें, और अपने डॉक्टर से सलाह अवश्य लें.

यदि आप पहले से कोई विटामिन या सप्लीमेंट यूज़ करते हैं तो भी इसका सेवन कर सकते हैं. लगातार एक महिना तक इसका सेवन कर सकते हैं. 

वृहत बंगेश्वर रस और बंगेश्वर रस में कौन सा बेस्ट होता है? कौन सा यूज़ करना चाहिए और कहाँ से ख़रीदें?

वृहत बंगेश्वर रस जो स्वर्णयुक्त होती है, इसका ही यूज़ करें क्यूंकि यही बेस्ट है. यह आयुर्वेदिक दवा दुकान में मिल जाती है. अलग-अलग कम्पनी का अलग-अलग प्राइस होता है. ऑनलाइन ख़रीदने का लिंक निचे दिया गया है. 

वृहत बंगेश्वर रस ऑनलाइन ख़रीदें 


21 अप्रैल 2024

Kansya Bhasma Benefits & Usage | काँस्य भस्म, गुण उपयोग एवं निर्माण विधि

 

kansya bhasma

कांसा नाम की धातु से ही कांस्य भस्म बनाई जाती है. इसे ही अंग्रेज़ी में ब्रोंज़ नाम से जाना जाता है. यह कृमि रोग, चर्मरोग, कुष्ठरोग और आँखों की बीमारियों इत्यादि अनेको रोगों में असरदार है, तो आइये कांस्य भस्म में गुण, उपयोग, फ़ायदे और निर्माण विधि के बारे में सबकुछ विस्तार से जानते हैं - 

कांसा को ही आयुर्वेद में काँस्य कहा जाता है. इसके बर्तन अक्सर हमारे घरों में यूज़ किये जाते थे, इसके अच्छे गुणों के कारन. आज के ज़माने में तो इसका बहुत कम ही प्रयोग किया जाता है. कांसे के बर्तन में खाने या पानी पीने से भी बहुत फ़ायदा होता है, यह आप जानते ही हैं. 

इसी काँसे को शोधित कर पुरे विधी विधान से इसके भस्म का निर्माण किया जाता है, काँस्य भस्म निर्माण विधि विडियो के अंत के पुरे विस्तार से बताऊंगा. 

किस धातु के बर्तन में खाना बनाने और खाने के क्या फ़ायदे और नुकसान हैं, इसकी पूरी जानकारी के लिए आप यहाँ पढ़ सकते हैं. 

सबसे पहले जानते हैं काँस्य भस्म के गुण 

आयुर्वेदानुसार काँस्य भस्म लघु, तिक्त यानी स्वाद में कड़वा, उष्ण यानी की तासीर में गर्म और दीपन-पाचन जैसे गुणों से भरपूर होता है. यह विशेषरूप से वात-पित्त जनित रोगों में लाभकारी है. 

काँस्य भस्म की मात्रा और सेवन विधि 

एक से दो रत्ती यानी कि 125mg से 250mg तक शहद या गुलकंद मिलाकर इसका सेवन करना चाहिए.

काँस्य भस्म के फ़ायदे

कृमि रोग यानी पेट के कीड़ों और पेट की बीमारियों के लिए - 

कब्ज़ के कारन जब पेट में मल सड़कर पेट में कीड़े हो गए हों, भूख की कमी और पाचन की कमज़ोरी हो गयी हो तो काँस्य भस्म को शहद के साथ सेवन करना चाहिए. साथ में विडंग चूर्ण, विडंगारिष्ट इत्यादि का भी सेवन करना चाहिए. 

चर्मरोग या स्किन डिजीज के लिए - 

स्किन की हर तरह की प्रॉब्लम में काँस्य भस्म का सेवन कर सकते हैं. स्किन का रूखापन, एक्जिमा और कुष्ठ व्याधि इत्यादि रोगों में कांस्य भस्म को, गंधक रसायन और निम्बादि चूर्ण जैसे योग के साथ सेवन करना चाहिए. 

