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04 जून 2023

Hartal Bhasma Benefits & Use | हरताल भस्म के चमत्कार

 

hartal bhasma benefits

हरताल तेज़ी से असर करने वाली औषधि है जिसे हरिताल भी कहा जाता है. अंग्रेजी में इसे Arsenic Tri Oxide के नाम से जाना जाता है. 

हरताल तो तरह का होता है. पिण्ड हरताल और तबकिया हरताल 

तबकिया हरताल को पत्र हरताल और वर्कि हरताल जैसे नामों से भी जाना जाता है. इसे कहीं-कहीं हड़ताल भी कहा जाता है. 

इससे मिलते जुलते नाम वाली दवा गोदन्ती हरताल या हरताल गोदन्ती अलग चीज़ है. हरताल गोदन्ती सफ़ेद रंग की होती है जबकि यह वाली हरताल या तबकिया हरताल पिली सुनहरे रंग की होती है.

हरताल भस्म जो है गठिया, कुष्ठ, सिफलिस, हर्प्स, चर्मरोग जैसे अनेकों रोगों को दूर करती है. 

हरताल भस्म निर्माण विधि 

इसकी भस्म बनाकर ही प्रयोग किया जाता है, ऐसे यह ज़हरीली होती है. भस्म बनाने के लिए सोने के जैसी पिली, भरी, चमकदार और छोटे-छोटे साइज़ वाली वर्कि हरताल ही बेस्ट होती है. भस्म बनाने से पहले इसका शोधन करना होता है. 

हरताल शोधन विधि 

हरताल को शोधित करने के लिए सबसे पहले इसे चने के साइज़ के छोटे-छोटे टुकड़े कर मोटे सूती कपड़े में बांधकर मिट्टी की हांडी में पेठे का रस डालने के बाद इसे उसमे लटकाकर मतलब डुबाये हुए छह घंटा तक पकाया जाता है. ऐसे अरेंजमेंट को ही आयुर्वेद में 'दोला यंत्र' कहा जाता है. इसके बाद इसे निकालकर काँच के बर्तन में रखकर, इसमें इतना निम्बू कर रस डाला जाता है की यह डूब जाये. इसी तरह से रोज़ निम्बू का रस बदला जाता है सात दिनों तक. इसके बाद हरताल के टुकड़ों को पानी से धोकर सुखा लिया जाता है. तो इस तरह से हरताल शुद्ध हो जाता है. यह शोधन विधि 'सिद्ध योग संग्रह' में बतायी गयी है. 

हरताल भस्म निर्माण विधि 

जैसा कि आप सभी जानते हैं भस्म बनाना एक जटिल प्रक्रिया है. हरताल की भस्म बनाने से पहले शोधित हरताल को पलाश के जड़ के क्वाथ की तीन भावना देनी होती है. इसके लिए पलाश के जड़ का क्वाथ शहद के इतना गाढ़ा बनाना होता है. 

पलाश के जड़ की तीन भावना देने के बाद इसकी टिकिया या गोला बनाकर मिट्टी के छोटे बर्तन में डालकर कपड़मिट्टी कर सुखाकर गोबर के कन्डो की अग्नि दी जाती है. इसी तरह से 12 पुट अग्नि देने यानि बारह बार अग्नि देने से हरताल भस्म तैयार हो जाती है. 

वैसे यह बना  बनाया मार्किट में मिल जाता है, इसे ऑनलाइन ख़रीदने का लिंक निचे दिया गया है. 

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हरताल भस्म की मात्रा और सेवन विधि 

30 मिलीग्राम से 60 मिलीग्राम तक शहद के साथ या रोगानुसार उचित अनुपान से. इसे स्थानीय वैद्य जी की सलाह से ही सेवन करें नहीं तो सीरियस नुकसान हो सकता है. 

हरताल भस्म के गुण 

यह तासीर में बहुत गर्म होती है. यह कटु एवम अग्नि-दीपक होती है. कफ़ और पित्त दोष को बैलेंस करती है. 

हरताल भस्म के फ़ायदे 

यह वातरक्त, वातरोग, कुष्ठ व्याधि, उपदंश यानि गर्मी की बीमारी, चर्म रोग, मलेरिया, उर्ध्वश्वास, मृगी, सन्निपात, भगंदर जैसे रोगों का नाश करती है. 

आईये अब आसान भाषा में जानते हैं कि किन-किन बीमारीओं में इसका सेवन करना चाहिए - 

वातरक्त और वात रोगों में 

जब रोगी शरीर हिला भी न सके, शरीर जकड गया हो, हाथ-पैर की ऊँगली टेढ़ी हो गयी हो, हड्डियाँ मूड़ गयी हों, हड्डी में दर्द, नसों में खिंचाव हो, जोड़-जोड़ जकड़ गया हो, शून्यता आ गयी हो, यानी की छूने पर सेन्स नहीं होता हो, स्किन फटी-फटी हो, सुजन हो तो ऐसी स्थिति में रोगी को इसके सेवन से लाभ होता है. 

ऐसे रोगी को घी के साथ इसका सेवन करना चाहिए और ऊपर से ताज़ी गिलोय का रस पीना चाहिए. 

सिफलिस के नए पुराने सभी स्टेज में इसके सेवन से लाभ होता है. 

कुष्ठ रोग में भी विधि पूर्वक इसका सेवन कराया जाता है. 

अपस्मार यानि मृगी के रोग में वैद्यगण इसे ब्रह्मी के साथ सेवन करवाते हैं. 

एक बार मैं फिर से आपको बता दूँ कि इस कभी भी खुद से यूज़ न करें, वैद्य जी देख रेख में उनकी सलाह से ही इसका सेवन करना चाहिए. 




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