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02 मई 2018

Sarpgandha Vati Benefits | सर्पगंधा वटी नीन्द लाने वाली बेजोड़ औषधि


सर्पगंधा वटी एक ऐसी दवा है जो हाई ब्लड प्रेशर को कम करती है, अच्छी नीन्द लाती है. इसके इस्तेमाल से अनिद्रा या नींद नहीं आना, अपस्मार-उन्माद यानि पागलपन जैसे मानसिक रोग दूर होते हैं, तो आईये जानते हैं सर्पगंधा वटी का कम्पोजीशन, फ़ायदे और इस्तेमाल की पूरी डिटेल - 

सर्पगंधा वटी के घटक और निर्माण विधि - 

इसे सर्पगंधाघन वटी भी कहते हैं. यहाँ सिद्ध प्रयोग संग्रह का नुस्खा बता रहा हूँ. इसे बनाने के लिए चाहिए होता है सर्पगंधा 10 किलो, खुरासानी अजवाइन 2 किलो, जटामांसी और  भांग का चूर्ण एक-एक किलो और पिपलामूल 200 ग्राम. 

बनाने का तरीका यह है कि सर्पगंधा को मोटा-मोटा कूट लें और पीपलामूल के अलावा सभी चीजों को 118 लीटर पानी में शाम को भीगा दें और सुबह इसका क्वाथ बनायें. जब पानी 25 लीटर बचे तो ठंडा होने पर छान ले और फिर कड़ाही में डालकर मंद आँच में हलवे की तरह गाढ़ा होने तक पकाएं. 

अब इसे गोली बनाए लायक होने तक धुप में सुखा दें और सबसे लास्ट में पीपलामूल का चूर्ण मिक्स कर दो-दो रत्ती की गोलियां बनाकर सुखा कर रख लें. मूल ग्रन्थ के अनुसार यहाँ बताई गई मात्रा बहुत ज़्यादा है, इसी अनुपात में आप कम मात्रा में भी बना सकते हैं. वैसे यह बनी बनाई भी मिल जाती है. 

सर्पगंधा वटी की मात्रा और सेवन विधि - 

2 से 3 गोली रात में सोने से पहले दूध से लेना चाहिए.

सर्पगंधा वटी के फ़ायदे - 

यह दिमाग को शांति देने और नींद लाने वाली अच्छी दवा है. यह हाई बी.पी. की कंडीशन में बेहद असरदार है. इसके इस्तेमाल से उन्माद, अपस्मार या पागलपन और हिस्टीरिया जैसे रोग दूर होते हैं. 

नींद नहीं आना या अनिद्रा में -  

दो गोली सोने से एक घंटा पहले दूध से देना चाहिए. अगर दो गोली से फ़ायदा न हो तो तीन से चार गोली तक एक बार में लिया जा सकता है. 

हाई ब्लड प्रेशर में - 

एक से दो गोली सुबह शाम पानी से लेना चाहिए. 
उन्माद, अपस्मार और पागलपन में - दो-दो गोली रोज़ तीन बार पानी से देने से अच्छा लाभ मिलता है. 

हिस्टीरिया में - 

एक से दो गोली सुबह शाम सारस्वतारिष्ट दो स्पून + अश्वगंधारिष्ट दो स्पून मिक्स कर देना चाहिए. 

सर्पगंधा वटी के साइड इफेक्ट्स - 

यह उष्णवीर्य या तासीर में गर्म दवा है और इस से नींद आती है, इसीलिए सही डोज़ में ही इसका इस्तेमाल करना चाहिए नहीं तो नुकसान हो सकता है. 

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