आँखों की बीमारियों में - 

कांस्य भस्म को सप्तामृत लौह और महात्रिफलादि घृत जैसी औषधियों के साथ सेवन करने से लाभ होता है. 

प्रमेह रोगों में यानी की धात और मूत्र रोगों में 

प्रमेह रोगों में भी इसके सेवन से लाभ होता है. रोगानुसार इसके साथ प्रवाल पिष्टी, चन्द्रप्रभा वटी, आमलकी रसायन जैसी औषधि का सेवन कर लाभ उठा सकते हैं. 

कांस्य भस्म कैसे बनता है ? 

भस्म बनाना एक जटिल प्रक्रिया होती है, आपकी जानकारी के लिए इसकी पूरी प्रक्रिया बता रहा हूँ. 

जैसा कि आप सभी जानते हैं कि किसी भी धातु की भस्म बनाने के लिए सबसे पहले उस धातु का शोधन किया जाता है. शास्त्रों में कांसे के दो भेद बताये गए हैं. पहला - तैलिक कांस्य और दूसरा पुष्प कांस्य. पुष्प कांस्य को ही भस्म बनाने के लिए श्रेष्ठ माना गया है. 

सबसे पहले जानते हैं कांसा की शोधन विधि - 

कांसा के छोटे छोटे पत्तर बनाकर इसे आग में तपाकर बारी-बारी से तिल तेल, छाछ, गोमूत्र, कांजी और कुल्थी क्वाथ में सात-सात बार बुझाने से कांसा शुद्ध हो जाता है. इसके बाद नमक मिले इमली पानी में तीन घंटे तक उबाल लेने से विशेष शुद्धी हो जाती है. इसके बाद इसके पत्रों को खराद मशीन की सहायता से बुरादा बनवा लेना चाहिए.

भस्म विधि - 

भस्म बनाने के लिए शोधित कांसे का बुरादा 100 ग्राम लेकर इसमें 100 ग्राम सेंधा नमक और उतना ही शुद्ध गंधक मिलाकर निम्बू के रस की एक भावना देकर मिट्टी के सकोरे में बन्दकर कपड़मिटटी कर गजपुट की अग्नि दी जाती है. ठण्डा होने पर इसे निकालकर पीसकर फिर इसके वज़न के बराबर शुद्ध गन्धक मिलाकर निम्बू के रस की भावना देकर गजपुट की अग्नि दें. इसके बाद फिर से इसी प्रोसेस को रिपीट करते हुए एक और अग्नि दी जाती है. 

इसके बाद अगला प्रोसेस यह होता है कि इसे ठण्डा होने पर गजपुट से निकालकर पिस लें और एक कड़ाही पर कपड़ा बाँधकर कपड़े पर थोड़ी-थोड़ी भस्म और पानी डालते रहें और हाथ से चलाते रहें. इसी तरह से पानी के साथ भस्म को छान लें. छानने के बाद भस्म को तीन-चार घंटा तक पड़ा रहने दें ताकि भस्म कड़ाही के पेंदे में जम जाये. 

इसके बाद ऊपर का पानी निथार कर अलग कर दें. जब तक पानी हरे रंग आता रहे इसी तरह से घुटाई कर पानी से छानते रहें. जब पानी में हरापन आना बन्द हो जाये तब भस्म को फिर से अच्छी तरह से घुटाई करें और इसमें थोड़ा सा तेल डालकर कड़ाही को भट्ठी में चढ़ाकर आँच लगाकर तेल को जला लें, इस दौरान भस्म को चलाते रहें. इसके बाद जब तेल पूरी तरह से जल जाये तो स्वांग शीतल होने पर भस्म को पीसकर कपड़छन कर काँच के बर्तन में भर कर रख लें. यही कांस्य भस्म होता है. 

जानिए आपके घर में जिस बर्तन में खाना बनाया जाता है उसके क्या नुकसान हैं?